दादा / राजा सिंह

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कई एकड़ में फैले उस विशालकाय अस्पताल को देखकर मलय चकित और कुछ भयभीत-सा था। उस परिसर में फैली कई-कई मंजिला ईमारतें और उनके बीच सर्पाकार ढंग से पसरी सड़कंे। उनमें विचरते उदास, बीमार, थके पस्त चेहरे। कर्मचारियों, वार्ड-बायों, नर्सों और डाक्टरों के झुंझलाये बेतरतीब चेहरे। तीमारदारों के रोते झिझकते परेशान होते शरीर। वह सोचता रह गया कि अपना भाई यहॉं से ठीक होकर निकल पायेगा? उसके स्थानीय डाक्टर ने उसे इसी अस्पताल के लिये सुपूर्द किया था। हर तरह की तकनीकी सुविधाओं से लैस और उच्चस्तरीय डाक्टरों के हुजूम वाला बहु प्रसारित बहुप्रसंशित अस्पताल। सुना है यह शोध संस्थान भी है, तो क्या दादा पर प्रयोंग किये जायेगें? स्थानीय डाक्टरों के अनुसार जो कुछ हो सकता है यहीं पर हो सकता है। मलय अपनी पत्नी काजल के सहयोग से दादा को ले आ पाया था। दोनों बच्चें घर पर ही छोड़ दिये गये थें। नीरव एवं निशा दस एवं सात साल के अबोध बच्चें। समझा बुझाकर और जल्दी लौट आने का वादा करके, उन्हें घर पर ही ऐतिहात से रहने को कहा गया था। काजल ने बड़े मासूमियत एवं शालीनता से उन्हें आवश्यक दिशा-निर्देश दिये थे। अकेले रहने के, सावधानी के टिप्स दियेेे थे। उसने गाड़ी से दादा को काजल के सहयोग से गेट पर छोड़ा और वह गाड़ी पार्क करने के लिए चला। पार्किंग स्थल काफी दूर था। वहॉ से पैदल आते-आते काफी देर हो गयी और वह कुछ थक भी गया था। सूरज सर पर चढ़ कर बोल रहा था। वह पसीने से तरबतर जब गेट पर पहॅंचा तो देखा दादा चलायेमान कुर्सी पर बैठे थे और काजल उनके पास खड़ी उत्सुकता से उधर की ओर ही निहार रही थी, जिधर से वह आने वाला था। चलो यह अच्छा हुआ कि काजल ने दादा के लिए चलायेमान कुर्सी बुक करवा ली थी, जिसके कारण दादा को ले चलने में बड़ी आसानी हो गई. एडमीशन के सारी औपचारिकताऐं पूरी करते-करते और फिर उसके बाद डॉक्टर मिश्रा ने अपने कक्ष में उनका निरीक्षण करने के बाद उन्हें वार्ड एलाट किया। मरीज बेड पर लिटाते-लिटाते दोपहर के दो-ढाई बज गये और वे दोनों बेहाल हो गए थे। काजल को भूख-प्यास और दादा से ज़्यादा चिंता अपने बच्चों पर थी। जब भी मौंका मिलता वह मोबाइल से घर संदेश भेजती और बातचीत करती-करती संतुष्ट हो जाती। फिर कुछ याद आता तो फिर अपने बच्चों में जुट जाती। यह सब करते हुये भी वह दादा का साये की तरह ख्याल रखे हुए थी। मलय, भागदौड़ आदि में लगा था। फाइल बनवाना, टेस्ट करवाना, डाक्टर को दिखाना, पैसे जमा करना आदि। अब बेड पर दादा को लिटाकर कुछ चैन महसूस कर रहे थे।

काजल घर जा चुकी थी और वह बेड के पास स्टूल पर बैठा दादा को इस मरणासंन्न स्थिति में देख रहा था। उनको ग्लूकोश चढ़ाया जा रहा था और उसी के साथ दवाईयाँ आदि दी जा रही थीं। मलय के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। वह सिर्फ़ दादा को देखे जा रहा था। वह डर रहा है। उसे लगता है कि दादा की मौत इतनी करीब है कि वह उनके बगैर ही वापस लौटेगा।

