दयालु / अमित कुमार मल्ल

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रामेश्वर जी की दयालुता के चर्चे सारी तरफ़ थे । मैं भी नौकरी में हूँ , लेकिन रिश्तेदारों की नज़र में देखे - तो कहाँ रामेश्वर दयाल जी और कहाँ मैं। अब तो मुझे भी लगता है कि कहाँ रामेश्वर दयाल जी और कहाँ है?रामेश्वर जी सूंदर थे या नहीं , यह अलग बात है किंतु उनके स्मार्टनेस , ड्रेसिंग सेंस तथा हाज़िर जबाबी में किसी से उनका मुकाबला नहीं था । वह सबमे विशेष थे ।यद्यपि, हम दोनों रिश्तेदार है ,और लगभग एक ही वर्ष में राजकीय सेवा में भी आये। बस, महकमे अलग अलग है।

रामेश्वर जी जितने समृद्ध है , सक्षम है , समर्थवान है - उतने ही मृदुभाषी, मददगार। हर रिश्तेदार के दुःख सुख में , भले थोड़े समय के लिये ही क्यो न हो , पहुँचना, हर निमंत्रण में पहुँचना- उनकी अतिरिक्त विशेषता रही है। मुझे ताज्जुब होता है कि एक ज़िला स्तरीय अधिकारी होने के बाद भी , उन्हें हर नेवता - निमंत्रण में जाने को , मृत्यु संस्कार में जाने का समय मिल जाता था। एक मैं हूँ ,जो निकटवर्ती रिश्तेदारों के दुख सुख में भी , शामिल नहीं हो पाता।

ऐसा भी नहीं है कि उनका सरकारी काम पीछे हो। वह अपने महकमे के कामयाब अधिकारियो में गिने जाते हैं। उनका ,विभाग में बड़ा रसूख है । नीचे से लेकर ऊपर तक , हर कोई रामेश्वर जी का मुरीद था या रामेश्वर जी , उनके गुड बुक में थे।

रामेश्वर जी ने अपने सारे रिश्तेदारों की थोड़ी बहुत मदद करते थे। लेकिन जब उन्होंने अपने बेरोजगार साले को दुकान खोलने के लिये 20 लाख रुपये दिए तो पूरी रिश्तेदारी में रामेश्वर जी की धाक जम गई ।लोगो में बाते होने लगी ।

इस कलियुग में कौन बहनोई अपने साले के लिये , इतना करता है?

कर्जा दिया होगा।

नहीं !!...कर्जा नहीं है। गिफ्ट दिया है।

भरोसा नहीं होता।

रामेश्वर जी , अपनी बीबी के आँसू नहीं देख पाते हैं,.. और उनकी बीबी अपने भाई के बेरोजगारी से बहुत दुखी रहती थी।

वाकई ,अपने भाई को मानने वाली ऐसी बहन, पत्नी की ख़ुशी का मान रखने वाला ऐसा पति नहीं आज के समय में नहीं दीखता है।

नही! पत्नी भी दयालु है और रामेश्वर जी तो , जगजाहिर है , दयालु है।

रामेश्वर जी के साले - राकेश के तो मानो दिन बन गए। कहाँ बेरोजगारी का दंश और कहाँ अपने काम का संतोष । कम मेहनत वाला काम । व्हाइट कॉलर काम ।दुकान की पगड़ी देने के बाद भी उसे जनरल स्टोर के लिये पहली बार , एक बार का सामान नगद खरीद कर दुकान चलाना , उसके लिये सपने से कम नहीं था । शहर के सबसे व्यस्त बाज़ार में , दुकान शुरू होना - बिना उधारी के , उसके लिए बहुत बड़ी बात थी । उसकी धाक ,बाजार में जम गयी । वह अपने जीजा जी को फ़रिश्ता मान कृतज्ञ हुआ और बहन ने तो , मानो पिता की भूमिका में, बहन होने का हक़ अदा कर दिया।

राकेश के पिता जी ने भगवान को धन्यवाद दिया कि ईश्वर ने उसे इकलौता बेटा ही नहीं दिया , बल्कि जमाई बाबू ...रामेश्वर जी के रूप में दूसरा बेटा दे दिया । सच में ,जमाई बाबू ... साक्षात फ़रिश्ता है।कितने चक्कर काटे , कितने दफ़्तर घूमे - लेकिन रोजगार नहीं मिला ।किस - किस के आगे, इस उम्र में नहीं गिड़गिड़ाए?कितनी मन्नतें मानी ?लेकिन राकेश की नौकरी नहीं लगी।

