दर्पण में झाँकते चेहरे / दीप्ति गुप्ता
प्रकाश और नेहा के घर शादी के 15 साल बाद बच्चे का जन्म हुआ था। नेहा ने इन बीते सालों में माँ बनने के लिए कौन से इलाज नहीं करवाए, कहाँ-कहाँ मन्नत नहीं माँगी, क्या-क्या दान पुण्य नहीं किया, मतलब कि जो भी बन सका, सब किया। तब जाके ईश्वर ने सुनी और उसे एक प्यारा सा बच्चा दिया। प्रकाश की ख़ुशी सातवें आसमान पे थी। प्रकाश के माता-पिता को परलोक सिधारे 7 वर्ष हो गए थे। इस ख़ुशी के क्षण में प्रकाश के मन में रह-रह के यह ख़्याल आता कि काश आज माँ-बाबू जी होते तो कितने ख़ुश होते। अस्पताल में डॉक्टर नर्स उसे जो बताते, वह दौड़ -दौड़ कर वे दवाईयाँ, फल और ज़रूरत का सामान लाता। एक पल को भी नेहा और अपने बेशकीमती नन्हे से बेटे से वह दूर न होता। आधुनिक सुख सुविधाओं से भरपूर उस अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में प्रकाश के रात के सोने का भी प्रबन्ध हो गया था। एक हफ्ते बाद नेहा अस्पताल से डिस्चार्ज हुई। घर में उसके ख़ास दोस्त सुधीर और उसकी पत्नी किरण ने नेहा और नन्हे मुन्ने मेहमान के स्वागत की ज़ोरदार तैयारी करके रखी थी। माँ बनने की ख़ुशी में नेहा के तो जैसे पाँव ही ज़मीन पे न पड़ते थे। वह अन्दर ही अन्दर अपनी ख़ुशी सँजोती अद्भुत स्फूर्ति से भरी थी।वह कभी बच्चे का मुख चूमती तो कभी उसके सिर पे प्यार से हाथ फेर कर दुलराती। प्रकाश बच्चे के लिए बड़ा ख़ूबसूरत पालना, उसमें बिछाने की आसमानी रंग की मुलायम गद्दी, तकिया व तमाम चीज़े लाया था।पालने में अपने सलोने से बिस्तर पे जब उनका नन्हा राजकुमार सोता, तो दोनों प्यार से भरकर अपलक उसे देखते न थकते।
प्रकाश काम से लौटते ही, नेहा के साथ बच्चे की नैपी बदलने, बोतल से दूध पिलाने, हर तरह से से उसे सम्हालने में पिता होने का फ़र्ज़ पूरी तरह निबाहता। दोंनो की जान था वह बच्चा। स्वभाविक भी था क्योंकि शादी के पन्द्रह साल बाद ढेर ख़ुशियाँ लेकर वह उन के जीवन में आया था। कुछ दिन बाद नेहा प्रकाश ने बच्चे के नामकरण सँस्कार के उपलक्ष्य में पूजा-पाठ रखा। उनके निकट संबंधी और मित्रगण सभी आयोजन में शामिल हुए और ढेर आशीर्वादों, शुभकामनाओं व रौनक के बीच पूजा-पाठ सम्पन्न हुआ। बच्चे का नाम “अनुभव” रखना तय हुआ। प्यार से वे उसे ‘अनु’ पुकारते। उसकी किलकारी के साथ किलकते, सोने पे सोते, जागने पे जागते, रोने पे बेचैन होते। देखते ही देखते दिन, महीने, साल बीतते गए और अनुभव ढाई वर्ष का हो गया।
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“अनु बेटा कहाँ है तू.....जल्दी से आ मेरे राजा, देख तेरे लिए क्या बनाया है मम्मी ने....।” लाडले अनु ने माँ की पुकार सुनी
वह - “अबी नई, अबी नई”... बोला और अपने खेल में मगन रहा। हार कर नेहा ही उसे उठाकर ले गई, उसके बिब बाँधा और उसका मनपसन्द दूध-कॉर्नफ़्लैक्स खिलाया। अनु देखने में बेहद खूबसूरत, बड़ा बुध्दिमान, चपल और होनहार था। अपनी उम्र के बच्चों से कुछ अलग ही था। उसके चेहरे पे एक ऐसी सलोनी समझदारी थी जो सबको उसकी ओर खींचती थी।
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प्रकाश ऑफ़िस के लिए तैयार हो रहा था। तभी नेहा ने उसे याद दिलाया कि आज शाम अप्पू घर जाना है। बहुत दिन हो गए। अनु पहले भी वहाँ जाकर बहुत ख़ुश हुआ था।