...मलय घिरा हुआ है। एक पुराने टूटे फूटे मकान में कैद है। उसके शरणदाता बुर्जुग दम्पति हैं। दयालू हैं इसलिए उसे न निकलने की सलाह भी दे रहे हैं बाहर एक भीड़ है। दस बारह दर्जे के विद्यार्थी थे उनका नेतृत्व कर रहा है हरीश पांडे। उनके कालेज का यूनियन लीडर। लगातार धमकियाँ दिए जा रहा है बाहर निकलने में उकसा रहा हैं, गाली गलौज की इंतहा हो रही है। उसकी मर्दानगी को ललकारा जा रहा है और वह सहमा सिकुड़ा और भयभीत अपने किये कृत्य पर पछता रहा है परन्तु उसके कृत्य की इतनी भयंकर प्रतिक्रिया होगी वह अंजान था। ...वह और रागिनी सहपाठी थे सेंट जान स्कूल के और हरीश पाण्डे था रागिनी के मोहल्ले का एक उदंड लड़का, जो एक स्थानीय इण्टर कालेज में यूनियन लीडर था, जिसका भान मलय को नहीं था। उसके सामने उस पांडे ने रागिनी को छेड़ा उसकी कलाई पकड़ कर खड़ा हो गया और अपने प्यार का इजहार करने लगा। इससे रागिनी कसमसा रही थी अपने को छुड़ाने के लिए बलपूर्वक प्रयत्न कर रही थी उसका चेहरा लाल और अपमानित होने के कारण बेचारगी में इधर-उधर देख रही थी। पांडे बेकाबू होता जा रहा था और अपने को स्वीकार कर लेने का जबरदस्त बलपूर्वक आग्रह करता ही जा रहा था। स्कूल से निकलते मलय ने ये नजारा देखा तो अपने आप को काबू में न रख सका। उसने पांडे की जबरदस्त धुनाई कर दी और रागिनी को छुड़ाया। रागिनी रिक्शा करके अपने घर चली गई और वह खरामा-खरामा पैदल ही अपने घर चल पड़ा जो बामुश्किल आधा किलोमीटर पर था। उधर पांडे भाग कर अपने स्कूल पहॅुचा और अपने साथ काफी साथिओं को लेकर अपना बदला लेने, मलय को आता दिखाई पड़ा। वह भाग उठा। छात्रों की भीड़ उसके पीछे-पीछे, उसे दौड़़ाती हुयी। मलय को अचानक एक मकान खुला दिखाई पड़ा और उसने उसमें घुसकर अपनी जान बचाई. परन्तु जान पर संकट अब भी बना हुआ था। वह उस मकान में कैद है और बाहर दुश्मनों का पहरा चल रहा है उसको पूरी तरह नेस्तनाबूत करने के लिए. समय बढ़ता जा रहा हैै और शिकंजा कसता जा रहा हैं अचानक वह अश्रुमिश्रित खुशी से झूम उठा। उसने देखा दादा अपने कुछेक साथियों के साथ वहाँ आते नजर आये। उनके हाथों में देशी कट्टे थे और रामपूरी। उनका एक चेला लट्ठ भी हांथ में लिए था। दादा को देखते ही भीड़ कुछ छंटने लगी थी और हरीश हतप्रभ था उसे आभास नहीं था कि मलय गोपाल पंडित का भाई है। पांडे ने अपने कदम वापस किये परन्तु उसने दादा से उसकी जमकर शिकायत की जिसके फलस्वरूप मलय को रास्ते भर दादा की हिदायतें सुननी पड़ी और उन्होने लौडियाबाजी से तौबा करने की सलाह दी। दादा इतने गुस्सा थे कि सिर्फ़ उनका हांथ नहीं उठा था उस पर। मलय अपनी सफाई में कुछ भी न कह पाया वह दादा से डरता था। उनके विशालकाय डरावने व्यक्तित्व एवं कृतित्व वह हर समय सहमा रहता था।

