दवा व्यापार क्षेत्र में अदालती लीवर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :19 जनवरी 2018
पतंजलि और हिन्दुस्तान यूनिलीवर के बीच अदालत के बाहर एक समझौता हुआ है जिसके तहत पतंजलि अपने साबुन के विज्ञापन में अपने प्रतिद्वंद्वी द्वारा बनाए गए साबुन में कैमिकल लोचे की बात नहीं करेगा क्योंकि वह असत्य है। इसके साथ ही अक्षय कुमार अभिनीत एक विज्ञापन में दिखाया जा रहा है कि वृक्ष की दो चार पंक्तियों का विज्ञापन में समावेश करने से यह सिद्ध नहीं होता कि यह आयुर्वेद तरीके से बनाई गई वस्तु है। आयुर्वेद एक महान चिकित्सा प्रणाली रही है परन्तु अपनी लंबी यात्रा में आयुर्वेद ने मल मूत्र जांच को अनदेखा करके अपना नुकसान कर लिया। समय के साथ नहीं चलने के कारण उसकी हानि हुई। सबसे भयावह बात यह है कि हमने अपने जंगल नष्ट कर दिये, अत: जड़ी बूटियां उपलब्ध नहीं रहीं। जापान में भूकम्प बार-बार आते हैं, अत: वहां लकड़ी के मकान बनते हैं। जापान और पश्चिम के देशों में वृक्ष काटने के पहले दोगुनी संख्या में नए पौधे लगाने पड़ते हैं। सरकार का जंगल विभाग वृक्षों पर एक निशान लगाता है कि इस वृक्ष को नहीं काटा जा सकता और केवल सूखते हुए वृक्षों को ही काटने की इजाजत होती है। हमारे लकड़ी काटने के व्यापारियों ने अफसरों को रिश्वत देकर उन वृक्षों को भी काट दिया जिन्हें बचाए रखना आवश्यक था। नीम के वृक्षों की कमी मानव अस्तित्व के लिए खतरा है। शीशम के वृक्ष सोने से अधिक मूल्यवान होते हैं। अब केवल वे फोटोग्राफ में ही देखने को मिलते हैं। कुछ चरित्र भूमिकाओं को अभिनीत करने वाले कलाकार भी नीम और शीशम की तरह बहुमूल्य होते हैं जैसे फरीदा जलाल और सीकरी।
ज्ञातव्य है कि एक साबुन के विज्ञापन में जलप्रपात के नीचे नहाती बाला के दृश्य से संभवत: राजकपूर ने प्रेरणा लेकर अपनी फिल्मों के उस तरह के दृश्य रखे। 'सत्यम शिवम सुंदरम' और 'राम तेरी गंगा मैली' में जलप्रपात के नीचे नहाती नायिकाओं के दृश्यों ने बॉक्स ऑफिस पर सिक्कों की बारिश संभव की। फिल्मकार बलदेवराज चोपड़ा ने फिल्मी सितारों को लेकर विज्ञापन फिल्में बनाईं। उस दौर में सितारों ने बिना मेहनताना लिए ही यह काम किया परन्तु आज कलाकारों को विज्ञापन फिल्मों में काम करने से खूब धन मिलता है। उनके फिल्मों में अभिनय से अधिक धन उन्हें इन विज्ञापन फिल्मों से मिलता है। सितारों को आम के आम के साथ गुठलियों के भी दाम मिलते हैं। मेहनतकश को अपने पसीने का मुआवजा भी नहीं मिलता। इसी शोषण को बढ़ावा देने के लिए प्रचारित कर रखा है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो।
पतंजलि की व्यापक सफलता का एक कारण यह भी है कि उन्होंने अपने व्यापार में धर्म का सहारा भी लिया है। यह राजनैतिक हिन्दुत्व की व्यापार क्षेत्र में पड़ी परछाई है। यहां पतंजलि वस्तुओं की गुणवत्ता की बात नहीं की जा रही है। पतंजलि निर्मित वस्तुएं आपको छोटे-छोटे गांवों में भी उपलब्ध हैं। यह मार्केटिंग का मास्टर स्ट्रोक है और व्यापार प्रबंधन सिखाने वाली संस्थाओं के लिए पाठ्यपुस्तक की तरह है। इस मार्केटिंग की प्रशंसा करना होगी कि इसने कॉरपोरेट जगत को हिला कर रख दिया है। व्यापार विज्ञापन अखाड़े में बाबा ने पुश्तैनी पहलानों को चित्त कर दिया है।
एक वस्तु के निर्माण मूल्य से दस गुना अधिक धन उसके विज्ञापन में खर्च होता है और इसकी कीमत उपभोक्ताओं से वसूल की जा रही है। ग्राहक की विचार शैली ऐसी है कि वह वस्तु की उपयोगिता से अधिक उसकी पैकेजिंग से प्रभावित होता है। गाढ़े लाल रंग के गुणकारी साबुन के बदले वह उजले रंग का साबुन खरीदना पसंद करता है। कुछ रंग ग्राहक को विश्वास दिलाते थे कि यह कीटाणुनाशक है परन्तु आज उजले रंग का महत्व है और कीटाणु नाशकक्षमता विचारशैली से खारिज कर दी गई है। गोरा रंग व्यवसाय पर बहुत चर्चा हो चुकी है।
महिला का शरीर ही प्राय: विज्ञापनों में दिखाया जाता है। यहां तक कि पुरुष के दाढ़ी बनाने के ब्लेड विज्ञापन में भी नारी का ही प्रयोग किया जाता है परन्तु एक कम्पनी ने विनोद खन्ना को प्रस्तुत किया। विनोद खन्ना अभिनीत फिल्मों की सफलता का प्रतिशत सामान्य ही रहा परन्तु उनके द्वारा विज्ञापित वस्तु बहुत बिकी। इस औद्योगिक घराने द्वारा दी गई दावतों में श्रेष्ठि वर्ग की महिलाओं में विनोद खन्ना का सानिध्य पाने की प्रतियोगिता जारी रहती थी। उसे अच्छी नस्ल के घोड़े की तरह प्रस्तुत किया गया। ताराशंकर बन्धोपाद्याय के उपन्यास 'आरोग्य निकेतन' में एक नाड़ी विशेषज्ञ की अनुभव यात्रा प्रस्तुत की गई है। नाड़ी वैद्य का निदान सटीक होता था। इस महान उपन्यास में नाड़ी वैद्य ने अपनी मृत्यु के पूर्व क्षणों का विवरण काव्यमय ढंग से किया है। वे लिखते हैं कि 'मृत्यु की पायल की झंकार उन्हें सुनाई पड़ रही है, गांव के कुएं के पास से गुजरती हुई मृत्यु अब खेत की मेड़ पर चलती हुई निकट आ रही है। अब उसके पायल की झंकार सुनाई नहीं देती जिसका अर्थ है कि वह मेरे सिरहाने खड़ी है...'
बहरहाल वोट केन्द्रित राजनीति छद्म युद्ध खड़े कर रही है। उसने आयुर्वेद, एलौपेथी, होम्योपेथी और यूनानी चिकित्सा शास्त्रों को विरोधियों के रूप में खड़ा कर दिया है। यह बांट कर राज करने की नीति का ही चिकित्सा शास्त्र में प्रवेश करना है।