“ठीक है, ज़रूर चलेगें, मैं ऑफ़िस से थोड़ा जल्दी आने की कोशिश करूँगा, तुम तैयार रहना। अपने इस ‘कुनमुने’ को अप्पू घर की सैर करा के लायेगें” -
यह कहते हुए प्रकाश ने अनु के गाल थपथपाए। अनु ने उसका हाथ अपने गाल से खींचकर मुँह में लेकर काटना चाहा। प्रकाश ने उसकी इस बालसुलभ शरारत पर, उसे गोद में उठाया और उसे प्यार करता बोला –
“पाजी, पापा के कट्टी करेगा…..।“ फिर उसे नेहा को सौंपते हुए बोला –
“ लो सम्भालो अपने लाडले को” - और झटपट ऑफ़िस के लिए निकल गया।
नेहा ने अनु के लिए रीडर्स डाइजेस्ट का 2 से 4 वर्ष तक के बच्चों के लिए रंग –बिरंगे चित्रों वाला एक विशेष आकृतिमूलक ‘किट’ मंगाया था जिसमें मम्मी, पापा, आदि शब्द बोल्ड अक्षरों में अलग-अलग पट्टियों पे लिखे हुए थे। दो से चार वर्ष का बच्चा जो ए, बी सी डी, अ, आ इ,ई भी नहीं जानता वह उन शब्दों को एक-एक करके दिखाकर और उनका उच्चारण करके बताने पर जान जाता था कि यह शब्द मम्मी है, यह पापा है। वह मात्र अक्षरों की आकृतियों से तालमेल बिठाकर सही तरह से शब्द पढ़ सकता था। नेहा दिन मे खाली समय में अनु को वे आकृतियाँ दिखाकर उनके माध्यम से शब्द पढ़ना सिखाती। होनहार अनु शीघ्र ही वे सारे शब्द पढ़ने सीख गया। वह पहली बार में ही हर शब्दाकृति के उच्चारण को बड़े ध्यान से सुनता और अपने मस्तिष्क में प्रिन्ट की तरह अंकित कर लेता। अगली बार जब नेहा शब्द दिखाकर उससे पूछती जाती तो वह सारे शब्द सही पढ़ता जाता। नेहा उसकी तेज़ बुध्दि और स्मरण शक्ति पे मुग्ध हो उठती। एक रविवार को नेहा ने प्रकाश से कहा कि –
“देखो आज मैं तुम्हें बेटे की अद्भुत प्रतिभा दिखाती हूँ। मालूम है, वह शब्द पढ़ लेता है, बड़े-बड़े।“
प्रकाश बोला - “अरे, क्यों बेवकूफ़ बना रही हो - ए, बी, सी, डी पढ़ना तो दूर, अभी बोलना भी नहीं जानता, तुम कहती हो कि यह बड़े-बड़े शब्द पढ़ लेता है...।“
नेहा कुछ जवाब देने के बजाय डाइजेस्ट का किट निकाल लाई। उसने पापा, फादर, मदर, कैट, बुक, एप्पल, बैलून, वूमन, हाउस आदि शब्द एक एक करके अनु को दिखाए और वह उन्हें सही-सही पढ़ता गया। माँ बेटे का यह करतब देख कर प्रकाश हैरान रह गया। वह मान गया कि बनाने वाले ने अक्ल का अच्छा इस्तेमाल किया है और सफल प्रयोग कि शब्द आकृतियाँ हैं तो जो नाम उस आकृति को हम देगें, बच्चा उसे उसी नाम से उन्हें पुकारेगा। बाद में वर्णमाला सीखने पे वह उन शब्दों को स्वयं पढ़ भी सकेगा।
“वाह, नेहा तुमने यह किट मँगाकर पहली बार अपनी अक्ल का सही प्रयोग किया है” – नेहा को छेड़ता प्रकाश बोला।
नेहा आँखें तरेरती बोली – “हाँ हाँ, मुझे पता था तुम यही इनाम दोगे...।“ और हँसकर अनु को प्यार से गले लगाकर चूमने लगी।
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हर वर्ष अनुभव का जन्मदिन नेहा और प्रकाश उत्सव की तरह मनाते। सुब्ह से दान-दक्षिणा, हवन, पूजा-पाठ के बाद, वे अनाथ आश्रम और पास की बस्ती में ज़रूरत की चीज़ें अनु के हाथ से दिलवाते। शाम को मित्रों और उनके बच्चों के साथ पार्टी का आयोजन होता। अनुभव ख़ूब ख़ुश सबके बीच में खिला- खिला फिरता। सबके जाने के बाद फुर्सत में अनुभव को वे दोनों एक-एक करके सारे उपहार खोल कर दिखाते और सम्हालकर रखते जाते। इस तरह हँसी ख़ुशी में सारा दिन कैसे निकल जाता पता ही न चलता।
