तेरे लब हिलें तो फूल खिलें / ममता व्यास
उस दिन किसी काम से एक ऑफिस में जाना हुआ। जिससे मिलना था वो एक महिला अधिकारी थी। जैसे ही मेरी बारी आई मैं उनसे मिलने गई, देखा तो वो मेरे कालेज की दोस्त निकली। मिलते ही हम दोनों जोर-जोर से हंसने लगे। आवाज सुनकर सभी कमरों में से कर्मचारी निकल कर आ गए। मेरी दोस्त एकदम से चुप हो गयी मानो रिश्वत लेते पकड़ी गयी हो। बोली सब सुन रहे हैं देखो कमरों से बहार आ गए बीस साल की नौकरी में मेरी आवाज आज - तक किसी ने नहीं सुनी। मैं बोली कब्र बना रखा है ऑफिस को आज सभी मुर्दे कब्रों से बहार निकल पड़े इस बात पे पूरा ऑफिस हंस पड़ा।
मेरी दोस्त की आखों में आसूं थे बोली माँ के यहाँ जो हंसी छूट गयी थी वो बरसों बाद आज आई इससे पहले कब हंसी थी याद ही नहीं। एक और उदहारण देखिये ... इक विवाह समारोह मे जाना हुआ, जहाँ पुरुष और महिलायें सभी साथ बैठे थे। सभी पुरुष समूह बना कर खूब हंसी मजाक कर रहे थे लेकिन महिलायें चुपचाप बैठी थी। इतने में एक महिला ने आकर चुप्पी तोड़ी तो सभी महिलाओं ने उसे आखें दिखा कर चुप करा दिया। मानो वो किसी मर्यादा तोड़ रही हो। और फिर सब शांत हो गया। किसी भी बात का, मजाक का कोई रिएक्शन ही नहीं। अक्सर महिलाएं बाते खूब करती हैं लेकिन हास्यबोध नहीं दिखता।
मिसेस शर्मा बहुत स्वादिष्ट खाना बनाती है। उस दिन उनके पति ने कहा आजकल तुम्हारे हाथों में वो स्वाद नहीं रहा जो पहले था। वो झट से बोली आप भी तो अब पहले जैसे नहीं रहे... दोनों इस बात पे हंस पड़े... मिसेस शर्मा इस बात पे बहुत बड़ा झगडा कर सकती थी। लेकिन हास्य बोध ने बचा लिया।
ये कुछ उदहारण उन महिलाओं के, जो अपने जीवन में यहाँ-वहाँ बिखरे हास्य को समेट लेती हैं। जो हँसना जानती हैं, दूसरों को हँसाना भी जानती हैं। लेकिन अफ़सोस ये कि कितनी महिलायें हैं इन जैसी? जो ठहाके लगाती हैं, खिलखिलाकर हंसती हैं, दिल खोल कर मुस्काती हैं और किसी उदास चेहरे पर प्यारी-सी मुस्कान सजा देती है।
अक्सर औरतों का हंसी, ठिठोली, ठहाकों से कोसो दूर का नाता होता है। ये स्थिति सभी जगह दिखती है, जैसे जब वो पार्टी में होती हैं या पिकनिक पे, दोस्तों की महफ़िल हो आफिस हो या घर वो सभी जगह अपने होंठों पे चुप का ताला लगाये रहती हैं, बाते चाहे कितनी भी कर ले लेकिन हँसते हुए कम ही देखी जाती हैं। बहुत ज्यादा हुआ तो धीरे से मुस्कुरा देंगी, लेकिन वो भी प्लास्टिक वाली मुस्कान। वो खुद हँसना - हँसाना नहीं चाहती इसलिए दूसरों के हास्य बोध को भी कम समझ पाती हैं। कभी -कभी तो उन्हें समझ ही नहीं आता कि सब किस बात पे हंस रहे हैं।
किसी महिला से पूछो कि आखिर बार वो कब खिलखिलाकर हंसी थी तो उसे जवाब देने में वक्त लगेगा और सोचने में भी।
क्या वजह है कि महिलायें पुरुषों की तरह हंसती नहीं और न ही वो मजाक करती हैं। बचपन की हिदायत पचपन तक पीछा करती है बचपन से ही घुट्टी में घोल के पिलाया जाता है कि लड़कियों को धीरे -धीरे बात करनी चाहीये, मीठा बोलना चाहिए, कम बोलो, हंसों मत जोर से, रास्तों पे या बाजार में या पब्लिक में कभी नहीं हंसना। मायके में हो तो पिता और भाई के सामने मत हंसो, और ससुराल में हो तो सास-ससुर और जेठ के सामने चुप रहो, ऒफ़िस में हो तो बॉस के सामने चुप रहना... उफ़! फिर महिलायें कब हँसे? कब्र में जाने के बाद?