अब लगता है, जीवन सेट हो रहा है। जमाई तो फ़रिश्ता पहले से था, बेटा 30 की उम्र होने के बाद भी सेट नहीं था। बेटा भी सेट हो गया, कमाने लगा । बस बेटे राकेश की शादी कर दूं, फिर तीरथ पर निकल जाऊ।

दुकान जमते ही ,राकेश के लिये , रिश्ते आने शुरू हो गए।

राकेश की माँ बोली ,

राकेश को जमाई बाबू ने सेट किया है, इतना पैसा लगाकर दुकान खुलवाई है , अतः राकेश की शादी का अगुआ ,जमाई बाबू को ही बनाना चाहिये।

बिल्कुल।

यह बात मुझे पहले क्यो नहीं सूझी।

राकेश के पिता जी बोले ।

अगले दिन राकेश व उसके माता पिता , रामेश्वर जी के घर गए और उनसे राकेश की शादी में अगुआई का सामूहिक अनुरोध किया।

रामेश्वर जी के उदार मन ने , यह अनुरोध ,अस्वीकार कर दिया

यह उचित नहीं है। यह निर्णय राकेश का होना चाहिये। शादी राकेश की है । अतः , निर्णय भी राकेश का होना चाहिये।

रामेश्वर जी बोले।

राकेश व उसके माता पिता तथा रामेश्वर जी की पत्नी - तीनो रामेश्वर जी की दयालुता से और प्रभावित होते हुए बोले

यह निर्णय आप ही को करना होगा।

रामेश्वर जी बोले,

देखिए!! आप लोग मेरा स्वभाव जानते हैं। मैं अपने स्वभाव के अनुरूप कार्य करता हूँ । फिर मत कहियेगा ,निर्णय ग़लत हो गया।

हमे आप पर पूरा विश्वाश है।

राकेश व उसके माता पिता बोले।

राकेश की बहन व रामेश्वर जी की पत्नी , मुग्ध भाव से अपने दयालु पति रामेश्वर जी को निहारने लगी ।


हमे दहेज नहीं चाहिये।

हमे नौकरी पेशा लड़की नहीं चाहिये

हमे पैसे वाले घर की लड़की नहीं चाहिये

हमे बहुत खूबसूरत लड़की नहीं चाहिये

हमे बहुत पढ़ी लिखी लड़की नहीं चाहिये

रामेश्वर जी ने अपना निर्णय सुनाया।

चारो चुप । एक दूसरे को को देखने लगे।

मैं तो पहले से ही कह रहा था कि आप लोग ,मुझे यह निर्णय करने का अधिकार न दे।

रामेश्वर जी बोले।

चारो एक साथ बोले ,

आपका निर्णय सही है। हमे मंजूर है।

आप लोगों को लग रहा होगा कि मैंने मनमाने ढंग से बोल दिया।

रामेश्वर जी बोले।बात आगे बढ़ाते हुए बोले,

मेरा स्वभाव तो ,आप लोगों को पता है।

सोचिये ...!! जो गरीब है , जिसकी बेटी कम पढ़ी लिखी है , कम सुंदर है- क्या ऐसी लड़की की शादी नहीं होनी चाहिये? अगर हम लोग , आगे नहीं बढ़ेगे तो कौन बढ़ेगा ?अमीर , पढ़ी लिखी , बहुत सुंदर लड़की के लिये तो बहुत लड़के मिल जाएँगे ।

रामेश्वर जी ने राकेश की शादी एक बहुत ही गरीब परिवार की , चार लड़कियों में , सबसे बड़ी लड़की रश्मि से , तय कर दी।

रश्मि दसवीं पास थी । पिता , कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था। अपनी तनख्वाह से वह किसी तरह अपने बच्चों को पाल रहा था। रश्मि तो पहली बच्ची थी , इसीलिये उसे दसवीं तक पढ़ पाया । बाक़ी लड़कियों को तो पांचवी से आगे स्कूल भेजने की सामर्थ्य ही नहीं थी।

रश्मि का पिता शादी के लिये नहीं आया था । किसी ने रामेश्वर जी को उसके ग़रीबी , कम पढ़ी लिखी होने , कम सुंदर होने के बारे में बताया । रामेश्वर जी ने इस सूचना की पुष्टि कराई और तब ...अपने स्वभाव से विवश, रामेश्वर जी रश्मि के घर पहुँचकर , राकेश की शादी का प्रस्ताव दे दिया।रश्मि के माता पिता हतप्रभ हो गए और रश्मि तो हतप्रभ हो गयी कि कलियुग में क्या चमत्कार भी होते हैं?

