दर्शन / अशोक भाटिया

Gadya Kosh से
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वह अभी बच्चा था, जब पहली बार मंदिर गया था। उसका भूखा पेट तभी से प्रसाद खाने का शौकीन हो गया था। माता-पिता खुश थे कि बेटा रोज भगवान के दर्शन करने जाता है।

जब वह जवान हुआ तो मंदिर में एक लड़की पर दिल खो बैठा। वे दोनों मंदिर में रोज़ मिला करते। माता-पिता खुश थे कि वह अब भी रोजाना भगवान के दर्शन करने जाता है।

फिर उसका विवाह हो गया। तब वह सैर करने या लोगों से मेल-जोल करने के बहाने मंदिर जाता था। माता-पिता खुश थे कि विवाह के बाद भी उसका बेटा भगवान को भूला नहीं है।

जब वह बूढ़ा हो गया तो पहली बार एक मूर्ति के आगे झुका – “हे प्रभु! मुझे मेरे बच्चों से आराम मिले और खाने को अच्छा खाना मिले।” वह रोजाना यही कहा करता। यही कहते-कहते वह एक दिन दुनिया से कूच कर गया।

दुनिया ने कहा – वह बड़ा भगत था।