तृतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन-कलकत्ता / रामचन्द्र शुक्ल

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हिन्दी साहित्य सम्मेलन का तृतीय अधिवेशन ता. 21, 22 और 23 दिसम्बर, 1912 ई को कलकत्तो में होना निश्चय हुआ है। स्वागतकारिणी-समिति ने निम्नलिखित मंतव्य सम्मेलन में विचारार्थ उपस्थित करने के लिए तैय्यार किए हैं।

(1)

राजाधिराज पंचम जार्ज महाराज ने इस देश में पदार्पण करके अपनी भारतीय प्रजा को राजमहिषी सहित दर्शन देने की जो कृपा और प्रीति दिखाई है, उसके लिए यह सम्मेलन महाराज को सानन्द और सविनय अनेक धन्यवाद देता है।

(2)

.... के असमय स्वर्गारोहण पर यह सम्मेलन आन्तरिक शोक और उनके कुटुम्बियों के साथ हार्दिक संवेदना प्रकट करता है।

(3)

हिन्दीभाषियों की संख्या भारत की दूसरी प्रत्येक भाषा के बोलनेवालों से कहीं अधिक होने और हिन्दी की लिपि देवनागरी का देश भर में प्रचार होने पर करेंसी नोटों और सिक्कों पर हिन्दी और नागरी को स्थान पाते न देख कर सम्मेलन को बड़ा आश्चर्य्य और दु:ख हुआ है; विशेषकर जब नोटों पर पाँच भाषाओं में हिन्दी को जगह मिली थी और अब नए नोटों पर नौ में भी उसको ठौर नहीं। अत: वह सरकार से सविनय प्रार्थना करता है कि वह हिन्दी और नागरी का निरादर करके अपनी करोड़ों हिन्दीभाषी प्रजा को उदास न करे।

(4)

माननीय गोखले महाशय के प्रस्ताविक एजुकेशन बिल की अस्वीकृति पर खेद प्रकाश करते हुए....सम्मेलन हिन्दी हितैषियों से हतोत्साह न होकर सार्वजनिक शिक्षा के प्रचार में पूरा उद्योग करने का अनुरोध करता है, क्योंकि इसको विश्वास है कि ऐसे पवित्र कार्य में प्रजा का निरन्तर अभिनिवेश और उत्साह प्रमाणित होने पर सरकार उक्त बिल को बहुत दिनों तक नहीं टाल सकेगी।

इस सम्बन्ध में सम्मेलन का उपदेश है कि हिन्दी सभाएँ अपनी अपनी म्युनिसिपैलटियों में आरम्भिक पाठशालाओं, विद्यार्थियों और शिक्षा योग्य अवस्था के अविद्यार्थी बालकों की संख्याओं का अनुसंधन करके एक सूची तैयार करें, जिससे शिक्षा प्रचार का यथेष्ट प्रबन्ध करने में बहुत सहायता मिलेगी।

(5)

इस सम्मेलन के विचार में विज्ञान, शिल्प और व्यापार सम्बन्धी साहित्य की हिन्दी में बड़ी आवश्यकता है। सम्मेलन हिन्दी लेखकों का ध्या न इन विषयों की ओर आकृष्ट करता है कि वे अपने उद्योग से इन विषयों पर पुस्तकें तैयार करावें।

सम्मेलन की स्थायी समिति को भी इस आवश्यक कार्य में यथाशक्ति पूराप्रयत्न करना चाहिए। वह पदक, प्रशंसापत्र आदि देकर ग्रन्थकारों की उत्साहवृध्दिकरेतथा आवश्यकता होने पर उन्हें पुस्तक-प्रकाशन में यथासम्भव सहायता दे।

(6)

यह सम्मेलन नम्रतापूर्वक इस बात की आवश्यकता, उपयोगिता और न्याय्यता सरकार को हृदयक्ष्म कराना चाहता है कि, संयुक्त प्रदेश की अदालतों में हिन्दी और नागरी को वही स्थान और वही अधिकार दिया जाय जो उर्दू और फारसी लिपि को प्राप्त है और हिन्दीभाषियों के लाभार्थ, जिनकी संख्या उक्त प्रदेश में उर्दू जानने वालों से अधिक है, सरकारी गज़ट हिन्दी में भी प्रकाशित किया जाय।

पंजाब में भी हिन्दी और नागरी का प्रचार बहुत कम नहीं है, तथा दिन दिन बढ़ता जा रहा है, अत: सरकार से प्रार्थना की जाती है कि, वहाँ भी सरकारी कागजों में हिन्दी और नागरी को यथोचित स्थान दिया जाय।

(7)

उन सभी देशभक्त सज्जनों को जो हिन्दी और नागरी के प्रचार में उत्साह के साथ उद्योग कर रहे हैं, यह सम्मेलन हृदय से धन्यवाद देता है और प्रार्थना करता है कि, उनके उत्साह की उत्तरोत्तर वृध्दि हो और बहुत से दूसरे हिन्दी हितैषी भी उनका अनुसरण करें।

(8)

यह सम्मेलन बिहार सरकार से प्रार्थना करता है कि जो सरकारी कागज पत्र, सूचनाएँ, या पुस्तकें वहाँ कैथी अक्षरों में छपती हैं, अब से वे सब नागरी में छपा करें, क्योंकि यही लिपि सर्वव्यापी तथा सब श्रेणियों के लोगों की परिचित है और कैथी इसी का एक रूपांतर है जिसकी सृष्टि शीघ्र लिखने के कारण हुई है और छापे में जिसके प्रयोग की कुछ आवश्यकता नहीं है।

(9)

यह सम्मेलन भावी हिन्दू विश्वविद्यालय के संचालकों से सानुरोधा निवेदन करता है कि उक्त विश्वविद्यालय के पाठयक्रम में हिन्दी को उचित स्थान दिया जाय। सम्मेलन के विचार में आरम्भ से लेकर आठवीं कक्षा तक सब विषयों की शिक्षा हिन्दी में दी जानी चाहिए, और कक्षाओं में भी हिन्दी साहित्य को आवश्यक विषय रखना चाहिए।

(10)

यह सम्मेलन हिन्दी के सब पुस्तक प्रकाशकों से प्रार्थना करता है कि वे अपनी नव प्रकाशित पुस्तकों की एक एक प्रति यथासमय सम्मेलन के स्थायी कार्यालय में बिना मूल्य भेजने की कृपा कर हिन्दी साहित्य की सम्पूर्ण सूची तथा उसकी सामयिक अवस्था और उन्नति का विवरण प्रस्तुत रखने के उद्योग में सम्मेलन की सहायता करते रहें। पत्र संचालकों से भी प्रार्थना है कि उक्त कार्य में सहायता देने के लिए अपने अपने पत्र उक्त कार्यालय में बिना मूल्य भेजने की कृपा करें।

(11)

इस सम्मेलन के विचार में हिन्दी साहित्य की उन्नति का यह एक उत्तम साधन है कि प्रत्येक तीर्थस्थान पर और मुख्यि देवालयों में हिन्दी पुस्तकालय खोले जायँ। इसलिए सम्मेलन तीर्थवासी हिन्दी प्रेमियों और मन्दिरों के संचालकों का ध्या न इस ओर आकृष्ट करता है।

इस उद्देश्य सिध्दि के लिए सम्मेलन की स्थायी समिति एक उपदेशक नियुक्त करे और मन्दिरों के संचालकों से, विशेष कर महन्त महाशयों से, लिख पढ़ी करे।

(12)

बड़ोदा और बीकानेर के महाराजों को तथा अन्य नृपतियों को जो अपने राज्य में हिन्दी और नागरी का प्रचार कर रहे हैं, सादर हार्दिक धन्यवाद देता हुआ यह सम्मेलन उन हिन्दू नरेशों की सेवा में, जिनका ध्या न अभी इस आवश्यक कार्य की ओर नहीं गया है, सानुरोधा प्रार्थना करता है कि यथसम्भव अपने राज्य में हिन्दी भाषा और नागरी लिपि के यथेष्ट प्रचार का सन्तोषजनक प्रबन्ध करके वे अपनी प्रजावत्सलता का परिचय देते हुए अपने शासन को चिरस्मरणीय बनावें।

(13)

इस सम्मेलन के विचार में हिन्दी भाषा में सत्य वीरता, परोपकार, देशभक्ति आदि उच्च भावों की ओर प्रवृत्त करनेवाले नाटकों का खेलना सर्वसाधारण के चरित्र को सुधरने के अतिरिक्त उनमें हिन्दी भाषा और साहित्य की ओर प्रेम उत्पन्न करने का भी उत्तम साधन है। इसलिए हिन्दी में रोचक और शिक्षाप्रद उत्तम उत्तम नाटकों की रचना और भिन्न भिन्न स्थानों में समय समय पर उनकी आवश्यकता की ओर ध्यानन दिलाता हुआ यह सम्मेलन देश के सुशिक्षित सज्जनों से निवेदन करता है कि नाटक खेलने के प्रचलित दोषों को दूर करने और उनको आदर योग्य तथा सर्वसाधारण की शिक्षा का साधन बनाने के लिए वे स्वयं भी उसके अभिनय में सम्मिलित हुआ करें।

यह सम्मेलन नाटक खेलने का व्यवसाय करनेवाली कम्पनियों का ध्यासन भी इस ओर दिलाता है कि, देश के प्रति उनका कर्तव्यप है कि, वे अपने नाटकों को विचारवान् लेखकों से सर्वसाधारण के समझने योग्य सरल हिन्दी में लिखवावें जिससे उन नाटकों का भाव और गौरव हो तथा दर्शकों पर उनका अच्छा प्रभाव पड़े।

