दर्शक अवचेतन के परदे पर फिल्में / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 14 दिसम्बर 2018
आज राज कपूर का 94वां जन्म दिन है और उनके निधन को 30 वर्ष हो चुके हैं। इन 30 वर्षों में उनके सुपुत्रों ने महज तीन फिल्में बनाई, जिनमें केवल 'हिना' सफल रही। इसका आकल्पन स्वयं राज कपूर कर चुके थे। मनमोहन देसाई की 'छलिया' की शूटिंग चल रही थी। राज कपूर ने अखबार में खबर पढ़ी कि एक हिंदुस्तानी की कार नदी में जा गिरी और वह बहता हुआ पाकिस्तान जा पहुंचा, जहां खानाबदोशों ने उसकी तीमारदारी की। राज कपूर ने मनमोहन देसाई से कहा कि इस खबर से प्रेरित एक पटकथा बनाई जा सकती है। इस पर अधिकार मनमोहन देसाई का है, क्योंकि उनके सेट पर यह अखबार पढ़ा है परंतु मनमोहन देसाई ने कहा कि उन्हें इस तरह की कथा में कोई रुचि नहीं है।
राज कपूर की सृजन सिगड़ी की धीमी आंच पर पटकथाओं के पकने में लंबा समय लगता था। उनकी सृजन सिगड़ी थी, शायद उसी की धीमी आंच पर लंबे समय तक पकने के कारण ही वे लंबे समय तक जीवित भी हैं। इलेक्ट्रिक ओवन में मिनटों में पकाए खाने की तरह भी फिल्में बनती हैं और तीन दिन में सिनेमाघर से हटा दी जाती है। इंस्टैंट कॉफी और दो मिनट में पकने वाले नूडल्स की तरह भी फिल्में बनती हैं। अधिकतम दर्शक प्राय: बदहजमी के शिकार होते हैं। मनोरंजन बदहजमी का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं मिल सकता।
शिमला के डाक बंगले में बावर्ची का पकाया लजीज भोजन राज कपूर को इतना स्वादिष्ट लगा कि वे उसे अपने घर मुंबई ले आए। बावर्ची मिस्त्री जी ने कई वर्ष तक कपूर परिवार की सेवा की। मिस्त्री जी को अपने रिश्तेदारों की याद सताने लगी तो कपूर परिवार ने उन्हें यथेष्ठ धन देकर उन्हें वापस जाने दिया। मात्र तीन महीने बाद मिस्त्री जी वापस आ गए। परिवार और रिश्तेदारों ने उन्हें सिर आंखों पर रखा था परंतु जाने वह कौन-सी कसक थी कि कपूर निवास वापस आ गए।
राज कपूर अपने सेवकों को अपने परिवार के सदस्य की तरह मानते थे। राज कपूर का यह दोस्ताना एक चस्के की तरह था कि लोग उनकी ओर खिंचे चले आते थे। उनके परिवार का एक पुराना सेवक द्वारका भी था जिसने अपनी बचत राज कपूर को दी जब अपनी पहली फिल्म 'आग' बनाने में पैसे की तंगी थी। इस भावना के लिए द्वारका को ताउम्र राज कपूर ने सहेजे रखा। वफादारी और वजेदारी राज कपूर के जीवन मूल्य रहे। पृथ्वीराज कपूर ने अभिनय से कमाया हुआ धन पृथ्वी नाटक मंडली पर खर्च किया। अनेक शहरों में अपने विभिन्न नाटकों का प्रदर्शन किया। हर शो के समाप्त होने पर वे दर्शक के आगे अपनी झोली फैलाते थे, जिसमें एकत्रित धन सामाजिक संस्थाओं को दिया जाता था। जब पृथ्वीराज कपूर को बोलने में कष्ट होने लगा तब पृथ्वी थिएटर्स को बंद करना पड़ा परंतु उस संस्था से जुड़े हर व्यक्ति को ताउम्र राज कपूर उनका वेतन भिजवाते रहे।
राज कपूर के ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर के निर्देशन में बनने वाली फिल्म 'धर्म-करम' में उन्होंने अपने मित्र राहुल देव बर्मन का संगीत लिया और मजरुह सुल्तानपुरी ने गीत लिखा 'एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल' उन्होंने गीत के रिकॉर्ड हो जाने के बाद गीत के लिए मेहनताना लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने बताया कि एक दौर में वामपंथी लोग जेल में बंद कर दिए गए थे। उन दिनों राज कपूर ने प्रतिमाह उनके परिवार को घर खर्च के पैसे भेजे थे। अतः मेहनताना तो दशकों पूर्व ही मिल चुका है।
कुछ वर्ष पूर्व राज कपूर के पुत्रों पर दबाव बनाया गया और उन्हें मजबूर होकर पुणे के निकट ग्राम लोनी में अपना फार्म बेचना पड़ा। यह वही फॉर्म था, जिसमें 'सत्यम शिवम सुंदरम', 'प्रेम रोग', 'जोकर' व 'प्रेम ग्रंथ' इत्यादि फिल्मों की शूटिंग की गई थी। यह फॉर्म अन्य निर्माताओं को भी उपलब्ध था। यश राज चोपड़ा ने अपनी फिल्म 'काला पत्थर' की शूटिंग कई दिन तक वहां की थी। विगत दिनों आरके स्टूडियो भी बेच दिया गया। बचे हुए कुछ उपकरण शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर अपने म्यूजियम में सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं। राज कपूर की फिल्मों के नेगेटिव और ध्वनि पट्ट भी पुणे फिल्म संस्थान को दिए जा चुके हैं। किसी ने यह नहीं देखा कि वह बहुमूल्य धरोहर पुणे संस्था में हिफाजत से रखी गई है या कबाड़ खाने में फेंक दी गई है। ज्ञातव्य है कि सेंसर द्वारा काटे हुए दृश्य भी पुणे फिल्म संस्थान भेजे जाते थे। उनका अध्ययन करके एक किताब लिखने के उद्देश्य से खाकसार पुणे संस्थान गया तो पाया कि सारी सामग्री बेतरतीब ढंग से छितरी पड़ी है और कमोबेश कूड़ा कचरा हो गई है।
पुणे फार्म गया, स्टूडियो बेच दिया गया, उपकरण ऊपर वाले के भरोसे हैं, गोयाकि भारत के महान फिल्मकार की विरासत नष्ट हो रही है और परिवार भी तमाशबीन की तरह लाचार बैठा है। ऐसा नहीं है कि परिवार के कोई आर्थिक तंगी है। कमी तो है इतिहास बोध की, विरासत को अनदेखा करने की। सब कुछ जाने के बाद भी राज कपूर उनकी फिल्मों के प्रशंसकों के मन में रहने के कारण बने रहेंगे। दर्शक के अवचेतन के परदे पर स्मृति का प्रोजेक्टर उनकी फिल्में निरंतर प्रदर्शित करता रहता है। मीठे बोल सदा गूंजते रहेंगे।