दहशत / शोभना 'श्याम'
एक हाथ से अपने बढ़े हए गोल पेट को सम्भालती और दूसरे से भीड़ के बीच रास्ता बनाती, वह किसी प्रकार अस्पताल के पलंग पर ज़िन्दगी और मौत से जूझती उस नन्ही-सी कली तक पहुँच ही गयी।
तरह-तरह की नलियों और सुइयों से बिंधी, पट्टियों से ढकी उस मासूम को देखकर अनु का कलेजा मुँह को आ रहा था।
घर में सबने उससे इस हालत में वहाँ जाने को मना किया था, लेकिन ये नन्ही जान मात्र उसकी पड़ोसिन की ही नहीं उसकी प्यारी सहेली की भी बेटी थी जिसे उसने अपनी गोद में खिलाया है और जिसे हवस के भेड़ियों ने नोंच-खसोट कर इस कदर लहूलुहान कर दिया है कि वह बच भी गयी तो शायद मौत से बदतर होगी उसकी ज़िदगी।
कैसी विडंबना है कि पाँच वर्ष की नन्ही-सी कली में इन वहशियों को न बेटी, न बहन, मात्र एक औरत दिखाई देती है। उफ़ ...क्या हाल कर दिया बच्ची का! अनु की आँखों से झरना बह रहा था, लेकिन गले में काँटे उग आये थे कैसे ढांढस बढ़ाये अपनी सखी को उसका तो चेहरा भी नहीं देखा जा रहा था। अनु को अपने सामने पा वह जोर-जोर से बिलखने लगी अचानक अनु को लगा जैसे कोई उसका दिल बाहर खींच रहा है, उसके पेट में ऐंठन-सी होने लगी और भयंकर पीड़ा के कारण उसके मुँह से चीख निकल गयी।
अनु को होश आया, तो पता चला, उसका गर्भपात हो चुका है शायद गर्भस्थ कन्या अपनी बड़ी बहन की शोचनीय दशा देखकर।