दस्तूर / गोवर्धन यादव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विकराल बाढ़ के हस्ताक्षर अभी पूरी तरह सूख भी नहीं पाये थे कि सूखे ने आदमी के गाल पर दनादन चाटें जड़ दिए,

जिधर भी नज़र जाती विरानी ही विरानी नज़र आती, पानी को लेकर त्राहि-त्रहि-सी मच गई थी, इस आपदा से निपटने के लिये कई सरकारी योजनाऒं की घोषणाएँ की गईं, लेकिन तत्काल कोई कारगर व्यवस्था नहीं बन पायी,

एक ज्योतिषी ने अपना पोथा खोलते हुए बतलाया कि पुराने ज़माने में राजा-महाराजा किसान बन कर हल चलाया करते थे, तब जाकर वर्षा का योग बनता था, अब राजा महाराजाओं का जमाना तो रहा नहीं, यदि कोई शिर्षस्थ नेता हल चला कर यह दस्तूर करे तो निःसन्देह बरिश हो सकती है,

एक नियत समय पर एक नेता को हल चलाकर दस्तूर करना था, खेत के चारों ओर लोग खड़े होकर अपने नेता को हल चलते हुए देखना चाहते थे, जयघोष के साथ नेताजी का प्रवेश हुआ और उन्होंने आगे बढ्कर हल की मूठ पकड़्कर बैलों को आगे बढ्ने का इशारा किया, हल की फ़ाल जैसे ही ज़मीन में दबी पड़ी हड्डी से टकराई, एक आवाज़ आयी "" कौन है कम्बखत, जो हमें मरने के बाद भी चैन से सोने नहीं दे रहा है, "