नर्स आई थी, उसने दादा का बी0पी0 नापा, ग्लूकोस ड्रिप की बोतल खत्म हो गई थी उसे बदला, टेम्परेचर नोट किया सारी इन्ट्री उसने कार्ड में की और उसने पेशाब वहीं पर निकलने के लिए दादा के नली फिट की और बोतल वहीं लटका दी और चली गईं। मलय फिर देखता रह गया। दादा के कृशकाय शरीर को। मलय को भूख लगने लगी थी सुबह से ही चल पड़ा था, यहॉ जल्दी न आओ तो एडमीशन मिलना मुश्किल। अब दादा को अकेले छोड़कर कैसे जाये। वह सोचता था शायद काजल खाना लेकर आयेगी। वह उसका इंतजार कर रहा था। वह काजल पर पड़ने वाली समस्याओं से वाकिफ था और द्रवित था। वह कैसे मैनेज करती है वह यह सोचकर अभिभूत था। ...दादा यानी कि गोपाल शास्त्री उर्फ गोपाल पंडित पिता राम अधार शास्त्री की पहली सन्तान। माँ बाप के लाड़़ दुलार से बिगड़ी सन्तान। पढ़ने लिखने से परहेज करने वाले कई बार इम्तहान देने के बाद भी हाई स्कूल पास नहीं कर पाये। माता भगवती देवी को गोपाल के लिए एक भाई चाहिए इस कारण उसके बाद तीन-तीन लड़कियॉ होती चली गई तब जाकर मलय का जन्म हुआ। शास्त्री जी को दूसरा बेटा मिला और गोपाल को भाई. श्रीमती शास्त्री का भी लाजिक अजीब था। गर एक लड़का साथ न दे तो कम से कम दूसरा तो हो जांे बुढापे में ख्याल रख सके. श्री शास्त्री का धंधा पुस्तैनी था पंडिताई का और कुछ ज्योतिष का काम भी देख लेते थे। नियमित कार्य था, दूर एक हनुमान मंदिर में सांय पूजा आरती करना। पंिडताई की आमदनी से घर का खर्चा आसानी से चल जाता था। गोपाल बिगड़ता ही चला गया और कालेज समाप्त होने पर मोहल्ले की गुंडागर्दी चालू हो गई थी। कुछेक चेले चापड़ जुट गये थे। तीन-चार घर के बिगडें़ लड़कों का समूह बन गया था। घर सिर्फ़ भोजन और रहने का अड्डा था। उसमें भी कभी-कभी आना कभी न आना दिनचर्या में शामिल था। पिता जी की मार डॉंट खतम हो चुकी थी। उस पर एक बार गोपाल तन कर खड़ा हो गया और उनका हाथ पकड़ लिया था। शास्त्री जी चाहते थे गोपाल का यदि पढने लिखने में मन नहीं लगता तो लोफड़बाजी बंद करके उसके पुस्तैनी धन्धें को अपना ले और उसकी तरह सफल ज़िन्दगी गुजारे। परन्तु गोपाल ने न पढकर दिया और न पंडिताई का धंधा अपनाया। वह इस ध्ंाधे से एक तरह से नफरत करता था और इसे भीखारी धंधा बताता था। माता ने सोचा उसकी शादी कर दी जाये जिससे वह सुधर जायेगा। जिम्मेदारी पड़ने एवं उसके प्रभाव से वह अपना धंधा अपना लेगा। परन्तु गोपाल ने शादी से साफ इन्कार कर दिया कहा " अपने पेट का तो जुगाड़ नहीं है गैर का पेट कहॉं से भरेगें? अपन तो ऐसे ही मस्त है। जोरू न जाता अल्ला मियॉं से नाता। अल्ला-खुदा का नाम सुनकर पंडित जी, विफर जाते थे। सनातन धर्म के संस्कारों और पुराने नियम कायदे और पंड़िताई से घर का हर बंदा चल रहा था, सिर्फ़ गोपाल को छोड़ कर। वह नास्तिक कुलबोरन है ऐसा माता-पिता का मानना है पंड़ित जी गोपाल से पूरी तरह से अपने को असंपृक्त कर लिया था। जैसे कि इस घर में उसका कोई अस्तित्व ही न हो। मलय के लिए बड़ा भाई दादा और बड़ी बहनें दीदी थी जो उसे बेइन्तहा प्यार करतें थे। विशेषरूप से दादा उसे बहुत प्यार करते थे और ख्याल रखते थे। अक्सर कहते थे शास्त्री खानदान का चिराग मलय ही रौशन करेगा और आगे बढ़ायेगा, मैं तो निरर्थक हॅू। रामाधर शास्त्री घर के मुखिया ज़रूर थे परन्तु हुकूमत गोपाल शास्त्री की चलती थी। वह तो बिगड़ गये थे मगर कोई और घर का बिगड़ न जाये इसकी पूरी ठेकेदारी उन्होनें स्वयं ले रखी थी, अनीता को नृत्य के लिये सुनीता को गायन के लिये और रीता को वादन नहीं लेने दिया उनके अनुसार ये तीनों विषय ठीक नहीं है। घर को कोठा नहीं बनाना है घर से स्कूल कालेज और वापस स्कूल समय से घर आना, सभी भाई बहनों पर उनकी नजर रहती थी। अनावश्यक देर होने पर उनकी बड़ी-पूॅछ तॉंछ से गुजरना पड़ता था जिसे सभी लोगों को नागवार गुजरता था, परन्तु सभी विवश थे। उन पर लगाम कसने वाले पिता उनसे पस्त हो चुके थे। परन्तु इस मामलें में माता जी पिता जी उनके साथ थे। बड़े भाई के रूप में वह पुरातन पंथियों की तरह से पूरी तरह सख्त थे। स्नातक होने पर हर बहिन की शादी उच्चकुल में योग्य वर से ही हो रही है, यह वह सुनिश्चत कर लेते थे। वरना उनका हस्तक्षेप निश्चित था। अनीता, सुनीता एवं रीता की शादी हो जाने पर वह मुक्त हुये जैसे कि बहुत बड़ा बोझ उनके सर ही था। हालॉंकि सारा कार्य और पैसों का प्रबन्ध पिताजी शास्त्री ने सम्पन्न किया परन्तु इन्तजाम दादा का था। उनका इतना रूतबा था कि जो काम शास्त्री जी सौ रूपये में करवातें वह पचास रूपयें में हो जाता। पंडित जी ने तीनों लड़कियों की शादी के बाद एक बार फिर प्रयास किया कि गोपाल की शादी हो जाये जिससे उसकी भी गृहस्थी बस जाये और जिम्मेदारियाँ पड़ने से वह लाइन पर आ जाये। परन्तु दादा ने साफ मना कर दिया और मलय की शादी कर देने का सुझाव रख दिया, जिसे मलय ने पूरी तरह नकार दिया और जिद कर बैठा पहले बड़े की फिर छोटे इसमें कोई समझौता नहीं। मामला घिसटता रहा। ...

काजल आ गई थी। सायं के पॉंच बजे थे। काजल ने भी खाना नहीं खाया था, दोनों ने मिलकर खाना खाया। दादा का खाना तरल रूप में दिया जा रहा था। दादा जो हरदम इस बात का ख्याल रखते थे कि काजल का मुॅंह न दिख जाये, उसके सामने हरदम घूघॅट में रहे, आज असहाय थे विरोध अवरोध से परे। उन्हें खुद अपना होश नहीं था कि वह कैसे है?

...शादी के दूसरे दिन काजल दीदीयों से वार्तालाप में व्यस्त थी। काजल की आवाज की गति और ध्वनि सामान्य हीं थी। दादा बैठक में बैठे थे। एक दो शिष्य भी थे। पंडित जी की दुकान जो बैठक में सजती थी जहॉं पर वह अपने यजमानों से मिलते थे और उनकी समस्याओं के समाधान बताते थे, उस पर दादा ने अधिकार कर लिया था। पंडित जी ने बिना किसी विरोध के अपना कार्य हनुमान मंदिर के प्रांगण में स्थापित कर लिया था। काजल और बहनों की आवाज छनछन कर बैठक में आ रही थी। उन्होंने शिष्यों को भी विदा किया। दादा गरजें और मनु को तलब किया।

दो दिन भी आये हुये नहीं है और बहू की आवाज यहॉं तक सुनाई पड़ रही है। उसे समझा दो ऐसा बोले कि आवाज सुनाई न पड़े, समझे। उन्होनें मलय को बहुत ही धीमें से आदेशित स्वर में समझाया।

जी दादा। मलय ने इतना ही कहा। परन्तु वह नाखुश था। दादा के इस निर्णय से और उसने काजल से कुछ भी नहीं कहा। परन्तु काजल अपने आप समझ गई शायद रीता ने कुछ ईशारा किया था। उसके बाद दादा को कभी काजल की आवाज नहीं सुनाई पड़ी। दादा को खाना-पीना आदि देना भी बेआवाज ही होता रहा था। उसमें दादा को कभी सम्बोधित भी नहीं किया था।