अनुभव की चाल-ढाल, उठना-बैठना कुछ अलग ही था। वह अपने उम्र की बच्चों की तरह चंचल नहीं था बल्कि अधिक समझदार और चिन्तनशील था। कभी-कभी नेहा और प्रकाश को उसमें एक विकसित समझदार आदमी की झलक आती, पर वे इस बात को अधिक तूल न देते। वह कभी भी और बच्चों की तरह खिलौनें के लिए नहीं मचलता। नेहा और प्रकाश के साथ कहीं घूमने जाता तो हर चीज़, हर जगह को बड़े ध्यान से निरीक्षण करता सा देखता, जैसे उसके अन्दर अपनी एक दुनिया थी – जिसमें में वह सांस लेता, जीता था और एक खोज में डूबा रहता था। अनुभव का अपने में मशगूल रहने का एहसास 24 घन्टे उसके साथ रहने वाली नेहा को अक्सर होता था, पर उसने हमेशा उसे अपना वहम समझ कर टाल दिया। जब वह अपने जन्मदिन पे अनाथाश्रम के बच्चों को एक-एक करके उपहार देता तो, इस तरह सलीके से सम्हाल कर देता जैसे कि कोई बड़ा पुरुष दयाभाव व प्रेम से भरकर छोटे बच्चों को दान दे रहा हो। मतलब कि उसके सारे हाव-भाव बड़प्पन से भरपूर थे।
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अनुभव जून में 4 वर्ष का होने जा रहा था। प्रकाश ने देहली पब्लिक स्कूल में एल.के.जी में उसका एडमीशन करवा दिया था। गर्मियों में नेहा और प्रकाश अनुभव को शिमला घुमाकर लाए। एक महीना कैसे बीत गया उन्हें पता भी न चला। जुलाई से अनुभव स्कूल भी जाने लगा। स्कूल का पहला दिन था, पर नन्हा अनुभव न रोया, न मचला, न डरा और स्कूल बस में बच्चों के साथ बैठकर आराम से स्कूल चला गया। दोपहर बड़ी सहजता से ख़ुशी-ख़ुशी लौट भी आया। धीरे-धीरे सब बच्चों से वह हिल-मिल गया। अपनी टीचरों का भी बड़ा चहेता बन गया था वह।उसकी क्लास टीचर सिस्टर रोज़ी उसे कई बार प्यार से उसे ‘फ़ादर अनुभव’ बुलाती। इस सम्बोधन को सुनकर अनुभव अपनी टीचर को बड़ी-बड़ी आँखें झपका कर ऐसे देखता जैसे सच में वह फ़ादर हो और टीचर एक बच्ची।
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रविवार का दिन था। नेहा ने अनुभव को नहलाकर, नीले रंग की चैक की शर्ट और नेवी ब्लू निकर पहनाकर आदमक़द शीशे के सामने खड़ा करके बाल बनाये और किचन के काम में लग गई। अनुभव अभी भी वैसे ही शीशे के सामने खड़ा था। एकाएक वह रोने लगा। जो बच्चा यूँ ही कभी रोता न हो, वह इस तरह शीशे के आगे खड़ा-खड़ा रोने लगे – यह अजीब बात थी। नेहा और प्रकाश उसका रोना सुनकर दौड़े-दौड़े आए, उसे गले लगाया, प्यार से पूछा कि क्या हुआ – कहीं दर्द है, या भूख लगी है, तमाम सवालों की झड़ी, प्यार-दुलार क्या कुछ नहीं किया दोनो पति-पत्नी ने, पर अनुभव – ‘ना, ना’ करता सुबकता रहा। फिर धीरे-धीरे शान्त होकर बोला-
“मुझे अपने घर जाना है।“
“अपने घर जाना है..........
नेहा तुरन्त समझाते हुए बोली –“पर बेटा तुम तो अपने ही घर हो।“
इस पर अनुभव बोला – “नहीं मेरा घर तो रजौरी में है।“
यह कहते-कहते वह प्रकाश की गोद से उतर कर फिर से शीशे के सामने खड़ा हो गया और दोनों को दिखाने लगा कि देखो -
“वो रहा मेरा घर, वो देखो, कन्नू, पिंकी, चिंकी.......”
नेहा चकित सी बोली – “कौन हैं ये कन्नू, पिंकी, चिंकी.......तुम्हारे दोस्त”? “नहीं मेरे बच्चे...”
