दंडित खिलाड़ी और आख्यानों के अनुवाद / जयप्रकाश चौकसे

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दंडित खिलाड़ी और आख्यानों के अनुवाद
प्रकाशन तिथि :15 जनवरी 2019

करण जौहर के कार्यक्रम 'कॉफी विद करण' में भाग लेने आए कलाकार से ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं जिनके उत्तर विवाद पैदा कर सकते हैं। यह प्रायः फूहड़ता केंद्रित कार्यक्रम है। भारत की क्रिकेट टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर है और टेस्ट शृंखला जीत चुकी है। सीमित ओवर के मैच जारी हैं। भारत के दो खिलाड़ियों को टीम से हटा दिया गया है। उन पर आरोप है कि करण जौहर के कार्यक्रम में उन्होंने महिला विरोधी बात की थी। कहा जा रहा है कि क्रिकेट संगठन ने उनकी वापसी के टिकट भी नहीं खरीदे। उन्हें पेय में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका। इस फैसले से भारतीय टीम कमजोर पड़ गई है। किसी भी आरोप में बचाव का अवसर दिए बिना ही न्याय करना अनुचित है। इस फूहड़ कार्यक्रम ने दो युवा खिलाड़ियों को अवसरों से वंचित कर दिया। उन्हें कितने समय तक नहीं खेलने दिया जाए इस पर विचार किया जा रहा है। संभवत: उन्हें आईपीएल तमाशे में भाग लेने से भी वंचित किया जा सकता है। महिलाओं का सम्मान बनाए रखने के महत्व को कम नहीं किया जा रहा है परंतु सफाई का अवसर नैचुरल जस्टिस के दायरे में आता हैै।

अभी ये सुर्खियां कायम ही हैै कि एक और अणु बम का विस्फोट हुआ। फिल्मकार राजकुमार हिरानी पर उनकी एक सहायक ने यौन उत्पीड़न का इल्जाम लगाया है। प्रियंका चोपड़ा ने 'एतराज' नामक फिल्म से अपना कॅरिअर शुरू किया था। उस फिल्म में अक्षय कुमार अभिनीत पात्र पर ऐसा ही इल्जाम लगता है परंतु वे अदालत में सप्रमाण अपना पक्ष रखकर बाइज्जत बरी होते हैं। करीना कपूर ने अक्षय कुमार के वकील की भूमिका अभिनीत की थी। फिल्मकार ने इसे सत्यवान सावित्री प्रसंग से जोड़ने का प्रयास भी किया था कि किस तरह एक पत्नी यमराज की पकड़ से अपने पति को छुड़ा लेती है। हर घटना को धार्मिक आख्यानों से जोड़ने की ललक बहुत ही मजबूत होती है और खाकसार भी इसका लतियल रहा है।

सहायक निर्देशक कई काम करता है। वह निर्देशक का पीए है, भिश्ती और बावर्ची भी होता है। शॉट रेडी होने पर कलाकार को बुलाना उसका काम हैै। कंटिन्यूटी लिखने का काम एक सहायक को दिया जाता है ताकि इन सब कामों को करते हुए एकलव्य की तरह स्वयं ज्ञान अर्जित करें। कुछ लोग ताउम्र सहायक ही बने रहते हैं। विधु विनोद चोपड़ा को श्रेय है कि उन्होंने अपने सहायकों को इस विद्या का ज्ञान प्राप्त करने के अवसर दिए। 'प्रेम रोग' के निर्माण के समय अनीस बज्मी पटकथा लेखक जैनेन्द्र जैन के सहायक थे। जिन्हें निर्देशन का अवसर भी दिया गया था। कुछ ही दिनों की शूटिंग के बाद वे फिल्म से हट गए परंतु अनीस बज्मी यूनिट में बने रहे और अपनी प्रतिभा तथा परिश्रम से राज कपूर के प्रिय सहायक बन गए। बाद में स्वतंत्र निर्देशक के रूप में उन्होंने कुछ फिल्में बनाईं। आज कल वे 'पागलपंती' नामक फिल्म बना रहे हैं, जिसका टाइटल पहले 'साढ़े साती' रखा गया था।

बहरहाल, करण जौहर ने आदित्य चोपड़ा की 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के निर्माण के समय सहायक निर्देशक बनकर अपनी पारी शुरू की थी। करण के पिता यश जौहर फिल्म उद्योग में सबकी सहायता करते थे। 'कुली' फिल्म की शूटिंग में घायल अमिताभ बच्चन के लिए विदेशों से दवा मंगाने का काम उन्होंने किया। यश जौहर अत्यंत मिलनसार व्यक्ति थे। यदि एक बार भी किसी व्यक्ति से मुलाकात हो जाए तो ताउम्र उसके जन्मदिन पर बधाई देना नहीं भूलते थे। ज्ञातव्य है कि 'शोले' के निर्देशक रमेश सिप्पी शम्मी कपूर, हेमा मालिनी, अभिनीत 'अंदाज' में डायरेक्टर बनने के पहले सात साल तक सहायक रहे। करण जौहर इकलौते पुत्र और दक्षिण मुंबई के श्रेष्ठि वर्ग के रिहायशी इलाके में रहने वाले अत्यंत खामोश और लजीले युवा थे। बाद में वे हर जगह देखे जाने लगे और अत्यधिक देखे जाने का नशा-सा हो गया। पहले की तमाम दबाई हुई बातें और प्रवृतियां ऐसे उजागर हुईं मानो कोई जलप्रपात बह रह हो।

उनके 'कॉफी' कार्यक्रम में सारे प्रश्न चुलबुलेपन की सीमाएं तोड़कर अंतरंगता के क्षेत्र में आ जाते हैं। विवाद बनाने का उपक्रम किया जाता है। लोकप्रियता की खातिर आज हर क्षेत्र में अजीबोगरीब काम हो रहे हैं। क्या क्रिकेट संगठन 'कॉफी' दिखाने वाले चैनल से बात करेंगे ? बताया जा रहा है कि विवादित कार्यक्रम को हटा लिया गया है। अब वह इंटरनेट पर भी उपलब्ध नहीं है। हमारे आख्यानों में भी महिला गरिमा को ठेस पहुंचाई गई हैं। यह भी संभव है कि संस्कृत से हिंदी में अनुवाद करते समय त्रुटियां हो गई हों। लेखक उमाकांत मालवीय की अनुभूति प्रकाशन इलाहाबाद द्वारा जारी किताब 'टुकड़ा-टुकड़ा औरत' में माधवी गालव कथा में गुरु दक्षिणा देने के लिए पिता द्वारा बार-बार गिरवी रखी गई पुत्री की व्यथा-कथा का वर्णन है। अत: दो युवा खिलाड़ी दंडित किए जा रहे हैं। उस विचार शैली के लिए जिसकी जड़ें सैकड़ों वर्ष पहले लिखे आख्यानों तक फैली हैं।

यह कितनी अजीब बात है कि हमारे आख्यानों के जर्मन भाषा में किए गए अनुवाद ही प्रमाणिक माने जाते हैं। इनका मेक इन इंडिया नहीं हो पा रहा है। खोखले वादों की लंबी कड़ी का यह भी एक छोटा-सा भाग है।