दर्प-राग / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
Gadya Kosh से
सागर किनारे के एक बूढ़े ने एक बार मुझसे कहा, "तीस साल पहले की बात है। एक मल्लाह मेरी बेटी को भगा ले गया। मैंने उन दोनों को जले दिल से बददुआ दी क्योंकि पूरी दुनिया में अपनी बेटी से ज्यादा मैं किसी को नहीं चाहता था।
उसके कुछ ही दिनों बाद, वह जवान मल्लाह अपनी नाव के साथ अतल सागर में डूब गया। उसके साथ ही मेरी प्यारी बेटी भी मुझसे दूर चली गई।
अब, मैं एक जवान लड़के और जवान लड़की की हत्या का बोझ लादे घूम रहा हूँ। मेरी बददुआ के कारण ही वे खत्म हुए। और अब, जब मेरे पाँव कब्र में लटके हैं, मैं खुदा से अपने पाप की माफी चाहता हूँ।"
बूढ़े ने यह कहा जरूर; लेकिन उसके शब्दों में एक दर्प-विशेष था। ऐसा लगता था जैसे उसे अभी भी इस बात का घमण्ड हो कि उसकी बददुआ में कितनी जान है।