दादा फालके पुरस्कार विजेता के. विश्वनाथ का सिनेमा / जयप्रकाश चौकसे

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दादा फालके पुरस्कार विजेता के. विश्वनाथ का सिनेमा
प्रकाशन तिथि :05 मई 2017


सत्तासी वर्षीय के. विश्वनाथ को दादा फालके पुरस्कार से नवाजा गया है। उन्होंने अपना कॅरिअर फिल्म के ध्वनि मुद्रण शाखा से प्रारंभ किया था और वे निर्देशक बालाचंद्र और बापू के सहायक भी रहे। उनकी निर्देशित 'शंकराभरणम' अत्यंत महत्वपूर्ण फिल्म रही। इस फिल्म में भारत की सांस्कृतिक सम्पदा के धीरे-धीरे हो रहे विनाश पर चिंता जाहिर की गई है। इस तरह की चेतावनियों के बाद और बावजूद यह कार्य हो रहा है। राजनीति में इस सम्पदा का ढोल पीट-पीटकर सत्ता में आए लोगों ने भी इसकी रक्षा के कोई प्रयास नहीं किए वरन् इसकी सिंथेसिस (संश्लेषण) की भावना को ही तोड़ रहे हैं। उत्तर भारत अपने भूगोल में स्थित कुरुक्षेत्र के घमासान से कभी बाहर ही नहीं आ पाता और दक्षिण में संस्कृति संरक्षण का कार्य निरंतर होता रहा है। उनकी हिंदी में बनाई फिल्में हैं, 'सरगम, 'शुभकामना, 'ईश्वर,' 'संगीत' और 'धनवान।' उनकी सारी फिल्मों में संस्कृति संरक्षण का विचार हमेशा केंद्र में रहा है। उन्होंने हमेशा मनोरंजक ढंग से गंभीर विचारों को प्रस्तुत किया है। आज हम जो राजकुमार हिरानी का सिनेमा सराहते हैं, उसकी जड़ें विश्वनाथ के सिनेमा में खोज सकते हैं। ज्ञातव्य है कि 'शंकराभरणम' के केंद्रीय पात्र को एक सेवानिवृत्त आईएएस अफसर ने अभिनीत किया था।

के. विश्वनाथ की फिल्म 'ईश्वर' की कथा का आधार यह था कि एक मंदबुद्धि व्यक्ति का विवाह एक विदूषी से हो जाता है, जो अपने ज्ञान से पति को बौना सिद्ध नहीं करती वरन उसे एक सामान्य कर्मठ व्यक्ति बनने में सहायता करती है। मंदबुद्धि और विद्वत्ता के बीच के. विश्वनाथ प्रेम का सेतु रचते हैं। अपने काम को अपनी पूरी ताकत व निष्ठा से करने की बात के. विश्वनाथ की हर फिल्म में होती है। राकेश रोशन अभिनीत 'कामचोर' भी इसी तरह की फिल्म थी। ऋषि कपूर और जयाप्रदा अभिनीत 'सरगम' का आधार भी इसी तरह का है। अपनी हर फिल्म में के. विश्वनाथ एक प्रेम कथा प्रस्तुत करते हैं। वे दाम्पत्य के अनूठे प्रस्तुतीकरण के प्रति वचनबद्ध रहे हैं। उनकी फिल्मों में संगीत अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। यह गौर करना चाहिए कि जीवन में सुखद दाम्पत्य के अभाव के कारण कड़वाहट आ जाती है और रिश्ते विषैले हो जाते हैं। यह संसार दाम्पत्य का ही विराट फैलाव है। के. विश्वनाथ ने अपनी नायिकाओं का प्रस्तुतीकरण इस ढंग से किया मानो वे एक वीणा हैं, सुर-संगीत का भंडार हैं। दाम्पत्य राग के. विश्वनाथ के सिनेमा का मेरूदंड है। उनकी बिम्ब रचना में ध्वनि का विशेष महत्व है। उन्होंने अपना कार्य ही फिल्म में ध्वनि मुद्रण से प्रारंभ किया था। संगीत लहरियों का ही बिम्ब अनुवाद के. विश्वनाथ करते हैं। वे अपनी पटकथा को एक सिम्फनी की तरह रचते हैं। अपने जीवन व कार्य में उन्हें किसी तरह का बेसुरापन पसंद नहीं है।

फिल्म विधा का प्रारंभ मूक फिल्मों से हुआ और उनमें ध्वनि के अभाव के बावजूद पात्र अपनी संवेदनाएं अपने शरीर द्वारा करते हैं। चार्ली चैपलिन का शरीर ही भावनाओं को प्रकट करता है। सिनेमाशास्त्र के कुछ विशेषज्ञों की राय है कि ध्वनि के समावेश से विधा कमजोर पड़ी है। सवाक होते ही फिल्म में ध्वनि प्रदूषण हो गया। फिल्मकार अनुराग बसु ने भी 'बर्फी' नामक फिल्म का निर्माण मूक फिल्मों को आदरांजलि देने की अदा में ही किया है। उन्होंने ईश्वरीय कमतरियों वाले पात्रों की प्रेम कथा रची है। दरअसल, प्रेम स्वयं एक दिव्य वाणी है। के. विश्वनाथ के सिनेमा की आत्मा वाणी है, संगीत है।

भरत रत्न भार्गव जयपुर में ज्योतिहीन बच्चों की देखभाल करते हैं और उन्होंने उनसे नाटक भी अभिनीत कराए हैं। उनकी सृजन प्रणाली में भी अभिनेता को संगीत से प्रेरित होकर चलना-फिरना है। वे बच्चे स्वयं को संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं और ध्वनि ही उनकी पथ प्रदर्शक है गोयाकि वे स्पेस का अनुसंधान ध्वनि से करते हैं। राग द्वारा रास्ता नापा जाता है। कुछ इसी तरह से मीना कुमारी अपने जीवन को 40 मील का सफर मानती थीं। जब हम सामान्य जीवन जीते हैं तो वह भी एक ध्वनि से संचालित है। सांस के आने-जाने से भी मंद बजने वाली ध्वनि निकलती है। हमारी नाड़ी देखें तो उसमें भी ध्वनि है। कोई आश्चर्य नहीं कि पूर्व के दर्शन में ध्वनि को ब्रह्मा अर्थात रचयिता माना गया है। ध्वनि ा चरम तो यह है कि सृष्टि में जब सबकुछ खामोश है और कोई ध्वनि का स्रोत नहीं है, तब भी जीवन खामोशी की सिम्फनी द्वारा संचालित है। राजनीति में सक्रिय लोग लोकसभा या विधानसभाओं में जन-कल्याण कर पाते हों या नहीं कर पाते परंतु उनके भाषणों से ध्वनि प्रदूषण होता है और यह पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा है। इस कोलाहल के दौर में के. विश्वनाथ को दादा फालके पुरस्कार से नवाजा जाना शुभ है। इसे ध्वनि की वंदना की तरह ही देखा जाना चाहिए।