...मलय एम.एस.सी. फाइनल ईयर में था और उसकी बैचमेट भी विजया एक दक्षिण भारतीय लड़की। जन्तु विज्ञान प्रयोगशाला में एक अलमारी, दराज आवंटित थी। प्रीवियस ईयर से वे दोनों साथ-साथ थे। निकटता बदल रही थी अंतरगता में। मलय उसकी सुन्दरता एवं भारतीयता से प्रभावित था और वह भी उसके सुदर्शन व्यक्तित्व से आकर्षित थी। परन्तु उसके इस मेल जोल में बाधक एक खलनायक था। उन्ही के साथ पढने वाला एक लड़का समर सिंह। जिसके सम्बन्ध बाहर के रहने वाले गुंडों से थे। जिसके कारण सभी उससे भय खाते थे उससे उलझने का मतलब था कालेज की भीतर या बाहर अपनी पिटााई करवांना। समर सिंह विजया पर अपना अधिकार समझता था। उसने उसे अपनी धर्म बहन बनाकर उससे सम्बन्ध बना रखें थे। वह विजया श्री के घर भी आता जाता था और उसके घर वालों से कालेज में उसके संरक्षक की भूमिका ले रखी थी। समर सिंह ने आवरण भाई का ओढ रखा था परन्तु आन्तरिक रूप से वह विजया का प्रेमी था। विजया को हासिल करने में मलय एक बाधा के रूप में उभरता जा रहा था। उन दोनों को साथ तोड़ना ज़रूरी था और इसके लिये मलय को डरा धमका कर अलग करना ज़रूरी था। एक दिन मलय को अकेले कालेज कम्पाउन्ड में समर सिंह और उसके बाहरी साथियों ने एक कोने में उसे समेट लिया।

'विजया से बहुत चिपक रहे हो? अच्छा नहीं है। अपना भला चाहते हो तो उसको छोड़ दो।'

'आप से क्या मतलब? आपने तो उसे बहन बना रखा है।' मलय बहस करने लगा।

'यह भी एक तरीका है पास आने का अपना बनाने का। यह बात अच्छी तरह जान लो वह मेरी है। कोई उस नजर से देखगा तो ऑंख निकाल लेगें। समर सिंह क्रोध में था।'

' कोई माई का लाल विजया से जुदा नहीं कर सकता। मलय भी आवेश में आ गया था।

उसे दादा की शक्ति का गरूर था। लल्लू सिंह वेसे भी उससे खफा था एक बार उसने उसकी दराज की चाबी मांगी थी परन्तु उसने मना कर दिया था वह जानता है कि तीस से सौ प्रतिशत अल्कोहल की बोतलें जो उसकी दराज में रखीं थी जिनका उपयोग आब्जेक्ट के डिहाईडेªेशन करके स्लाइड बनाने के लिए किया जाता था। अल्कोहल पूरे साल के लिए आवंटित कर दी जाती थी। वह जानता था कि लल्लू अल्कोहल लेकर पानी मिला कर अपने नशे के लिये इस्तेमाल करेगा। यह अक्सर वह जबरदस्ती बाहर से आकर किया करता था उसने उसकी मॉंग ठुकरा दी थी। लल्लू सिंह उससे तबसे चिढ़ा बैठा था। उसको किसी ने ऐसा मना नहीं किया था। समर सिंह और लल्लू सिंह ने उस पर प्रहार कर दिया और उसे बुरी तरह से पीट दिया। एक बार फिर चेतावनी दी, अब कि बार जिंदा न छोड़ेगें।

मलय अपमानित, प्रताणित और चोटिल फिर क्लास में न गया। वह सीधे अपने घर आ गया और दादा से सारा किस्सा बंया कर दिया। दादा उसी वक्त उसके साथ वापस कालेज चल दिये। वे समर सिंह एवं लल्लू से मिले। उनसे मिलकर पूरी कहानी समझी। पूरी बातचीत के दौरान वह गम्भीर और शान्त बने रहे एक गार्जियन की तरह। वापस आते हुए वह मलय पर पूरी तरह बिगड़ रहे थे। 'मना किया था लौडियाबाजी के चक्कर में मत पड़ो। मानते नहीं हो। परिणाम देखा। खबरदार यदि भविष्य में उस लौडिया के साथ रहे, तो सबसे पहले मैं तुझे तोडूॅंगा।' पढने लिखने वाले लड़के हो पढाई में ध्यान दो। पिता जी से कह दूॅंगा सबसे पहले तुम्हारी शादी का इन्तजाम करें। वह रूआंसा हो आया था। उसे मारपीट का इतना दुख नहीं हुआ जितना कि दादा का उसका अपमान हल्का लेना लगा। मगर दादा ने बदला लिया था। अगले दिन खबर जब वह कालेज गया तो सुनाई पड़ा कि समर सिंह और लल्लू सिंह को रात में अज्ञात लोगों द्वारा हाकी और चाकू से हमला करके बुरी तरह से घायल कर दिया गया है और वे दोनों अस्पताल में भर्ती है। सिर्फ़ जान बच गई थी। विजया दुखी थी जब मलय पिटा था। समर सिंह को शह उसके पिता द्वारा मिली थी। वह गर्व से घर में बता रहा था कि अब मलय विजया का साथ छोड़ देगा। वह फिर दुखी हुयी जब उसने समर सिंह को घायल सुना, उसका धर्म भाई उसकी वजह से हास्पिटल में है। वह समझ रही थी कारण वह है। मलय को बदला मिल गया था परन्तु उसे विजया को छोड़ना पड़ा था। वह दादा की अवहेलना नहीं कर सकता था। विजया ने भी उससे किनारा कर लियाँ। उनका प्रेम प्रसंग समाप्त हो गया था। आज मलय सोचता है, अच्छा ही हुआ काजल जैसी पत्नी कोई और नहीं हो सकती थीं खूबसूरत, बुद्धिमान, सलीकेदार और केयरिंग। इसके अलावा उसमें समझदारी बहुत है। उस बात के लिए वह दादा का कृतज्ञ हैं