शीशे में तर्जनी से दिखाता अनुभव बोला –
“वो देखो कन्नू, पिंकी, चिंकी.....की मम्मी गौरी.. “ और उसकी आँखों से आँसू झरने लगे।
नेहा और प्रकाश को यह सुनकर पहले तो हँसी आई कि 4 साल का बच्चा कैसी बातें कर रहा है, लेकिन जब उसकी जिद थमी नहीं तो उन्होंने उसे शान्त करने के लिए कहा –
“ठीक है, कल चलेगें, अब तुम चुप हो जाओ।“
इस आश्वासन पे अनुभव चुप हो गया। उसके बाद सारे दिन वह पहले की तरह नॉर्मल रहा। खाया-पिया, सोया, प्रकाश के साथ खेला। रात को टी.वी. पे कार्टून फ़िल्म देखी और 9 बजते –बजते गहरी नींद में सो गया। सुब्ह रोज़ की तरह तैयार होकर स्कूल गया। स्कूल में उस दिन वह अपनी क्लास के एक बच्चे से बोला –
“तुम्हारे बच्चे कहाँ रहते हैं?”
वह भोला बच्चा अनुभव के इस अटपटे से प्रश्न का क्या जवाब देता, सो वह चुप रहा। उसके ख़ामोश रहने से खीझा अनुभव थोड़ी देर बाद चीखता सा उससे बोला -
“तुम्हारे बच्चे कहाँ रहते हैं?”
ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखती टीचर के कानों में भी अनुभव के ये शब्द पड़े, वह तुरन्त पलटी और उसने हैरत से अनुभव को देखा, और दूसरे सहमे बच्चे पर भी नज़र डाली। फिर बोली –
अनुभव ये तो ख़ुद बच्चा है,जैसे तुम, उसके बच्चे नहीं हैं।
इस पर अनुभव तपाक से बोला –
मेरे तो बच्चे हैं, रजौरी में रहते हैं।
उसकी इस बात को सुनकर सारे बच्चे हँसने लगे। हँसी तो टीचर को भी आई, पर दूसरे ही क्षण वह सोच में डूब गई। उसने कई वर्ष पहले पूर्व जन्म की यादों के बारे में कई सच्चे क़िस्से पढ़े थे। टीचर को लगा कि अनुभव का इस तरह बेहिचक अचानक अपने बच्चों की बात कहना पूर्व जन्म की यादों का तो मामला नहीं है।ख़ैर टीचर ने इस घटना का कहीं ज़िक्र न करके , उसे मन में ही रखा और अनुभव को अक्सर ऑब्ज़र्व करने लगी। इधर नेहा और प्रकाश भी अनुभव की हर बात पर गौर करते।
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एक दिन फिर वैसी ही घटना घटी। शाम का समय था। अनुभव शीशे के सामने खड़ा हुआ सुबकने लगा। साथ ही साथ वह अस्फुट स्वर में कहता जाता –
“गौरी मुझे तुमसे मिलना है। मुझे कन्नू, पिंकी, चिंकी की बहुत याद आती है।“
उसकी शीशे के साथ ये बातचीत सुनकर नेहा पास वाले कमरे से अन्दर आई तो उसका दिल आशंका से भर उठा। वह खामोशी से लौट गई और बालकनी में बैठे प्रकाश से अनुभव की पिछली यादों के ताज़ा होने के बारे में बताया। दोनों चिन्ताग्रसित हुए अन्दर आए और किसी तरह अनुभव को चुप कराया। एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सिक से समय लेकर शुक्रवार को अनुभव को उसके पास लेकर गए। विस्तार से बातचीत करने पर, डॉक्टर नें अलग में प्रकाश से कहा –
“ ये और कुछ नहीं, पूर्वजन्म की यादें है जो जब-तब अनुभव के दिमाग़ में तैरने लगती हैं। जैसे-जैसे यह बड़ा होता जायेगा, यादें भी धुंधली पड़ती जायेगीं। पर अभी जब-जब इसे यादें परेशान करें तो आपको थोड़ा सब्र से काम लेना होगा। जब भी ऐसा हो तो आप प्यार से इसका ध्यान बँटाने की कोशिश करें।“
नेहा और प्रकाश सोच में डूबे घर लौटे। रात में कई बार नेहा की नींद खुली। प्रकाश भी करवटें बदलता देर में सो पाया। नेहा के दिल में तो ये डर घर कर गया कि यदि अनुभव को पिछले जन्म की यादें इतने स्पष्ट रूप से आती रहीं – यहाँ तक कि उन लोगों के नाम तक भी उसे नहीं भूले हैं, तो कहीं हम अनुभव को न खो दें। अगर वह नहीं भूला तो क्या होगा...वगैरा, वगैरा।
