तुम्हें न भूल पायेंगे / गिरीश तिवारी गिर्दा

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तुम्हें न भूल पायेंगे
लेखक:डॉ. सुरेश चन्दोला

‘‘याद तेरी आते ही, आँखों से अश्क नहीं रुकेंगे,
दिल में कसक उठेगी, बेचैन तन-मन हो जायेगा।
बेखौफ अन्दाज के दीवाने तेरे, आज सब गमगीन हैं,
पर जि़क्र ज़ब भी आयेगा तेरा, सब तुझे सलाम करेंगे।।

जो भी मिला जहाँ भी मिला, जिस हालात में भी मिला वही उसके मोहपाश में बँधता चला गया। बिना जाने-पहचाने प्रगाढ़ता बढ़ती चली गयी। मात्र एक बार मिलने से ही स्मृति से ओझल हो जाना उसका सम्भव नहीं हो पाया। कहते हैं वह जनकवि था, जन-आन्दोलनों का प्रणेता था, जनता के हितार्थ तंत्र पर प्रहार करने वाला था, परन्तु मेरा मानना है कि वह त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति था, वही तो था आप और हम सबका अपना गिरीश तिवारी, जिसे हमने ‘गिर्दा’ के नाम से पुकारना कब प्रारम्भ किया, यह हमें भी ज्ञात नहीं।

पत्रकारों का मंच हो या कवियों का या फिर समाजसेवियों का, यदि गिर्दा वहाँ उपस्थित रहे हों तो फिर किसी और के बारे में विचार करना ही व्यर्थ हो जाता था। उनका व्यक्तित्व इतना विशाल था कि उसके आगे सभी बौने सिद्ध हो जाते थे। धारा-प्रवाह बोलना विशेषकर जब वे कुमाउंनी बोली में कोई गीत गाते थे, तो श्रोताओं में अधिकांश वे लोग होते जो कुमाउनी बोली नहीं जानते, तो वह अपने गीत का तुरन्त ही हिन्दी रूपान्तरण भी प्रस्तुत कर देते थे।

उत्तराखण्ड जन-आन्दोलन के समय कुछ जलूसों में उनके साथ-साथ चलने का सौभाग्य मिला। गीत गाते समय मुझे झकझोर-झकझोर कर अपने साथ गाने के लिये प्रोत्साहित करते रहे, परन्तु मैं उनका साथ नहीं दे पाया, कारण कुमाउनी बोली में गाये जा रहे उनके गीत मुझे क्लिष्ठ लग रहे थे और मैं अपने आप खीझ रहा था कि मैं क्यों कुमाउनी बोली सीख नहीं पाया ? परन्तु उनके साथ-साथ चलना ही बहुत सुःखद अनुभव था।

अन्तिम भेंट उनके निवास कैलाखान, नैनीताल में हुई। नैनीताल बार ऐसोसिएशन के अध्यक्ष काण्डपाल जी की तलाश में भटक रहा था, वे तो नहीं मिले पर मिल गये गिर्दा । सहयात्री थे एल. मोहन। कुछ समय गिर्दा के साथ व्यतीत करना, उनसे वार्तालाप करना सुःखद अनुभूति थी। वे अस्वस्थ थे, आवाज में भी कम्पन था। पहले की तुलना में कमजोर प्रतीत हो रहे थे। एल.मोहन के प्रति उनका लगाव अधिक था। उनकी पत्नी ने मुझे चाय और एल. मोहन को माल्टे का जूस पिलाया। लगभग एक घण्टा उनके सानिध्य में रह कर रात्रि विश्राम के लिये नैनीताल क्लब लौट आये। बस यही उनके साथ हमारी अन्तिम मुलाकात सिद्ध हुयी।

उत्तराखण्ड पृथक पर्वतीय प्रदेश के लिये जनगीतों के माध्यम से ‘गिर्दा’ ने जो अलख जगाई, वह चिरस्मरणीय रहेगी। उनका वास्तविक सम्मान यदि प्रदेश सरकार करना चाहे, तो उन्हें ‘उत्तराखण्ड रत्न’ के अलंकरण से अलंकृत कर वह इस बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी को अपनी श्रृद्धांजली अर्पित कर सकती है।

चलों फिर कोई गीत गायें,मिल कर अलख जगायें।
भ्रष्ट होते जा रहे इस समाज को,एक बार फिर दिशा नयी दिखायें।।’

नैतीताल समाचार से साभार