दांत निपोरना भी एक कला है / कुबेर
बत्तीसी विहीन सुंदरता की कल्पना बेमानी है।
दूध के दांतों के झड़ने और अकल के दांतों (दाढ़ों) के निकलने का रिवाज यदिनहीं होता तो बड़े-बुजुर्ग छोटों पर अपनी महानता का रौब भला कैसे जमापाते?
अन्य जानवरों के (यदि आदमी को जानवर न माना जाय) बड़े-बड़े घिनौने दांतोंसे अपने छोटे-छोटे सुंदर दांतों की तुलना करते ही मनुष्य स्वयं को औरोंसे सभ्य और श्रेष्ठ होने का भ्रम पालने लगता है। अगर जानवर कह पाते कि’अरे मनुष्यों! हमारे दांत बड़े और बेडौल जरूर हैं, पर तुम लोगों केदांतों के समान हिंस्र और खतरनाक नहीं हैं। दांत खट्टा करने और दांतनिपोरने की आधुनिक कला भी तुम्हीं लोगों को मुबारक हो,’ तो भला इनकी क्यारह जाती?
कभी न कभी आपने भी दांत निपोरा होगा। यदि कोई अपनी बŸाीसी का प्रदर्शनहें...हें...हें...की लय बद्ध स्वर के साथ इस प्रकार करे कि हालाकि उसमेंप्रदर्शन की भावना हो या न हो, सामने वाले व्यक्ति के तमतमाए हुए तमामतेवर क्षण भर में ही पानी-पानी हो जाए तो इस कला को दांत निपोरना समझिए।ऐसा करके वे किसी टूथ-पेस्ट या मंजन-पावडर का विज्ञापन नहीं करते, बल्किअपनी श्रेष्ठता, महानता और सफलता की आभा से आपको चमत्कृत कर रहे होतेहैं। ऐसे लोगों को यद्यपि दांत निपोरू कह सकते हैं पर उनके सामने हीउन्हें दांत निपोरू कहने की भूल आप हरगिज न करें। पीठ पीछे चाहे जितनीबार कह लें, जैसे कि मैं कह रहा हूँ।
दांत निपोरुओं की पहचान एकदम आसान है। इनके दांतों का चमकीला होना हरगिजजरूरी नहीं है। बल्कि जिन दांत निपोरुओं के दांत चमकीले हों, समझिये वेइस कला के नये साधक हैं।
दांत निपोरुओं के दांतों का अर्थात बŸाीसी का सही सलामत होना भी जरूरीनहीं है। बल्कि बत्तीसीविहीन निपोरू ही वेटरन निपोरू होते हैं।
महान दांत निपोरुओं की दांतों और साँसों से किसी टूथ-पेस्ट की चमक और महकनहीं आती, बल्कि दांतों के ऊपर पान और खैनी की मोटी परत और साँसों सेधूर्तता और मक्कारी की असहनीय गंध आती है। इसी से तो उनकी महानता प्रगटहोती है।
दांत निपोरने की कला एक महान कला है। यह हर किसी के बस की बात नहीं है।अन्य कलाओं की भांति इस कला में भी महारत हासिल करने के लिए सतत् अभ्यासऔर चिर साधना की जरूरत होती है। यदि किसी में यह कला जन्मजात है तो अच्छाहै, नहीं है तो कोई बात नहीं। थोड़े ही दिनों की साधना से (इच्छा हो तोलगन आ ही जाएगी) इस कला में निपुण हुआ जा सकता है। आपको बस इतना ही करनाहै कि यदि आपका कोई प्रतिपक्षी या तलबगार आपके प्रति नाराजगी व्यक्त करेया आप स्वयं सामने वाले के प्रति अपराध-बोध महसूस करें, तो बिना समयगँवाए, बिना कुछ सोंचे समझे, अपनी सारी बŸाीसी निकाल करहें...हें...हें...की विशेष निपोरू राग के साथ अपना पूरा वाल्यूम कंट्रोलखोल दीजिए।
यदि प्रथम प्रयास में काम न बने तो दोबारा प्रयास करें। फिर भी काम न बनेतो एक अंतिम प्रयास और करें। (यदि आप इस कला में माहिर हैं तो चैंथेप्रयास की जरूरत नहीं पड़ेगी) विश्वास रखिए, सामने वाला शर्म से पानी-पानीहो जाएगा। उसके दांत इतने खट्टे हो जाएंगे कि वह कुछ बोलने लायक नहींरहेगा।
दांत निपोरू सर्वव्यापी होते हैं; फिर भी दुकानों, दफ्तरों और मंत्रालयोंमें ये थोक के भाव पाए जाते हैं। बाबुओं का बाबू अर्थात बड़ा बाबू वही होसकता है जो इस कला में सर्वाधिक दक्ष हो। इस कला में माहिर नेता मंत्रीपद के प्रबल दावेदार होते हैं।
दुकानदारों और व्यापारियों को अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए इसी कला मेंदक्ष होना पड़ता है। मिस्त्रियों का तो यह अनिवार्य गुण है। घड़ीसाज हो,रेडियो मेकेनिक हो, सायकल मिस्त्री हो या कार मेकेनिक, जब तक ये इस कलाका सम्मिश्रण अपनी तकनीकी कला के साथ नहीं करेगें, किसी यंत्र का दुरुस्तहो पाना नामुमकिन होता है।
लोग कहते हैं, सफलता के लिए कठोर परीश्रम जरूरी होता है। मैं कहता हूं,ऐसा कहना इस महान कला का सरासर अपमान है। परिश्रम करें आपके दुश्मन। आपकोयदि दांत निपोरना आता है, तो सफलता आपके कदम चूमेगी। मंत्रों मेंमहामंत्र, चाबियों में मास्टर चाबी और सोलह कलाओं में महानतम है यह कला।
इस कला में हें...हें...हें...की जो अनुनासिक स्वरधारा प्रवाहित होती है,जिसे इनके साधक निपोरू राग बताते हैं, अवश्य किसी शास्त्रीय राग परआधारित होगी वर्ना इसमें इतनी ऊर्जा संभव होती?
दांत निपोरने की कला की व्यापकता, दांत निपोरुओं की संख्या और इसकी सफलताको देखते हुए इस कला को देश की राष्ट्रीय कला तथा ऐसे कलाकारों के चरित्रको देश का राष्ट्रीय चरित्र मान लेना चाहिये। हें...हें...हें...।