दादा का शरीर सूज रहा था। हालत बिगड़ रही है वह दौड़कर नर्स के पास गया। नर्स ने आकस्मिक डाक्टर से सम्पर्क किया। रात के 12 बजे थे और भाई को डायलासिस पर रख दिया गया। दादा को डायलेसिस हो रहा था और वह अनिश्चय की आशंका से ग्रस्त भीतर ही भीतर सिहर रहा था। दादा की दोनों किडनी खराब हो गयी वह पहले भी डायलेसिस करवाने दादा को लेकर आता रहता था। ...पहले हफ्ते में, फिर महीने में और तीन-तीन महीने में यह प्रक्रिया दोहराई जाती थी। अभी कुछेक दिनों पहले ही वह दादा की डायलेसिस करवॉके गया था। अब अचानक ये क्या हो गया? वह शून्य में बिचर रहा था।

...उसे लगता है कि दादा की जबरदस्ती अक्सर उसके लिए फायदेमंद रही है हालांकि उस समय उसे बहुत बुरा लगता था और मन ही मन वह दादा को बहुत बुरा भला कहता था। याद आ रहा है उसका परिचय एक क्रान्तिकारी समाजवादी व्यक्ति मोहन महाजन से सार्वजनिक पुस्तकालय में हो गई थी। मलय के एम.एस.सी. की फाइनल परीक्षा हो गई थी और वह अक्सर पुस्तकालय की शरण में चला जाता। मोहन कार्ल मार्कस और डा0 लोहिया की किताबें पढ़ा करता था। उसके बातें इतनी विद्वतापूर्ण आकर्षक और अपने में समोहित करने वाली थी कि वह उसके विचारों से खिंचता चला गया। उसने उसे कम्यूनिष्ट विचारधारा, क्रान्तिकारी छवि वाली किताबें पढ़ने को प्रेरित किया। वह उससे और समाजवाद से प्रभावित था। मोहन समाजवादी युवजन सभा का मेम्बर था और अक्सर मजदूरों की हड़ताल आदि में शामिल हुआ करता था और उन्हें अन्याय के विरूद्व संघर्ष के प्रति प्रेरित किया करता था। मलय उसका अनुयायी बन गया था। संयोग से वह दादा का पुराना प्राथमिक स्तर का दोस्त निकल आया और उसने दादा को भी अपने विचारों से प्रभावित कर लिया। ... अमीरों से सम्पत्ति छीन कर गरीबों में बांट देनी चाहिए. ... आजकल की व्यवस्था भ्रष्ट है। ... इसको बदलने की ज़रूरत है। ... लोकतांत्रिक तरीके से नहीं बदली जा सकती है, इसे उखाड़ फेंकना चाहिए. अब वह मोहन महाजन से मोहन नेता में बदल गया था और एक दिन उसने अपना गुप्त चेहरा दिखा दिया। वह भीतर ही भीतर नक्सलवादी आन्दोलन का सक्रिय समर्थक था इस संगठन के उसके पास 10-12 साथी थे। उसने एक दिन तय किया कि नक्सलवादी पोस्टर लगाये जायेंगे। इसके लिए रात का समय तय किया गया। पांच-छै व्यक्तियों की टोली के सात ग्रुप बनाये गये जो पूरे शहर में पोस्टर चिपकाने का कार्य करेंगें। मलय भी शामिल था और दादा का गैंग भी। मलय खुश था नेक काम करने का मौका मिलेगा। जब दादा को पता चला तो उन्होंने मना कर दिया मलय नहीं जायेगा। एक घर से एक ही काफी है। वह मलय को ऐसे जोखिम भरे कामों में शामिल नहीं होने देंगे। आखिरकार मोहन नेता को दादा की बात माननी पड़ी और मलय को छोड़कर उस काम को रातों रात अंजाम दिया गया। उसमे कई लड़के गिरफ्तार भी हुये। दादा और उसका गैंग पुलिस वालों से मारपीट कर सही सलामत वापस आ गया था। वह भी कंाप गया था उस अभियान की खतरनाक परिणति को देखकर। दादा खुश था कि उसने मनू को खतरनाक काम में पड़ने से बचा लिया। दादा ने मोहन को अपना गुरु मान लिया था और मोहन नेता को भी दादा के रूप में एक शक्तिशाली साथी मिल गया था। उसको अपनी सुरक्षा के लिए दादा का साथ मिल गया। दादा की कम्पनी से उसका रूतबा काफी बढ़ जाता था। दादा को भी एक राजनीतिक व्यक्ति की दोस्ती प्राप्त हो गयी थी, इस लिए छोटे मोटे मामलों में वह पुलिस से आसानी से छूट जाता था, नहीं ंतो मोहन नेता अपने प्रभााव को इस्तेमाल करके, अपना आदमी कहकर छुटवॉ लिया करते थे। दादा ने ब्याजू का धंधा चालू कर दिया था, जो बिना लिखा पढ़ी के आराम से चल निकला था। दादा की गुंडागर्दी चमक उठी थी और मोहन की नेतागीरी चल निकली थी।

