तीसरे के चावल / विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
संयोगवश शहर में एक ही दिन जालिम सिंह व धर्मचंद की मृत्यु हो गई. जालिम सिंह एक नम्बर का दुष्ट व कई हत्याओं में शामिल व्यक्ति था। वह अपने जीवन के कई वर्ष जेल में बिता चुका था। उसके ठीक विपरीत धर्मचंद एक पूण्य-आत्मा, सदाचारी एवम् परोपकार की साक्षात मूर्ति थे। जब एक ही दिन दोनों की मृत्यु हुए तो एक ही दिन उनका तीसरा भी था। शमशान में तिया करने वालों की भीड़ थी।
अतं में रीति के अनुसार पके हुये चावलों को कौवा आकर खावे तब तीये की प्रक्रिया पूरी समझी जाती अत: दोनों के परिजन कौवों का इन्तज़ार करने लगे। तब ही अचानक एक कौवा कहीं से उडता आया और जालिमसिंह की राख के ढेर के पास पके चावलों को चोंच में भर कर उड़ गया।
ये देख कर सभी दंग रह गये। इसके बाद फिर एक भी कौवा वहाँ नहीं आया। बहुत देर प्रतिक्षा कर सभी वहाँ से चले गये। पर धर्म चंद के श्रेष्ठ व सदाचारी जीवन पर कौवे वाली घटना ने उस दिन प्रश्न-चिह्न सा लगा दिया। इस घटना की चर्चा कई महिनों चली कि क्या संयोगवश शमशान में कौवे के न आने व चावल न खाने से क्या किसी व्यक्ति की भलाई, बुराई में बदल सकती है और खाने पर बुराई, भलाई में।
ये प्रश्न, सभी शहर वासियों को आज भी मन ही मन परेशान करता रहता है...