तूफ़ान की डायरी / इला प्रसाद
"गुस्ताव गो अवे
टीना डजन्ट लिव हियर।"
(गुस्ताव,चले जाओ। टीना यहाँ नहीं रहती।)
वह नहीं जानती, टीना कौन है। मरीना बीच पर बने उसके घर का दरवाजा जव टी वी स्क्रीनपर उभरा था तो उसके ऊपर लकड़ी ठुंकी हुई थी और लिखा था यह वाक्य, जिसे पढ़ कर वह आगामी खतरे को आधी-अधूरी महसूसती हँस पड़ी थी। उस समय गुस्ताव के आने की चेतावनी हर टी वी चैनल पर थी।
मन में उभरा था एक गोल मटोल बच्ची का चेहरा, जो बड़े बेमन से घर छोड़कर जा रही होगी और उसने गुस्से में भर कर अपनी माँ से कहा होगा, “ क्यों आ रहा है गुस्ताव ? उसी की वजह से तो हमें जाना पड़ रहा है न? लिख दो, मैं यहाँ नहीं रहती। वापस जाए।"
या फ़िर वह कोई नवयुवती होगी जिसकी विनोदप्रियता जबरदस्त होगी। अमरीकी मुसीबत में भी मजाक कर लेते हैं!
उसकी हँसी उस शाम से गायब है। वह हँसना क्या आखिरी बार का था?
पूरी रात वह जागती रही। रात भर लिविंग रूम की खिड़की के शीशॆ से आँखें टिकाए प्रकृति का तान्डव नृत्य देखती रही। पहली बार जाना कि चक्रवाती तूफ़ान की आवाज कितनी तेज होती है! चट-चट पेड़ॊं की डालियाँ, पत्ते, टूट कर तेज हवा में सब ओर उड़ते रहे। मैदानों में, छतों पर गिरते रहे। बारिश की बूँदें चाँदनी रात में हवा के साथ मिल कर सब ओर यूँ नाचतीं ज्यों आसमान में एक विशाल स्प्रिंकलर लगा हो। इन्हीं के बीच रह- रह कर आती तेज आवाजों से वह चौंकती। समझने में असमर्थ कि सिर्फ़ डालियाँ ही नहीं, पेड़ के पेड़ धराशायी हो रहे हैं । सिर्फ़ धराशायी ही नहीं वरन उनमें से कई तने के बीचोंबीच से चार टुकड़ों में फ़ट कर चार दिशाओं में गिर रहे हैं । यह सच सुबह खुला, जब उसने अपने घर का पीछे का फ़ेन्स गिरा देखा और पड़ोसी के पेड़ का आधा हिस्सा उसके घर की छत पर। तब तक वह बुरी तरह थक चुकी थी । सिर में तेज दर्द था । पूरे शहर की बिजली, जाने कब तक के लिए, गुल हो चुकी थी और आसमान अब भी बरस रहा था।
इस समुद्री तूफ़ान को उन्होंने "गुस्ताव" नाम दिया था। गुस्ताव, जिसे टीना ने आने से मना किया था।
वह आया था, तब भी। पूरे चौबीस घंटॆ शहर में रुका था और सब ओर तबाही मचा कर अगले शहर को निकल गया था। शायद टीना को ढूंढ़ता हुआ......