यह सम्भव नहीं है। हमारी हैसियत देखिये।हम गरीब लोग है।

रश्मि के पापा बोले।

लड़की लक्ष्मी होती है।

रामेश्वर जी बोले।

कहाँ राकेश जी और कहाँ हम लोग। किसी तरह घर चलता है। हम तो न कुछ दे पाएँगे ।

रश्मि के पापा बोले।

आप रश्मि को दो कपड़ो में विदा करिएगा।

रामेश्वर जी बोले।

आप शर्मिंदा न करे। वर रक्षा , तिलक , शादी में भी तो पैसा ख़र्च होगा मैं नहीं कर पाऊँगा।

रश्मि के पापा बोले।

इतना फालतू ख़र्च क्यो ?

हम पांच लोग आएँगे , शादी करेंगे , बहू को ले जाएँगे। पांच आदमी को तो खिला लेंगे न !

रामेश्वर जी पूछे ।

रश्मि के माता पिता की आंखों में आंसू आ गए, रुंधे गले से , रामेश्वर जी के पैर पकड़ लिये और बोले।

आप देवता हैं

रामेश्वर जी ने दोनों को उठाते हुए कहा ,

देवता तो भगवान होते हैं। हम लोग तो इंसान हैं और धन्यवाद देना है तो राकेश के माता पिता को दीजिये ।जो इस तरह अपने लड़के की शादी ,आपकी लड़की से कर रहे है।

रश्मि के माता पिता , पुनः , राकेश के माता पिता के पैर छूने लगे।

छोटे से बरामदे में मौजूद , रश्मि तो रो ही रही हैऔर सोच रही है । क्या उसका भाग्य इतना अच्छा है?कहाँ 2 जून की रोटी के लिये , कितनी परेशानी होती थी ,वही 20 साल की उम्र में घर चल कर इतना बढ़िया रिश्ता आगया। ख़र्चा केवल 5 आदमियों का खाना।उसके शादी के लिये पिता जी को दर दर भटकना नहीं पड़ेगा ।रिरियाना नहीं पड़ेगा ।कर्जा नहीं लेना पड़ेगा। वह परिवार पर और बोझ नहीं बनेगी। ताकि उसके बहनो की स्थिति कुछ ठीक हो सके।

तभी रामेश्वर जी की आवाज़ गूंजी ,

बहू को बुलाइये।

उसकी माँ आकर , उसे लाई। रश्मि को देखते ही रामेश्वर जी बोले ,

रिश्ते से ख़ुश हो न !

इस अचानक ख़ुशी से रश्मि का गला भर गया था । उसे पता चल गया था फ़रिश्ता कौन है। उसने झुककर दोनों हाथों से रामेश्वर जी के पैर छुए। बहुत रोकने के बाद भी , ख़ुशी व आभार के आंसू रामेश्वर जी के पैर पर गिर पड़े।

रोओ मत । ख़ुशी का समय है। अपने सास ससुर का आशीर्वाद लो।

जैसे ही वह उनका पैर छू कर उठी । उसे अपने पास बुलाये , मेरी एक बात मानोगी, रामेश्वर जी बोले,

रश्मि ने रुंधे गले से बोला जी

अब तुम हम लोगों के घर की बहू हो । यह लो , 1लाख रुपये। शादी में तुम अपने कपड़े ज़ेवर इसी से खरीदना।अपने माँ पिता जी से एक भी पैसा मत लेना ।

रामेश्वर जी बोले।

उसके पिता बोले,

कुछ तो हम लोग कर लेंगे।

रामेश्वर जी बोले

तुम हम लोगों के घर की बहू हो। अब तुम अपने शादी की सारे ख़र्च ,इस पैसे से करोगी । कम पड़ेगा , तो और आ जायेगा।

रश्मि ने ,पुनः , मन ही मन में , रामेश्वर जी को प्रणाम किया। उसका रोम रोम रामेश्वर जी के प्रति ऋणी महसूस कर रहा था।

शादी की तिथि तय हो गयी ।शादी में बारात में

5 लोग ही गए । शादी कराकर बहु को दो जोड़ी कपड़ो में घर लाये। पूर्णतः आदर्श शादी, न्यूनतम खर्चे में।

इस शादी से रामेश्वर जी के दयालुता का प्रभाव और अधिक बढ़ गया। हम लोगों के रिश्तेदारी में ही नहीं , बल्कि समाज में , क्षेत्र में ,जवार में - रामेश्वर जी के इस कार्य की ख़ूब प्रशंसा हुई।