हमारे समाज ने बचपन से ही लड़कों और लड़कियों के बीच अलग -अलग मापदंड तय किये हैं। लड़कियों से हमेशा एक निश्चित व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। उसे सिखाया जाता है कि कोई तुमसे मजाक करे तो उसका बुरा मानना चाहिए उसे पलट के ऐसा जवाब दो की वो कभी दोबारा ऐसी जुर्रत ही न कर सके। तुम कभी किसी के साथ कोई मजाक -मस्ती मत करना, हंसना -हँसाना नहीं क्योकिं सभ्य, शरीफ . भद्र और सुशील संस्कार -वान लड़कियों को ये शोभा नहीं देता। और इस तरह हमारे समाज ने सुन्दर होठों से सुन्दर मुस्कान छीन ली। खिलखिलाहट नष्ट कर दी।
और उन आज्ञाकारी लड़कियों ने चुपचाप शराफत का लबादा ओढ़ कर अपनी हंसी और अनगिनत मुस्कानों की भ्रूण -हत्या कर दी। बरसों से होठों के किनारों तले कई मुस्काने दम तोड़ती आई है। फिर धीरे -धीरे महिलाओं ने इसे अपने स्वभाव में शामिल कर लिया। एक तो वे वैसे ही संवेदनशील स्वभाव वाली होती हैं अक्सर उन्हें रोने -धोने, सिसकने वाली ही समझा जाता है। जरा -जरा सी बातों पे रो देना . मायके में भाइयों ने मजाक किया तो रो दिए, ससुराल में नन्द -देवर ने छेड़ा तो रो पड़े।
किसी ने मोटी कह दिया या किसी ने नाटी कह दिया तो बुरा मान गए, मेरी एक परिचित हैं जिन्हें एक बार उनके पति ने मजाक में मोटी कह दिया इस पर उन्होंने आसमान सर पे उठा लिया, खाने की थाली फेंक दी और घर युद्ध का मैदान बन गया। जबकि उनके पति सिर्फ मजाक कर रहे थे ..ऐसे अनगिनत उदाहरण हम रोज अपने आसपास देखते हैं। अगर पति खाने की तारीफ़ ना करे या गलती निकाल दे तो महिलाये बुरा मान जाती है। इसे सहजता से नहीं लेती।
माना कि महिलाएं भावुक होती हैं, किसी भी मजाक को सहजता से नहीं लेती और खुद पर हँसना उन्हें कम आता है। वैसे भी खुद पर हंसने का हौसला हर किसी में होता भी नहीं अक्सर पुरुष यही सोचते है की -भाई महिलाओं से संभल कर बात करनी चाहिए न जाने किस बात का बुरा मान जाये या रो पड़े।
क्या कभी आपने ऐसी किसी महिला को देखा है जो जोर -जोर से हंस रही हो उसे खबर ही न हो की हंसते -हंसते वो कैसी दिख रही है उसकी आखें छोटी और दांत बाहर दिख रहे है? शायद ही देखा हो ..क्योकिं महिलायें हमेशा अपने लुक्स को लेके सचेत रहती हैं। वो हंसते हुए भी खूबसूरत दिखना चाहती हैं। कहीं चेहरा बिगड़ न जाए, दांत न दिखे आखें सिकुड़ न जाए आदि ..इतनी तैयारियों के बाद कोई क्या ख़ाक हंसेगा ..वो तो सिर्फ प्लास्टिक की हंसी हंसेगा।
इसका दूसरा पहलू भी है, अगर लोग किसी जिंदादिल महिला को हंसते हुए देखते हैं तो अजीब सी शक्ल बनाते हैं। उसे घूर -घूर के देखते हैं मानो वो कोई गुनाह कर रही हो। उस जोर-जोर से हंसते देख उस असभ्य मान लिया जाता है यही वजह है की महिलाए कम हंसती हैं।
अमेरिकी विश्वविद्यालयों में किये गए सर्वेक्षणों के अनुसार पुरुषों और महिलाओं के हास्यबोध में काफी अंतर पाया जाता है। महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादा हास्य उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। यही वजह है की हास्य कवी सम्मलेन हो या हास्य के कार्यक्रम महिलाये इनमे कम ही नजर आती हैं।
तो क्या हम ये मान ले कि महिलाये नीरस होती है, बोरिंग और बुद्धू टाइप की होती हैं। कतई नहीं, महिलाओं में भी हास्य की उतनी ही समझ होती है जितनी पुरुषों में। और हर महिला अपने जीवन साथी के रूप में ऐसे ही पुरुष की कल्पना करती है जो हंसमुख हो, खुश दिल हो, रोते से, चुप्पे से साथी को कोई पसंद नहीं करती। फिर वो खुद क्यों गुमसुम रहती है, मजाक नहीं करती, जिन्दगी को जिन्दा दिली से क्यों नहीं जीती?
याद रखिये, घर में रहने वाली महिला यदि चुप या उदास रहेगी तो उनके बच्चे भी कभी नहीं हंसेगे। जिस घर में महिलाएं मुस्काती नहीं, हंसती नहीं उस घर में ख़ामोशी के साये अपना डेरा जमा लेते हैं।
हमारे जीवन में चाहे जीतनी परेशानिया हों, दुःख हो . पीड़ा हो, हंसी और मुस्कान फिर भी उगाई जा सकती है, इसमे कोई खर्चा नहीं होता, न कोई खाद -पानी देना होता है।
हंसी से बड़ी कोई नेमत नहीं, जो लोग अपनी मर्जी से नहीं हंसते वो कभी जिन्दगी का लुत्फ़ नहीं उठा सकते। हंसना -हँसाना कोई बुरी बात नहीं है ये तो एक उन्मुक्त बहता झरना है इसे रोकना नहीं, टोकना नहीं बहते देना है। आप हँसेगी तो दुनिया हँसेगी आप मुस्काएगी तो सारी दुनिया मुस्काएगी। हंसी से बैर नहीं दोस्ती कीजिये।