एक हजार पेड़ गिरे थे। पेड़ों के साथ ट्रैफ़िक सिगनल, बिजली के तार।
शहर के समुद्री इलाके में बाढ़ थी। वह हिस्सा एक द्वीप में रातोंरात तब्दील हो चुका था और जिन्होंने सरकारी आदेश की अवहेलना कर अपने घर नहीं छोड़े थे, वे अब उस द्वीप पर भूखे प्यासे रहने के लिए मजबूर थे। उस हिस्से में संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप्प हो चुकी थी।
चौबीस घंटों में शहर का नक्शा पूरी तरह बदल चुका था।
उसके फ़्रिज में पुलाव और सब्जी थी जो सिर्फ़ आज के लिए काफ़ी थी। एक पावरोटी, जो कल खायी जा सकती है। स्टोर में थोड़ा सा चारकोल है जो आंगन में रखे बारबाक्यू में तब जलाया जा सकता है, जब बारिश थमे। वह अधिक से अधिक अगले एक दिन का खाना बनाने के लिए था। दूकानें बन्द थीं । सड़क पर रात का कर्फ़्यू।
वह सचमुच अनुभवहीन है! नीरज भी।
उसे कम से कम थोड़ा सा लकड़ी का कोयला और खरीदना था कि कम से कम अगले एक सप्ताह तक खाना बन सके। कल के बाद वह क्या खाने, खिलानेवाली है, उसे नहीं पता। मोमबत्तियाँ घर में काफ़ी हैं लेकिन उनसे बस थोड़ी रोशनी हो सकती है, उनपर खाना नहीं बनाया जा सकता।
फ़्रिज में रखा दूध कल के बाद फ़ेंकना पड़ेगा। आइस्क्रीम और बाकी की चीजें भी।
दिमाग लगातार हिसाब कर रहा है। वह अगले दो सप्ताह का समय कैसे निकालेगी ? सब कह रहे हैं कि बिजली आने में कम से कम उतना वक्त तो लगेगा ही।
थके मन और शरीर से दिवा उठी और सोफ़े पर जा लेटी। फ़िर उसने सोचा कि वह कम से कम इतनी खुशनसीब तो है कि उस द्वीप पर नहीं है। कल रात तक का खाना उसके पास है। सड़क पर बाढ़ की स्थिति नहीं बनी। नल में पानी आ रहा है और सहसा उतर आई ठंढ की वजह से वह शायद आज रात सो भी सकेगी।
"टर्टल बीच" पर तो इससे भी बुरी स्थिति थी । हवा कारों को जमीन से दो फ़ुट ऊपर उठाकर पटक रही थी।" उसकी मित्र लता, जिसने हाल ही में इस शहर में शिफ़्ट किया था, फ़ोन पर बतला रही थी।
"बाप रे! तब तो सारी कारें "टोटल" हो गई होंगी ?"
"कई लोगों की हो गईं। हमारी कार गराज में थी। बुरी तरह डैमेज हुई थी। टोटल नहीं हुई।"
"अच्छा।"
"बाढ़ की वजह से पानी भी बहुत कम आ रहा था। कुछ हिस्सों में एक महीने तक पावर नहीं आया।"
"पच्चीस साल पहले जब "अलीशिया" आई थी तब इससे बुरी स्थिति थी यहाँ। हाँ, इतने पेड़ नहीं गिरे थे।"
"तुम्हें कैसे पता?"
"लोग चर्चा कर रहे थे। मैंने सुना।"
"ओह !"
"पहले मैं सोचती थी कि अमेरिका में कभी पावर नहीं जाता।"
"हाँ, मैं भी। लेकिन ऐसा नहीं है। जहाँ बर्फ़ के तूफ़ान आते हैं, वहाँ भी पावर जाता है।"
'हाँ, अब जानती हूँ।"
फ़िर उनकी बात खत्म हो गई। ऐसे विषयों पर कोई कितनी बातें करें और कब तक ? यह कोई बातें करने का वक्त भी नहीं। तूफ़ान सिर से गुजर रहा है और बाहर आने की अवधि अनिश्चित है।
"मुझे तुम्हारा यह अपार्टमेन्ट अच्छा लगता है । मैं इसे खरीदना चाहती हूँ।" ब्रेन्डा ने कहा था।
"अगर तुम दस हजार का डाउन पेमेन्ट दे सकती हो तो "रेन्ट टू ओन" कर सकती हो"- नीरज ने सुझाया था। तब, जब पूरा देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, घर बिक नहीं रहे। कोई घर खरीदना चाहता है। यह बस तीन महीने पहले की बात है। वह सुनकर खुश हुई थी । नीरज का अपार्टमेन्ट किसी को इतना अच्छा लगा।
उस अपार्टमेन्ट की छत गिर गई है। सिर्फ़ उसी की नहीं, और बहुत सारे अपार्टमेन्ट्स की। एक मंजिले घरों की भी गिरी होगी। लेकिन आदमी अपने दुख से पहले रोता है। दिवा का दिल डूब गया जब सुबह - सुबह जेरेमी का फ़ोन आया।
"खैरियत है कि ब्रेन्डा जेरेमी के साथ चली गई थी, पहले ही।"
"अच्छा ! आश्चर्य है।"
जेरेमी, ब्रेन्डा का ब्वायफ़्रेन्ड है। ब्रेन्डा चाहे उसकी जितनी मदद ले ले, उसके साथ रहना नहीं चाहती।
"हाँ, वह जाना नहीं चाहती थी। जेरेमी बारह बजे रात तक उसके यहाँ बैठा था। तब हवाएँ बहुत तेज हो चुकी थीं । बारिश भी शुरू हो रही थी । वह समझा-बुझा कर उसे उसके बच्चों के साथ वहाँ से निकाल ले गया।"
"भगवान का लाख-लाख शुक्र है, वरना छत कहीं उसके या बच्चों के ऊपर गिरी होती। वह क्या जेरेमी के घर पर है?"
"नहीं, जेरेमी ने अपने कजिन के खाली पड़े घर में उसे टिका दिया है। उसका भाई अभी स्पेन गया हुआ है।"
"चलो,अच्छा हुआ।"
आज तूफ़ान का दूसरा दिन है!
तूफ़ान का चौथा दिन
नीरज पूरे शहर के सारे स्टोर देख आया । कहीं कुछ भी खुला नहीं । सारे स्टोर बन्द हैं । घर पर खाने को कुछ नहीं है। कोयला खत्म हो चुका है। सुबह बचा हुआ ब्रेड खा लिया गया था। आगे क्या? कल का खाना निधि के घर खाया। उसके पास गैस का चूल्हा है। उन दोनों को इतनी अक्ल क्यों नहीं आई कि गैस का चूल्हा रखें !
हर दूसरे घर के आगे एक पेड़ गिरा मिला। सड़क किनारे भी। ट्रैफ़िक सिगनल हवा में झूल रहे हैं। लोग हर सिगनल पर रुक कर आगे जा रहे हैं। जिन्दगी की रफ़्तार पर ब्रेक लग गया है जैसे। घिसट रहा है सबकुछ, बस।
एक "क्रोगर" खुला मिला। जेनरेटर चल रहा था वहाँ। कुछ बुलियन रोल और पीनट बटर मिल गया। एक दिन और बीत गया।
बिजली गायब है।
बच्चे खुश हैं। निधि ने बतलाया । स्कूल में छुट्टी जो है। लेकिन दिन भर की ही खुशी। रात होते ही चिल्ल-पों।
रेडियो पर लगातार तूफ़ान के बाद की सूचनाएँ आ रही हैं।
"सरकारी सहायता कोष ने कई सेन्टर खोले हैं । मैं देख कर आता हूँ, वहाँ क्या मिल रहा है।"
रात ढले नीरज वापस लौटा। एम आर ई( मील्स रेडी टू ईट) के कई डब्बे। पानी की बोतलें और बर्फ़।
"बहुत धांधली है । चर्च को बतलाया गया था कि रात आठ बजे तक सेंटर खुला रहेगा। रेडियो पर भी यही सूचना थी। छह बजे अचानक से बन्द करने के आदेश आ गए। उनका कहना है, हमें अनुभव नहीं है, इतने लोगों से एक साथ डील करने का। दस हजार लोग आ गए थे, एक साथ । बन्द कर दिया सेंटर छह बजे ही।
"हाँ, तूफ़ान तो रोज- रोज आने चाहिए। इनकॊ अनुभव होगा । "कैटरीना" से कैसे निबटा था? तब अनुभव था? " वह तिक्त स्वर में बोली।
"मैंने पार्किंग एरिया में अपनी बारी के इंतजार में रुके कई लोगों को पानी और डब्बे दिए जो मैंने लिए थे।"
"अच्छा किया।"
"इन डब्बों में क्या है?"
"खोलो, देखो।"
"सारा कुछ नान वेज। मैं दूध ले सकती हूँ बस!"
तूफ़ान का पाँचवां दिन
आज पाँचवे दिन से सड़क पर एनर्जी कम्पनी की गाड़ियाँ दौड़ लगाने लगीं हैं। सायरन देती हुई। हटॊ हटॊ, हमें आगे जाने दो। बिजली ठीक करनी है शहर की।
सोया हुआ शहर जाग रहा है धीरे- धीरे। कुछ दूकानें भी खुल गईं । वे बहुत सारा चारकोल ले आए हैं । अब खाना बन सकता है। अंधेरे में भी जिया जा सकता है!
दरवाजे पर सांझ ढले दस्तक हुई तो नीरज ने जा कर देखा। पड़ोसन बेलिंडा के बच्चे दरवाजे पर खड़े थे। "यू हैड लेफ़्ट यूअर कार ट्र`क ओप्न। वी क्लोज्ड इट।" ( तुमने अपनी कार का ट्रंक खुला छोड़ दिया था। हमने बंद कर दिया।)
वह सहसा कृतज्ञ हो आई।
परेशानियाँ, लगता है मष्तिष्क पर हावी होने लगी हैं।
"कुछ खाओगे?" नीरज ने सोचा कुछ एम आर ई के डब्बे उन्हें दे दे।
"नो वी हैव एनफ़ फ़ूड। वी हैव गैस बर्नर। मॊम इज कुकिंग। वी हैव जेनरेटर टू।" (नहीं, हमारे घर में पर्याप्त भोजन है। हमारे पास गैस बर्नर है। माँ खाना बना रही हैं। हमारे पास जेनरेटर भी है।)
लेकिन तब भी उनके घर जा कर खाना पकाना उसे सम्भव नहीं लगा।ठीक सामने का घर, लेकिन तब भी दूरियाँ बहुत हैं। आकर पका लो. अगर बेलिंडा ने कहा होता तो ठीक था। ऐसा तो हुआ नहीं। बच्चों का क्या। बच्चे तो बच्चे ठहरे!
