दसवीं कहानी / राजी सेठ

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यह कहानी नहीं


कमरे में पसरी ठिठुरन से घबरायी कि बाहर टहल आयी। कोने में गुलदाउदी के दो नये गमले। तीन भरवदार मोटे फूल जैसे गरदन लठाकर मेरा मुंह ताक रहे हो।

कल रात तक तो गमले यहां नहीं थे, मुझे ठीक याद है। कहां से आये होंगे रातों रात। समझते देर नहीं लगी। तो यह आण्टी आप हैं अब इस तरह उपस्थित। कोंचती हुयी। अपनी मांग को जताती हुयी। अपनी बात को कहने का भी यह एक ढंग है।


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