दंड आशीर्वाद / धनन्जय मिश्र

Gadya Kosh से
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एक तेॅ फागुन रोॅ महीना वै पर होली रोॅ दू-तीन दिन पहिने रोॅ समय। है मास रोॅ आगमन आरोॅ चैत मास रोॅ मिलन पर गाछी के कोपलौ रोॅ फुनगी पर अवतरण, कोकिल गान, टेसू रोॅ दहकन सभ्भे सृष्टि रोॅ गुनगुनाहट आरोॅ फुललो फूलो रोॅ गंधोॅ से मातलोॅ दिखाय पड़ै छै। ऋतुराज वसंत के अंतर रोॅ अनुराग आय फाग साये सौसे धरती के रंगों से डूबाय लेली आवी गेलोॅ छै। आरोॅ आवी रहलोॅ छै परदेशों से परदेशी आपनो-आपनो घोॅर लय, ताल-वाद्य, गीत-गान के आलिंगन रोॅ संगम के स्वागत करै लेली।

यहा समय में गामोॅ, शहरोॅ रोॅ स्कूल-कॉलेज या ते बंदी रोॅ कगार पर छै या बंद होय गेलो छै। सभ्भे छात्र-छात्र आपनो घोॅर आवै लेली बसो आरोॅ ट्रेनांे में भीड़ बढ़ाय रहलो छै। यहा बीचों में हमरा मालूम होलै कि हमरोॅ तीनोॅ पोता-पोती जे भागलपुरोॅ रोॅ एस॰एम॰ कॉलेज आरोॅ मारवाड़ी कॉलेजो में पढ़ै छै मंदार हिल ट्रेनो से आवी रहलो छै। मनोॅ में खुशी होलै कि पोता-पोती सें कत्ते दिनोॅ रोॅ बाद भेंट होतोॅ। कैन्हे कि आदमी रोॅ चौथा पनों में मूरोॅ से बेसी सूदे प्यारोॅ लागै छै।

कुच्छु देरोॅ रोॅ बाद हमरा आँगना में पोता सागर कुमार आरोॅ पोती काजल मिश्रा रोॅ आवाज सुनाय पड़लै। आवाज सुनी के हम्में नीचे आवी के काजल से पूछलियै-"मर काजल सन्नी कुमार (नवनीत नितांत) के नै देखै छियौ, हौैैैैैैैैैैैैैैैै कि है गाड़ी सें नै आवै ले पारलौ?" हो पापा! सन्नी भैया पीछू से आवी रहलो छै। -काजल हकलाय के बोललो रहै। हौ हकलाहट के हम्में बुझैले नै पारलियै। (पोता-पोती हमरा पापा ही कहै है) बात ऐलोॅ-गेलोॅ होय गेलै। हम्मे दुपहर रोॅ खाना खाय केॅ आयको अखबार लैके ऊपर वाला कमरा में जाय रोॅ क्रम में है महसूस करलियै कि आभियो ताँय सन्नी घोॅर नै ऐलो छै। हमरोॅ माथो ठनकलै। हम्में भावी आशंका सें घिरी के काजल से गोस्साय के बोललियै- "काजल कि बात छै कि आभी ताँय सन्नी घोॅर नै ऐलौ छै।" हमरा पूछला पर काजल लगभग कानते हुए बोललै-"पापा जी, हमरो बेवकूफी आरोॅ लापरवाही रोॅ दंड सन्नी भैया ऐखनी भोगी रहलोॅ छै।" "आँ, है कि बोली रहली छै कि होलो छै, विस्तार से बतावे।" हमरो आवाज आर्द्र छेलै मतुर वातावरण क्रुद्ध छेलै। सौसें वातावरण गर्म पछिया रोॅ आगोश में डूबी के हाहाकार मचाय रहलो रहै। लागै रहै कि आइये धुरखेल रहै। काजल जे बोलली रहै हौ वास्तव में मानवीय भूल ही छेलै आरो लापरवाही भी।

