थ्रो-इन : बीच मैदान में / मिडफ़ील्ड / सुशोभित

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थ्रो-इन : बीच मैदान में
सुशोभित


फ़ुटबॉल की पिच भले 100 मीटर लम्बी और 65 मीटर चौड़ी हो, उसमें खेल मुख्यतया मिडफ़ील्ड से संचालित होता है। एक क्रिएटिव मिडफ़ील्डर के हाथ में खेल के सूत्र होते हैं। वह स्ट्रिन्ग्स पुल करता है, कठपुतलियों को नचाता है। वह ऑर्केस्ट्रा का कंडक्टर या खेल का सूत्रधार होता है और लिन्चपिन कहलाता है – टीम को बाँधे रखने वाली कड़ी। जैसा कि बार्सीलोना के होल्डिंग मिडफ़ील्डर सेर्ख़ियो बुस्केट्स के बारे में वीसेन्ते देल बोस्के ने कहा था, “अगर आप खेल देखेंगे, तो आपको बुस्केट्स कहीं दिखलाई नहीं देंगे, लेकिन अगर आप बुस्केट्स को देखेंगे, तो आपको पूरा खेल नज़र आएगा!”

अटैकिंग मिडफ़ील्डर 10 नम्बर की जर्सी पहनता है और फ़ॉरवर्ड लाइन के सम्पर्क में रहता है। फ़ॉरवर्ड लाइन का दलनायक 9 नम्बर की जर्सी पहनने वाला सेंटर फ़ॉरवर्ड होता है। होल्डिंग मिडफ़ील्डर 6 नम्बर की जर्सी पहनता है और डिफ़ेंस लाइन से संवाद करता है। डिफ़ेंस लाइन का दलनायक 4 नम्बर की जर्सी पहनने वाला सेंटर बैक होता है। यह किताब फ़ुटबॉल के बारे में है- उसकी किंवदंतियों और चरितनायकों, उसके उन्मादों और आश्चर्यों के बारे में- लेकिन इसका फ़ोकस मिडफ़ील्ड पर है। उचित ही पुस्तक को मिडफ़ील्ड शीर्षक दिया गया है। इसमें आलातरीन मिडफ़ील्डरों पर चर्चा की गई है। आप पाएँगे कि यह किताब 10 नम्बर की जर्सी पहनने वालों की विरुदावलियों से भरी है। स्वयं इस किताब की अगर कोई कमीज़ होती तो वह 10 नम्बर की ही होती।

चूँकि यह पुस्तक इस साल हो रहे विश्व कप के अवसर पर प्रकाशित हो रही है, इसलिए इसमें एक तारतम्य विश्व कप का भी है – विश्व कप की भावना का एक अनधिकृत वृत्तान्त – आरम्भ से अब तक। विश्व कप एक प्रतिस्पर्धा है, जिसे जीता जाता है। लेकिन यह किताब जाने क्यों विश्व कप हारने वालों पर अधिक एकाग्र होती चली गई है – 1950, 1954, 1974, 1982 की पराजित टीमों पर, चूकी हुई पेनल्टियों और हेडबट्स पर, त्रासदियों और त्रासद-नायकों पर, हारे हुए फ़ाइनल मुक़ाबलों पर। क्या इसलिए कि त्रासदियों में एक विशेष क़िस्म का आकर्षण और उनका एक रोमांस होता है? पर ठीक है, क्योंकि यह किताब 1962, 1970 और 1986 के विजयोल्लासों का उत्सव भी मनाती है – तो क्या हुआ अगर तमाम उत्सव किन्हीं हादसों का पूर्वरंग हों!

मुझे अपने जीवनकाल में 1994 और 1998 के विश्व कप की धुँधली-सी याद है। 2002 और 2006 के विश्व कप को जब-तब कौतूहल से निहारा था, समग्रता में नहीं। 2010 के ‘‘वाका-वाका’’ के दौरान भले अन्यमनस्क रहा, लेकिन यह ख़बर मुझे मिलती रही कि कार्लेस पुयोल का बुलेट-हेडर स्पेन को फ़ाइनल में ले गया है, जहाँ इनीएस्ता ने विजयी गोल दाग़ा है। लेकिन 2014 के बाद से मैं फ़ुटबॉल को नियमित देखता आ रहा हूँ। उस पर पढ़-लिख रहा हूँ। उसका इतिहास खंगाल रहा हूँ। मैं इस ख़ूबसूरत खेल में रम चुका हूँ। यह पुस्तक उस संलग्नता की भी अभिव्यक्ति है। इसे ‘‘मिडफ़ील्ड’’ यानी बीच मैदान में कहना फ़ुटबॉल के भौतिक-आवेग को अनुभव करना है।

हिंदी में फ़ुटबॉल पर इससे पहले शायद ही कोई अच्छी किताब लिखी गई है। यह उस अभाव की पूर्ति भी है। विश्व कप 2022 के अवसर पर पाठकों और खेलप्रेमियों के लिए यह एक उपहार तो है ही।

इतना ही कहूँगा कि इस किताब को पढ़ने के लिए आपका फ़ुटबॉलप्रेमी होना ज़रूरी नहीं है। लेकिन यह किताब पढ़कर आप एक फ़ुटबॉलप्रेमी ज़रूर बन जाएँगे।

वीवा फ़ुतबोल।