दक्षिण भारत की फिल्में और राजनीति - 2 / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 19 फरवरी 2019
रजनीकांत ने कहा है कि उनके द्वारा गठित राजनीतिक दल लोकसभा के लिए चुनाव नहीं लड़ेगा। वे केवल अपने प्रांत की विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। विधानसभा के सारे क्षेत्रों में उनके सदस्य चुनाव लड़ेंगे। उनके मित्र व अभिनय क्षेत्र में प्रतिद्वंद्वी रहे कमल हासन ने भी एक दल का गठन किया है परंतु अभी तक उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र तय नहीं किया है। यह संभव है कि कमल हासन का दल केवल लोकसभा के लिए अपने उम्मीदवार खड़े करें। ऐसा होने पर रजनीकांत और उनका सीधा टकराव टाला जा सकता है। अगर रजनीकांत और कमल हासन मिल जाएं तो देश की राजनीति में बहुत बड़ा भूचाल आ सकता है। मुंबई के सितारों की राजनीति में रुचि नहीं है और न ही उनका इतना प्रभाव है जितना रजनीकांत और कमल हासन का है। हिंदुत्व लहर का प्रभाव उत्तर भारत में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक है परंतु दक्षिण भारत में सबसे अधिक संख्या में मंदिर हैं। श्री हनुमान की सबसे ऊंची मूर्ति दक्षिण भारत में है। शायद वह 52 गजी है।
दक्षिण भारत के फिल्मकार और अवाम भी पारम्परिक रीति-रिवाजों में यकीन करते हैं। राहू काल में वे न तो किसी से मिलते हैं और न ही कोई निर्णय लेते हैं। पंचांग द्वारा वे अपना दैनिक कार्य करते हैं। सभी फिल्मों का मुहूर्त पंडित द्वारा तय किए गए समय पर होता है, परंतु 85% फिल्में असफल होती रही हैं। कथा फिल्मों का बनना प्रारंभ हुए 106 वर्ष हो चुके हैं परंतु किसी भी वर्ष सफल व असफल फिल्मों का प्रतिशत बदला नहीं है। प्रतिदिन शूटिंग का पहला शॉट लेने के पहले एक नारियल फोड़ा जाता है और इस्लाम के अनुयायी फिल्मकार भी यह करते हैं।
फिल्म उद्योग की अपनी परम्पराएं हैं। महबूब खान की 'मदर इंडिया' एक हिंदू ने लिखी थी और राज कपूर की अधिकांश फिल्में ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखी हैं। गुरुदत्त के प्रिय संवाद लेखक अबरार अल्वी रहे हैं। शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी के बीच कभी विवाद नहीं हुआ। गोयाकि फिल्म उद्योग में धर्मनिरपेक्षता हमेशा कायम रही है। शैलेन्द्र द्वारा बनाई गई 'तीसरी कसम' में उन्होंने हसरत जयपुरी के गीत लिखवाए। अधिकतम दर्शक की पसंद रचने में सहयोग करने वाले का धर्म नहीं पूछा जाता। जोया अख्तर की सहयोगी रीमा कागती हैं। जावेद अख्तर स्वीकार करते हैं कि संपूर्ण पटकथा लिखने वाले पहले लेखक पंडित मुखराम शर्मा रहे हैं। यह भी गौरतलब है कि दक्षिण से आए नरसिंह राव और उनके वित्त मंत्री सरदार मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारवाद का शंखनाद किया था। यह अलग बात है कि आर्थिक उदारवाद से लाभ हुए परंतु भारत को गैर भारतीय बनाए जाने की हानि भी हुई है। पश्चिम के अंधानुकरण की गति तीव्र हुई है। बहरहाल बाजार की ताकतों ने पूर्व पश्चिम का अंतर बहुत हद तक कम कर दिया है और कुछ अजीबोगरीब ढंग से ही सही विश्व को एक कुटुंब बना दिया है, जिसके चौके में बर्तनों के टकराने की आवाज को बहरा व्यक्ति भी सुन सकता है।
गौरतलब है कि दक्षिण भारत में सबसे लोकप्रिय व्यक्ति रजनीकांत का जन्म एक मराठी भाषा बोलने वाले परिवार में हुआ है। बेंगलुरू में वे बस कंडक्टर रहे और उनके व्यवहार में किसी पारखी ने एक मनोरंजन प्रदान करने वाला पक्ष देख लिया। कुछ इसी तरह इंदौर से रोजगार की तलाश में मुंबई गए बदरुद्दीन भी बस कंडक्टर थे और बलराज साहनी ने उनमें एक हंसोड़ देखा। बलराज साहनी की सिफारिश पर ही उन्हें अभिनय क्षेत्र में प्रवेश मिला। संजीदे फिल्मकार गुरुदत्त के निकटतम मित्र रहे हैं बदरुद्दीन उर्फ जॉनी वॉकर।
भारतीय राजनीति में अधिकांश प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से आए हैं। यहां तक कि उनमें से एक का जन्म कहीं और हुआ परंतु उसने बनारस से चुनाव लड़ा है। अनुमान है कि दक्षिण भारत अगले चुनाव में निर्णायक सिद्ध हो सकता है। दक्षिण भारत में बनी फिल्मों की पटकथाओं में थोड़ा-सा परिवर्तन करके मुंबइया फिल्में हमेशा बनती रही हैं। आनंद एल. राय द्वारा बनाई गई साहसी 'शुभ मंगल सावधान' भी दक्षिण भारत में बनी एक फिल्म के कानूनी अधिकार लेकर बनाई गई हैं।
प्राय: घर का निर्माण करते समय दक्षिण मुखी घर नहीं बनाने की सिफारिश की जाती है परंतु यह तो घर में अधिक समय तक धूप आ सके इसलिए कहा जाता है। वर्तमान में राजनीति स्याह हो चुकी है और उसे वैचारिक धूप की आवश्यकता है। अतः रजनीकांत और कमल हासन बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं।