दादी! रियली, आप बहुत गंदी हो / कुबेर

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दादी के हाथ से चाय का प्याला लेते हुए और बहुत इत्मिनान से दादी की जवानी को निहारते हुए, हाँ! दादी की जवानी को निहारते हुए, साथ ही साथ करीने से सजी हुई हॉल के चारों ओर नजर घुमाते हुए सविता मेम ने दादी की प्रसंशा की - “दादी! आपको देखकर; आपके घर की साफ-सफाई, व्यवस्था और अनुशासन को देखकर किसे ईर्ष्या नहीं होती होगी? ..... भई! चाहे औरों को हो, न हो, मुझे तो होती है। हर सामान अपनी जगह पर करीने से रखा हुआ और सजा हुआ है; चाहे किचन में हो, चाहे बेडरूम में हो, चाहे हॉल में हो, किसी भी सामान को ढूँढने की जरूरत नहीं पड़ती होगी; हाथ बढ़ाओ और सामान हाथ में।”

“नो! सविता मेम जी, ईर्ष्या नहीं; ये सब तो अपनी-अपनी आदतें हैं, अपना निजी तहजीब है, रहने और जीने का ढंग है; और यदि किसी की कोई बात अच्छी लगे तो उससे सीखना चाहिए, न कि ईर्ष्या करनी चाहिए। समझ रही हैं न आप। आप अपने चारों ओर, नेचर में झांक कर देखिये, उसके अनुशासन और उसकी तरतीबियती पर गौर कीजिये, आप हैरान रह जायेंगी। नेचर में हर चीज अपने-अपने नियमों का, तरतीबियती का, और डिसीप्लीन का पालन करते हुए नजर आयेगी। और यदि हम भी ऐसा करते हैं तो हम नेचर को ही सपोर्ट करते हैं न? और रह गई मुझसे ईर्ष्या की बात, मेरे फिटनेस की बात, तो भाई! ये बात कुछ हजम नहीं हुई।”

हजम तो सविता मेम को नहीं हुआ, न तो दादी का यह उपदेश और न ही इस बेवा-बुढ़िया का, टीन एजर्स की तरह हमेशा सज- धज कर जवान दिखने और मटकते रहने की आदत। आदत! अपनी बला से; पर पड़ोसी-धर्म निभाना भी तो जरूरी है। कालोनी में घरों के अंदर, परदों, के पीछे, बीते चौबीस घंटों के दरमियान क्या कुछ घटता है, यह जानना भी तो जरूरी है? दादी उनके लिए किसी न्यूज चैनल से कम नहीं हैं। लिहाजा खुशामद करने की हद तक विनम्र होते हुए सविता मेम ने कहा - “आप ठीक कहती हैं दादी, बिलकुल ठीक कहती हैं। क्या आपको नहीं लगता कि जिसे आप निजी तहजीब कहती हैं, वह और डिसीप्लीन की बहुत सारी बातें मैंने आप ही से सीखी है? पर सच मानिए अपनी उम्र से अभी भी आप, कम से कम बीस साल तो जरूर कम ही लगती हैं; इसका राज मैं अभी तक समझ नहीं पाई। ईर्ष्या तो होगी ही न?”

जवाब में दादी ने जोरों का ठहाका लगाया और काफी देर तक लगातार हँसती रहीं। हँसते हुए वे बिलकुल युवतियों की तरह शरमा भी रहीं थी। शरम के मारे उसका गेहुआ चेहरा कानों तक लाल हो गया था, और इस उम्र में भी भरी हुई और कसी हुई उनकी छातियाँ गाऊन के भीतर बुरी तरह उछल रही थी, जैसे चोली के अंदर कैद होकर रहना उन्हें पसंद न हो। दादी का यह रूप देखकर सविता मेम को, जिनकी छातियाँ तीस की अवस्था में ही आम के चूसे हुए छिलकों की तरह रसहीन हो चुके थे, सचमुच ही ईर्ष्या होने लगी थीं। संयत होकर दादी ने ही बात आगे बढ़ाया - “सविता मेम, आप भी बहुत मजेदार औरत हैं। मैं जानती हूँ, अच्छी तरह जानती हूँ कि कालोनी की सारी औरतें हमेशा, मेरे बनने-संवरने की काफी आलोचना करती हैं, और यह भी कि आप भी उन्हीं औरतों की ओर खड़ी हुई हैं। एम आई राईट?”

