दर्शक के मन में उड़ता पंजाब / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :18 जून 2016
अनुराग कश्यप के लिए निर्देशक चौबे की फिल्म 'उड़ता पंजाब' सामाजिक महत्व के राष्ट्रीय डाक्यूमेंट की तरह गढ़ी गई महान फिल्म है। नशीले पदार्थ के सेवन के कारण नाटकीय यातना झेलते युवा वर्ग की यह फिल्म सरकार, प्रशासन और नेता सभी को अपराधी के कटघरे में खड़ा करती है और भारत को अमेरिका बनाने का दंभ भरने वालों को चेतावनी देती है कि विश्व में नशे की राजधानी मैक्सिको होने से भारत को बचाना चाहिए।
इस फिल्म को बनाने वालों को पंजाब विश्वविद्यालय ने मानद डॉक्टरेट देना चाहिए। जिस तरह शोध के लिए सत्य की खोज तर्क के सहारे की जाती है, उसी तरह की मेहनत से यह फिल्म गढ़ी गई है परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि शोध प्रबंध की तरह बनी यह फिल्म नीरस है। मनोरंजन को स्वतंत्रता की ही तरह अनेक लोगों ने अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया है परंतु सामाजिक व्याधियों पर प्रकाश डालने वाली फिल्म देखते समय दर्शक अपनी सीट पर मंत्रमुग्ध बैठा रहता है, यह भी फिल्म मनोरंजन का ही हिस्सा है, क्योंकि मनोरंजन का अर्थ हृदय को रोशन करना भी होता है। यह फिल्म तो सर्चलाइट की तरह गढ़ी गई है।
इसमें सभी कलाकारों ने प्रभावोत्पादक अभिनय किया है परंतु यह आलिया भट्ट और करीना कपूर की फिल्म है। करीना कपूर ने पटकथा सुनकर ही यह कहा था कि फिल्म आलिया भट्ट पर केंद्रित है परंतु इसका सामाजिक व सिनेमैटिक महत्व इतना जबर्दस्त है कि वे इसका हिस्सा होने में गौरव महसूस करेंगी। पहलाज निहलानी का भयभीत हो जाना भी समझ में आता है, क्योंकि वे जिस राजनीतिक दल से जुड़े हैं, वह पंजाब सरकार चलाने वाले दल की सहयोगी है और मुजरिम के कटघरे में खड़े रहने से बच नहीं सकती। दवा के नाम पर नशीले ड्रग्स बनाने वाली फैक्ट्रियों के चलते रहना ही सरकारों की साझेदारी को रेखांकित करता है। बहरहाल, कौन-सा दल परोक्ष रूप से जुड़ा है या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं है, चिंता का विषय यह है कि नशीले पदार्थ पूरे देश में कम या ज्यादा प्रमाण में बेचे जा रहे हैं और युवा वर्ग को नशे का आदी बनाकर देश के मेरुदंड को ही तोड़ा जा रहा है। हमारी आबादी का बयालीस प्रतिशत युवा वर्ग है।
फिल्म का गीत-संगीत इसका अत्यंत सशक्त पक्ष है। सभी गाने फिल्म को तीव्र धार देते हैं। एक गीत के बोल हैं, 'एक कुड़ी (लड़की) जिदा नाम मोहब्बत है, गुम है, गुम है, गुम है। वह साद मुरादी सोणी फबत गुम है, गुम है, गुम है। ओ सूरत उसदी परियां वरगी (की तरह), सीरत (काम) दी ओ मरियम लगदी हंसदी है तां .. तुलदी है तान गज़ल है लगदी…' इसकी धुन मधुर है और गले से नहीं दिल से गाया हुआ गीत लगता है। सच तो यह है कि सभी गीत कमाल के हैं और संगीत पंजाब के दृश्यों का संगीतमय स्वरूप लगता है। इसमें कोई भांगड़ा नहीं है, हीर नहीं है, क्योंकि लस्सी पीकर भांगड़ा करने या हृदय से हीर गाने वालों का पंजाब वर्तमान में नशे के कोहरे में नज़र नहीं आता। इस फिल्म में पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में पंजाब के सुपर सितारे दलजीत हैं और वे विलक्षण अभिनेता हैं। शाहिद कपूर ने जी-जान से अभिनय किया है और ड्रग्स के आदी किशोर लड़के ने भी मर्मस्पर्शी काम किया है। अपने को मदद करने वाली की अनचाहे की गई हत्या के बाद उसका चेहरा पश्चाताप की अभिव्यक्ति करता है और करीना कपूर का क्लोजअप मानो दर्द की तस्वीर हो। सामाजिक सौद्देश्यता से लबरेज यह फिल्म दर्शक को बांधकर रखती है और इसका एक क्षण भी निरर्थक नहीं है। निर्माता अनुराग कश्यप के लिए यह महसूस करना जाने कैसे लगता होगा कि गुरु गुड़ रह गया, शागिर्द (चौबे) शकर हो गया!