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अब अनुभव को हर 15 दिन में पिछले परिवार की याद सताने लगी। समस्या विकटतर होने लगी। नेहा और प्रकाश का दिल तो बैठा जाता था। कितनी मुश्किलों से यह एक बच्चा उनके जीवन में ख़ुशियाँ लेकर आया और अब वही किसी दूसरी दुनियाँ में जीने लगा था। दोनो को अपनी दुनियाँ उजड़ती नज़र आई। फिर भी दोंनो ने कमर कसके उस समस्या का डॉक्टर के परामर्श अनुसार मनोवैज्ञानिक ढंग से सामना करने की ठानी। उनकी ख़ुशियाँ, उनका वर्तमान, उनका भविष्य, सबका केन्द्र अनुभव था। वही अनुभव, उनकी आँखों का तारा, पर 15 दिन में रो-रो कर हंगामा खड़ा करने लगा।
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फरवरी की गुलाबी सर्दी थी। खुला दिन था। अनुभव स्कूल से आकर खाना खाकर सोया हुआ था। नेहा आराम कुर्सी पे बैठी पत्रिका पढ़ रही थी। घड़ी में 4 बजा था। अनु नींद पूरी होने पर उठ गया था। उसके उठते ही नेहा ने पत्रिका उठा कर रख दी और अनु को गोद में बैठाकर चुमकारने लगी।
“मेरा बेटा क्या खायेगा......पेस्ट्री खायेगा, पापा लेकर आए तुम्हारे लिए।“
पेस्ट्री के नाम से नींद की सुस्ती से धीरे-धीरे उबरता अनु हौले से मुस्कुराया और बोला –
“पेस्ट्री चाहिए अनु को।“
नेहा उसे गोदी से उतार कर, रसोई से पेस्ट्री लेने चली गई। साथ ही उसने अपने लिए चाय भी बनने रख दी। वह ट्रे में चाय का सामान लगा ही रही थी कि उसे अनु के रोने की आवाज़ आई। नेहा का दिल धड़क उठा। उसका दिल काँपा कि कहीं यह फिर वही पिछली यादों का तो झमेला नहीं है..!! वह तुरंत गैस बन्द करके कमरे में पहुँची तो जिसकी आशंका थी वही बात हुई। अनु शीशे के सामने खड़ा किसी से बात करता रोता जाता था। नेहा ने डॉक्टर की हिदायत याद करते हुए, उसका ध्यान बटाते हुए, तमाम खिलौने, तस्वीरों की सुन्दर सुन्दर किताबें उसे दिखानी शुरू की, म्यूज़िक लगाया, टी.वी. टॉम एन्ड जैरी की कार्टून फ़िल्म लगायी, पर अनु शीशे में से झाँकते चेहरों से अस्पष्ट सी बातें करता सुबकता खड़ा रहा। एक घंटा हो गया, नेहा भी परेशान हो गई। किसी भी तरह अनु बहला ही नहीं। तब अन्त में नेहा को प्रकाश के ऑफ़िस फ़ोन करना ही पड़ा। प्रकाश ने घर पहुँचते ही अनु को चुप कराने की नाकामयाब कोशिश की। अनु तब तक चुप नहीं हुआ जब तक दोनों ने उसे गौरी, कन्नू, पिंकी, चिंकी से मिलाने की बात नहीं कही। उस दिन तो अनु ने घर का पता, स्ट्रीट नंबर, फ़्लैट नम्बर वगैरा भी बता दिया। दोनों ने निर्णय लिया कि खोज करके देखी जाए कि जो पता अनु ने बताया है वह घर, फ़्लैट है भी कि नहीं। अगले दिन शाम को प्रकाश ऑफ़िस से सीधा रजौरी गार्डन की स्ट्रीट नं. 20, फ़्लैट नं. 116 पे पहुँचा। धड़कते दिल से कॉल बैल बजाई और सोचने लगा कि इस घर में सच में गौरी, कन्नू, पिंकी, चिंकी निकल आए तो, वह क्या करेगा...? वह उन्हें सच बताये या कुछ झूठ बोल दे। नहीं सच बताने से कहीं ये लोग अनु को उससे छीनने को तैयार हो गए तो...नहीं नहीं, ये तो सरासर मूर्खता होगी। अपने बच्चे को अपने ही हाथों खोना क्या अक्लमंदी होगी। वह झूठ बोल देगा कि उसे लगा यहाँ उसके एक पुराने परिचित रहते हैं, वह ग़लती से इस फ़्लैट पर आ गया और इस तरह वह इन लोगों के नाम वगैरा जानकर चला जाएगा। इतने में, इस अन्तर्द्वन्द्व में डूबे प्रकाश के सामने, एक महिला सकुचाई सी दरवाज़े से झाँकती खड़ी थी। सफ़ेद साड़ी में खड़ी उस सौम्य सी महिला ने प्रश्न सूचक दृष्टि से प्रकाश को देखते हुए कहा –
“जी, आपने ही घन्टी बजाई?”
