दयालु लोग / जगदीश कश्यप
टी०वी० एंटीना पर बैठी एक चिड़िया दूसरी चिड़िया से बोली—
'आज का आदमी बड़ा दयालु हो गया है । वह जानता है कि हम दिन भर उड़ती-फिरती थक जाती होंगी, इसलिए उसने हम लोगों के आराम करने के लिए छतों पर स्टेंड लगवा दिए हैं ।'
'तू बड़ी भोली है बहन,' दूसरी चिड़िया ने कहा— 'ये हमारे बैठने का स्टेंड नहीं है । ये तो आदमी को मज़बूरी में लगाना पड़ा है । इसकी सहायता से आदमी अपने टेलीविजन सैट पर फ़ोटो आदि देखता है, जैसे लोग सिनेमा में देखते हैं ।'
'तू यह सब कैसे जानती है, बहन ? मुझे तेरी बात पर यक़ीन नहीं आता ।'
'अच्छा चल, मैं तुझे एक करिश्मा दिखाऊँ । मैं तुझे एक कोठी में ले चलती हूँ ।'
दोनों चिड़िया रोशनदान के रास्ते से कोठी के उस कमरे में पहुँची जहाँ वीडियो-कैसेट चल रहा था । विशिष्ट लोग ऐसा दृश्य देख रहे थे, जिसमें एक लड़की से बलात्कार किया जा रहा था ।
दोनों चिड़ियाओं की टीबी...टुट-टुट और फड़फड़ाहट से विशिष्ट लोगों के आनंद में बाधा पड़ रही थी । उनमें से एक, शायद वह मिल-मालिक का लड़का था, बोला— 'इन हरामज़ादियों को यहाँ से भगाओ !'
इसपर एक कालिजिएट लड़की उठी । उसने अपने गले के दुपट्टे से उन दोनों चिड़ियाओं को भगाना चाहा । दोनों चिड़ियाएँ घबराकर बाहर निकल आईं ।
पहली चिड़िया दूसरी से बोली— 'तू ठीक कहती है, बहन, आज का आदमी दयालु नहीं, बड़ा दुष्ट हो गया है ।'