तेजेन्द्र शर्मा से बातचीत / लालित्य ललित
ब्रिटेन के प्रतिष्ठित कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा के साथ कवि एवं व्यंग्यकार लालित्य ललित की बातचीत
लालित्य ललित: आप की पहली कहानी कौन सी थी और कब लिखी?
तेजेन्द्र शर्मा: हिन्दी में लिखी मेरी पहली कहानी थी प्रतिबिम्ब जो कि मुंबई के नवभारत टाइम्स के रविवारीय परिशिष्ठ में प्रकाशित हुई थी। उस समय पूरे भारत में नवभारत टाइम्स के सभी संस्करणों में यह पृष्ठ शामिल किया जाता था। यह शायद 1980 की बात है। यह कहानी मैनें अपने प्राध्यापक श्री श्याम मोहन ज़ुत्शी के जीवन से प्रभावित हो कर लिखी थी। मैं उन्हें एक ब्रिलिएण्ट स्कॉलर मानता हूं जो कि सांध्य कॉलेज में काम करने के कारण ख़र्च हो गये। कथाबिम्ब पत्रिका के संपादक माधव सक्सेना अरविंद को यह कहानी बहुत पसन्द थी।
लालित्य ललित: आप ने शुरू में अभिनय भी किया और एअर इंडिया में नौकरी भी, लेकिन ख़ुद को ले गए लन्दन, क्या कारण था।
तेजेन्द्र शर्मा: जी अभिनय का शौक़ बचपन से था। रामलीला में भाग लिया करता था। छोटे छोटे चरित्र निभाता निभाता सीता के महत्वपूर्ण किरदार तक पहुंच गया। मैनें रामलीला के बाद, रेडयो, मंच, टी.वी. और फ़िल्म – हर तरह के अभिनय का अनुभव प्राप्त किया है। शायद इसीलिये मुझे कहानी पाठ करने में विचित्र किस्म का आनन्द महसूस होता है।
ललित भाई आपने ठीक कहा कि मैं एअर इण्डिया में नौकरी करता था – फ़्लाइट परसर की नौकरी। इस नौकरी नें मुझे ऐसे अनूठे अनुभव दिये कि मैं उड़ान, काला सागर, ढिबरी टाइट, देह की क़ीमत, सिलवटें, ईंटों का जंगल जैसी कहानियां लिख पाया। मैनें अपनी बहुत सा कहानियां विदेश के पांच सितारा होटलों में अपने ले-ओवर के दौरान लिखा है। मुझे याद पड़ता है कि 1990 के एक समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार नरेन्द्र कोहली ने टिप्पणी की थी कि जब हिन्दी कहानी का इतिहास लिखा जाएगा तो कहा जाएगा कि तेजेन्द्र शर्मा ने हिन्दी में एअरलाइन से जुड़ी कहानियां लिखने की शुरूआत की।
हां, लंदन में बसने के कारण बहुत निजी थे।
लालित्य ललित: क्या अपने देश में रोटी की कमी थी या और कोई और मक़सद था।.
तेजेन्द्र शर्मा: जी नहीं अपने देश में रोटी की कमी कभी नहीं थी। दरअसल आपको एक विचित्र सी बात बताता हूं। मैं शायद एक ऐसा अकेला व्यक्ति हो सकता हूं जो कि भारत में अमीर आदमी था और विदेश में जा कर ग़रीब हो गया। मुझे भारत में अपने भत्ते अमरीकन डॉलर में मिलते थे और मैं ख़र्चा करता था भारतीय रुपये में। मुंबई और दिल्ली में फ़्लैट थे; मां बहने, रिश्तेदार दोस्त और घर में हर वो सुविधा थी जिसकी मध्यवर्ग अपेक्षा करता है। बस दिक्क़त यह थी कि इन्दु जी की मृत्यु के बाद मैं अपनी घर से बाहर बार बार विदेश जाने वाली नौकरी नहीं कर सकता था – अपने बच्चों की वजह से। और दूसरी किसी नौकरी में वो सुविधाएं नहीं थीं जिनका कि परिवार आदी हो चुका था। इसलिये विदेश में बसना एक ऐसा विकल्प था जिसे अपनाना शायद हालात का दबाव हो सकता है।
लालित्य ललित: आप ने कवितायेँ भी लिखीं और कभी कभार ग़ज़ल भी कहते हैं; इन सब के बावजूद आप अपने आप को क्या मानते है ?