प्रकाश असमंजस से उबरता बोला – जी, जी मैंने ही। जी यहाँ गौरी रहती हैं क्या?”
न चाहते हुए भी प्रकाश की ज़ुबान पे सच आ ही गया। अब वह भी मन ही मन तैयार हो गया कि बात घुमाने से अच्छा है कि सच बोल कर मामला एक तरफ़ा किया जाए। वह महिला बोली –
जी मैं ही गौरी हूँ
यह सुनते ही प्रकाश के मन पे हथौड़ा सा पड़ा। जी मैं आपसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहता था। अगर आप थोड़ा समय दें तो हम बैठकर बातें कर सकते हैं। गौरी ने सिर से पाँव तक एक गहरी नज़र डालते हुए इतना समझ लिया कि आदमी शरीफ़ है और कुछ सोच में डूबा, परेशान सा भी है। सो उसने आश्वस्त होते हुए प्रकाश को ड्रॉइंगरूम में बैठाया। अंदर जाकर एक गिलास पानी लेकर आई और सामने कुर्सी पे बैठ गई। महिला समझदार और शालीन थी। उसकी समझदारी के कारण प्रकाश उससे सच कहने की हिम्मत जुटा पा रहा था। प्रकाश हिचकता सा बोला –
“आपके बच्चों के नाम कन्नू, पिंकी और चिंकी हैं?”
गौरी यह सुनकर हैरान होती बोली –
“जी, ये मेरे बच्चों के नाम हैं पर आपको कैसे पता?”
अब तो प्रकाश को पक्का विश्वास हो गया था कि वाकई अनु की पूर्व जन्म की बातें सच्ची हैं... वे एक अबोध बच्चे का प्रलाप नहीं हैँ। प्रकाश अपने को साधते हुए बोला –
देखिए गौरी जी, जो मैं आपसे बताने जा रहा हूँ, वह सुनने में आपको अटपटा और अविश्वसनीय लगे, पर वह सच और सच के सिवा कुछ भी नहीं।
यह सुनकर गौरी प्रकाश को आश्वासन देती बोली –
"भाईसाहब, आप निश्चिन्त होकर कहें। मैंने पिछले 4-5 सालों में, जीवन में इतना कुछ देखा है, ऐसे अप्रत्याशित हादसों से गुज़री हूँ कि अब मुझे कुछ भी अटपटा और अविश्वसनीय नहीं लगता।
प्रकाश ने पहले से अधिक आश्वस्त होकर, बिना किसी संकोच के अनुभव की पूर्व जन्म की यादों के बारे में, नेहा और उसके मन में अनु को खो देने की आंशकाओं के बारे में सच-सच बता दिया। यह सुनकर कुछ पल के लिए गौरी विचलित हुई इसकी आँखें नम हो आई। स्वयं को सम्हालते हुए उसने प्रकाश से बताया कि 5 वर्ष पूर्व सड़क दुर्घटना में उसके पति की मृत्यु हो गई थी। इस हादसे से वह विक्षिप्त प्रा:य हो गई थी। लेकिन किसी तरह घरवालों के सहारे, वह उस दर्दनाक़ हादसे से उबरी और अपने बच्चों पे अपना ध्यान और जीवन का लक्ष्य साधा। प्रकाश को गौरी के पति की असामयिक मौत के बारे में जानकर दुख हुआ। सब सुनने और बताने के बाद, अन्त में प्रकाश ने गौरी पर सब छोड़ते हुए कहा कि -
अब आप ही बताएँ कि ऐसी स्थिति में, नेहा और मैं क्या करें
गौरी बेहद शान्ति से, ज़रा भी विचलित हुए बिना सब सुनती रही। फिर धैर्यपूर्वक सधे मीठे स्वर में प्रकाश को समझाती बोली –
आप क्यों इतनी चिन्ता कर रहे हैं। आपको इतने सालों बाद, ढेर प्रार्थनाओं और मन्नतों के बाद एक बच्चा ईश्वर ने दिया, वह आपकी अमानत है, ऊपर वाले की आप दोंनो को भेंट है, वह आपके ही पास रहेगा। भले ही पहले जनम में उससे हमारा नाता था, वह नाता उस जनम तक ही सीमित था, इस जनम में वह आपका बेटा है और आपका ही बेटा रहेगा।
प्रकाश गौरी की फुहार सी शीतल इन समझदारी भरी बातों को सुनकर गदगद हुआ बोला –
'आपने तो नेहा की और मेरी उलझन ही सुलझा दी। आप एक माँ के दिल की परेशानी, उसका दर्द बख़ूबी समझ सकती हैं। नेहा का तो खाना-पीना, सोना सब कुछ छुट सा गया है। वह रात दिन अनु को लेकर, उसकी यादों के कारण उससे बिछड़ जाने की कल्पना से बेहद उखड़ी हुई है।
गौरी फिर से रस घोलती बोली –
