दयालु काका और नक़ली रूबल / लिअनीद अन्द्रयेइफ़ / अनिल जनविजय
काका बहुत दयालु थे, वे किसी को रोते या परेशान होते या किसी को किसी चीज़ की चाहत करते हुए नहीं देख सकते थे। वे ख़ुद आगे बढ़कर उस आदमी की तुरन्त सहायता किया करते थे। वे सचमुच इतने दयालु थे कि कोई भी स्त्री उनसे अधिक दयालु नहीं हो सकती थी। एक दिन वे नदी पार करने के लिए निवा नदी के एक घाट पर खड़े होकर स्टीमबोट आने का इन्तज़ार कर रहे थे।अचानक उन्होंने एक छोटे से बच्चे को रोता हुआ देखा। उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। उसका पूरा चेहरा आँसुओं में डूबा हुआ था। बच्चे का हर आँसू इतना बड़ा था कि अगर उन्हें इकट्ठा किया जाता तो अब तक एक बाल्टी भर गई होती। उसका रुदन देखकर दयालु काका बेहद चिन्तित हो गए और उन्होंने उससे पूछा :
— क्या हो गया, बेटा? तुम इतना फूट-फूटकर क्यों रो रहे हो ?
बच्चे ने रोते हुए कहा — काका ! मेरे बड़े भाई ने मुझे स्टीमबोट का किराया चुकाने के लिए एक रूबल दिया था ताकि मैं बिना किसी परेशानी के नदी के उस पार अपने घर लौट सकूँ। लेकिन वह रूबल नक़ली निकला। अब कोई भी मुझसे यह रूबल लेने के लिए तैयार नहीं है। टिकट-खिड़की पर मुझे अंकल ने बोट पर बैठने का टिकट भी नहीं बेचा । मैं क्या करूँ, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि अब मैं घर कैसे जाऊँगा। काका ! आप मुझे बचा लीजिए। नहीं तो मैं मर जाऊँगा।
दयालु काका ने बहुत सोचा और फिर उससे कहा :
— बेटा ! मैंने तुम्हें बचाने का फ़ैसला कर लिया है। घबराओ नहीं। ये लो, मैं तुम्हें एक असली रूबल दे रहा हूँ। यह रांगे का नहीं है, बल्कि चांदी का असली रूबल है। इसे ले लो, डरो मत। मुझे अपना रांगे का रूबल दे दो। भगवान सबकी मदद करते हैं। मुझे भी वे इस नक़ली रूबल से छुटकारा पाने का कोई न कोई रास्ता दिखा ही देंगे।
इसके बाद उन दोनों ने अपने-अपने सिक्कों की अदला-बदली कर ली। लड़के को असली रूबल मिल गया और दयालु काका को उसने अपना रांगे का नक़ली रूबल दे दिया। फिर वह लड़का स्टीमबोट का टिकट ख़रीदकर नदी के उस पार अपने घर चला गया।
दयालु काका को सिगरेट की तलब लगी थी। वे सिगरेट ख़रीदने के लिए वहीं पास में एक खोखे में बनी दुकान पर पहुँचे और कहा -- भई, छह कोपेक वाली एक डिबिया देना।
दुकानदार ने दयालु काका को सिगरेटों की एक डिबिया दे दी। दयालु काका ने दुकानदार को नकली रूबल थमा दिया। वे घबरा रहे थे कि अगर दुकानदार यह पहचान जाएगा कि रूबल नक़ली है तो वो उन्हें गाली देगा और यह भी हो सकता है कि वह पुलिस को बुला ले। लेकिन दुकानदार बूढ़ा था। उसे कानों से कम सुनाई देता था और आँखों से भी कम दिखाई देता था। वह कुछ-कुछ मन्दबुद्धि भी था।
उसने उस नक़ली रूबल को असली मानकर काका को बाक़ी चौरानवे कोपेक भी लौटा दिए। इसके बाद काका भी स्टीमबोट का टिकट ख़रीदकर अपने घर लौट गए। घर लौटते हुए पूरे रास्ते वे अपनी दयालुता पर खुश होते रहे। उन्होंने अपनी बुद्धि का लोहा मान लिया और मदद करने के लिए ईश्वर को भी धन्यवाद दिया।
जालसाजों के लिए यह नैतिक सबक है कि बच्चों को ठगने की जगह व्यापारियों को ठगें, क्योंकि वे भी सबको ठगते हैं। —
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
मूल रूसी भाषा में इस कहानी का नाम है —फ़लशीवी रूबल ई दोबरी ज्याज्या (Леонид Андреев — Фальшивый рубль и добрый дядя)