(14)

इस सम्मेलन के विचार में आवश्यक है कि स्थायी समिति उन भारतीय भाषाओं के, जिनकी प्रचलित लिपि नागरी नहीं है, पत्रसम्पादकों से नागरीप्रचार में सहायता पाने का उद्योग बराबर करती रहे।

(15)

सम्मेलन को आश्चर्य्य है कि कलकत्ता विश्वविद्यालय में जहाँ फ्रेंच भाषा की पढ़ाई का प्रबन्ध किया गया है, वहाँ भारत की सबसे अधिक विस्तृत भाषा हिन्दी की ओर जो उक्त विश्वविद्यालय के पाठयक्रम में भी है और जिसके विद्यार्थियों की संख्या भी कम नहीं है, कुछ भी ध्या न नहीं दिया जाता।

सम्मेलन इस त्रुटि की ओर कलकत्ता विश्वविद्यालय के विख्यात विद्यानुरागी वाइस चैन्सलर तथा सिनेट और सिंडिकेट का ध्यावन सविनय और सानुरोधा आकृष्ट करके आशा रखता है कि वे अपने शिक्षाप्रबन्ध में भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी को यथोचित स्थान देने में विलम्ब नहीं करेंगे।

(16)

यह देखकर कि, शिक्षा विभाग के पाठयक्रम में कभी कभी हिन्दी की ऐसी पुस्तकें भी स्वीकृत हो जाती हैं जिनकी भाषा भद्दी ही नहीं अशुध्द भी होती है, यह सम्मेलन पंजाब, युक्तप्रदेश, मधयप्रदेश और बिहार के शिक्षाविभाग के कर्म्मचारियों से निवेदन करता है कि अपनी टेक्स्ट् बुक कमेटियों में ये अपने अपने प्रदेश की प्रधान हिन्दी सभाओं के कम से कम एक एक प्रतिनिधि को स्थान देने की कृपा करें, क्योंकि इससे उक्त कमेटियों को उत्तम, उपयोगी और यथासम्भव निर्दोष पुस्तकें चुनने में बड़ी सहायता मिलेगी।

(17)

यह सम्मेलन पंजाब , युक्तप्रदेश, मधयप्रदेश बिहार की प्रादेशिक कान्फ्रेंसों तथा भार्गव, भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, खत्री, कायस्थ आदि कान्फ्रेंसों के नेतृवर्ग से प्रार्थना करता है कि वे लोग अपनी अपनी कान्फ्रेंसों का काम हिन्दी में करें और रिपोर्ट भी हिन्दी में प्रकाशित करें तथा अपनी अपनी जाति में हिन्दीभाषा और नागरी लिपि का व्यवहार बढ़ावें।

सम्मेलन उक्त प्रदेशों के जमींदारों और व्यापारियों से भी प्रार्थना करता है कि, वे अपने कागज पत्र हिन्दीभाषा और नागरी लिपि में रखे और अपना सब व्यवहार उसी भाषा और लिपि में किया करें।

(18)

इस देश की भिन्न भिन्न संस्कृत परीक्षा समितियों से यह सम्मेलन प्रार्थना करता है कि, हिन्दीभाषी विद्यार्थियों के लिए संस्कृत परीक्षाओं के साथ हिन्दी का विषय अवश्य रखा जाय।

(19)

इस सम्मेलन को दु:ख है कि, युनिवर्सिटीज कमीशन की सम्मति कॉलेज क्लासों में देश भाषाओं की पढ़ाई के पक्ष में होने पर भी, अब तक पंजाब और इलाहाबाद युनिवर्सिटियों का ध्याओन इस ओर नहीं गया है। इन यूनिवर्सिटियों से निवेदन है कि वे कलकत्ता यूनिवर्सिटी के अनुसरण की कृपा शीघ्र करें और हिन्दीभाषी छात्रों के लिए हिन्दी को बी. ए. तक आवश्यक विषय कर दें।


(20)

इस सम्मेलन का निश्चय है कि, स्थायी समिति के कार्यालय के साथ पुस्तकालय भी स्थापित किया जाय और इसका एक अंग साहित्य सम्बन्धी म्यूजियम रहे, जिसमें पुराने हस्तलिखित ग्रन्थ आदि तथा अन्य ऐतिहासिक वस्तुओं का संग्रह किया जाय।

(21)

सम्मेलन की उद्देश्यपूर्ति के निमित्त आवश्यक धन संग्रह करने के लिए नीचे लिखे उपाय निश्चित किए जाते हैं-

(22)

(सम्मेलन की नियमावली का संशोधन।)

(23)

(स्थायी समिति की वार्षिक रिपोर्ट पर सम्मेलन का वक्तव्य तथा आगे के लिए उपदेश।)

(नागरीप्रचारिणी पत्रिका, सन् 1912 ई )