त्रिस्तरीय भ्रष्टाचार / सत्य शील अग्रवाल
आज श्री अन्ना हजारे और उनके सहयोगी दल अर्थात अन्ना टीम ने देश व्यापी आन्दोलन द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध,मुहीम चलायी है. देश का जन जन आकंठ डूबे भ्रष्टाचार से ग्रस्त है,आंदोलित है. भ्रष्टाचार पर बहस, भ्रष्टाचार पर घर घर चर्चा, देश की समस्याओं का मुख्य मुद्दा बन गया है. देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को मुख्यतः तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है.
सर्वप्रथम सर्वोच्च स्तरीय भ्रष्टाचार जो विधायकों,सांसदों,मंत्रियों के स्तर पर किया जाता है. जहाँ सत्ता पर आसीन मंत्री किसी उद्योगपति, व्यापारी, कारोबारी से अथवा उनके समूह से अपनी पार्टी के लिए चंदा लेने के नाम पर मोटी रकम एंठ्ता है. ताकि स्वयं को तथा पार्टी के उम्मीदवारों को चुनावों में विजय दिलाने में मदद मिल सके. और वसूली गयी मोटी रकम के बदले में चंदा प्रदाता को अपने उत्पाद के मूल्य बढ़ने का अवसर दिया जाता है.जो अंततः जनता की जेब पर भारी पड़ता है. इसी स्तर पर अपनी ताकत का लाभ उठाते हुए घूस लेकर लाइसेंस जारी करना,विभिन्न सरकारी योजनाओं के कार्यों के कार्यान्वयन के लिए ठेकेदारों,सेवा प्रदाता एजेंसियों को लाभ पहुँचाना शामिल है. क्योंकि स्वयं मंत्री एवं नेता विभिन्न प्रकार से कमीशन लेते रहते है. सरकरी नौकरशाहों पर नियंत्रण नहीं कर पाते. और जब बड़े बड़े अफसरों से स्थानान्तरण के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है,विभिन्न पदों की कमाई के अनुसर कीमत तय की जाती है तो बड़े बड़े अफसर बेलगाम एवं बेधड़क हो जाते हैं. अब तो सत्ता पक्ष के लोग अपहरण कर्ताओं,डकैतों भूमाफियाओं,खनन माफियाओं,नकली मॉल के निर्माताओं से मिल कर भी अपनी तिजोरियां भरने लगे हैं.
भ्रष्टाचार की द्वितीय श्रेणी में बड़े बड़े नौकर शाह, जिनका सीधा सम्बन्ध मंत्रालयों से होता है, आते हैं.जो अपने मातहत अफसरों से ट्रांसफर, प्रोमोशन जैसे अनेक कार्यों के लिए अपने अधिकारों की कीमत वसूल करते हैं.साथ ही उसका कुछ अंश अपने मंत्रियों को पहुंचा कर अपना भविष्य सुरक्षित कर लेते हैं.विभिन्न सरकारी योजनाओ के कार्यान्वयन के लिए आंवटित धनराशी का बड़ा हिस्सा स्वयं हड़पने के उपाय सोचता रहते हैं,ताकि सत्तापक्ष से लेकर नीचे का स्टाफ नोटों की बरसात का लाभ उठता रहे.
तृतीय श्रेणी के भ्रष्टाचार में जनता का सीधे सीधे दोहन किया जाता है. जनता की जेब से भ्रष्टाचार के रूप में वसूली गयी रकम पंक्तिबद्ध तरीके से ऊपर तक पहुँचती है. जनता इस श्रेणी के भ्रष्टाचार से सर्वाधिक त्रस्त होती है,जब उसे सरकरी विभाग में किसी भी कार्य को कराने के लिए घूस देनी पड़ती है. अर्थात ऑफिस में किसी फाइल को ढूंढ निकालने की कीमत,फाइल को अग्रसारित करने की कीमत ,बिल जमा करने के लिए अतिरिक्त राशी,लाइसेंस बनवाने, नवीकरण कराने, समयानुसार कराने के लिए घूस, अपना धन राजकोष से वापस लेने के लिए कमीशन, किसी प्रकार का सरकारी प्रमाण पत्र जारी कराने की कीमत, कोई सरकारी आदेश अपने पक्ष में कराने की कीमत, इत्यादि इत्यादि अर्थात प्रत्येक स्तर पर जनता को अपना काम कराने के लिए पैसे देने पड़ते हैं.सम्वेदन हीनता की हद तो जब हो जाती है जब किसी गंभीर रोगी को अस्पताल में भर्ती कराने की कीमत देनी पड़ती है,या फिर दुर्घटना में मारे गए अपने प्रिय जन का पोस्टमार्टम शीघ्र कराने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है.जनता को न चाहते हुए भी रिश्वत देने की मजबूरी बन जाती है.यदि हजारे साहेब उपरोक्त पंक्ति में व्याप्त भ्रष्टाचार पर ही अंकुश लगा पाने में सफल हो पाए तो देश के हालत काफी सुधर सकते हैं,तत्पश्चात नीचे के अफसरों की रिश्वत लेते हुए रूह कंपेगी.