भाईसाहब, डॉक्टर ने आप लोगों को बताया ही है और भी आपको पूरा सहयोग दूँगी अनु को पिछले जीवन से छुटकारा दिलाने में। मैं एक बच्चे को उसके माँ-बाप से अलग करने का पाप नहीं कर सकती। तो यह डर तो आप लोग अपने मन से निकाल फेंके कि हम आपके बेटे को पिछले जनम के रिश्ते के कारण छीन लेगे। ऐसा करके न बच्चे के साथ, न आपके साथ और न हमारे साथ न्याय होगा। इसलिए बेहतर यही है कि अनु पिछली यादों को भूल जाए धीरे-धीरे और वर्तमान में जिए। सहज वर्तमान ही उसके उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगा।उसका हमारे पास रहना कोई सही निदान नहीं है। एक अंतराल के बाद पिछली यादों का उभरना तो एक अस्थायी स्थिति है, बीत जायेगी। मैं चाहती हूँ कि आपकी ख़ुशी अनुभव के रूप में सदा बनी रहे।
इसके बाद प्रकाश और गौरी ने एक योजना पर विचार किया कि ज़रूरत पड़ी तो अनु के लिए ऐसा कुछ किया जाएगा कि वह पूर्व जन्म से पूर्णतया बाहर निकल कर अपने वर्तमान में जीने लगेगा। प्रकाश के मना करने पर भी मेहमाननवाज़ गौरी ने उसे चाय पिलाकर ही विदा किया। विदा लेने से पहले प्रकाश ने कन्नू,पिंकी और चिंकी को देखने की इच्छा ज़ाहिर की । गौरी ने तीनो बच्चों को बुलाया। उन तीनों में चिंकी प्रकाश को अनु से काफी मिलता जुलता लगा। अनु पहले जनम की यादें ही नहीं अपितु उस परिवार के सदस्यों की शक्लो सूरत भी अपने चेहरे में सँजोये था। प्रकाश को घर पहुँचते- पहुँचते 8 बज गया था। प्रकाश ने नेहा को गौरी के साथ हुई सारी बाते विस्तार से बताई। सुनकर नेहा गौरी के प्रति प्यार और सम्मान , भर उठी।
अगले दिन प्रकाश अनु की क्लास टीचर से भी मिला और अलग बैठकर अनु की समस्या पे थोड़ी चर्चा की। टीचर ने उस दिन पहली बार क्लास में घटी उस घटना का ज़िक्र किया जब अनु ने चीख कर दूसरे बच्चे से उसके बच्चों के बारे में पूछा था और फिर अपने तीन बच्चों के नाम बताए थे। प्रकाश ने टीचर से कहा कि अब यदि कभी अनु अपने अतीत के बारे में बात करे तो वह किसी और चीज़ में या खेल में अनु का ध्यान बटाए और इस तरह उसे सहज बनाने में मदद करे टीचर ने प्रकाश को पूरा आश्वासन दिया कि वह ऐसी स्थिति आने पर अनु को ज़रूर सम्भालेगी, क्योंकि वह भी अनुभव जैसे होनहार बच्चे को उसके ‘आज’ से जोड़ना चाहती है। वर्तमान परिवार में, अपने माता-पिता का प्यार पाते हुए, बचपन को बचपन की तरह जीते हुए सहजता से बड़ा होना अनु के स्वस्थ भावी जीवन के लिए अपेक्षित था।
नेहा, प्रकाश, गौरी, और टीचर अब अनु के सहज मनोवैज्ञानिक इलाज के लिए तैयार थे। 14 अप्रैल, बैसाखी का दिन था। जगह-जगह बैसाखी का ज़ोर-शोर था। प्रकाश के भी ऑफिस की छुट्टी थी। नेहा लंच लगाने जा रही थी कि अनु कमरे में दर्पण के सामने खड़ा गौरी, कन्नू, चिंकी, पिंकी से बातें करने लगा। जब तक उनकी झलक दर्पण में दिखती रही, वह ख़ुश रहा पर जैसे ही उनकी छवियाँ ओझल होने लगी, अनु ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। नेहा और प्रकाश ने पहले तो अनु को समझाया कि रजौरी में गौरी, कन्नू, चिंकी, पिंकी नहीं रहते। फिर दोनों ने कहा –
चलो हम अभी तुम्हे रजौरी लेकर चलते हैं और वहाँ कोई कन्नू, चिंकी, पिंकी, गौरी नहीं रहते।
नेहा ने चुपचाप गौरी को फ़ोन कर दिया कि अनु ज़िद पकड़े है और वे उसे लेकर पहुँच रहे हैं। गौरी और तीनो बच्चों ने भी पूर्व निश्चित योजना के अनुसार सब इन्तज़ाम कर लिया। जब नेहा और प्रकाश अनु के साथ रजौरी पहुँचे और गौरी के फ़्लैट की कॉलबैल बजाई तो वहाँ गौरी की जगह एक दूसरा ही परिवार स्वागत के लिए तैयार मिला। उन अजनबी चेहरों को देख कर अनुभव ख़ामोश रहा। फिर इस कमरे से उस कमरे में कुछ खोजता सा घूमता रहा। प्रकाश ने अनु को दुलारते हुए कहा –
देखा बेटा, मैंने कहा था न कि रजौरी में कोई गौरी, कन्नू, चिंकी, पिंकी नहीं रहते हैं.....
