तेरह का अंधविश्वास समाप्त / जयप्रकाश चौकसे

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तेरह का अंधविश्वास समाप्त
प्रकाशन तिथि : 12 नवम्बर 2012


यह मान्यता रही है कि प्राय: दीपावली मंगलवार या शुक्रवार को आती है और शुक्रवार को आई दीपावली को इस तरह का संकेत माना जाता है कि आगामी वर्ष किसान के लिए लाभ देने वाला होगा और मंगलवार की दीपावली व्यापारी को लाभ देगी। इस तरह की बातें कैसे शुरू होती हैं व समाज में स्थापित हो जाती हैं, यह बताना कठिन है। वह कालखंड सदियों पहले बीत गया, जब कृषि और व्यापार दो मुख्य क्षेत्र होते थे। अब तो दसों दिशाओं से पैसा बनाया जा सकता है या उस दिशा को ही पूर्व माना जाता है, जहां से धन आ रहा है। आध्यात्मिक भारत का महानतम त्योहार धन की पूजा के दिवस के रूप में कब बदला, यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि दशहरे पर रावण का वध करके राम के अयोध्या पधारने के दिन दीपावली मनाई गई थी। इसका अर्थ है कि पुष्पक में बैठकर लंका से अयोध्या तक आने में भगवान को बीस दिन का समय लगा।

यह भी बताना कठिन है कि तेरह के अंक को कब इतना अशुभ माना जाने लगा कि भव्य होटलों में बारह के बाद वाली मंजिल को चौदहवीं मंजिल कहते हैं। हवाई जहाज में तेरह नंबर की पंक्ति नहीं होती। तथ्य तो यह है कि गणित से तेरह या किसी भी अंक को हटाने से सारा जोड़-तोड़ ही नष्ट हो जाता है। अत: गणित में कोई अंक अशुभ नहीं है और हर अंक अनिवार्य है। तेरह को अनेक शिशु जन्म लेते हैं और उनमें से अनेक यश अर्जित करते हैं। तेरह का मनोवैज्ञानिक भय संभवत: सिनेमा ने बलवती किया। कुछ डरावनी फिल्में बनीं, जिनमें तेरह को अशुभ की तरह प्रस्तुत किया गया, परंतु सिनेमा इस अंधविश्वास का जनक नहीं है। यह अधिकतम की पसंद आधारित माध्यम तो समाज में व्याप्त आस्था और अनास्था दोनों को बॉक्स ऑफिस पर भुनाता है। अगर फिल्म उद्योग में इसका भय होता तो दो भव्य बजट वाली फिल्में आगामी तेरह तारीख को प्रदर्शित नहीं हो रही होतीं।

अंधविश्वास के भूत की तरह पैर नहीं होते, अत: उसकी आहट नहीं होती, परंतु वह समाज में पसर जाता है और लौटने का नाम नहीं लेता। मसलन श्राद्ध पक्ष में व्यवसाय नहीं करना भी तर्क से परे है कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करने का समय अशुभ कैसे हो सकता है।

जयपुर के अजय चोपड़ा ने इस वर्ष एक अभिनव दीपावली शुभकामना भेजी है, जो तेरह के अंधविश्वास को ध्वस्त करती है। पद्य में लिखे इस शुभकामना संदेश का एक अंश इस तरह है - 'जब भ्रम फैलने लगे, तो विश्वास बैसाखी पकड़ लेता है। भ्रम या वहम पल भर में मन के भीतर आता है, जिसे कई बार बाहर निकालने में उम्र बीत जाती है। वहम के अंकुर से फूटा अंधविश्वास, जब दंतकथा बन जाए तो पीढिय़ों को मुआवजा चुकाने में युग बीत जाते हैं।'

इस तरह के स्वस्थ विचार को दीपावली अभिवादन के माध्यम से घर-घर भेजना संकेत है कि भारतीय समाज की ऊर्जा अभी कायम है और यह अनसोची जगह से प्रवाहित भी होती है, गोयाकि आज समाज में व्याप्त रोग से हताश होने की आवश्यकता नहीं है। इसी कार्ड में सूचना है कि ३९१ वर्ष बाद मंगलवार को दीपावली मनाई जा रही है और तेरह के वहम को नष्ट करने के लिए ही कदाचित यह शुभ त्योहार इस वर्ष तेरह तारीख को मनाया जाएगा। क्रियॉन्स विज्ञापन कंपनी के अजय चोपड़ा ने यह अद्भुत कार्य किया है।

कुछ वर्ष पूर्व कुछ इस तरह की बात भी कही जाती थी कि मंगल को आई दीपावली अनिल अंबानी के लिए शुभ है और शुक्रवार को आई दीपावली मुकेश अंबानी के लिए। इस तरह की बातों का आशय सिर्फ इतना रहा है कि सारे तीज-त्योहार अमीरों के लिए शुभ हैं। समाज में व्याप्त बातों में गहरे संकेत होते हैं। सच तो यह है कि आम आदमी का जीवन ही एक असमान युद्ध है और उत्सव के बहाने वह जोश में आ जाता है और आनंद की लहर तमाम विसंगतियों और विरोधाभास के परे जाकर मनुष्य को आनंद के लिए अवसर देती है। आम आदमी जीवन से पल दो पल की खुशी चुरा लेता है और यह चोरी इंडियन पीनल कोड की किसी धारा के तहत अपराध नहीं ठहराई जा सकती। इसे अन्य तरीके से अभिव्यक्त करें तो कह सकते हैं कि 'साड्डा हक एत्थे रख।'