तुम्हारे लिए( ग़ज़ल-संग्रह): डॉ.इन्दिरा अग्रवाल / सुधा गुप्ता
डॉ.इन्दिरा अग्रवाल का सद्यः प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह 'तुम्हारे लिए' मेरे हाथों में है। इससे पूर्व अपने तीन कविता संग्रह और एक हाइकु संग्रह के माध्यम से वह चर्चित-सम्मानित एवं कवयित्री के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी हैं। —-लेकिन ग़ज़ल——ग़ज़ल कहना सबके बस की बात नहीं——-विशेषतः हिन्दी में आजकल ग़ज़ल विधा लोकप्रिय होने के बावजूद अच्छी, प्रभावशाली, यादगार ग़ज़लें पढ़ने को कम ही मिलती हैं। किन्तु मेरे इस अभिमत के विपरीत, 'तुम्हारे लिए' की ग़ज़लों को पढ़ना और इन्दिरा जी की ग़ज़लों की मुख्य भाव धारा में वह संग्रह की बयासी ग़ज़लों के विषय-वैविध्य की अनूठी छटा है। प्रेम तथा प्रेम जन्य विकलता के साथ-साथ राजनीति एवं सामाजिक सरोकार ने ग़ज़लकार को विविध रूपों में अपनी ओर आकृष्ट किया है। सर्वहारा वर्ग की पीड़ा उनके दिल को कचोटती है:
जो खुले में जिए औ' खुले में मरे
छान उनकी छवाना कभी चाँदनी (कभी चाँदनी)
आज की सामाजिक विडम्बना को रेखांकित करती उनकी ईमानदार क़लम का कमाल:
हिंसक चोर उचक्के गुण्डे
कैसे हैं खुशहाल न पूछ (न पूछ)
भीतरघात ने आज जीना दूभर कर दिया है:
क्या करोगे ढूँढ कर क़ातिल ज़माने में
कत्ल उसने ही किया जो साथ रहता है (साथ रहता है)
यही नहीं,
उसकी मीठी बातें भी
रखतीं दिल में घातें भी (मीठी बातें)
राजनीति के क्षेत्र में कर्णधारों की अन्धी स्वार्थपरता ने देश को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है:
1-जब से माली बनाया उन्हें
शूल ही शूल बोने लगे (रोने लगे)
2-रहनुमाओं ने घायल किया देश को
साँप जैसे सँपेरे हैं कुछ तो करो (कुछ तो करो)
'उनके दिल में' , 'मीरा कि पायल' , 'याद कर लेना हमें' जैसी कई ग़ज़लें प्रभावित करती हैं। संग्रह की छोटी बहर की ग़ज़ल बड़ी मासूम और प्यारी बातें कह जाती हैं।
समाज को बदल डालने की महत्त्वाकांक्षा रखते हुए काँटों भरी राहों पर चलते-चलते ज़िन्दगी का हिसाब-किताब कुछ यूँ बना:
1-सूरज छूने की कोशिश में
पाँखों को झुलसाया हमने (लुटाया हमने)
2- काँच टूटा, चुभे न, यही सोचकर
बिखरी किरचें उठाती रही रात भर (रात भर)
3-हमने क्या खोया क्या पाया
अब तक नहीं समझ में आया (क्या पाया)
4-है दुःखों का बोझ इतना
मुझसे अब झिलते नहीं है (आदमी मिलते नहीं है)
5-चलते-चलते थके, भोर होती नहीं
और कितना चलें रोशनी के लिए (दोस्ती के लिए)
किन्तु इस प्रकार की अस्थायी पराजय तथा थकान के बावजूद ग़ज़लकार का 'धुन का पक्का दिल' अपनी अदम्य जिजीविषा के बल पर, निज सिद्धान्तों में अटूट आस्था रखते हुए घोषित करता है:
सिर झुकाया न झुकाएँगे कभी
धरती पर हम हैं सितारों जैसे (हमारे जैसे)
हिन्दी साहित्य जगत के आकाश में यह सितारा अपनी रोशनी बिखेरता रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।