थाने की दीवारों पर चस्पा प्रेम / पल्लवी त्रिवेदी
लड़का और लड़की दोनों थाने पर बैठे हुए थे।
लड़की के घरवालों को पता चल गया था कि दोनों के बीच प्यार जैसी निहायत शर्मनाक चीज़ चल रही थी। लड़की और लड़का दोनों अलग-अलग कॉलेजों में एक ही क्लास में पढ़ते थे। एक कॉमन दोस्त के ज़रिये मुलाक़ात हुई और इश्क हो गया। दो सालों में दोनों दसियों बार मिले, सैकड़ों कसमें खाईं और जाने कितने ग्रीटिंग कार्ड्स और उपहार एक दूसरे को दिए। रोज़ एक ख़त भी. हाँ रोज़ बस स्टॉप पर एक ख़त की अदला-बदली होती थी।
तो लड़की के घरवालों को जब पता चला तो लड़की की पिटाई हुई क्योंकि लड़की ने ढिठाई से बोल दिया था कि वो उस लड़के से सचमुच प्रेम करती है और शादी करना चाहती है। लड़की महज उन्नीस की थी और इस तरह की बे-अदबी तो घर के लड़कों ने भी कभी न की थी।पापा ने पहली बार लाड़ली बिटिया पर हाथ उठाया। लड़की तीन दिन तक घर से बाहर न निकली। अंत में पिता के सामने हार गयी और उस लड़के को भूल जाने का वादा किया।
कैसा पिता था ऐसे वादा ले रहा था जिसे पूरा करना लड़की के हाथ में न था। जुबान वादा कर सकती थी सो कर दिया। लड़की की बहन ने रात को सामान की तलाशी ली और संदूक भर के उपहार और ख़त बरामद किये। पिता को चिंता हुई कि लड़के के पास भी लड़की का सामान होगा जो आगे चलकर मुसीबत बन सकता है।
पिता ने लड़के से सामान वापस करने को कहा। लड़के ने साफ़ मना कर दिया। पिता के दोस्त जिले के एस. पी. थे। थानेदार को हुक्म हुआ कि लड़के को सामान सहित थाने पर बुलवाया जाए। लड़का आखिरकार एक कार्टन लेकर हाज़िर हुआ। लड़की और उसके घरवाले भी लड़की का संदूक लेकर हाज़िर हुए।
इस तरह का सामान थाने ने कभी न देखा था। लाशों से जप्त सामान, लूट में बरामद माल, खून से सने कपड़े और मिट्टी।यही सब सामान आता था इस चारदीवारी के भीतर। ये कैसा मासूम सामान था? यहाँ क्या कर रहा था?
देखते ही देखते दो अलग-अलग मेजों पर टेडी बियर, की-रिंग्स, डायरी, अंगूठियाँ, पेन, दर्जनों सूखे गुलाब, लव ग्रीटिंग्स के ढेर लग गए। दोनों चुपचाप अपना-अपना सामान समेटने लगे।
अपना सामान ?
अपना कहाँ रहा ये सारा सामान ?
जिस पल प्रेमी की आँखें बंद करवाकर ये सामान उसकी हथेली में धर दिया था और सरप्राइज़ से चमकती आँखों को देखकर मुहब्बत के दरिया में एक हाथ और नीचे डूब गए थे, उसी पल वो अपना नहीं रहा था मगर अब वापस आ रहा है अपना सामान बनकर। लड़का और लड़की आंसुओं को साधते हुए एक दूसरे को कभी हताशा से देखते तो कभी तड़पकर मुंह फेर लेते। तभी एक जैसे दो तावीज़ एक साथ दोनों के हाथ में आये और दोनों कुछ पलों के लिए बस एक दूसरे को देखते ही रह गए मानो ये तावीज़ नहीं मन्नतें थीं और आज टूक-टूक हो रही थीं उनकी नज़रों के सामने, उन्हीं के हाथों। बीते दो साल लम्हा-लम्हा मेज पर बिखर रहे थे। तमाशाई मजमा लगाकर खड़े थे।
सामान के बाद जब ख़तों की बारी आई तब लड़की के भाई ने एक ख़त खोलकर पढना शुरू किया। लड़की बुरी तरह सिसक पड़ी " नहीं भैया "
लड़की की माँ ने भाई को ख़त पढने से मना कर दिया और दोनों के खतों को वहीं जलाने का आग्रह किया। एक सिपाही ने ढेरी बनाकर खतों में आग लगा दी।लड़के और लड़की के गड्ड मड्ड खत। लफ्ज़ सुलगकर,राख बनकर इक दूजे में मिलते जाते। बिछड़ने के उन लम्हों में इश्क की स्याही से रचे नीले नीले फूल यूं एक होते जाते। ओह जैसे कोई चिता जलती हो धू-धू कर के।
लड़का और लड़की दोनों का चेहरा आंसुओं से भर गया।उस पल में दोनों की नज़रें मिलीं और जाने क्या था उन हारी हुई नज़रों में कि अचानक लड़की के पास खड़ी बेहद सख्त चेहरे वाली अधेड़ हैड कॉन्स्टेबल ने उन दोनों के चेहरों को और उन जलते खतों को देखा और उसकी आँखों में अचानक बेतरह आंसू उमड़ आये।
लड़का लड़की का आगे क्या हुआ, कुछ पता नहीं मगर अगले महीने उस हैड कॉन्स्टेबल की बेटी की इंटर कास्ट लव मैरिज का कार्ड थाने में आया था।