डायलेसिस का काम समाप्त हो चुका था और दादा को वापस इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। मलय दादा की बेड के पास जमीन में चादर बिछाकर लेट गया। रात के दो बजे थे और वार्ड में सन्नाटा नदारत था। कोई न कोई दर्द से कराह अवश्य रहा था। अलबत्ता दादा को कुछ सुकून आ गया था और वह सो रहे थे। मलय भी सोने की कोशिश कर रहा था, परन्तु नींद नहीं आ पा रही थी। थकावट बहुत लग रही थी वह टूट रहा था, झपकी आ-आ कर चली जा रही थी।

...गोपाल पंडित बाहर के लिए एक भय की हस्ती और घर के लिए सुरक्षा कवच। मजाल है कि कोई घर की तरफ बुरी निगाह से देख सके वे सभी पर नजर रखते थे परन्तु उनका दुलारा था मलय, मनू। पिताजी बूढ़े हो चले थे उनकी पंडिताई की आमदनी कम हो रही थी। घर किसी तरह घिसट रहा था। दादा अपनी दुनियाँ में मग्न थे। मलय के एम.एस.सी. करने के बाद, नौंकरी करके अपने पैरों खड़े होने की बात कही थी पिता जी ने, परन्तु मलय पी.एच.डी. करना चाहता था। पंडित जी आगे की पढ़ाई का खर्चा उठाने में असमर्थ थे उनकी सारी जमा पूॅंजी तीनों लड़कियों की शादी में स्वाहा हो चुकी थी। दादा के लिये अब तो घर का खर्चा चलाना भी मुश्किल हो रहा था।

...सारा पी.एच.डी. का प्लान चौपट हो रहा था, हॉंलाकि यूनीवसिर्टी से गाइड डा0 विशेषश्वर श्रीवास्तव की स्वीकृति आ गई थी और विषय 'मछलियों पर नशे का प्रभाव' भी स्वीकृत था। मनू को पढाई पर खर्च का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। दादा को पता चलने पर उन्होनें मनू की पढ़ाई का खर्चा उठाने का शर्तिया ऐलान कर दिया। सभी आश्चर्यचकित थे जो अपना खर्चा नहींे चला पा रहा था, या कैसे चला रहा था और किस ढंग से चला रहा था, कुछ पता नहीं? सब उसके कार्यकलापों से असहमत थे। इस तरह से की आमदनी से मनू की पढ़ाई होगी? राम-राम कहते पंडित और पंडिताइन दुखी निराश और असहाय थें। परन्तु मलय को सिर्फ़ अपनी मंजिल दादा के सौजन्य से पास आती दिखाई पड़ी थी। दादा ने अपना वादा निभायाँ शोधकार्य में धन की कमी आड़े नहीं आई थी। मलय दादा के प्रति अनुगृहीत हो उठा था। दादा मनू की हर सफलता पर हर्ष के अतिरेक में डूब जाते थे। खुशी सभी होते थे पिताजी माताजी और दीदियों तो मलय की हर क्लास टाप कर जाने की अभ्यश्त हो चुकी थीं। परन्तु दादा को अपने पढ़ाई के अनुभव को ध्यान में रखते हुए उसकी अव्वल दर्जे से पास होने की खुशी अनगिनत होती थी और हर बार दादा अपनी खुशी को सभी को मिठाई बांटकर मनाते थे। जैसे कि वह खुद कालेज टाप करके के पास हुये हों। उसे याद आता है जब उसकी डिग्री कालेज में लेक्चरशिप की नौंकरी मिली तो ऐसा लगा कि दादा की ही नौंकरी लगी हो। कई दिनों तक दादा ने जश्न का माहौल बनाये रखा था और जब उन्हें ये पता चला कि मलय की नौंकरी दूसरे शहर में है तो वह बुझ से गये थे। इस बात से नहीं कि मनू की नौंकरी से उन्हें कुछ फायदा पहॅुचेगा, परन्तु इस बात से कि मनू अब बिछड़ जायेगा और दूसरे शहर में बिना उनकी छत्रछाया के कैसे निर्बाध जीवन यापन कर पायेगा? मलय के नौंकरी पर जाते समय यह वादा ले लिया था, अपने सर पर मनू का हांथ रखवाते हुए कि वह किसी भी परेशानी में अपने दादा को ज़रूर याद करेगा। मनू को विदा करते हुए उनकी आंखों की कोर गीली हो गई थी, जो अनीता, सुनीता एवं रीता की विदाई पर न हुई.

मलय ने दादा के लिए एक प्राइवेट रूम बुक करवा दिया था। आज ही श्फ्टि किया गया था। इसमें अकेले वह अच्छी तरह से दादा की देखभाल कर पायेगा और शायद डाक्टर नर्स भी ज़्यादा ध्यान देते हैं, ऐसा उसकी मान्यता थी या जानता था। दादा की तबीयत उसे कुछ ठीक लग रही थी उन्होंने उसे देखा था और हल्के से कुछ बोलकर ईशारा भी किया था।

...दादा मलय के जाने से निर्द्वन्द हो गये थे। उनकी असामाजिक गतिविधियाँ बढ़ गई थीं। पंडित जी निरूपाय थे और पंडिताइन भगवान भरोसे हो गई थीं। दादा का थाने और जेल जाना बढ़ गया था। पंडित जी जमानत करवाने और कोर्ट कचहरी में चक्कर लगाते निढाल होते जा रहे थे। मोहन नेता ने दादा से किनारा कर लिया था। अचानक एक कत्ल के इल्जाम में दादा को लम्बी जेल हो गईं। उनको छुड़ाने के खर्चे में घर भी गिरवी हो गया। पंडित जी चल बसे। उनके अंतिम क्रियाकर्म के लिए दादा जेल से जमानत पर आये और फिर चले गये। कुछेक दिनों के भीतर माता भी परलोक सिधार गईं। वह किसी भी हालात में मलय के साथ जाने को तैयार नहीं हुईं अपनी देहरी का मोह और दादा का ख्याल उनसे छूटा नहीं। अपने घर में मलय के लिए कुछ नहीं रह गया था। माता पिताजी रहे नहीं और दादा जेल में, बहनें अपने-अपने घर में।

