थका बूढ़ा फिल्मकार और सिताराविहीन पलटन / जयप्रकाश चौकसे

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थका बूढ़ा फिल्मकार और सिताराविहीन पलटन
प्रकाशन तिथि :30 सितम्बर 2017


समाचार है कि फिल्मकार जेपी दत्ता की युद्ध आधारित फिल्म 'पलटन' की शूटिंग लद्‌दाख में जारी है और ऐनवक्त पर अभिषेक बच्चन ने काम करने से इनकार कर दिया है। अभिषेक बच्चन के पास कोई ठोस कारण होगा। एक संभावना यह है कि फिल्मकार ने उन्हें मुआवजा नहीं दिया हो या उसमें कटौती की हो। जेपी दत्ता का हमेशा यह खयाल रहा है कि उन जैसे फिल्मकार के साथ काम करने के लिए स्वयं कलाकार को उन्हें धन देना चाहिए या कम से कम कुछ मांगना तो नहीं चाहिए। हर व्यक्ति एक ही समय दो संसार में रहता है। एक यथार्थ का संसार, जिसमें लेन-देन उस तेल की तरह होता है, जिससे यह मशीन सुचारू रूप से चलती है। दूसरा उसका भीतरी संसार है, जिसमें वह चक्रवर्ती राजा की तरह है और शेष सभी 'प्रजा' की तरह रहते हैं। जेपी दत्ता संभवत: इस अंतर से अनभिज्ञ हैं। हमारे हुक्मरान भी प्रजा की पीठ पर कोड़े बरसाकर उस पर यह उपकार ही कर रहे हैं कि उसकी पीठ की खुजली को मिटा रहे हैं। हुक्मरान जानता है कि दवा के नाम पर वह दर्द ही दे रहा है। प्रजा आज भी समवेत स्वर में गा रही है कि 'दिल दिया और दर्द लिया'।

अभिषेक बच्चन आनंद रस में डूबे ऐसे प्राणी हैं कि वे किसी दौड़ का हिस्सा नहीं हैं। वे अपने पिता की तरह सफलता को साधने में स्वयं को होम करने वाले प्राणी नहीं हैं। अब इस इत्तेफाक का वे क्या करें कि उनका स्वभाव सरल प्रजा का है परंतु वे एक शहंशाह के पुत्र हैं। उसकी विचार प्रक्रिया एक सीधे सरल इंसान की तरह है। वे उस आदमी की तरह हैं, जिसको चार्ली चैपलिन से राज कपूर तक के कलाकार अभिनीत करते रहे और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे फिल्मकार रचते रहे हैं।

अभिषेक तो ताउम्र अपनी पत्नी ऐश्वर्या को निहारते हुए बिता सकते हैं। उनके जीवन में कोई आंकी बांकी रेखा नहीं है। स्मरण आता है कि अभिताभ बच्चन शशि कपूर की गिरीश कर्नाड रचित 'उत्सव' में अभिनय का करार कर चुके थे और बेंगलुरू में फिल्म की शूटिंग भी प्रारंभ हो चुकी थी। पहले से तय कार्यक्रम के तहत शशि कपूर अमिताभ बच्चन के घर पहुंचे जहां से उन्हें एयरपोर्ट जाना था परंतु एक आंकी-बांकी रेखा के कारण यह घरेलू शांति का तकाजा था कि वे फिल्म छोड़ दें। ये तो वे जानते थे कि पठान पृथ्वीराज कपूर का बेटा अपनी फिल्म की नायिका को नहीं बदलेगा। फिल्मों के भी नसीब होते हैं कि कौन किस पात्र को अभिनीत करेगा। इस प्रक्रिया में कभी-कभी भूमिका के वस्त्र का नाप उसे अभिनीत करने वाले से बड़ा होता है तो कभी कलाकार को वस्त्र छोटे पड़ जाते हैं। परदे के पीछे की कहानियां रोचक होती हैं। इस सिल्वर स्क्रीन के पीछे कितने दहकते कोयले छुपे होते हैं कि सपाट बयानी शोले दहका सकती है।

ज्ञातव्य है कि जेपी दत्ता के भाई वायुसेना में पायलट थे। संभवत: एक अभ्यास उड़ान के हादसे में उनकी मृत्यु हुई। उन्होंने अपने भाई की डायरी से प्रेरित फिल्म 'बॉर्डर' बनाई। जेपी दत्ता राज कपूर के सहायक बने जब 'बॉबी' का संपादन चल रहा था। रणधीर कपूर की 'धरम करम' में वे प्रमुख सहायक बने। अपनी पहली फिल्म 'गुलामी' की कामयाबी के बाद उन्होंने अनेक असफल फिल्मों का निर्माण किया। यह तो पूंजी निवेशक भरत भाई शाह का ही साहस है कि उन्होंने जेपी दत्ता को 'बॉर्डर' बनाने की सारी सुविधाएं उपलब्ध कराईं। जेपी दत्ता की 'एल.ओ.सी.' का पहला संपादित संस्करण लगभग साढ़े पांच घंटे का था परंतु व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण उसे कम करके प्रदर्शित किया गया। यह संभव है कि जेपी दत्ता ने उस फुटेज का इस्तेमाल अब 'पलटन' में करने का इरादा किया हो। बहरहाल सीमाओं पर शांति है परंतु सरहदें सुलगती हुई बनाए रखे जाने का राजनीतिक लाभ है। अवाम हमेशा ईंधन या असलाह बना रहता है। बकौल निदा फाज़ली 'माचिस है पहरेदार तमाम बारुदखानों पर'।