तुली राम / गोपाल चौधरी

Gadya Kosh से
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तुली को सिविल इंजीनियर का काम करते हुए एक दशक हो चले। पता नहीं किन-किन शहरों! कैसे-कैसे जगहों पर उसे काम के सिलसिले में रहना पड़ा। कई बार ग्रामीण इलाकों में भी तबादला हुआ। सीमेंट, सरिया और धूल गर्द के बीच जैसे उसकी जिंदगी खुद एक कंक्रीट की बंद गुफा-सी हो गई लगती। जिससे बाहर निकल आना मुश्किल-सा लग रहा होता उसे! इस नीरस और यांत्रिक काम के बीच कब उसका वजूद खो गया, पता ही नहीं चला।

जब उसने मुंबई में काम शुरु किया तो ऐसा लगता जैसे कि अब छोड़ा कि तब छोड़ा। मन ही नहीं लगता। इस पेशे में थोड़ी भी रुचि नहीं लगती। वस्तुतः वह एक सृजनात्मक प्रकार का व्यक्ति था। वह लेखक या चित्रकार बनना चाहता। पर उसके पापा इंजीनियर थे और माँ डॉक्टर। वे उसे इंजीनियर बनाना चाहते।

पर तुली ठहरा कवि हृदय: लेखक या कवि होना चाहता। कल्पना की दुनिया में खोया रहने वाला। लय और छंद के माध्यम से दुनिया को देखने वाला और कहाँ सीमेंट, सरिया, गारा, मकान, पुल और सड़क की यांत्रिक तकनीक। पापा और माँ उसे सिविल इंजीनियर ही बनाना चाहते। क्योंकि इसमे पैसा और ऊपरी कमाई अधिक होती है!

तुली के पापा मैकानिकल इंजीनियर थे। उन्हे बड़ा अफसोस रहा कि सिविल इंजीनियर नहीं बन पाये। नहीं तो खूब पैसा कमाते! इस बात का मलाल उन्हे जिंदगी भर रहा। इसलिए उन्होने तय कर लिया था कि अपने बेटे को सिविल इंजीनियर ही बनाएँगे।

पर उनका बेटा तुली कुछ और ही सपने सँजोये हुए था। कवि बनने का। पर लोगों को बताता था, लेखक। , उपभोक्तवाद और व्यवसायीकरण के इस दौर मे! अगर वह बोलता कि कवि बनना चाहता, तो लोग मज़ाक उड़ाते। वे अक्सर हँसते और कहते और कोई ढंग का काम नहीं मिला!

तुली ने सोचा, कवि के बजाय लेखक बनना बोलना ज्यादा अच्छा रहेगा। पर जब पापा ने सुना तो आग बगूला हो उठे। उन्हने जबरदस्ती तुली का दाखिला विज्ञान विधा में कराया। जब कि वह साहित्य पढ़ना चाहता था। उसने विरोध किया। पर पापा कहाँ सुनने वाले थे!

पापा के दलीलों के सामने कोई कहाँ टिक सकता। जैसे दहेज के मामले में पापा ने कहा—तुम्हारी पढ़ाई में एक करोड़ खर्च हो गए। पचास लाख इंजीन्यरिंग कॉलेज के दाखिले के अनुदान में तथा पचास लाख लगे पांच साल के पदाई मे। कहाँ कुछ जायदा मांग रहा हूँ...

थोड़ा रुक कर बोले—फिर तुम्हारी बहन की शादी भी करनी है। उसमे करीब 75 लाख खर्च होगा। वह कहाँ से आएगा? कौन देगा? क्या गलत कर रहा हूँ तुम्ही बताओ भला...


—पर पापा! लड़की भी तो ठीक होनी चाहिए। वो... —देखो बेटा! सुंदरता देखने वाले की आंखो में होती है। फिर जवानी में तो गदही भी सुंदर लगती है।

पापा के इस भद्दे दलील पर वह चुप रह गया। वह तो न केवल दहेज के खिलाफ था बल्कि अपनी जाति में भी शादी नहीं करना चाहता। पर इस मामले में पापा के अकाट्य दलील के सामने उसकी एक भी नहीं चल पायी।


—देखो बेटा! मैं भी जात पात में विशवास नहीं करता। पर मेरी बहन-तेरी बुआ-का सोचकर अपनी जाति में मजबूरन शादी की। अगर दूसरी जाति में शादी करता तो उसकी शादी ही नहीं होती। कौन करता ऐसे लड़के की बहन से शादी जिसने दूसरी जात में शादी कर ली हो?

