दक्षिण के सितारे : प्रतिद्वंद्वी पुराने, अखाड़ा नया / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :23 फरवरी 2018
रजनीकांत और कमल हासन अभिनय क्षेत्र में सदैव प्रतिद्वंद्वी रहे हैं और अब वे राजनीति के अखाड़े में एक-दूसरे से भिड़ने वाले हैं। एक अनुमान था कि दोनों साथ मिलकर इस अखाड़े में प्रवेश करेंगे। युद्धस्थल और अखाड़ों, दोनों में ही मिट्टी का रंग लाल होता है। युद्धस्थल रक्त के कारण लाल होते हैं परंतु अखाड़े में पहलवानों का पसीना मिट्टी को सुर्ख कर देता है। दक्षिण भारत में फिल्म सितारों के प्रशंसकों की संस्थाएं होती हैं और ये फैन क्लब जुनून को मजबूत करते रहते हैं। रजनीकांत के प्रशंसक तो उनकी पूजा एक अवतार की तरह करते हैं और उनकी संख्या कमल हासन प्रशंसकों से अधिक है। अत: चुनाव प्रचार का काम भी प्रशंसक ही करेंगे। दक्षिण भारत में चुनाव रोमांचक होगा और परिणाम के दिन दंगे फसाद हो सकते हैं।
कई दिनों से ऐसी खबरें आ रही थीं कि रजनीकांत का झुकाव प्रतिक्रियावादी दल की ओर है और कमल हासन प्रोग्रेसिव हो सकते हैं। दक्षिण भारत में राजनीति और फिल्म उद्योग हमेशा ही गलबहियां करते नज़र आते हैं। सितारे मुख्यमंत्री पद पर विराजमान रहे हैं। सिनेमाघर विधानसभा और विधानसभा सिनेमाघर की तरह हो जाते हैं। चेन्नई में दक्षिण भारत फिल्म संस्था का भवन पांच सितारा होटल की तरह है। दक्षिण भारत में निर्माता, वितरक और प्रदर्शक इस कदर संगठित हैं कि सैटेलाइट सिनेमाघरों में फिल्म प्रदर्शन कम दरों पर होता है, जबकि अन्य प्रांतों में इस संस्था ने लूट मचा रखी है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में नगर निगमों ने शो-टैक्स की दर बढ़ा दी है। सारांश यह है कि दसों दिशाओं से फिल्म उद्योग को नष्ट करने के प्रयास हो रहे हैं। अब रजनीकांत का दल जीते या कमल हासन जीतें, दक्षिण फिल्म उद्योग को राहत दी जाएगी।
गौरतलब है कि मुंबई उद्योग से चुनाव जीतकर या राज्यसभा में नामांकन द्वारा पहुंचे फिल्म सितारों ने अपने उद्योग के लिए कुछ नहीं किया। परेश रावल भाजपा सांसद हैं और मनोरंजन उद्योग से जुड़े रहे हैं परंतु उन्होंने उद्योग की कोई सहायता नहीं की। कुछ दिन पूर्व ही मुंबई में सांसद समिति ने फिल्म उद्योग के प्रतिनिधियों से चर्चा की। उनकी रपट जाने रद्दी की किस टोकरी में फेंक दी गई है। यह आकलन करना कठिन होगा कि इन सितारों के राजनीति में प्रवेश करने से अखिल भारतीय राजनीति पर कोई असर पड़ेगा या नहीं। सुना है कि यह प्रयास किया जा रहा है कि एक सितारा केन्द्र में जाए और दूसरा तमिलनाडु में बना रहे। केन्द्र में मौजूद सत्ता इन दोनों को कभी एक नहीं होने देगी, क्योंकि वे बांटकर ही सत्तासीन हुए हैं।
फिल्मकार शंकर की रजनीकांत एवं अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म '2.0' का प्रदर्शन टलता जा रहा है, क्योंकि विशेष प्रभाव वाले दृश्यों के संयोजन में समय लग रहा है। सुना जाता है कि इस फिल्म की लागत लगभग पांच सौ करोड़ है तथा प्रदर्शन एवं प्रचार व्यय मिलकर लागत इतनी हो जाती है कि फिल्म आठ सौ करोड़ कमाने पर ही अपनी लागत निकाल पाएगी, क्योंकि ग्रॉस का पचास प्रतिशत ही नेट कलेक्शन होता है। विदेश में प्रदर्शन द्वारा प्राप्त राशि का बयालीस प्रतिशत ही नेट होता है। दरअसल, तर्कहीनता का उत्सव मनाने वाली एसएस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली' की सफलता ने सारे समीकरण बदल दिए हैं। छोटे परदे पर प्रस्तुत 'पोरस' नामक सीरियल पर 'बाहुबली' का गहरा प्रभाव है। सेट्स, वेशभूषा, अभिनय इत्यादि सभी पर बाहुबली छाया हुआ है।
रजनीकांत और कमल हासन दोनों ही दक्षिण की राजनीति में बाहुबली बनकर प्रस्तुत होना चाहते हैं। उनमें से कोई एक कटप्पा साबित हो सकता है? बंगाल में विराजमान ममता भी दक्षिण के अखाड़े पर निगाह रखे हैं।