तेजेन्द्र शर्मा: आपने ठीक कहा कि मैनें कविताएं और ग़ज़लें लिखी हैं। दरअसल मेरा एक कविता एवं ग़ज़ल संग्रह ये घर तुम्हारा है के नाम से मेधा बुक्स से प्रकाशित भी हुआ था। दूसरा संकलन भी लगभग तैयार है। एक राज़ की बात – मेरी 8 ग़ज़लों का एक ऑडियो सी.डी. दिल्ली की मशहूर गायिका राधिका चोपड़ा ने तैयार किया है। उसका नाम है – रास्ते ख़ामोश हैं।
फिर भी मैं अपने आपको कवि या ग़ज़लकार नहीं मानता। मैं मूलतः कहानीकार ही हूं। मैं यह मानता हूं कि कहानी हर विधा की मां है। कोई भी साहित्यकार क़लम उठाता है तो वह कुछ कहना चाहता है। अपनी कहानी कहना चाहता है। मैं अपने भीतर एक कहानीकार की आत्मा महसूस करता हूं। एक शायर या कवि की तरह सोच नहीं पाता। यदि मुझे कभी कविता पढ़ने के लिये मंच पर बुलाया जाता है तो मैं पहले से पूछ लेता हूं कि मुझे कितना समय दिया जा रहा है। उस अवधि के भीतर भीतर मैं अपना कविता एवं ग़ज़ल पाठ समाप्त कर देता हूं। मेरी वजह से कभी भी आयोजकों को घड़ी की तरफ़ नहीं देखना पड़ता। कई बार ऐसा हुआ है कि श्रोताओं ने ज़ोर देकर मुझे मंच पर वापिस बुलाया है। किन्तु इस सबके बावजूद मेरा मानना है कि मेरी अपनी विधा कहानी है। मैं कहानी विधा की पूरी प्रगति से जुड़ा हूं और कहानी में कहानीपन ज़िन्दा रखने का पूरा प्रयास करता हूं।
लालित्य ललित: यदि तेजेंद्र शर्मा कहानीकार नहीं होते तो क्या होते?
तेजेन्द्र शर्मा: वैसे तो साहित्य से मेरे जुड़ाव की मुख्य वजह कहानी विधा है। फिर भी यदि गणित के सवाल की तरह मान ही लिया जाए कि यदि मैं कहानीकार नहीं होता तो मैं क्या होता – तो भाई ललित मैं नाटककार होता। क्योंकि आप देखेंगे कि मेरी कहानियों में संवाद का ख़ासा खुल कर उपयोग होता है। नाटक मुझे शायद वही सुकून देता जो कि कहानी लेखन दे रहा है।
लालित्य ललित: आप पर अक्सर यह इल्ज़ाम लगता रहा की आप तो राजेंद्र यादव मार्का ही कहानी लिखने के लिए बदनाम है, क्या इस बात में सच्चाई है ?
तेजेन्द्र शर्मा: मुझे सच में नहीं मालूम की राजेन्द्र यादव मार्का कहानी से आपका क्या तात्पर्य है। यह सच है कि कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश और निर्मल वर्मा कहानी विधा के महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं किन्तु मैं आपको अपनी दस कहानियों के नाम बताता हूं, आप बताइये कि राजेन्द्र यादव की कौन से कहानी उनसे मिलती है – क़ब्र का मुनाफ़ा, खिड़की, देह की क़ीमत, ढिबरी टाईट, काला सागर, एक ही रंग, मलबे की मालकिन, कैंसर, अपराध बोध का प्रेत, चरमराहट, अभिशप्त (जो कि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के एम. ए. के पाठ्यक्रम में लगी है। यदि आप चाहेंगे तो पन्द्रह और नाम गिनवा दूंगा। मगर यह आपकी ज़िम्मेदार होगी कि आप साबित करें कि मेरी कौन सी कहानी राजेन्द्र यादव के लेखन से प्रभावित है। सच तो यह है कि राजेन्द्र यादव ने स्वयं कहा है कि तेजेन्द्र शर्मा ने हिन्दी कहानी को नये विषय, नये चरित्र और नये कथानक दिये हैं। उनके अलावा असग़र वजाहत, पुष्पपाल सिंह औरभारत भारद्वाज का भी यही मानना है। यदि मैं नया दे रहा हूं तो फिर आपका प्रश्न अपना औचित्य खो देता है। और सच तो यह है कि आपके इस प्रश्न से पहले मुझे किसी ने यह बात कही भी नहीं।
लालित्य ललित: आप यात्राओं में भी रहते है कभी मन में आया है की कभी अपने पाठकों के लिए कोई यात्रा संस्मरणों पर भी कोई ऐसी किताब लिखूं जो सब की पसंद की पुस्तक साबित हो सकें।
तेजेन्द्र शर्मा: जी आपने बिल्कुल ठीक कहा कि मैं उन्नीस सौ अठत्तर से एक लगातार सफ़र में हूं। यात्राएं मेरे जीवन का दूसरा नाम कहा जा सकता है। किन्तु मैं जहां जहां जाता हूं उस शहर को एक यात्री की तरह देखता नहीं हूं। एक साहित्यकार की तरह देखता हूं। उस शहर के कल्चर, व्यवहार, भोजन, सबको आत्मसात करता हूं। फिर मेरे भीतर का कहानीकार उस सूचना का इस्तेमाल कहानियों में करता है। मैं अपनी कहानियों में उन अनुभवों का अर्थ खोजने का प्रयास करता हूं। जैसे मेरी एक कहानी है – ज़मीन भुरभुरी क्यों है? इस कहानी की विशेषता यह है कि इस कहानी में ब्रिटेन की डी-क्लास ओपन जेल का इस्तेमाल मैनें कहानी को आगे बढ़ाने के लिये किया है। उस जेल में जाकर क़ैदियों के मिलने तक अपने अनुभव सीमित नहीं रखे। फिर भी आपकी बात को ज़हन में रखूंगा ज़रूर और हो सकता है कि जल्दी ही इस बारे में कोई सकारात्मक निर्णय ले लूं।
लालित्य ललित: आप मित्रों को बड़ा प्यार करते है सम्मान करते हैं क्या ऐसा कोई मित्र है जो आप से किसी बात को ले कर नाराज़ हुआ हो और आप ने उस को मना लिया हो ?