बात है छेलै पापा कि एखनी एक ते सड़क मार्ग भागलपुर-हंसडीहा गड्ढा में तबदील भै गेलो छै, आरोॅ दोसरोॅ होली पर्व रो समय। सभ्भे यात्री यात्र लेली ट्रेन मार्ग ही चुनै छै। ट्रेनों में आवश्यक बोगी रोॅ अभाव रहै छै। ट्रे रोॅ महकमा साधारण यात्री लेली असभ्वेदनशील बनलो रहै छै। भाड़ा ते बढ़ी जाय छै मतुर आधारभूत सुविधा घटी जाय छै। आज भी बोगी के कमी रोॅ चलते ट्रेन मेंअप्रत्याशित भीड़ रहै। यही भीड़ोॅ में हम्में तीनों भी आपनो दोस्तो साथे भीड़ रोॅ एक हिस्सा वनी के घोॅर आवी रहलो छेलियै। है ट्रेन की प्रायः हर लोकल ट्रेनोॅ रोॅ यात्री आपनो मनोॅ में है सोचै छै कि अगर आपनोॅ बस्ती ला हीं ट्रेन खाड़ो होय जाय ते चट सें उतरी के पट से आपनो घोॅर ढुकी जाँव। यै लेली कोय-कोय आदमी ट्रेन केॅ ग़लत ढंग से रोकी केॅ अपराध करै छै, आरोॅ कोय-कोय होकरा समय पर छोड़ी के इंतजार करै छै। यही वक्ती है ट्रेन 'ओड़हारा' सड़क रोड पर अचानक खाड़ोॅ होलोॅ रहै। ट्रेन से उतरै रोॅ आपाधापी आरोॅ हड़बड़ाहट रोॅ चलतें हम्में भूलो से एक दोसरा यात्री रोॅ एक झोला आपनोॅ समझी के लै के उतरी गेलियै। यही ठियाँ आरोॅ सिनी कत्ते नी यात्री भी ट्रेन से उतरलोॅ रहै।

आवे ट्रेन खुली गेलो छेलै। हमरा सिनी भी घोॅर आवै लेली कदम बढ़ैनै छेलियै कि तखनिये हमरोॅ मोबाइल घनघनाय उठलै। "हलो काजल, जहाँ तक हमरोॅ सोच सही छै कि तोरातीनों में से केकरोेॅ द्वारा एक बूढ़ी माय रोॅ झोला उतरी गेलो छै, काजल रोॅ सहेली प्रगति रोॅ आवाज छेलै। हम्में है सुनथैं अकबकाय के हौ उतरलो झोला दिस नजर देलियै। नजर देतै हमरा आपनोॅ भूल रोॅ एहसास होलै। होॅ प्रगति हमरा से एक दोसरो यात्री रोॅ झोला उतरलो छै।" धन्यवाद काजल! बात है होलै कि तोरा सिनी रोॅ उतरतै एक बूढ़ी माय जे आपनो छोटी पोती साथै छै हुनी आपनो झोला के खोजै लागलै। जबे आपनोॅ झोला के नै पैलकै ते होॅ बूढ़ी माय कानी-कानी के हमरा से मदद रोॅ गुहार करे लागलै है कही के कि बेटी हमरा लागै छै कि हमरोॅ झोला तोरे दोस्तो साथे उतरी गेलो छै। तोहें फोनों से हुनका सूचित करी दौ कि हम्में मंदार हिल (बौंसी) टीशन में उतरी के तब ताँय बैठली रहबो, जब ताँय हौ आवी के हमरा झोला नै दै देतो। हम्में कुटमैती जाय रहली छियै। हौ झोला हमरोॅ जान-परान छेकै। होॅ प्रगति! हौ बूढ़ी माय के कही दौ कि हुनको झोला हमरोॅ भूलो से उतरी गेलो छै। हुनी हड़बरैतै नै। है भूल रोॅ प्राचश्चित तखनी ताँय नै होतै, जखनी ताँय हमरोॅ भाय सन्नी द्वारा हौ झोला के बूढ़ी माय आगु पहुचाय नै देतै। हुनी बौंसी टीसनों में बैठली रहती। "

है घटना हमरा कहते-कहते काजल कपसे लगलै। हौ अपराध

बोध से ग्रसित छेलै। हम्में सान्तना दै के काजल से कहलियै "कोय बात नै छै काजल। है मानवीय भूल छेकै। है भूल केकरो से हड़बड़ी में होेॅल सकै छै। तोरा सिनी के आभी लम्बा जीवन जीना छौ। कोय भी काज रोॅ पहिने से गर है काज रोॅ विषय में अच्छा-बुरा लेली सोची लेभौ ते हौ काज रोॅ बाद पछताय ले नै पड़तौ। सावधानी हर काज में करै ले लागै छै। नै ते दुर्घटना लेली तैयार रहोॅ। कोय ठीक तेॅ कहनें छै सावधानी हटलौ, दुर्घटना घटलौ।" अच्छा होलै कि सन्नी हौ झोला के बूढ़ी माय तक पहुंचाय देतै। यहा ते बच्चा में नैतिक शिक्षा रोॅ संस्कार छेकै। है कामो में तकलीफ कत्ते भी कैन्हे नी हुए. तोहे कानो नै। "है कही के हम्में फोन सन्नी से मिलाय के पुछलियै-" सन्नी आँभी ताँय तोहे कहाँ छौ, आरोॅ रस्ता में कन्हौ मौका निकाली के कुच्छु खाय पिवि लिहौ। देखै छौ आय रोॅ पछिया गर्म हवा कि रं हू-हू करी के बही रहलो छै। "है सुनी के सन्नी बोललो रहै-" पापा जी हम्में अखनी ओटो गाड़ी पर बैठलो ढाका मोड़ रोॅ पास जाम में फंसलो छिहौं। है सुनतैं ही हमरोॅ करूणा रोॅ जज्बात के एक बड़ों धक्का लागलै आरोॅ है करूणा खंडित होय लागलै। हम्में सन्नी के समझैते हुएकहलियै-कि घबड़ाना नै छै। है रोडो रोॅ जाम क्षणिक छेकै। हेकरा टुटनै छै। तोहें बौंसी पहुंची के हमरा सूचित करीहो।

