दमन का तांडव / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
कम्युनिस्टों की क्या बात ? आज तो किसान-मजदूरों के विरुध्द नग्न दमन का निर्लज्ज नृत्य हो रहा है। सभी प्रांतों में किसान मजदूर और उनके सहस्र-सहस्र सेवक जेलों में सड़ रहे हैं , सीखचों में कराहते हैं , लाठी-गोलियों के निशान बन चुके और बन रहे हैं। यह नंगा नाच न सिर्फ जमींदारों और थैलीशाहों के लठियल करते हैं , खुद जमींदार-मालदार करते हैं , बल्कि सत्ताधारी अधिकारी करते हैं। अकेले बिहार में कितनी औरतें मारी गईं , कितने के पेट से बच्चे चोट खाकर बाहर जा गिरे , कितनी बच्चों के साथ ही सो गईं सदा के लिए , कितने पर लाठियाँ गिरीं और गोलियाँ बरसीं , कौन कहे , कौन गिनाए ? बकाश्त संघर्ष में औरतों को अंग्रेज और उनकी पुलिस छूने से डरती थी। मगर आज नेहरू और श्री कृष्णसिंह की स्वराजी सरकार सब कुछ करती है बेहिचक। इसीलिए , जैसा कि कहा जा चुका है , अब तो संघर्ष का रूप ही बदल गया है। अब तो लाठी-गोली का सामना करनेवाले ही बकाश्त के या दूसरे संघर्ष कर सकते हैं। लेकिन यदि शोषण-शून्य समाज बनाना है , समाज से रोग , भुखमरी , गरीबी को मार भगाना है तो दूसरा उपाय है भी नहीं।