तेजेन्द्र शर्मा: जी मैं लम्बी दोस्तियां निभाने में विश्वास रखता हूं। ऐसा नहीं कि मैं कोई सोलह कला संपूर्ण व्यक्ति हूं। ग़लतियां करता हूं। ठीक उसी तरह मित्र भी ग़लतियां करते होंगे। मैं लम्बी दोस्तियां निभाने के लिये मशहूर हूं। मेरा एक ही प्रयास रहता है कि जानबूझ कर किसी का भी दिल ना दुखाऊं। इसलिये कभी भी मित्रों की पीठ के पीछे उनकी बुराई नहीं करता। यदि कोई मित्र मेरी पीठ के पीछे मेरे किसी काम की आलोचना करता है तो उसकी आलोचना को भी सकारात्मक रूप में लेते हुए अपने आपको बदलने का प्रयास करता हूं। किन्तु यदि कोई मित्र झूठी निन्दा करे और सामने आकर एक हिपोक्रेट की तरह मीठा बोले, तो मैं ऐसे मित्र से किनारा कर लेता हूं। लड़ाई मेरे बस की बात नहीं है। जवानी में कभी नहीं की, अब भला कैसे हो सकता है। यह सच है कि मेरी किसी भी ग़लती से जब कभी किसी मित्र को नाराज़गी हुई है... मैनें क्षमा मांग कर उसे मनाने में रत्ती भर भी देर नहीं लगाई। हालांकि आज रत्तियों का ज़माना नहीं रहा... फिर भी बोलने में अच्छा लगता है।
लालित्य ललित: आप ने जो पुरस्कार शरू किया है अक्सर आप पर यह इल्ज़ाम भी लगता रहा है कि यह आपसी बन्दर बांट है क्या कहेंगे आप?
तेजेन्द्र शर्मा: आप आज मुझे बहुत नई नई बातें बता रहे हैं ललित। पूरे भारत में यदि किसी एक सम्मान की घोषणा की लोग प्रतीक्षा करते हैं उसका नाम इंदु शर्मा कथा सम्मान है। तमाम बड़े साहित्यकार इसकी पारदर्शिता की तारीफ़ करते हैं। आप बताइये कि किसी भी व्यंग्यकार को भारत का कोई महत्वपूर्ण सम्मान मिला है कभी? कथा यू.के. ने तीन तीन व्यंग्य उपन्यासों – बारहमासी (ज्ञान चतुर्वेदी), तबादला (विभूति नारायण राय) और डर हमारी जेबों में (प्रमोद तिवारी) को सम्मानित किया है। आप बताइये कि असग़र वजाहत, संजीव, चित्रा मुद्गल, हरनोट, हृषिकेश सुलभ, प्रदीप सौरभ, भगवान दास मोरवाल, महुआ माजी, विकास कुमार झा या नासिरा शर्मा में से किसकी कृति को आपने कमज़ोर पाया है। याद रहे कि हम किसी भी लेखक की राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित नहीं होते। हमारे यहां केवल इस बात पर विचार होता है कि कृति ने हिन्दी साहित्य को आग बढ़ाने में क्या योगदान दिया है। बड़े बड़े मठाधीशों की राय से हम अपनी सोच को प्रभावित नहीं होने देते। हां हम यह मान सकते हैं कि और भी लोग अच्छा लिख रहे हैं, किन्तु हमें एक साल में पांच अच्छों में से चुनाव तो एक ही का करना है ना। ज़ाहिर है कि बाक़ी चार को और उनके मित्रों को लगेगा कि अन्याय हुआ है। आप हमारी सूची में से एक कमज़ोर किताब नहीं बता पाएंगे। और अब तो यू.पी.एस.सी. के इम्तहोनों में कथा यू.के. के पुरस्कारों पर सवाल पूछे जाते हैं। और आपको एक और बात बताना चाहूंगा इनमें से अधिकांश लेखकों को मैं पहली बार लंदन के हवाई अड्डे पर ही मिला हूं। मेरा मित्र होना इस सम्मान पाने के लिये एक निगेटिव पाइण्ट है।
लालित्य ललित: इधर आप का नया कहानी संग्रह कौन सा आ रहा है ?