दस दिन बाद
"दस दिन हो गए। कब आयेगी बिजली ?" नीरज अब तक कई बार एनर्जी कम्पनी को फ़ोन कर चुका है।
सूचना के अधिकार का उपयोग और क्या !
अपार्टमेन्ट में ब्रेन्डा का सारा सामान भीगा पड़ा है। फ़फ़ूँद जमनी शुरू हो चुकी। गीले कारपेट को निकाला जा चुका। लेकिन बस इतना ही। ब्रेन्डा बात करते ही रोने लगती है।
"तुम मुझे निकालना चाहते हो? एक तो तूफ़ान ने मेरा बुरा हाल किया और तुम्हें अपार्टमेन्ट की छत ठीक करवाने की पड़ी है। मैं "फ़ेमा" के इन्स्पेक्शन के पहले कुछ नहीं हटानेवाली।"
"लेकिन ..वहाँ फ़फ़ूँद जम रही है।'
"जमने दो।"
वह फ़िर से रोने लगती है।
दिवा टूटा हुआ घर देख आई। मलबे में तब्दील हुआ सारा कुछ। लौटकर बहुत रोई। पता नहीं, अपने लिए या ब्रेन्डा के लिए।
तूफ़ान का बारहवाँ दिन
आज चीनो का फ़ोन आया। अपार्टमेन्ट के ग्राउन्ड फ़्लोर पर वह है। उसने वह अपार्टमेन्ट तीन सप्ताह पहले खरीदा था । अब ऊपर के अपार्टमेन्ट की छत गिरने से उसके घर भी काफ़ी पानी रिसा है। दीवारें भीगी हैं । वह जानना चाहता है कि नीरज कब काम शुरू करेगा।
ब्रेन्डा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं।
आज जेरेमी को कजिन के वापस आने की सूचना मिली है। ब्रेन्डा जेरेमी के घर में दिन भर अपना सामान शिफ़्ट करती रही। कल से उसे काम पर जाना है। अस्पतालों में बिजली आ चुकी है। सड़कों पर भी और कई शापिंग माल में भी।
वे शहर के उस हिस्से में एक अपार्टमेन्ट में चले गए हैं जहाँ बिजली आ चुकी है। ठंढ के बाद फ़िर से गर्मी हो गई। दिवा की तबियत बहुत खराब हो गई थी।
कई लोग होटलों में चले गए हैं। गुस्ताव के मद्देनजर होटल टैक्स माफ़ हो गए हैं।
नीरज की सारी चिन्ता अब अपार्टमेन्ट है। इन्श्योरेन्स कम्पनी मुआयना कर गई लेकिन उनका हिसाब वास्तविक हिसाब से मेल नहीं खाता। तब भी उसने सबकुछ ठीक करवाया है। ब्रेन्डा कहीं और नहीं जाना चाहती थी । उसे अपने घर वापस लौटना है। उसी अपार्टमेन्ट में।
नीरज जुटा हुआ है।
तूफ़ान ने बहुतों के अहम तोड़े हैं । बहुत सारे भरम टूट गए।
जेब में भरे डालर किसी काम नहीं आए। अचानक से सामाजिकता नजर आई। वेरोनिका ने बहुत मदद की नीरज और दिवा की। वे अरसे से एक ही सबडिवीजन में रह रह थे और एक दूसरे को जानते तक न थे। उसी वेरोनिका के घर बिजली पहले आई और दिवा उसकी मशीन में अपने कपड़े धो आई।
डोरोथी ने गर्म पानी दिया था। वे जेनरेटर ले आए थे।
नीरज की तो पुरानी आदत थी, लोगों को पूछ -पूछ कर सहायता करने की। भारतीय संस्कार। इसी क्रम में तो वेरोनिका से परिचय हो गया। सहायता मिल गई। मुसीबत इन्सान को जुड़ना सिखाती है!