फिर थोड़ा रुक कर तुली की ओर देखते हुए, मानो उसके चेहरे को पढ़ रहे हो, बोले—वैसे ही अगर लव मैरेज कर लेगा, दूसरी जाति में शादी कर लेगा तो तेरी बहन से कौन शादी करेगा? क्या जिंदगी भर बहन को कुवांरी रखेगा क्या?

तुली क्या बोलता, बस चुप रह गया। कितनी थोथी दलीलें हैं लोगों की, समाज की। बात करेंगे जात-पात में विश्वास नहीं करते। बड़ी-बड़ी लंबी-लंबी बातें करेंगे जाति व्यवस्था के खिलाफ। पर शादी करेंगे अपनी ही जाति मे। दोस्ती भी करेंगे तो अपने जात वाले से। मदद भी करेंगे तो अपनी ही जाति के लोगों की!

वैसे भी उसका प्यार कहाँ परवान चढ़ने वाला था। वह भी उस लड़की से जो देश के बड़े औद्दोगिक घराने—किंघनीया की इकलौती बेटी थी। वह तुली की बैच मेट थी के आई टी मे। दोनों एक ही साथ कई सेमेस्टेरो में फेल हुए। उनके पापा पैसे दे-दे कर पास कराते रहे।

तुली के आई टी में बहुत लोकप्रिय था। कविताएँ लिखना, शेरो शायरी करना। जहाँ जाता महफिल जम जाती। करुणा, जो किंघनीय की एकलौती बेटी थी, उसकी ओर आकर्षित हुई। वह भी मजबूरी में ही के आई टी आई थी। उसके पापा की नज़र एक बड़े इंजीनियर फ़र्म के तायकुन के बेटे पर थी। उससे अपनी बेटी की शादी कराकर एक बहुत बड़ा बिज़नस डील करना चाहता।

किंघानिया ने बहुत कोशिश की थी: के-के इंजीन्यरिंग फ़र्म को हड़पने की। पहले तो के-के फ़र्म के एक तिहाई शेयर को फर्जी कंपनियो के नाम खरीदा। सोचा: और शेयर धारकों की मदद से, के-के को टेक ओवर कर लेगा। पर इससे पहले कुछ करता बाज़ार नियंत्रक संस्था ने सारे फर्जी कंपनी पर रोक लगा दी। फिर उसने के-के के पास 'मर्जर' का भी प्रस्ताव रखा जिसने उसे बड़े चालाकी से ठुकरा दिया। फिर बहुत सोच विचार करने के बाद उसने 'प्लान बी' बनाया। इसके तहत उसने अपनी बेटी, करुणा का एड्मिशन के आई टी में करवाया।

किंघानिया ने सोचा था करुणा को इंजीनियर बना कर, के-के फ़र्म में इन्टरन्शिप के लिए भेजेगा और के-के के बेटे को प्रेम जाल में फंसा कर शादी करने पर मजबूर कर देगी। फिर पूरी इंडस्ट्री उसकी मुट्ठी मे। पर जब उसे पता चला, करुणा किसी साधारण माध्यम वर्गीय परिवार के लड़के से इश्क़ लड़ा रही है, तो उसे बहुत गुस्सा आया। उसे लगा कहीं फ़र्म को हड़पने का आखिरी मौका भी न गंवा बैठे। उसने करुणा का दाखिला किसी दूसरे इंजीन्यरिंग कॉलेज में करा दी।

जब तुली को पता चला की करुणा कॉलेज से चली गई। तो वह समझ गया: उसकी जिंदगी से भी दूर चली गई और उसने चुपचाप पापा की पसंद की लड़की से शादी कर ली। ये भी न देखा कि वह कैसी है? मोटी है या पतली, सुंदर या कुरूप, गोरी या काली। क्या फर्क पड़ता? जिसे चाहा मिलीं नहीं। फिर जिस किसी को भी चाह लो, क्या फर्क पड़ता है!