दंड प्रक्रिया और मानवीय करुणा / जयप्रकाश चौकसे

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दंड प्रक्रिया और मानवीय करुणा
प्रकाशन तिथि :07 मई 2015


हर व्यक्ति दु:ख को अपने-अपने ढंग से सहता है। आज अपराध और दंड प्रक्रिया पर तीन किताबों और कुछ फिल्मों का सहारा लिया जा सकता है, क्योंकि प्रार्थना की जा चुकी है तथा अनुत्तरित प्रार्थना का भी अपना स्थान है। हर अपराध में दंडित व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को भी दंड भुगतना पड़ता है, जिन्होंने कभी कुछ गलत नहीं किया है। मां का हृदय किसी अदालत को नहीं जानता और पिता को विपरीत परिस्थितियों में अपना संतुलन बनाए रखना होता है। आधार स्तंभ की मजबूती के साथ उसकी अपनी गहरी पीड़ा भी होती है। जीवन अनगिनत लम्हों और कार्यों की शृंखला होती है और एक लम्हे की गफलत भी जीवनभर का बवाल बन सकती है। मनुष्य का दिमाग और विचार प्रणाली निरंतर बदलती रहती है और प्रार्थना तथा प्रायश्चित एक साथ होते रहते हैं। लिओनार्डो द विंची को अपनी 'लास्ट सपर' पेंटिंग पूरी करने में अनेक वर्ष लगे। उन्होंने जिस मॉडल के आधार पर बुरे व्यक्ति की आकृति बनाई थी, कुछ वर्ष के बाद अनजाने ही उसी व्यक्ति को मॉडल बनाया और उन्हें इस बात का अनुमान भी नहीं था कि यही व्यक्ति अपराध की सजा काटकर दूसरी बार करुणा के लिए मॉडल चुना गया है।

एक ही व्यक्ति कुछ वर्षों के अंतराल में अच्छाई और बुराई दोनों के प्रतीकों के लिए मॉडल चुना गया! मनुष्य से बड़ा कोई रहस्य नहीं और उसे समझना कठिन है परंतु महसूस किया जा सकता है। रूसी उपन्यासकार दोस्तोवस्की ने 1866 में 'क्राइम एंड पनिशमेंट' लिखा, जिसमें अर्थ की अनेक सतहें हैं और अनेक मुद‌्दे भी हैं तथा सारी चीजें अदालत और दंड प्रक्रिया के गिर्द घूमती है। एक मुद्‌दा तो यह है कि समाज में स्थापित मानदंड पर व्यक्ति को इज्जतदार माना जाता है, उसकी समृद्धि उसे हैसियत देती है परंतु इसका उसके नैतिक मूल्यों से कुछ लेना-देना नहीं है।

इन मूल्यों का निर्वाह करने वाला गरीब भी हो सकता है। इस उपन्यास की पात्र सोनिया वेश्या है और अपनी आर्थिक मजबूरी के कारण वेश्या नहीं बनी है वरन् वह अनेक साधनहीन गरीबों की मदद के लिए यह पेशा कर रही है। इस उपन्यास का नायक कानून का छात्र है और गरीब परिवार का मेधावी व्यक्ति है। वह एक सूदखोर लालची की हत्या करता है। मूल में सूदखोर एक महिला है परंतु उपन्यास से प्रेरित रमेश सहगल की राज कपूर अभिनीत 'फिर सुबह होगी' में सूदखोर पात्र पुरुष का रखा है और नायिका सोनिया को एक आदतन गैर-जवाबदार शराबी की बेटी दिखाया है, जिसे उसके पिता ने शराब के ठेकेदार को बेच दिया है और फिल्म का नायक उसी को ठेकेदार के पंजे से बचाने के लिए चोरी करने जाता है और उससे कत्ल हो जाता है। मूल उपन्यास में नायक दिन में सपना देखता है कि वह सूदखोर को मार रहा है और जब यथार्थ में वह मानसिक बदहवासी के आलम में सचमुच यह कर गुजरता है तो वह वहां से पूरा धन भी नहीं उठाता है। दरअसल, लेखक पागलपन और बुद्धिमानी की कगार पर खड़ा है और इसी सूक्ष्म अंतर पर वह प्रकाश डालता है। आज इतने दशक बाद समझ में आता है कि ऐन रैंड के उपन्यास 'फाउंटेन हेड' में अनेक मुद्‌दे दोस्तोवस्की के उपन्यास से उठाए गए हैं। दोनों किताबों में नायक का ख्याल है कि असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति पर वह कानून लागू नहीं होता, जो इंसानों के लिए बना है और नैतिक मूल्य समाज में स्थापित हैसियत से बड़े होते हैं। लगता है एक उम्र 'क्राइम एंड पनिशमेंट' को समझने के लिए कम है।

आज संजीव बख्शी का कई बार पढ़ा उपन्यास 'भूलन कांदा' को भी दोबारा पढ़ना होगा। छोटे से गांव के अनपढ़ पंच कातिल से कहते हैं कि उसे कत्ल किए गए व्यक्ति के परिवार का आजीवन ध्यान रखना होगा। इस तरह के विषय पर राजेश खन्ना अभिनीत 'दुश्मन' भी बनी है परंतु संजीव बख्शी की कृति दंड प्रक्रिया में मानवीय करुणा को शामिल किए जाने की गुहार लगाती है।

आगाथा क्रिस्टी की सफलतम रचना 'विटनेस फॉर प्रॉसीक्यूशन' में अपराध करने वाली महिला भांति-भांति के रूप धारण करके गवाह को गुमराह करती है। इस कृति का नाट्य रूपांतरण दशकों तक मंचित हुआ है। इसी तरह 1954 में बनी 'बियॉन्ड ए रीजनेबल डाउट' में भी न्याय के लिए जी जान लगाने वाली नायिका को फैसले के चंद क्षण पहले मालूम पड़ता है कि उसकी सारी जद्‌दोजहद कातिल को बचाने में व्यर्थ हुई है। महबूब खान की दिलीप कुमार-मधुबाला अभिनीत 'अमरlt146 में नायक अनचाहे एक अनपढ़ के साथ संबंध बना लेता है और उसकी प्रेमिका मधुबाला ही उसकी अंतरात्मा को जगाती है। शेक्सपीयर कहते हैं, 'ट्रेजडी ऑफ एरर्स, गॉड वॉट, द एनिमी लाइज विदिन द मैन।'