...दादा जेल से छूट कर आ गये। घर कर्ज में डूबा इुआ। आमदनी नगण्य थी और संगी साथी बेसहारा होने के कारण कहॉ मर खप गये पता नहीं था। दादा अकेले निराश और हताश फिर भी हार नहीं मानी। जेल काट आने के कारण रूतबा बढ़ गया था परन्तु अब मन नहीं लगता था। जेल में की गई कमाई ने एक आधार फिर प्रदान कर दिया था और ब्याजू पैसा बांटने का काम फिर चल निकला। एक नया साथी छविराम उनसे आ मिला था और कुछ दादागिरी का भी काम चलने लगा था। परन्तु इसके बाबजूद सब कुछ बेमन चल रहा था। जेल प्रवास ने उनको मन और शरीर से पूरी तरह तोड़ दिया था। मदिरा की शरण में पूरी तरह आ गये। खाना-पीना होटल आदि के कारण स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा। सायं होते ही मदिरा चल निकलती थी और देर रात तक समेटती नहीं थी। मनू एक बार आया दादा से मिलने और सब काम छोड़कर साथ चलने के लिए कहा, नहीं माने। अपनी ज़िन्दगी खुद जिऊॅगा किसी के सहारे नहीं। शायद नाराज थे कभी मनू जेल में मिलने नहीं आया। ...मलय को खबर मिली कि दादा सख्त बीमार हैं। हास्पिटलाइज हैं। उसे पता चला कि अत्यधिक शराब पीने और अगड़म-बगड़म खाने से उनका लीवर खराब हो गया है। मनू जुट गया था दादा का ईलाज करवाने में। वह करीब 15-बीस दिन रूका था और दादा को स्वस्थ कराकर ही घर लाया। अबकी बार मनू दादा को समझाने में कामयाब हुआ था। वह उनके साथ बरेली में रहें कोई काम करने की ज़रूरत नहीं है सिर्फ़ आराम से रोटी खाये ओैर घर में अपनी छत्रछाया बनाये रखे। कानपुर का मकान बेच दिया गया और सारा कर्ज निपटा कर पुराने शहर को अलविदा कह दिया गया।

दादा के सब लोगों के साथ रहने से उनका अकेलापन दूर हो गया और एकबार फिर उन्हें ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी थी। नीरव और निशा के रूप में उन्हें अपना बचपन लौट आया लगता था। बच्चों के लिये ताऊ जी सबसे बड़े थे जिनसे मम्मी एवं डैडी की भी शिकायत की जा सकती थी और अपनी जिद पूरी करवाई जा सकती थी। काजल को कुछ अटपटा ज़रूर लगा था परन्तु एक सुरक्षित माहौल के अहसास ने उसको सहज कर दिया था। मलय प्रोफेसर हो गया था इसलिये उसे एक बंगला एलॉट था जिसके प्रथम कमरे पर दादा को स्थापित कर दिया गया। उस कमरे का एक दरवाजा पीछे की तरफ खुलता था जिससे दादा मुख्य हाल में आ जाते थें। दादा का खाना पीना और आवश्यक दिनचर्या उस कमरे से सटे कम्बाइन्ड लैट्रीन बाथरूम में हो जाती थी। थोड़े दिनों बाद दादा ने अपना ब्याजू का धंधा फिर चालू कर दिया था। पास में ही रेलवे कालोनी थी जिससे उनका धंधा चमक उठा था। मनू ने भी कोई आपत्ति नहीं की, क्योंकि आखिर आदमी कुछ तो करेगा इतना बड़ा टाइम कैसे कटेगा? कुछ तो बिजी रहने का साधन होना चाहिए था। इसी बहाने कुछ पैसे आ जाते थे, जिससे उनको यह अहसास था कि वह किसी पर बोझ नहीं है। इसी कारण उनमें संतोष का भाव रहता था।

आज डाक्टर से हुयी बातचीत के बाद मलय अस्थिर हो गया। उसने पत्नी से कहा, 'अब नहीं रूका जाता।'

'बात क्या हो गयीं' ...क्या हालत और बिगड़ रही है? '

'हॉ।'

डाक्टर ने कहा है कि कोई एक किडनी डोनेट कर दे तो बच सकते है। ...मैं निर्णय नहीं ले पा रहा हॅू। '

'क्या निर्णय लेना है?'

'मैं दादा को एक अपनी किडनी डोनेट करना चाहता हॅू। शायद बच जाये'

'शायद...!' क्यों?

