तेल की चोरी / गोवर्धन यादव
दीपावली की रात सेठ गोविन्ददास की आलीशान कोठी जगमगा रही थी, सेठजी इस समय देवी लक्षमीजी की पूजा में व्यस्त थे, चौकीदार मुस्तैदी के साथ अपनी ड्यूटी निभा रहा था, तभी एक 12-14 साल का लडका दबे पांव आया और एक पात्र में दियों में से तेल निकालने लगा, चौकीदार के पैनी निगाहों से वह बच नहीं पाया, लडके को ललकारते हुये उस चौकीदार ने उसे पकडने के लिये दौड लगा दी, अपने पीछे उसे आता देखकर लडके ने भी दौड लगा दी, लेकिन पैर उलझ जाने से वह गिर पडा और-और उसके हाथ का पात्र भी दूर जा गिरा,
अब वह चौकीदार की पकड में था, रौबदार कडक आवाज़ में उसने लगभग डांटते हुये उस लडके से तेल चुराये जाने का कारण जानना चाहा, तो उस लडके ने रोते हुये बतलाया"भैयाजी, माँ तीन दिन से बीमार पडी है, उसका बदन तवे जैसा तप रहा है, मैने उसके लिये खिचडी बनायी और माँ को खाने को दिया तो उसने मुझसे कहा कि यदि खिचडी को थोडे से तेल में छौंक देगा तो शायद उसे खाने में कुछ अच्छा लगेगा, घर में तेल की एक बूँद भी नहीं थी, तो मैने सोचा कि यदि मैं दियों से थोडा तेल निकाल लूं तो काम बन जायेगा, इसी सोच के चलते मैंने तेल चुराने का मन बनाया था,"
लडके की बात सुनकर चौकीदार का कलेजा भर आया, उसने अपनी जेब से पचास रुपये का नोट उस लडके की तरफ़ बढ़ाते हुये कहा"ले ये कुछ पैसे हैं, किसी किराने की दुकान से खाने का मीठा तेल खरीद लेना और खिचडी फ़्राई कर अपनी माँ को खिला देना और बचे पैसॊं से दवा आदि खरीद लेना, जानते हो जिस तेल को चुराकर तुम भाग रहे थे, वह तेल करंजी का कडवा तेल था, यदि तुम उस तेल से खिचडी फ़्राई करते तो उसको न तो तुम्हारी माँ खा पाती और न ही तुम" ,
इतना कह कर वह वापिस लौट पडा था, मुठ्ठी में नोट दबाये वह लडका, तब तक वहीं खडा रहा था, जब तक कि चौकीदार उसकी आँखों के सामने से ओझल नहीं हो गया था।