दवा / अमित कुमार मल्ल
पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक पिछड़े क्षेत्र होने के बाद भी, मेरे गाँव में बाज़ार थी - साप्ताहिक नहीं परमानेंट। सोमवार और शुक्रवार को, साप्ताहिक बाज़ार लगती है। किन्तु, लगभग 50 से अधिक दुकाने परमानेंट है, जो सुबह 8 बजे से लेकर सूर्यास्त तक खुलती है। इनमें जनरल मर्चेंट, मिठाई, कपड़े, चाय पकौड़ी, डॉक्टर आदि की है। इन डॉक्टरों में कोई एम बी बी एस नहीं है, कुछ कम्पाउंडर थे और एक दो स्व ज्ञान प्राप्त करने वाले डॉक्टर थे।यह दुकाने मेरे गाँव के अतिरिक्त 5 - 6 गाँव की छोटी ज़रूरते पूरी करती है।
ख्वाबो के शहर इलाहाबाद में प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी के लिये सालों साल घिसने के बाद, फिर से हौसला बटोरने व ख़र्चा लेने के लिये घर आता हूँ। छुट्टी में,इलाहाबाद से आने के बाद, मैं भी चाय पकौड़ी की दुकान पर,शाम के 2 घण्टे बिताता।जहाँ अख़बार पढ़ता, प्राथमिक पाठशाला के सहपाठियों के साथ क्षेत्र जवार की खबरे सुनता, गप्प करता।
अमूमन मैं साल में दो तीन बार गाँव आता। हर बार, चाय की दुकान का एक शगल रहता - केकर दुकान चटकल बा।अर्थात किसकी दुकान अधिक चल रही है।पिछले 2बार से यही पता चलता कि डॉक्टर बिलास क चटकल बा। डॉ बिलास ने अनौपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, उनका ज्ञान पैतृक रूप से उन्हें मिला था, उनके पिता जी अपने समय में किसी एलोपैथ डॉक्टर के कंपाउंडर थे। उनका डॉक्टरी ज्ञान उनके पिता जी से उनको मिला था।
मेरे गाँव के निकटवर्ती तहसील मुख्यालय वाले कस्बे में मेरा एक मित्र रहता है,वह एम बी बी एस पास डॉक्टर है। मैं जब छुट्टियों में घर आता तो उससे कस्बे जाकर मिल लेता। यदा कदा,वह भी, मुझसे मिलने, मेरे गाँव आ जाता।
इस बार वही आया। शाम को बाज़ार में चाय की दुकान पर चर्चा चल रही थी।तभी बात आई - डॉ बिलास क ख़ूब चलत बा। उसे यह भी पता चला कि बिलास बिना पढ़े डॉक्टर है। कोई उन्हें झोला छाप डॉक्टर बताने लगा, तो किसी ने कहा -
यदि फायदा न होता,तो लोग आते क्यो ?
आदमी एक बार मूर्ख बना सकता है, बार बार नही।
कोई जबरजस्ती तो बिलास के पास नही
ले जाता है। फिर गाँव की पी एच-सी पर,एक एम बी बी एस डॉक्टर भी तो, बैठता है।फिर भी लोग बिलास के पास जाते हैं।
मेरे एम बी बी एस मित्र को, शायद मानसिक चोट लगी। उन्होंने मेरे कान में, बिलास की कार्य प्रणाली जानने के लिए,बिलास के दुकान पर चलने को कहा।
मैंने कहा
ठीक है लेकिन वाद विवाद नही। तुम चुप रह कर, ऑब्जर्व करोगे।
उसने कहा
बिल्कुल, मैं चुप रहूँगा। तुम मेरी पहचान भी मत बताना। बस, मैं देखना चाहता हूँ कि उसका दवाखाना चलता क्यो हैं।
मैं बोला - चलता हूँ।
हम दोनों बाज़ार में इधर उधर घूम कर बिलाल की दुकान पर पहुँचे। बिलास ने चाय मंगवाई, बोला-
बइठल जा। तनी मरीजन निपटा देइ।
बिल्कुल। हमन क त गप्पीआवे के खातिर आइल बानी जा।
मैं बोला।
और हम दोनों किनारे बैठ कर ऑब्जर्व करने लगे।
4 - 5 महिला मरीज थी। बिलास अधिकतर को कैप्सूल व टॉनिक दे रहा था। दोनों नाम रहित थे।
जब मरीज चले गए,तो हम लोगों ने पूछा
बिना नाम का कौन कैप्सूल देते हो ?
उनका नाम कैसे याद रहता है ?
बिलास ने अपनी कुर्सी खिंच कर, पास करते हुए बोला
कैप्सूल में ग्लूकोज है, जो मैं ही भरता हूँ।
टॉनिक में भी ग्लूकोज व हल्का खाने वाला रंग है।
फिर, फायदा कैसे होता है।
मैं बोला।
बिलास बोला
आप लोगों ने देखा, अधिकतर मरीज शादी शुदा महिलाएँ है, जिनके पति मुंबई या दुबई या कही बाहर रहकर कमाई करते है। पति के दूर रहने से,घर पर यह महिलाएँ परेशान रहती है। परिवार वालो से टकराहट होती रहती है। पति के अनुपस्थिति में पूछ भी कम हो जाती है। खाने में भी कमी शुरु हो जाती है।ऎसे में महिलाएँ हताश, निराश,बीमार हो जाती है। पति जब आता है तो इनकी पत्नियाँ ख़ुश हो जाती है।पति कमाकर पैसा लेकर आता है। पत्नी का महत्त्व बढ़ जाता है। पति को यह दिखाना होता है कि वह पत्नी को प्यार करता है।वह ख़ूब खिलाता पिलाता है,वह यहाँ दिखाने लाता है। ऐसे में ग्लूकोज वाले कैप्सूल व टॉनिक महिलाओं को सूट करते हैं। महिलाओं व उनके पति को लगता है कि दवाएँ फायदा कर रही है।
बिलास मुस्करा रहा था और हम दोनों एक दूसरे को देख रहे थे।