जी भर के तसल्ली कर लेने पर, वह नेहा और प्रकाश से बोला –
चलो मम्मी-पापा ‘अपने घर’ चलते हैं...
नेहा और प्रकाश को अनु के मुँह से ‘’अपने घर चलते हैं"यह सुनकर मन ही मन चैन पड़ा और उन्हें लगा कि अब अनु के दिलो दिमाग में यह बात धुंधली पड़ने लगेगी कि गौरी और बच्चे रजौरी में रहते हैं।
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बीतते दिनों के साथ, अब अनु को गौरी, कन्नू, चिंकी, पिंकी के चेहरे कभी-कभी दर्पण में दिखाई तो पड़ते, पर वह पहले की तरह रोता या मचलता नहीं था। उसके मन में ये बात घर कर गई थी कि रजौरी में कोई गौरी, कन्नू, चिंकी, पिंकी नहीं रहते। वह उनकी छवियों को सहजता से लेने लगा था और दर्पण के सामने से हट जाता था। क्योकि उसके मस्तिष्क वे अजनबी चेहरे उभरने लगते थे, जो वह नेहा और प्रकाश के साथ रजौरी के घर में देख कर आया था। इस तरह जब-जब गौरी, कन्नू, चिंकी, पिंकी के चेहरे जब कभी दर्पण में से झाँकते नज़र आते तो उन्हे नए अजनबी चेहरे ढाँप लेते। एक दिन नेहा देखा कि अनु स्कूल से लौटकर कपड़े बदलने के बाद दर्पण के सामने खड़ा कुछ हौले-हौले बुदबुदाया, थोड़ी देर जैसे प्रतीक्षा करता खड़ा रहा नेहा ख़ामोशी से पर्दे के पीछे से उसकी प्रतिक्रिया देखती रही। शायद गौरी, कन्नू, चिंकी, पिंकी के चेहरे या तो दर्पण में उभरे नहीं थे या उभर कर तुरंत ओझल होने लगे थे। क्योंकि अनु हौले से मुस्कुराया और बोला -
“बॉय, बॉय.....” पहले अस्फुट लघु वार्तालाप और फिर बिना रोए “बॉय, बॉय” कहना, सम्भवत पिछली यादों से “बॉय, बॉय” की सूचना थी – ऐसा नेहा को महसूस हुआ। नेहा ने खुशी से आँखें मूँद कर मन ही मन ईश्वर को नमन किया दिल की गहराईयों में निशब्द प्रार्थना करने लगी कि –
“हे ईश्वर, इसी तरह मेरे बेटे को धीरे-धीरे पिछले जीवन से निकाल कर पूर्णतया इस नए जीवन में ले आइए। वह हमारा बेटा बनकर जिए। यही उसके और हमारे लिए सुखकर और हितकर है.....“
यह प्रार्थना करते-करते नेहा कमरे में अनु के पीछे आकर खड़ी हो गयी। दर्पण में सहसा मम्मी देखकर अनु एकाएक खिल उठा और मम्मी, मम्मी ......'"कहता नेहा की गोद में चढ़ गया।
अनु, नेहा और प्रकाश के भरपूर प्यार के कारण भी अपनी पिछली यादों से दूर होता जा रहा था। वह जैसे-जैसे बड़ा होता गया, अतीत की यादों से बड़े ही स्वभाविक ढंग से दूर होता गया। नेहा और प्रकाश के धैर्य और डॉक्टर की सलाह व सुविचारित योजना से अनुभव रफ़्तार से अपने वर्तमान में जीता हुआ, अपनी पढ़ाई और रचनात्मक क्रियाओं में मशगूल रहने लगा। उसमें आए सकारात्मक परिवर्तन से नेहा और प्रकाश के जीवन में फिर से सुख और सुकून का सुनहरा उजाला भरने लगा था।