थप्पड़ की गूंज देर तक सुनाई देगी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :18 जनवरी 2018
सुभाष घई की 'कर्मा' में दिलीप कुमार अनुपम खेर को थप्पड़ मारते हैं तो अनुपम खेर कहते हैं कि इस थप्पड़ की गूंज दूर तक और देर तक सुनाई देगी। नूतन और संजीव कुमार के बीच प्रेम होने की बात के संदेह मात्र पर नूतन के पति ने नूतन से कहा कि वे स्टूडियो में सबके सामने संजीव कुमार को थप्पड़ मारकर अपने को निर्दोष सिद्ध करें। अग्नि परीक्षा का सिलसिला जारी है। कल्पना कीजिए कि नूतन ने कितनी वेदना सही होगी परंतु उन्हें विवाहित जीवन को बचाने के लिए सरेआम संजीव कुमार को थप्पड़ मारना पड़ा। शांति के लिए गए समझौते युद्ध से अधिक भयावह परिणाम देते हैं। कितने ही रिश्ते तमाम उम्र इसी तरह ढोए जाते हैं। सोलह वर्ष से प्रसारित हो रहे 'सीआईडी' नामक कार्यक्रम में अपराधी को थप्पड़ मारा जाता है और वह गुनाह कबूल कर लेता है।
महात्मा गांधी का यह कथन बहुत बार दोहराया जाता है कि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो। तीसरे थप्पड़ के बारे में सभी लोग मौन धारण कर लेते हैं। मारने वाले के थक जाने पर ही हिंसा रुकती है। अहिंसा अवधारणा महात्मा बुद्ध और महावीर से प्रारंभ होकर महात्मा गांधी तक सफर तय करती है। अब वह एक मुसाफिर की तरह अपने रात्रि विश्राम के लिए सराय खोज रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर उपिंदर सिंह की किताब है 'पॉलिटिकल वायलेन्स इन इंडिया।' उनका विचार है कि भारत का अहिंसक होना एक मिथ्या धारणा है। इतिहास के नाम पर अल्पसंख्यकों को डराया जाता रहा है। बहुसंख्यकों ने अपनी हिंसा को एक मुखौटा दिया है। गांधी और नेहरू के पास इतिहास बोध था और उन्होंने ही भारत के अहिंसक होने की बात को स्थापित सत्य बना दिया, जबकि अनेक युद्ध लड़े गए और वे अकारण ही लड़े गए। इन महापुरुषों ने इतिहास को वैसा ही देखा जैसे वे देखना चाहते थे। उनके उद्देश्य महान रहे हैं।
सम्राट अशोक एकमात्र विजेता हैं, जिन्होंने युद्ध लड़ने के लिए सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना की है। महात्मा बुद्ध के कथन को पत्थरों पर सम्राट अशोक ने अंकित कराया और अफगानिस्तान में भी शिलालेख पाया जाना सिद्ध करता है कि अशोक ने वहां भी विजय प्राप्त की थी। भारत में अधिकांश युद्ध अपने अपनों के बीच ही हुए हैं। भारत ने कभी आक्रमण करके कोई अन्य राज्य हड़पना नहीं चाहा है। कुरुक्षेत्र में लड़ा गया युद्ध सत्य के लिए लड़ा गया युद्ध बताया गया है परंतु दोनों ही पक्षों ने झूठ का सहारा भी लिया है। अभिमन्यु अौर जयद्रथ दोनों ही छल से मारे गए। इस संहारक युद्ध को रोकने के प्रयास में श्रीकृष्ण भी असफल रहे। संभव है कि व्यापारियों के किसी संगठन या सिंडिकेट ने शांति प्रयासों को विफल कर दिया हो, क्योंकि उन्होंने विराट पैमाने पर शस्त्र बना लिए थे और घोड़ों का आयात भी कर लिया था। रथ निर्माण के कारखानों में श्रमिक ओवरटाइम कर रहे थे।
आज साधनहीन व्यक्ति के गाल पर जो लाली दिखाई दे रही है, वह उसके सेहतमंद होने का प्रमाण नहीं है परंतु किसी अदृश्य हाथ से मारे गए थप्पड़ के कारण पैदा हुई है। थप्पड़बाजी, पतंगबाजी, कंचे खेलना, लट्टू घुमाना सारे खेल परम्परागत खेल हैं परंतु नए खेल भी शामिल होते रहे हैं। इनका सट्टा भी रोके नहीं रुकता। चीन भी भारत की तरह जुआरी रहा है। अंग्रेजी भाषा में कहावत है कि 'यू डोन्ट हेव इवन ए चाइनमैन्स चान्स' अर्थात आपके लिए जीतने का अवसर ही नहीं है। कई बार थप्पड़ मारने की अदा प्रस्तुत की जाती है अौर गाल सहलाया जाता है। गाल थप्पड़ से ही नहीं वरन शर्म से भी लाल हो जाता है। शर्म भी न आए, ऐसे व्यक्ति को ढीठ कहते हैं। जो माता-पिता बेबात बच्चों को डांटते रहते हैं, वे बच्चे को ढीठ बना रहे हैं। यह ढीठ बच्चा ही जब संसद में पहुंचता है तो कार्रवाई ठप कर देता है। इसे कहते हैं थप्पड़ की गूंज का दूर और देर तक सुनाई देना।
आजकल एक फिल्म का प्रदर्शन मुद्दा बना दिया गया है। ऋषि कपूर का व्यावहारिक सुझाव है कि इस फिल्म को सैटेलाइट चैनल द्वारा प्रदर्शित कर देना चाहिए। एक के बाद एक अनेक शो टेलीविजन पर कर देने से अधिकतम दर्शक देख लेंगे। यह भी संभव होगा कि फिल्म के खिलाफ हुड़दंग मचाने वाले लोग भी फिल्म देख लेंगे। उनकी ज़िद भी कायम रहेगी और फिल्म भी प्रदर्शित हो जाएगी। अगर ऐसा होता है तो चैनल को विज्ञापन द्वारा अच्छी खासी आय हो जाएगी। घर में फिल्म देखते समय पॉपकॉर्न नहीं तो मूंगफली खाई जा सकती है। अपनी सेहत के प्रति सजग लोग वाष्प किए गए मटर के दाने खाते हुए घूमर देख सकते हैं। संजय लीला भंसाली ने 'सांवरिया' बनाकर ऋषि कपूर के बेटे रणवीर को हानि पहुंचाई परंतु वे उसका भला ही चाहते हैं।