तेवर / पद्मजा शर्मा
वह रो-रो कर, डर-डर कर, निराशा में जीवन काट रही थी। उसके पति को 'उड़ान' गिरोह ने मार दिया था। वह पुलिस का मुखबिर था। गिरोह का नशे का बड़ा कारोबार था। बाहर से आए हुए कंटेनर को पुलिस ने उसकी सूचना पर ही पकड़ा था। जिससे उन्हें करोड़ों का नुकसान हो गया था।
उसका पति तो गया ही अब बेटे को भी धमकियाँ मिलने लगीं। वे चाहते थे कि बेटा उनके काम में सहयोग करे। वरना उसे उसके बाप के पास पहुँचा दिया जाएगा। वह यह सोच-सोच कर परेशान थी कि उसके बेटे का क्या कसूर है जो उसकी जान के प्यासे हो रहे हैं। वह पुलिस थाने गई. कम्पलेन लिखवाने के लिए. पूरे चार महीने हो गए पर कोई सुन ही नहीं रहा था उसकी बात। वह गिड़गिड़ा रही थी, पर उसे हर बार यह कह कर टरका दिया जाता रहा कि 'आज समय खत्म हो गया है। कल आना।'
वह समझ ही नहीं पा रही थी कि किसका समय खत्म हो गया? उसका? पुलिस का? उसके बेटे का?
वह आज फिर गई. उसे देखते ही पुलिस वाले ने चुटकी ली। कहा-'लो, आ गई साल खराब करने। साहब लोग पार्टी करेंगे कि इसके आँसू पौछेंगे?'
सवेरे अखबार में खबर थी कि "क्रिसमस पार्टी में 'उड़ान' गिरोह के गुर्गों को पुलिस तथा क्राइम ब्रांच के सीनियर अफसरों के साथ डांस फ्लोर पर देखा गया।"
उसने पढ़ते ही सिर पकड़ लिया। पुलिस और अपराधी मिले हुए हों तो आम आदमी कैसे सुरक्षित रह सकता है। कैसे न्याय की आकांक्षा कर सकता है? अपने जीवन पर खेलकर कौन सच का साथ देने की हिम्मत जुटा सकता है।
वह कुछ पल सोचती रही पर फिर अगले ही पल आत्मविश्वास से भर उठी कि अब रोएगी या गिड़गिड़ाएगी नहीं। इससे तो अपराधियों के हौसले बढ़ेंगे। पति गया। डरती रही तो बेटे को भी खो देगी। निडर-निर्भय होकर बेटे को बचा भी सकती है।
दूसरे दिन वह पुलिस के उच्च अधिकारी के चैंबर में आत्मविश्वास के साथ गई. उसके साथ कुछ पत्रकार-फोटोग्राफर भी थे। उसके तेवर और तैयारी देख कर अधिकारी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. बिना किसी आनाकानी के कम्पलेन लिख ली गई. यह आश्वासन भी दिया गया कि उसके बेटे को सुरक्षा दी जाएगी और धमकी देने वालों पर जल्द ही कार्यवाही होगी।