“अब तो आप ज्यादती कर रही हैं दादी। मजाक करने का सचमुच आप में गजब का सेंस है।”

“ओ. के., सविता मेम जी! मैं तो अगले जन्म, पुनर्जन्म जैसी अवधारणाओं को कोरा बकवास ही मानती हूँ, सबकुछ वर्तमान ही है, जो हमारे हाथों में है। वर्तमान ही सच है। ईश्वर ने जिन्दगी दी है जीने के लिए, उत्सव मनाने के लिए; मनहूस सूरत बनाकर रोने-धोने और पास्ट-प्रेजेंट की शिकायत करते हुए जिन्दगी तमाम करने के लिए नहीं। उम्रदराज लोगों और विधवाओं को अच्छे लिबास नहीं पहनने चाहिए, मेकअप नहीं करने चाहिए, ऐसा कहने वाले साफिस्टीकेट लोगों से मुझे सख्त घृणा होती है। इन बातों को तो मैं बिलकुल भी नहीं मानती। सब दकियानूसी बातें हैं। मैं तो कहती हू. कि चेहरे से हमेशा जिन्दादिली, और एजाइलनेस टपकनी चाहिए।... यही बातें मैं बेबी से भी कहा करती हूँ कि आपकी परर्सनैलिटी से झलकनी चाहिए कि यू आर अ सक्सैस परसन। एमन्ट आई राईट, मेम? ..... वर्तमान का पूरा आनंद लो।”

“बिलकुल ठीक फरमाती हैं दादी आप। पर आज बेबी कहीं दिख नहीं रही हैं। और हाँ, जिस काम के लिए यहाँ आई थी, वह तो बिलकुल ही भूले जा रही हूँ मैं। आपने बेबी के लिए ट्यूटर ढूँढने के लिए कहा था, तीन-चार अच्छे लोगों के बारे में मैंने पता किया है। आपने किसी को तय तो नहीं किया है न?”

“थैंक गॉड! अगर ऐसा है तो आप नहीं जानती कि आपने मुझ पर कितना बड़ा अहसान किया है।”

“पर आपने यह नहीं बताया था कि किस प्रकार का ट्यूटर चाहिए; लेडीस या जेंट्स।”

“आफकोर्स जेंट्स सविता मेम, ओनली जेंट्स।”

“पर बेबी जैसी किशोरी के लिए मैं तो आपको लेडी ट्यूटर की ही सलाह दूँगी दादी। यही तो उम्र होती है जब लड़कियाँ अक्सर बहक जाया करती हैं।”

“आई डोंट थिंक सो मेम। लेडी टुयूटर! नो, नेभर। इन कमजाद औरतों को मैं अच्छी तरह जानती हूँ। कमसिन लड़कियों को बहलाने और बिगाड़ने के मामलों में ये पुरूषों से मीलों आगे रहती हैं। सच मानो आप, लड़कियाँ जब तक खुद न चाहें, उनके अंगों को, खासकर कोमल और गुप्त अंगों को स्पर्श करने की, कोई भी पुरूष हिम्मत नहीं कर सकता। पर महिलाएँ? अपना महिला होने का फायदा उठाकर वे ऐसा बहुत आसानी से कर जाती हैं। समझी आप?”

“ओह, तो ये बात है?”

“दूसरी बात, इन कमबख्तों को घर जाने की बड़ी जल्दी रहती है। किसी को खाना बनाना होता है, किसी का बच्चा घर में अकेला पड़ा होता है, बच्चे को स्कूल के लिए तैयार करना होता है या फिर देर हो जाने पर पति से पिटने का भय रहता है।”

“आप बिलकुल ठीक कहती हैं दादी, पर हमारे भारतीय समाज में महिलाओं के लिए सबसे बड़ी मजबूरी भी तो यही है न।”

“और फिर पर्सनैलिटी में जिस एजाइलनेस की बात मैं अभी-अभी कर रही थी, वह इन लोगों में होता भी है?”

“क्यों नहीं हो सकता?”

“चलिए, ऐसा कोई मिल भी जाय; पर क्या बेबी उसे बर्दास्त कर पायेगी? सच कहती हूँ मेम, जितना इगो बेबी में है, उतना मैंने और किसी लड़की में नहीं देखा। सुंदरता के मामले में हो, इंटेलिजेंसीं के मामले में हो, फ्रैंकनेस के मामले में हो या एजाइलनेस के मामले में ही क्यों न हो, बेबी अपने से ऊपर किसी को बर्दास्त कर ही नहीं पाती। इसीलिए कहती हूँ मेम कि मुझे बेबी के लिए केवल और केवल जेंट्स ट्यूटर चाहिए। एम आई राईट मेम?”