ब्रेन्डा का बहुत सारा सामान अभी भी अपार्टमेन्ट में है। वह कब लौटेगी, उन्हें जानना है। जेरेमी भी इस मामले में मदद नहीं कर पा रहा अब।
नीरज कई बार उससे भी बात कर चुका। वह यूँ भी जेरेमी की कहाँ सुनती थी। जेरेमी तो कब से उससे शादी करना चाहता है। लेकिन अपनी इच्छा को मन में दबाए हुए है। जानता है ब्रेन्डा का दिल नहीं जीत पाया है वह अब तक । न उसके बच्चे ही उसे पसन्द करते हैं। विधुर जेरेमी के बच्चे चाहे ब्रेन्डा को स्वीकार लें। वह है भी खूबसूरत। आम अफ़्रीकी अमेरिकन से कम काली और सुन्दर नाक नक्श वाली। शायद इसीलिए खुद पर इतना गुमान हो। जेरेमी भी सोचता होगा, इतनी सुन्दर कहाँ मिलेगी। शायद इसीलिए उसकी शर्तों पर उससे सहयोग करता है।
लेकिन ऐसे कब तक चलेगा?
आज तूफ़ान का सोलहवाँ दिन है। बाजार खुल गए। सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें जलती हैं। ट्रैफ़िक सिगनल, कुछ को छोड़ कर काम करते हैं। चीजों की कीमतें दुगनी- तिगुनी हो गईं। मरेगा गरीब और क्या!
नीरज और दिवा अपने सबडिवीजन के करीब से गुजरे तो मन हुआ कि घर तक जाकर कुछ चीजें और उठा लाएं । पता नहीं अभी और कितने दिन अपार्टमेंट में रहना लिखा है। दिवा की तबियत बिगड़ गई थी। अभी भी थका -टूटा मन है। शरीर से सारी उर्जा निचुड़ गई जैसे। इतने थोड़े दिनों में.....
"देखो, इस हिस्से में भी रोशनी आ गई।"
और इसी तरह देखते- रुकते वे आगे बढ़ते रहे।
"स्ट्रीट लाइट सारी जल गई।"
"अरे, अपनी गली में भी!"
"बर्नार्डो की लाइट जल रही है।"
"उनका जेनरेटर है।"
"बैक यार्ड की लाइट देखो। अपने घर बिजली आ गई।"
नीरज ने घर के सामने कार पार्क कर दी। बिजली की फ़ुर्ती से वह घर की ओर बढ़ा और दरवाजा खोलकर घर में दाखिल हो गया । सारी लाइटें एक- एक कर जल उठीं। बिजली सचमुच आ गई थी ! दिवा को लगा एक सौ वाट का बल्ब उसके अन्दर भी जल गया है। एकबारगी नई ऊर्जा शरीर में भर गई। अब वह सबकुछ कर सकती है !
महीना बीत गया। वे अपने घर वापस आ गए थे उसी रात। शहर अब भी गुस्ताव को भूला नहीं, लेकिन अपने काम में लग चुका है। इन्श्योरेन्स कम्पनियाँ पैसे चुका रही हैं । मरम्मत के बाद नए दिखते घर पुन: मुसकराने लगे हैं। काउन्टी का ट्रक गलियों में भी घूमने लगा है - रोबोटिक आर्म वाली कई गाड़ियों के साथ । घरों के सामने से गिरे हुए पेड़, पत्ते, डालियाँ, फ़ेन्स के पिकेट पंजों में समेटता, उठाता और फ़िर ट्रक में डालता हुआ। शहर फ़िर से साफ़ दिखने लगा है। सड़कों पर गाड़ियों की रफ़्तार पूर्ववत हो गई है। जिन्दगी की भी । पावर आ गया है!
आंगन में बारबाक्यू पूर्ववत पड़ा है। तूफ़ान की याद दिलाता हुआ...... जहाँ- तहाँ दियासलाई के डब्बे...........
अपार्टमेन्ट की मरम्मत हो गई, लेकिन ब्रेन्डा जैसे बदल गई है। कुछ सामान अब भी अपार्टमेन्ट के इकलौते सूखे हिस्से में पड़ा है और उसे वापस लौटने में कोई दिलचस्पी नहीं।
'आखिर उसे वापस लौट कर उसी अपार्टमेन्ट में आना तो है न? सहयोग करे तो उसी का फ़ायदा होगा। या फ़िर हम दूसरा किराएदार लें, यदि वह सामान हटाए। वह आयेगी न?" उसने नीरज से पूछा ।
"शायद नहीं।"
"क्यों?"
"मुझे आज जेरेमी ने बताया कि वह अब उसके साथ रहने को राजी हो गई है। वे शादी करने जा रहे हैं।"
"जुड़ने से पहले बिखरना जरूरी होता है क्या ? " दिवा देर तक सोचती रही।
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फ़ेमा- फ़ेडेरल एमर्जेन्सी मैनेजमेन्ट आर्गनाइजेशन
गुस्ताव, अलीशिया, कैटरीना - तूफ़ानों के नाम।