शादी के बाद राकेश रश्मि ,दोनों के माता पिता, परिवार सभी ख़ुशी जीवन बिता रहे थे। तभी वज्रपात हुआ, रामेश्वर जी की किडनी में समस्या हो गयी । डॉक्टर को दिखाया गया ।उसने बताया कि किडनी ने लगभग काम बंद कर दिया है । डॉक्टरी भाषा में कहे तो 90 % फेल ।दोनों परिवारों में दुख की लहर दौड़ गयी कि,

भले आदमियों के साथ ही यह होता है

यह भगवान की नाइंसाफ़़ी है

ख़बर मिलते ही राकेश का परिवार व राकेश के ससुराल का परिवार रामेश्वर जी के पास पहुँच, दुख जताने लगा। रामेश्वर जी ने दार्शनिक अंदाज़ में कहा,

भगवान के किये में, किसका बस?

फरिश्तों के साथ ऐसा होता है भला?

रश्मि के पिताजी बोले।

कुछ कर्म ऐसे होंगे, तभी तो ऐसा हुआ।

रामेश्वर जी बोले।

इस जन्म तो आप जैसा दयालु कौन है?

राकेश की माँ बोली।

तब पुराने जन्म का पाप होगा।

रामेश्वर जी ,गमगीन होकर ,बोले।

यह सब छोड़िए। इसका निदान क्या है , बहन।

राकेश जी के साले ने अपनी बहन से पूछा।

निदान यही है कि किडनी बदली जाय। किडनी डोनेशन रिश्तेदार ही कर सकता और डोनर का ब्लड ग्रुप भी मिलना चाहिये।डोनर जवान हो।

रामेश्वर जी की पत्नी बोली।

उसके बाद मंडलाधीश के कमेटी के सामने किडनी देने व लेने की अनुमति मांगनी होगी ।वह किडनी देने वाले से पूछेंगे कि रिश्तेदार हो या नहीं ? अपने मन से किडनी दे रहे हो या दबाव में? और जब वह संतुष्ट हो जायेंगे, तब किडनी ट्रांसप्लांट की अनुमति देँगे और तब ऑपरेशन होगा । बाक़ी ईश्वर की मर्जी।

सांस छोड़ते हुए तटस्थ लहजे में रामेश्वर जी बोले।

राकेश व रश्मि जवान थे और रिश्तेदार तो थे ही । दोनों ने एक साथ कहा -

मेरी एक किडनी जीजाजी को लगा दी जाय।

सबसे पहले ब्लड ग्रुप मिलना चाहिए ।

रामेश्वर जी बोले ।

रश्मि ने सोचा , कितना अच्छा राकेश है , बिना एक पैसे के शादी कर ली , कभी ताना नहीं मारता है , अच्छे से रखता है , प्यार से रखता है , मेरे घर वालो का मान करता है।अतः मुझे भी कुछ करना चाहिये। इसलिये उसने सबसे पहले , किडनी देने के लिये , अपना ब्लड टेस्ट कराने का अनुरोध किया।

पहले रश्मि के ब्लड ग्रुप का मिलान हुआ । इत्तेफाक से रामेश्वर जी के ब्लड ग्रुप से रश्मि का ब्लड ग्रुप मैच कर गया।राकेश के ब्लड टेस्ट के लिये रश्मि ने मना कर दिया ।वह बोली ,

हम दोनों तो एक ही है । चाहे यह किडनी दे , चाहे मैं दूँ। बात एक ही है ।इनको बाहर जाना पड़ता है , काम करना पड़ता है , पूरे परिवार का देखभाल करना है। इसलिये इनका ब्लड टेस्ट की अब ज़रूरत नहीं है।

रश्मि की इच्छा के आगे राकेश ने , पूरे परिवार ने हाथ डाल दिये । अतःरश्मि की एक किडनी , रामेश्वर जी को ट्रांसप्लांट कर दी गयी। राकेश वरश्मि के मायके के - दोनों के परिवारों को लगा - रामेश्वर जी ने हम लोगों के लिये इतना किया , ... हम लोग भी उनके जैसे दयालु व्यक्ति के लिये कुछ कर पाए और रश्मि को लगा कि ईश्वर ने रामेश्वर जी का एहसान उतारने का एक मौका तो दिया।

सब लोग ख़ुश थे कि दयालु व्यक्ति के साथ अच्छा ही हुआ।