तुम्हारा डर / एक्वेरियम / ममता व्यास
Gadya Kosh से
तुम डरते ही रहे। प्रेम कब करते?
तुम्हें डर था मैं सांचों में ढाल न दू तुमको। तुमने डर के अपने हाथ पीछे किये और सदियों तक उन हाथों से कविता, कहानी, किस्से लिखते रहे।
मैं आज भी दोनों हाथ फैलाए इंतजार में थी। प्रेम हंसा था बहुत देर तक मेरी बेबसी और तुम्हारे डर पर।
तुम्हारी चुप्पियों से शिकायत क्यों न हो। इन चुप्पियों ने ही तो इतिहास बदल दिए. अब ये वर्तमान और भविष्य नष्ट करेगी। अब ये तुम्हें और मुझे भस्म करेगी।
तुम डर के साथ नहीं जी पाओगे और मैं प्रेम के साथ मर जाऊंगी।
सांस टूटने के बाद कौन देख पाता है, डर के नीचे का, पीछे का तरल सरल प्रेम।
एक बार निडर होकर सुना दिया होता बात का बाकी हिस्सा...