डाक्टर ने सम्भावना व्यक्त की है कि हो सकता है कि पेशेन्ट की बॉडी दूसरे की किडनी एक्सेप्ट न करें। अगर एक्सेप्ट भी कर लेगी तो भी ज़्यादा से ज़्यादा 5-6 साल ही चल पायेगें।

...ऐसा क्या ...? फिर आपका एक किडनी से काम चलेगा। कब तक? अगर आपकी एक किडनी खराब हो गई तो आपके लिये कहॉं से आयेगी? '

मलय चुप है और सोच में पड़ जाता है।

देखिये...दादा के बाद उनके पीछे कोई नहीं है मगर आपको कुछ हो गया तो आपके बीबी बच्चे क्या करेंगें? अनाथ नहीं हो जायेगें? कुछ अपने बाद की भी सोचों, वह अस्मंजस में पड़ जाता है, एक तरफ दादा और दूसरी तरफ अपनी भरी-पूरी गृहस्थी।

'मेरी मानों यह विचार छोड़ दो।' मैं आपको यह हरगिस नहीं करने दॅूगी। मलय अतीत में धंसता चला जा रहा है। अतीत की खटटी-मीठी यादें उसे भीतर ही भीतर मथती चली जा रही थी। उसे लगता है कि वह काजल को धिक्कारे और दादा पर अर्पित हो जाये परन्तु वह ऐसा नहीं कर सका। उसके ऑखों के सामने एक-एक करके नीरव, निशा और काजल तैरने लगे थे। रोते-बिलखते चिल्लाते।

दादा को तीन-तीन डाक्टर देख रहे है। किडनी के मामले में डाक्टर चौधरी देख रहे है, हृदय रोग विशेषज्ञ है डाक्टर गुलाटी और पूरे मामले की देखभाल कर रहे है डाक्टर मिश्रा। डा0 मिश्रा की सलाह पर दादा को आई0सी0यू0 पर शिफ्ट किया जा रहा है। उसका खर्चा काफी आता है और मलय पैसों के मामलें में खलास होता जा रहा है। पहले कानपुर में दादा के लीवर का ऑपरेशन कराने में काफी खर्चा आ गया था और इधर जब से डायलिसिस करवाने, हफ्ते महीने आना पड़ता था उसका खर्चा भीतल्ला निकल रहा था।

मलय ने तीनों दीदीयों को खबर कर दी थी, शायद कोई हैल्प दादा के ईलाज में मिल जाये। परन्तु किसी का भी उत्तर प्राप्त नहीं हुआ था। वह सब दादा को देखने आयेंगी भी या नहीं, यह भी संशय था। दिन भर मलय के परिचित और परिजन भी आते जाते रहे। पारदर्शी कॉच के इस तरफ से ही सबने दादा को देखा कि उनके सारे शरीर में मशीन के तार लगे हुए है, उससे और काजल से चर्चा करते हुए लौट भी गये। प्रतिदिन खर्चे का बोझ असहनीय होता जा रहा था।

दादा को वेंटिलेटर पर रख दिया गया था। उनके आस-पास जाना मना हो गया था। केवल नर्स और डाक्टर आते जाते थे। कभी नर्स आकर आक्सीजन के नाब को घुमाती है कभी हार्ट मशीन को एडजस्ट किया जाता। तरह-तरह के मानीटर लगे थे और तारों का जाल बिछा हुआ था। दादा का विशाल शरीर बिल्कुल कृशकाय हो गया था। वे मरणासन्न थे। वे शान्ति की गहरी नींद में थे। शायद उन्हें अपना अन्त समझ में आ गया था। चेहरे पर कुछ ऐसे ही भाव प्रतिविम्बित हो रहें थे।

दीदी लोग अगले दिन आ गई थी। अनिता अपने पति के साथ, सुनीता कुछ देर बाद अपने देवर के साथ और अन्त में रीता अकेले ही आयी थी। डाक्टर मिश्रा से मलय और दीदीयों की बात हो गई थी। डाक्टर ने कोई उम्मीद बताने से इन्कार कर दिया था, कब तक वेन्टिलेटर के जरिये उनमें सॉंस डाली जाती रहेगी। उसका खर्चा वहन करने की सामर्थ, यह प्रश्नचिन्ह उसके चेहरे पर अपने खौफनाक अन्दाज में खड़ा था। काजल डाक्टर मिश्रा से अलग से मिली और गम्भीर उदासी और निराशा से उसने कुछ अपना कहा जिसे डाक्टर ने सिर हिला कर सहमति दी। वह तनाव में थी औऱ़़ एकदम मलय से मिलने पर कांप गई.

एक हफ्ता हो गया था और बोलते-चालते लाये, दादा स्पन्दनहीन पड़े थे। सबके चेहरे पर तनाव था। कब? अब तो दिन गिनना शेष रह गया था। मलय रात को अस्पताल में ही रूक गया था। रोज ही रूकता था। काजल और बहनें घर पर आ गये थे। सुबह तड़के उठकर वह धड़कते दिल से वार्ड में दाखिल हुआ। उसने देखा अन्तिम सांसे चल रही थी। उसका गला भर आया और वह रोने लगा। वातावरण में अजीब-सी गम्भीरता और संनाटा छाया हुआ था। थोड़ी देर बाद डाक्टर मिश्रा आये और नब्ज देखी। जॉंच पड़ताल खत्म हो गई. दादा को वेन्टीलेटर से निकाल लिया गया और सबकुछ समाप्त हो गया। डाक्टर ने मृत्यु की घोषणा की और संनाटा टूट गया। वातावरण भारी हो गया था और मलय अपने अपरोध बोध से ग्रसित, दर्द की भारी व्यथा उस पर छायी थी। उधर काजल भी अनमनी और गम्भीर थी, अपने को समझाते हुये, वह रो पड़ी थी। दादा को मुक्ति मिल गई यह सांेच कर दादा की तीनों बहनों में संतोष व्याप्त था और सामान्य रूदन प्रारम्भ कर दिया था। बहनोई निरक्षेप भाव से अलग टहल लिये थे। सभी को खबर कर दी गई थी। मलय को जानने वाले और कुछ दादा को जानने वाले आ गये थे। मलय की व्यस्तता बढ़ गई थी, परन्तु मलय के चेहरे पर एक लम्बे तनाव के बाद, उसमें थकी हुयी शान्ति दिखाई दे रही थी।