है बोली के हम्मे आपनो दुआरी परजाय के ताश रोॅ मजवाँ में शरीक होय मोॅन बटारेेॅ लागलियै। कुच्छु देरो रोॅ बाद हम्में सन्नी रोॅ खैरियत लेली मोबाइल से फेरु बात करैले चाहलियै, मतुर नेटवर्क रोॅ गड़बड़ी चलते होकरा से बात नै होॅय पारलै। आय संध्या साढ़े सात बजे हमरोॅ मित्र डा। सत्येन्द्र मिश्र रोॅ पोता के जनम-दिवश में सरीक लेली गोड्डा (झारखंड) में आरोॅ मित्रोॅ साथे निमंत्रित छेलियै। हमरा सिनी सभ्भे मित्र मिली के एक रिजर्भ ओटो रिक्सा से गोड्डा लेली शाम ८ बजे चललियै। गोड्डा रोॅ कार्यक्रम समाप्त करी के रात नौ बजे घरोॅ लेली गोड्डा से प्रस्थान करै रोॅ क्रम में हमरा है अचानक याद आवी गेलै कि आइये राती साढ़े सात बजे से बीस-बीस ओभररोॅ विश्वकप क्रिकेट में भारत-पाकिस्तान रोॅ बीच में महा मुकाबला निर्धारित छै। जेकरा हम्मी नैं मतुर सभ्भै मित्रो भी मिस करी रहलो छेलै।

मोबाइल रोॅ नेटवर्क आभी ताँय बाधित रहै जकरा से सन्नी रोॅ विषय में जानकारी अधुरारहै। हमरा सिनी रात रोॅ साढ़े दस बजे आपनोॅ घोॅर पहुचलियै। घोॅर ऐत्तै हम्में सन्नी के भारत-पाकिस्तान मैच देखै में व्यस्त पैलियै। होकरा देखतै हमरोॅ मोॅन हल्का होय गेलै। इशारा से हम्मे सन्नी के बोलाय के पुछलियै "तोहे हौ बूढ़ी माय के रेलवे टीसनों पर केना के पहचानी के झोला देलैं? तोहे ते मंदारहिल रेलवे टीसन पहिले वेरिया गेलो होवौ?" होॅ पापा जी! लोगो से पुछी के, हम्में है रेलवे टीसन पहिले ही बार ऐलो छेलियै। हौ वक्ती में है टीसन लगभग सुनसान छेलै। इक्का-दुक्का लोग ही दिखाय छेलै लागै छेलै हौ समय में कोनो ट्रेन नै रहेै। हम्में रेलवे टीसन प्रवेश करलियै हम्में दूरै से देखलियै कि एक बूढ़ी माय एक छोटी लड़की साथे हिन्हें-हुन्ने बेचैनी से चहलकदमी करी रहली छेलै। शायद हुनी हमरे लेली बेचैन रहै। हमरोॅ हाथो में आपनो झोला के देखतै हुनी दौड़ी के हमरा भरी पाँन्जो पकड़ी के बोललो रहै-कि बेटा, तोहे हमरोॅ है झोला के पहंुचाय के हमरोॅ दिल जीती लेल्हौ। है झोला हमरोॅ सफर रोॅ लाठी रहै। है लाठी हेरैला से हम्मे खुद ही सफर में हेराय गेली छेला। तोहें युग-युग जीओ बेटा। तोरा दुनियाँ रोॅ हर खुशी मिल्हौ। है वचन है बूढ़ी माय रोॅ एक आशीर्वाद छेकौ। है बोली के बूढ़ी माय कानै लागलै, आरोॅ हमरोॅ आँख लोराय उठलै। " है सुनी के हम्में भी गदगद छेला कि एक डंड जे आशीर्वाद बनी गेलै।