तेजेन्द्र शर्मा: अभी हाल ही वाणी प्रकाशन से मेरा नया कहानी संग्रह दीवार में रास्ता प्रकाशित हो कर आया है। एक और नये कहानी संग्रह की तैयारी चल रही है।
लालित्य ललित: आपके हिसाब से आजकल कौन सा प्रवासी लेखक बेहतर लिख रहा है ?
तेजेन्द्र शर्मा: बात यह है ललित भाई की पश्चिमी देशों में रचा जा रहा हिन्दी साहित्य अभी अपने शैशव काल में है। कुल जमा पच्चीस साल का खेल है। मैं नहीं समझता कि कविता या अन्य विधाओं पर मुझे राय रखने का कोई हक़ है। हां कथा जगत की बात कर सकता हूं। मुझे अर्चना पेन्यूली, सुषम बेदी, सुधा ओम ढींगरा, सुदर्शन प्रियदर्शनी, अचला शर्मा, ज़किया ज़ुबैरी, उषा वर्मा, नीना पॉल आदि की कुछ रचनाएं बहुत पसन्द हैं। वैसे ब्रिटेन में उषा राजे सक्सेना और शैल अग्रवाल भी काफ़ी लम्बे अरसे से सक्रिय हैं।
लालित्य ललित: आप अपने को आज कहां पाते है, क्या आप अपने लेखन से संतुष्ट हैं?
तेजेन्द्र शर्मा: ललित भाई कोई भी लेखक कभी भी उस जगह से संतुष्ट नहीं होता जहां वह खड़ा होता है। वह वहां से ऊपर ही देख रहा होता है और वहीं उसका गोल भी होता है। लेखन से संतुष्ट आदमी तभी तक होता है जब तक वह अपनी अगली रचना शुरू नहीं कर देता। यह सच है कि मैं यह घिसा पिटा डायलॉग कभी नहीं बोलता कि सभी कहानियां मेरे बच्चों की तरह है। मैं भला कैसे कहूं कि मुझे कौन से अधिक प्रिय है ? मैं जब कहानी लिखता हूं तो लेखक होता हूं, मगर जब अपनी ही कहानी पढ़ता हूं तो आलोचक बन जाता हूं। और मैं खासा सख़्त किस्म का आलोचक हूं। अपने आपसे सवाल पूछ लेता हूं... ये क्या किया है भाई साहब। दोबारा ऐसी ग़लती नहीं होनी चाहिये। और फिर शुरूआत होती है एक नई कहानी की। जब जब मुझ से कोई अच्छी कहानी लिखी जाती है, तो मुझे मालूम हो जाता है। यह सच है कि मेरा पूरा प्रयास रहता है कि मैं हर कहानी में कोई अछूता विषय उठाऊं। दोहराव से सदा बचने का प्रयास करता हूं। मेरा मानना है कि कहानी में पठनीयता पहला गुण है। आपके पास कुछ कहने को होना चाहिये। केवल भाषा की कलाबाज़ियों से अच्छी कहानी नहीं बन पाती है। बाक़ी तो पाठक और आलोचक तय करेंगे कि मैनें अबतक क्या खोया क्या पाया।
लालित्य ललित: आप नई पीढ़ी को क्या कहना चाहेंगे ?
तेजेन्द्र शर्मा: नई पीढ़ी हम लोगों से बहुत अधिक होशियार है। अच्छा लिख भी रही है। छप भी रही है और सम्मानित भी हो रही है। लेकिन नई पीढ़ी पर तरह तरह के इल्ज़ाम भी लग रहे हैं। उनसे बस इतना कहना चाहूंगा कि भाई लोग पढ़ने का कोई विकल्प नहीं है। जब तक आपको अपनी साहित्यिक परंपरा का ज्ञान नहीं होगा, आप उससे आगे का लेखन कैसे कर पाएंगे? कहीं ऐसा ना हो कि हम बार बार पहिये का आविष्कार ही करते रह जाएं, और दुनियां पहिये के बिना ही आकाश की राहों में उड़ती रहे।
लालित्य ललित: आप ने हम को समय दिया, आप के हम आभारी हैं।