दादाजी और इंटरनेट / अन्तरा करवड़े

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे पता है कि आप सभी इस विषय को पढ़कर हँस रहे होंगे। दरअसल दादाजी और इंटरनेट कुछ ऐसा लगता है जैसे दूल्हा और जटाजूट। खैर आज आपको बताया जाए कि कैसे आजकल के दादाजी इंटरनेट और संचार क्रांति से जुड़े जुमलों के चलते गलतफहमियों के शिकार होते हैं। अब मेरे दादाजी आज सुबह मेरे भाई पर बुरी तरह बरस पड़े। हुआ कुछ यूँ कि भाई साहब किसी दोस्त से सीडी यानी कॉम्पॅक्ट डिस्क लाने की बातें कर रहे थे। हमारे दादाजी ठहरे शक्की मिजाज। दोस्तों से की जानेवाली बातें बड़े रस ले लेकर सुना करते है। वे समझ बैठे कि हमारे भैयाजी को कहीं से बीडी की लत लग गई है और दोस्तों के साथ बैठकर उसी का इंतजाम किया जा रहा है।

खैर! जब झगड़ा सुलझ गया तब भी दादाजी को समझ में नहीं ही आया कि आखिर ये सीडी है क्या बला। वे दादीजी से आज भी पूछते है कि ऊपर चढ़ने वाली इतनी बड़ी सीढ़ी आखिर इतने से कंप्यूटर में आ कैसे जाती है। दादीजी अलग मोबाईल से परेशान रहती है। जब भी रिंगटोन बजता है तब अलग अलग गीतों की धुनें सुनाई देती है। वे अपने पोते को दुआएँ देती है कि वो उनके मनोरंजन का कितना ध्यान रखता है कि जैसे ही वो थके, कि इस मोबाईल से गीत बजने शुरू हो जाते हैं।

एक बार तो दादाजी गजब ही कर बैठे। शुबह सुबह घूमने का शौक तो शायद वे जन्म से पहले ही अपनी कुंडली में लिखवा लाए थे। निकल पड़े अपनी छड़ी लेकर मैदान में चक्कर काटने। अब उनके आगे एक लड़का जा रहा था। बाल थोड़े से पहले के जमाने के संजय दत्त के जैसे और कान में लगा हुआ मोबाईल। अब उसकी केशराशि इतनी घनी थी कि दादाजी को हाथ में पकड़ा हुआ मोबाईल दिखाई नहीं दिया। वो लड़का किसी टूटे हुए प्रेम प्रसंग की बात किये जा रहा था। बीच में ही उसे किसी का फोन आता तो मधुर रिंगटोन भी बजती। अब दादाजी इन सभी बातों को मोबाईल से तो नहीं जोड़ पाए, अलबत्ता उस लड़के की हालत देखते हुए उसकी दिमागी हालत खराब है ये अंदाजा जरूर लगा लिया।

फिर क्या था! अपने रोजाना के घुमन्तू साथियों को इकट्ठा किया और समझाया कि इस लड़के की हालत कुछ ठीक नहीं लगती। जाने क्या बड़बड़ाता हुआ कब से घूम रहा है। बीच बीच में गाने भी गाता है। सभी ने मिलकर उस लड़के का निरीक्षण किया। अब वो दृश्य भी ऐसा देखने लायक। एक सोलह सत्रह वर्ष का लड़का आगे आगे और ६-७ पैंसठ पार के बुजुर्ग पीछे पीछे घात लगाए हुए। उन्होंने धीरे से उसे पकड़ा, बेन्च पर बैठाया और लगे समझाने। देखो बेटा, इस उम्र में प्यार व्यार के चक्कर में नहीं पड़ते। ये तो पढ़ने की उम्र है। देखो कैसा दिमाग पर असर हो रहा है। तुम बड़बड़ाते हुए घूम रहे हो। आदि आदि।

अब जैसे ही उस लड़के ने सभी के सामने अपना मोबाईल किया तो सबकी नजरें उठकर सीधी दादाजी पर। अब तक अपने आप को जासूसों के खाँ और शेरलॉक होम्स के फूफाजी समझने वाले दादाजी को काटो तो खून नहीं। ऊपर से वो लड़का अलग आधा दर्जन बूढ़ों के बीच उनपर हँसकर चला गया।

