तेरी आंखों के सिवाय क्या रखा है दुनिया में / जयप्रकाश चौकसे

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तेरी आंखों के सिवाय क्या रखा है दुनिया में
प्रकाशन तिथि : 27 फरवरी 2019

खुशी की खबर है कि इरफान अपना इलाज कराकर स्वदेश लौट आए हैं। उन्होंने दूरदर्शन पर प्रस्तुत नाटकों में छोटी भूमिकाएं अभिनीत करके अपनी यात्रा प्रारंभ की। बड़ी गुरबत में फाके करते हुए लंबा संघर्ष किया और इत्तेफाक देखिए कि उनकी अभिनीत फिल्म 'लंच बॉक्स' को देश-विदेश में बहुत सराहा गया। 'पीकू' 'तलवार' और 'जज्बा' में उन्हें बहुत पसंद किया गया। विशाल भारद्वाज ने शेक्सपीयर के 'मैकबेथ' को हिंदी में 'मियां मकबूल' के नाम से बनाया और इरफान को इस फिल्म के लिए कई पुरस्कार मिले। 2008 में 'पानसिंह तोमर' भी इरफान खान की अभिनय यात्रा का एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।

भारतीय सिनेमा में चाॅकलेटी चेहरे वाले कलाकार के साथ ही खुरदरे चेहरे वाले कलाकार भी अपनी अभिनय क्षमता के कारण अधिकतम दर्शकों द्वारा पसंद किए गए हैं। हम मोटे तौर पर इरफान खान को ओम पुरी का उत्तराधिकारी मान सकते हैं। ओम पुरी की तरह ही इरफान खान को भी विदेशों में अंग्रेजी भाषा में बनने वाली अनेक फिल्मों में अवसर मिले। उन्होंने 'लाइफ ऑफ पाई' 'स्लमडॉग मिलियनेयर', 'अमेजिंग स्पाइडर मैन', 'द वॉरियर' में भूमिकाएं अभिनीत की गोयाकि उन्होंने रुपए से अधिक डॉलर अर्जित किए। जयपुर में जन्मे इरफान खान लंदन, वॉशिंगटन और पेरिस में भी सराहे गए।

खबर है कि ऋषि कपूर भी अमेरिका में अपना इलाज कराकर स्वदेश लौटने वाले हैं। एक कड़वा यथार्थ यह है कि फिल्मकार इरफान खान और ऋषि कपूर को अनुबंधित करने में संकोच कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें यह भय होगा कि फिल्म की कुछ शूटिंग के बाद ही अगर ये कलाकार पुन: बीमार पड़ जाएं तो उनकी फिल्म रुक जाएगी। कलाकार का शरीर उसकी दुकान की तरह होता है, जिसके एक कपाट में हल्की-सी दरार पड़ने पर उसके बंद हो जाने की बात जुड़ी होती है। ऋषि कपूर अमीर व्यक्ति हैं और उनका सुपुत्र रणवीर कपूर कमाऊ पूत है, परन्तु इरफान खान के पास इस तरह के कवच नहीं हैं। इरफान मध्यम वर्ग के हैं और उनका सपोर्ट सिस्टम तो बच्चे द्वारा रेत में बनाए गए घरौंदे की तरह कमजोर माना जा सकता है। प्रतिभा ही उनकी एकमात्र संपदा है।

इरफान खान अभिनीत 'हिंदी मीडियम' हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के बखिए उधेड़ देती है। 'इंग्लिश मीडियम' को समाज श्रेष्ठता का प्रतीक मानता है। संभवत: हमारा ही एकमात्र देश होगा जहां राष्ट्रभाषा का मखौल बनाया जाता है। अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित अखबारों के पत्रकारों का मेहनताना भी देश की भाषा में लिखने वाले पत्रकारों से अधिक है, जबकि प्रसार संख्या भारतीय भाषाओं में प्रकाशित अखबारों की कहीं अधिक है। विविध क्षेत्रों में तो कलम घसियारों के साथ हो रहे अन्याय का कोई विशेष अर्थ नहीं है। किसान और छात्र वर्ग बहुत बड़ा वर्ग है।

इरफान खान अपने अभिनय में शरीर संचालन किफायत से करते हैं। उनकी आंखें ही बहुत कुछ अभिव्यक्त करती हैं। आंखों को आत्मा का झरोखा कहा जाता है। परंतु आत्मा तो दृष्टिहीनों की भी होती है। दरअसल, मनुष्य की विचार करने की शक्ति को ही रहस्यमयी आत्मा के नाम से पुकारा जाता है। आत्मा को रहने और अभिव्यक्त होने के लिए शरीर की आवश्यकता होती है। शरीरहीन आत्मा तो अंधविश्वास के दायरों को विस्तार देती है।

बहरहाल, अत्यंत घातक बीमारी से मुक्त हुए और इलाज की भट्‌टी से तपकर निकले हुए इरफान खान पहले से बेहतर अभिनेता हो चुके हैं, परंतु क्या उन्हें समुचित अवसर मिलेंगे? यह संभव है कि कोई विदेशी फिल्मकार उन्हें अवसर दे क्योंकि वे गहन योजनाबद्ध होते हैं और एक ही दौर में फिल्म पूरी कर लेते हैं।