तू काहे न धीर धरे / सुशील यादव
वैसे तो किसी के पास ‘मन’ दस –बीस नहीं होता, सो अपने पास भी नहीं है|
ले-दे के ,पैदाइशी एक है जो,ज़रा सा भी कच्चे में उतरना नहीं चाहता।
ऐशो-आराम का ‘तलबी’ है कमबख्त ....|.
ज़रा सी गडबड हुई नहीं कि उदास हो जाता है।
कोप भबन में जाने का रिकार्ड , कैकेई माता के बाद मानो इसी का है।
अब की बार इस दिल को जो शिकस्त मिली है, वो तो पूरे पांच साल वाली चोट है।
उबर पायेंगे कि नहीं कह नहीं सकते ?
आप तो खुद जानते हैं,राजनीति में ‘मुगालतें’ पालना एक ऐसी घुट्टी है, जो हर कोई राजनीति में आने के ‘डे-वन’ से पिए रहता है।
गौर करने वाली बात है ,आपके पास अपनी कोई ‘शख्शियत’ नहीं, मगर पार्टी के दम में दहाड़ के, अच्छे-अच्छो की बोलती बंद किये रहते हैं।
वे जो दिग्गज नेता हैं जिनके बारे में पता होता है कि वे घर में भी बैठे तो जीत जायेंगे।मगर वही दिग्गज पार्टी से दरकिनार कर दिए जाते हैं तो मानो उनकी कलई खुल जाती है|जमानत बचने-बचाने के लाले पड़े दिखते हैं।
मुगालता,हम भी पाले बैठे थे.....?
हमारे चमचों ने, कहाँ –कहाँ से आंकड़े ला के दिए, लगा हम दमखम से पार्टी के साथ कुर्सी हथिया रहे हैं|मिनिस्ट्री बन रही है।शपथ लिए जा रहे हैं।.......आंकड़े खुले तो चारों खाने चित्त।
सपने में नहीं सोचे थे कि सीकिया पहलवान छाप बीडी जैसे लोग , हम खाते-पीते हुए ‘चुरुटो’ पर भारी पडेगे।
ऐसा विचित्र किन्तु भ्रामक तथ्य बस फिल्मो में होते पाया जाता था।
खैर अभी....मन जो है .....टुकड़े-टुकड़े है ....क्या करें कुछ समझ में नहीं आता ?
’मन’ में जोड़ लगाने वाला फेवीकल ,क्विकफिक्स कहीं इजाद हुआ हो तो कहो ?
ऐ भाई साहब.....!!!
हमको मन में जोड़ लगाना है ,दो टूटे सिरों को गाँठ बाँध के जोडना नहीं है .....आप भी एकदम शार्टकट वाली पे आ जाते हो ?
वैसे मन को टेम्परेरी तौर पर जोडने के, लोकल टाइप नुस्खे आजमाने में , कई ‘आदम’ जात लोग, ‘बोतल’ या ‘हव्वा’ की तरफ ताक-झांक करते पाऐ जाते हैं।
हम जैसे ‘संस्कारी’ लोग जाए तो जाए कहाँ ...?
हारने का दंश है....|नाग का डसा है.....,जख्म गहरा है.....|
कहने को आम धारणा तो है,ये धीरे-धीरे उतरेगा –आप ही आप चला जाएगा ...?
न जाने क्यों हमारी छठी इन्द्रिय, इलेक्शन के बीच-बीच में जवाब दिए जा रही थी, अब की बार ‘बालिंग’ ठीक नहीं हो रही है जनाब सम्हलो ....!
हम दस-बीस साल पहले के सठियाये हुए पार्टी के धुरंधरों को बतलाने की कोशिशे की माजरा खुल के समझाना चाहा।वे हमे आलाकमान तक खुलने नही देते थे सो अनसुनी करते रहे ...|
”बाल” बल्ले के बीचो-बीच नहीं आ रहा है, शायद ‘पिच’ बनाने वाले ने गडबड की है ,मैच हाथ से निकला सा दिख रहा है।हमारी बात ऊपर , ‘रुई मास्टरों की फौज’ में दब के रह गई ?उल्टे हमी पे सबोटाज वाला इल्जाम लगा के इलेक्शन बाद सस्पेंड करवाने ,और देख लेने की जुगत में रहे भाई लोग।
हमारा मन इस वजह से खट्टा जरूर हुआ, मगर इलेक्शन मझधार में फटा नहीं।
अपना गनपत, खबर निकाल के लाया था, कि हमें हरवाने में हमारी पार्टी के दिग्गज ही एक हो लिए थे ?
उनको लगा कि हम जीते तो मिनिस्ट्री पक्की।हमारी मिनिस्ट्री यानी मुन्नाफे की संभावनाएं भी हमारी।
आजकल दूसरे की थाली को सजते हुए देखने का रिवाज मानो खत्म सा हो गया है।
खेल कैसा भी हो,जो जीत रहा हो उसका बिगडना चाहिए।
न खायेगे न खाने देंगे वाली मानसिकता का नारा उछल गया है।
बिलकुल नजदीकी लोग टांग खींचे रहते हैं क्या करें ?
हमारे पास हमारे जीतने के बहुत से कारण और आंकड़े थे।गोया; हमने बाढ में, गाँव में फंसे लोगो की मदद की।राशन –पानी, टेंट,दवा दिलवाया।फसल बीमा का मुआवजा दिलवाया|मुरूम वाली सड़क को कोलतार वाली बनवाया।जिसमे ठेकेदार ने मुरूम पे सिर्फ कोलतार की पेंट चढा दी लोग उसे न पकड़ के मुझ पे इल्जाम थोप दिए।जनतंत्र में जनता की बात मानी जावे ये सोच के हम बोल नहीं पाए।(दिल यहाँ भी क्रेक हुआ।) गौरव पथ नाम के कई सड़कों का जीर्णोद्धार किया,तब जाके कुछ दिनों के लिए वे अपना नाम सार्थक कर सके।हम अपनी बिरादरी के लोगों को सायक्ल स्टेंड,मुफ्त रिक्शे,बच्चियों को सायकल ,बच्चों को लेपटाप और न जाने क्या-क्या बाटे।पाने वाले ज्यादा बता सकते हैं।
इस पर भी हमें हारना लिखा था ....?धिक्कार है .....?
लानत है ऐसे ‘माहौल’को या जाहिल ,गंवार,नासमझ,जनता को, जो, मायाजाल ,छलावा, लालच और भ्रम में जीने के लिए कुंठित हो गई है ?.....
दिल टूटा है भाई! कह लेने दो !
ऐसे ही बस जी हल्का करने की फिराक में रहता हूँ।मुझे खुदा के वास्ते रोको मत ......