तेरे दिल को जो लुभा ले, वो अदा कहां से लाऊं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 24 मार्च 2020
सूने बाजार का दुकानदार तराजू उलट-पलट करता है। इसी तरह आज ईरान की एक फिल्म ‘शीरी’ (फरहाद) की बात करते हैं। फिल्मकार कियारोस्तामी ने अजीब प्रयोग यह किया कि सिनेमाघर में शीरी की कथा सुनाई दे रही है, परंतु सिनेमा के परदे पर श्रोताओं की प्रतिक्रिया के बिंब दिखाए जा रहे हैं। ध्वनि तथा बिंब को सिंक नहीं किया गया है। ध्वनि और बिंब का मिलन नहीं कराया गया है। क्या इसका यह अर्थ है कि सिनेमा का परदा एक आईना है, जिसमें दर्शक अपनी छवि देखता है? अमेरिका में एक प्रयोग किया गया, दर्शक की कुर्सी पर लाल और हरे रंग के बटन लगे हैं। अगर दर्शक सुखांत चाहते हैं तो हरे रंग का बटन दबाएं। दुखांत पसंद करने वाले लाल बटन दबाएं। दर्शक की पसंद के अनुरूप क्लाइमैक्स दिखाया जाता है। फिल्मकार ने सुखांत और दुखांत दोनों ही शूट करके रखे थे। मसलन हम बिमल रॉय की ‘देवदास’ देख रहे हैं और अधिकांश दर्शकों ने सुखांत देखना चाहा तो देवदास और पारो मिल जाते हैं। बिमल रॉय की फिल्म में देवदास और पारो दोनों मर जाते हैं। फिल्म के आखिरी शॉट में हम दो परिंदों को आकाश में उड़ते हुए देखते हैं। गोयाकि फिल्मकार ने उनकी आत्माओं का मिलन कराकर सुखांत ही किया है। अगर इसी तरह राज कपूर की संगम में दर्शकों का मतदान गोपाल के पक्ष में होता तो सुंदर मर जाता और अगर औघड़ दर्शक राधा के पात्र को मरने देना चाहता है तो गोपाल और सुंदर मिलकर गाते ‘बिदा के वक्त पलक पर आंसुओं को तौलती वह तुम न थीं तो कौन था’। अगर यही बात हम ‘शोले’ पर लागू करें तो अमिताभ बच्चन अभिनीत पात्र बचाया जा सकता था, परंतु कदाचित फिल्मकार जया अभिनीत विधवा के साथ बच्चन अभिनीत पात्र की विवाह संभावना से घबरा गया। वह शोले बना रहा था, प्रेमरोग नहीं। फिल्मकार अधिकतम दर्शक की पसंद जानने का प्रयास करता है और यह कार्य लगभग वैसा ही है, जैसे पांच अंधे स्पर्श के अनुभव के आधार पर हाथी का विवरण प्रस्तुत कर रहे हों। खुद दर्शक ही नहीं जानता कि वह क्या चाहता है। कुछ दर्शक लतियड़ सिनेमा दर्शक हैं, उन्हें इसकी लत लग चुकी है।
आनंद एल. रॉय की फिल्म तनु वेड्स मनु के क्लाइमैक्स में दुल्हन के द्वार दो बारातें पहुंचती हैं। यह कुछ-कुछ स्वयंवर की तरह का मामला बन जाता है। जिमी शेरगिल अभिनीत पात्र का इश्क एक तरफा है और जब तनु ही ढाल बनकर वर के सामने खड़ी हो जाती है, तब जिमी शेरगिल अभिनीत शिवभक्त पात्र बंदूक फेंक देता है और इस आशय की बात करता है कि अगर बावरी तनु, मनु से इतना प्यार नहीं करती और आज सोमवार नहीं होता तो गोली मार देता।
दरअसल, कियारोस्तामी की फिल्म एक साउंडट्रेक है और बिंब के नाम पर दर्शक के चेहरे दिखाए गए हैं। अधिकांश महिलाएं फिल्म देख रही हैं। कुमार अंबुुज कहते हैं कि संवाद कविता के शिखर स्वरूप हैं, आवाजों की कशिश, विशेषकर ‘शीरी’ का दर्द दर्शक की आंख से बहते आंसू द्वारा अभिव्यक्त हुआ है। प्रेम, दुख तकलीफ, राजनीति, दीवानगी, आकांक्षा, मृत्यु, नश्वरता और अनश्वर आशा के संयोजन ने इसे इंद्रधनुष से कहीं अधिक रंग संपन्न कर दिया है। यहां तो एक आंसू भी सात रंग बिखेरकर बहता है, हजार बार कही जा चुकी कहानी को इस तरह कहना अप्रतिम है।
फिल्म के स्थिर चित्रों के नीचे लिखी इबारत पर गौर करें तो यह फिल्म वर्तमान समय का आईना बन जाती है। याद आते हैं दुष्यंत कुमार, ‘वे कहते हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता, मैं बेकरार हूं आवाज के लिए, कहां तो तय था चिरागां हर घर के लिए, कहां मयस्सर नहीं सारे शहर के लिए...। भांति-भांति के वाद्यों की ध्वनि तो सुन सकते हैं, परंतु यथार्थ में कहीं कुछ नहीं बदला है। हालात बदतर हैं। ज्ञातव्य है कि ‘बुक्स इन वायस’ नामक कंपनी किताबों को ऑडियो के स्वरूप में प्रस्तुत करती है। खाकसार की ‘ताज : बेकरारी का बयान’ बुक्स इन वायस ने जारी की है। जिस व्यक्ति की आवाज का इस्तेमाल किया है, वह साहित्य समझता है और उसने अपनी आवाज में भावों के अनुरूप परिवर्तन किए हैं। आवाज हंसाती, रुलाती और गुदगुदी करती है, मानो आवाज की अंगुलियां हों।
उमा आनंद की किताब चेतन आनंद : पोएटिक्स ऑफ सिनेमा में एक विवरण है कि चेतन आनंद की फिल्म ‘नीचा नगर’ का प्रदर्शन मंत्रिमंडल के लिए गया गया था। चेतन आनंद को नेहरू के निकट बैठने का अवसर मिला। फिल्म देखते समय पंडित जवाहरलाल नेहरू के चेहरे पर भाव आते थे और चेतन आनंद के लिए नेहरू का चेहरा ही सिनेमा का परदा बन गया था। इस तरह वह अपनी फिल्म को अभिनव परदे पर देख रहा था। विचारणीय है कि ईरान और कोरिया छोटे देश हैं, परंतु उनकी फिल्मों का चरबा हम बना रहे हैं, जैसे रितिक रोशन अभिनीत ‘काबिल’ बनाई गई। किस्सा है कि ‘एक अघोरी’ ने अमेरिका में प्रदर्शन किया। ज्ञातव्य है कि अघोरी मानते हैं कि हर चीज खाई जा सकती है और बिना संकोच के ऐसा करना भी प्रार्थना ही है। बहरहाल उस अघोरी ने पांच प्लेट में रखी गंदगी खा ली, परंतु छठी प्लेट में मक्खी बैठ जाने के कारण उसने इनकार कर दिया। कोई नहीं जानता कि दर्शक को किस फिल्म में मक्खी नजर आ जाएगी।