“राईट, दादी परन्तु, मैं फिर भी जेंट्स ट्यूटर के पक्ष में नहीं हूँ। आप सही कहती हैं, जब तक औरत न चाहे, किसी भी मर्द में इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह उसका स्पर्श कर सके। पर क्या यह भी सच नहीं है कि लड़कियों में, बेबी की ही तरह की चौदह-पंद्रह साल की अवस्था वाली लड़कियों में, पुरूषों के प्रति आकर्षण सबसे अधिक होता है और पुरूषों को अपना शरीर सौंप देने की इच्छा भी सबसे प्रबल इसी उम्र में होती है?”

“बट मेम, बेबी भी तो नहीं चाहती न लेडी ट्यूटर।”

“यदि ऐसा ही है और जेंट्स ट्यूटर ही रखना है, तब तो ट्यूटर जरूर कोई उम्रदराज और रिटायर्ड आदमी होना चाहिए।”

“नो, नो मेम, मुझे, और बेबी को भी हताश-निराश और उदास लोग बिलकुल पसंद नहीं हैं। बच्चे जितना किताबों से सीखते हैं, उतना ही अपने टीचर परसानैलिटी से, उनके व्यक्तित्व से भी सीखते हैं। रह गई बहकने-बहकाने की बात, सेक्स के मामले में तो सारे मर्द एक जैसे ही होते हैं, उम्र चाहे जो हो। बल्कि बूढ़े लोगों से ही ज्यादा असुरक्षा रहती है। और मेम ध्यान रहे अच्छा टीचर वही होता है जो बच्चे को पूरी तरह कनविंस कर सके। ..... और हाँ, आपने बेबी के बारे में पूछा था, इस समय वह अपनी सहेली से मिलने गई है, बस आती ही होगी।”

♦♦ • ♦♦

बात तय हो गई। तय हुआ ट्यूटर बिलकुल वैसा ही है जैसा दादी चाहती थी, पचीस़़-तीस का नौजवान, एजाइल, एनर्जेटिक, और गुडलुकिंग। आज से वह काम शुरू करने वाला है। समय तय हुआ है सुबह आठ से दस। दस बजे बेबी का स्कूल बस आता है। दादी ने बेबी को पहले ही तैयार कर दिया है, और अब वह खुद ड्रेसिंग टेबल पर जमी हुई हैं।

बेबी को आश्चर्य हुआ, पूछा - “दादी, आप कहीं बाहर जा रही हैं?”

“नो।”

“फिर मेकअप क्यों कर रही हैं?”

“लड़कियों को हमेशा सभ्य, साफ-सुथरी और सलीके से रहना चाहिये, नहीं?”

“पर आप तो औरत हैं।”

“हर औरत पहले लड़की ही होती है। तुम क्या समझती हो, तुम कभी औरत नहीं बनोगी?”

“कैसे बनती है लड़कियाँ औरत?”

“जब शादी होगी, सब समझ जाओगी।”

“शादी होने से लड़कियाँ औरत बन जाती हैं?”

“शादी होगी, तुम्हारा हसबैंड तुम्हें अपने साथ ले जायेगा, तुम्हारे साथ सुहागरात मनायेगा और तुम औरत बन जाओगी।”

“कैसे?”

“अब बस भी करो, तुम्हारा टुयूटर आता ही होगा।”

“बताइये न, कैसे? आपके हसबैंड ने भी, आई मीन दादा जी ने भी आपके साथ सुहागरात मनाया था?”

“बहुत बदतमीज हो गई हो?”

बेबी ने मचलते हुए कहा - “बताइये न?”

अब तो दादी भी रंग में आ गई। सोफे पर बैठ कर उन्ही ने बेबी को गोद में ले लिया और कहा - “ऐसे। रात कमरे में केवल तुम होगी और तुम्हरा पति होगा। वह तुम्हें अपनी गोद में बिठा लेगा, ठीक इसी तरह। फिर गुलाब की पंखुड़ियो के समान तुम्हारे इन गुलाबी-गुलाबी होठों पर अपना होंठ रख देगा, सिर्फ होठों को ही नहीं, वह तो तुम्हारे जीभ को भी चूसने लगेगा; ऐसे।”

और फिर सुहाग रात में इसके बाद और क्या-क्या घटती हैं, बेबी को सारी बातें समझा दी दादी ने।

“नो, मैं उन्हें ऐसा नहीं करने दूँगी, हरगिज नहीं करने दूँगी।”