दादाजी ने कसम खाई कि इस तरीके के अजीब दृश्य दिखाई पड़े तब भी किसी से कुछ नहीं कहेंगे। लेकिन पंचायती स्वभाव कहाँ कम होता है। सो एक और किस्सा हो ही गया उनके साथ।


उनके मित्र का बेटा तीन साल जयपुर रहकर लौटा। अब बेटे के आने की खुशी में मित्र ने अपने सभी दोस्तों को खाने पर बुलवाया। खाने के बीच में वे सुपुत्र भी थोड़ी देर को आकर सभी बड़े बूढ़ों से आशीर्वाद ले गए। अब वो बंदा इंटरनेशनल सेल्स के क्षेत्र का। उसे तो सारा काम फोन पर ही करना था। सो वह हैन्डस फ्री लगाए घूम रहा था। बीच बीच में फोन भी सुन रहा था। जब वह सभी से मिलकर चला गया तब हमारे पंचायती दादाजी उसके पिताजी यानी अपने लंगोटिया यार को एक कोने में ले गए और लगे दुख प्रकट करने।

कहने लगे, देखो यार! मै समझ सकता हूँ कि तुम्हें कितना दुख हो रहा होगा। मैं तो देखकर ही सहम गया। पता नहीं अब आगे सब कुछ कैसे होगा। भगवान तुम्हें ये दुख सहने की शक्ति दे। अब वे मित्र अवाक होकर दादाजी को ताक रहे थे कि इस महाशय को आखिर हो गया है? बेटा अपने गृह नगर लौट कर माता पिता के साथ सुखी होकर रहने लगे, इससे ज्यादा सुख किसी के लिये क्या हो सकता है। और ये महोदय है कि इस बात पर भी दुख प्रकट कर रहे है!

कुरेदकर पूछने पर दादाजी ने बताया कि उनके सुपुत्र बहरे हो गए है। कान पर ऊँचा सुनने की मशीन लगा रखी है। और बीच बीच में मन ही मन बड़बड़ाने लगते है। अतः ऐसी हालत में नौकरी भी नहीं होगी, सो उस पुत्र का परिवार भी इसी मित्र को सम्हालना है। इसीलिये वे शोक संवेदना प्रकट करने चले थे।

इस बात पर वो यजमान भी ऐसा पेट पकड़कर हँसे कि दादाजी सभी के सामने एक बार फिर शर्मसार हो गए।

सारी बातें आगे चलकर आ जाती थी कंप्यूटर पर। मेरी छेाटी बहन चैंटिंग करने में बड़ी उस्ताद है। उसने जाने कहाँ कहाँ के चेट फ्रेंड बना रखे है। वो अंतर्राष्ट्रीय समय के अनुसार कई बार सुबह ६ से ८ के मध्य कंप्यूटर के सामने बैठा करती। उसी समय हमारी माँ उठकर झाडू लगाना, खाना पकाना आदि किया करती थी। दादी को बड़ा गुस्सा आता था। चिल्लाया करती थी कि उस छुटकी को तो बिगाड़ कर रखा हुआ है। सुबह से बहू और बड़ी बिटिया काम करती है और वो एक कोने में बैठी हुई टीवी देखती रहती है। अब दादी को कितनी ही बार समझाया कि ये टीवी नहीं कंप्यूटर है। लेकिन उन्हें नहीं समझ आया।

इंटरनेट की बातें तो दादा दादी दोनों के ही सिर के ऊपर से जाती है। जब कभी छुटकी कहती है कि मेल आया है तब दादी कहती है कि तूने उसे अपने कमरे में क्यों घुसने दिया? अब छुटकी का मतलब ईमेल से होता है और दादी को इसमें मेल फीमेल वाला मेल समझ में आता है।

खैर कंप्यूटर, इंटरनेट और मोबाईल से हमारे दादा दादी की कभी नहीं जमी। लेकिन मैंने एक उपाय सोचा है। पता है क्या? अगले महीने मेरे दादा दादी की पचासवीं शादी की सलगिरह है। इस मौके पर हम सभी भाई बहन मिलकर दोनों को मोबाईल देने वाले हैं। आखिर उनके मन में भी कौतूहल तो है कि ये चीज होती क्या है! लेकिन किसी और का है, खराब न हो जाए इस डर से बेचारे कभी हाथ नहीं लगा पाते। क्या कहते है आप, दादाजी खुश होंगे ना?