“पागल लड़की, जब तुम्हें भूख लगती है, खाने से खुद को रोक सकती हो क्या? नहीं न? यह भी तो एक भूख है; ऐसी भूख जिससे कोई बच नहीं सकता। और इसी में तो जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी, दुनिया के सबसे बड़े सुख का राज छिपा होता है। पर हाँ, ध्यान रहे, ऐसा सिर्फ और सिर्फ शादी के बाद; केवल अपने पति के साथ ही होना चाहिए। हिन्दुस्तानी लड़कियाँ अपना जिस्म केवल और केवल अपने पति को ही सौंपती है। एम आई राईट।”

♦♦ • ♦♦

एक दिन की बात है, किसी कारणवश स्कूल नहीं लग पाया और बेबी को तुरंत लौट आना पड़ा। रास्ते में सारा समय वह प्लानिंग करती रही कि दादी को सरपराइज देने के लिए किस प्रकार दबे पाँव घर में प्रवष्टि होना है और कुछ ऐसा करना है कि दादी को हमेशा याद रहे।

पर सरपराइज होने की बारी तो अभी बेबी की थी। मेन गेट अंदर से बंद था, सो तो ठीक है, हो सकता है दादी सो रही हों, हालाकि अभी उनके सोने का वक्त हुआ नहीं है। पर ट्यूटर महोदय के जूते अभी तक यहाँ कैसे? बेबी के मन में सवालों और शंकाओं के बवंडर चलने लगे। अपनी चाबी से गेट का ताला खोलकर वह भीतर आई, अमूमन दादी जिस सोफे पर बैठकर टी. व्ही. देखा करती हैं वह भी खाली पड़ी थी। किचन भी सूना था। मम्मी-पाप का बेडरूम, उनके जाने के बाद से ही हमेशा बंद रहता है; केवल साफ-सफाई के लिए दिन में एक बार सुबह खुलता है, वहाँ अभी भी बाहर से ताला लटक रहा था। तो क्या दादी अपने बेडरूम में होंगी? ट्यूटर महोदय कहाँ होंगे? उन्होंने चुपके से दरवाजे को पुश करके देखा, नहीं खुला। की होल से कान लगाकर उन्होंने भीतर की आवाज सुनने का प्रयास किया। अजीब तरह की आवाजें आ रही थी। पर जाहिर था, ये आवाजें उन्हीं दोनों की थी। की होल में चाबी नहीं लगी थी, उन्होंने की होल से वही सारा दृश्य देखा जिसका वर्णन दो माह पहले ट्यूटर के आने से पहले दादी ने किया था। वह सोचने लगी - तो क्या दादी दोबारा औरत बन रही हैं? हिन्दुस्तान की लड़कियाँ अपना जिस्म केवल और केवल अपने पति को ही सौंपती हैं, यही तो कहा था उसने, पर यह तो ट्यूटर है।

सवालों के दबाव में बेबी का दिमाग हैंग होने लगा। उसके अपरिपक्व मन ने कहा - कुछ भी हो, बेडरूम के भीतर जो भी हो रहा है, गलत हो रहा है।

बेबी चुपचाप सोफे पर पसर गई। भावनाओं का उद्रेक होने की वजह से उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, आँखें मुँदी हुई थी। मुँदी हुई आँखों में भी वही दृश्य चल रहा था जिसे अभी-अभी उसने की-होल से देखा था। दृश्य बदला। इस दृश्य में अब दादी नहीं हैं। दादी की जगह खुद बेबी आ गई हैं।

कुछ देर बाद दरवाजा खुला। वे दोनों बाहर आये। सोफे पर बेबी को देखकर दोनों की चीखें निकलते-निकलते बची। ट्यूटर महोदय ने अपनी राह ली। दादी अपराधियों की तरह चुपचाप खड़ी रहीं। बेबी ने मुँह बिचकाया और ड्रेस चेंज करने अपने कमरे में चली गई। उनकी आँखों में घृणा के भाव साफ-साफ झलक रहे थे।

बेबी का मन अब यहाँ बैठने को नहीं कर रहा था। वह बाहर जाने लगी। दादी ने पूछा - “क्या हुआ?”

“मैंने सब देख लिया है। आप बहुत गंदी हो। आई हैट यू। मैं सविता आँटी से मिलने जा रही हूँ।” बेबी ने कहा और तेजी से बाहर चली गई।

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दादी के चेहरे का रंग उड़ चुका था। जिन्दादिली, और एजाइलनेस की जगह वहाँ अब केवल क्षोभ और चिंता की मोटी परतें ही नजर आ रही थी। चिंता यह कि जाकर बेबी सविता आँटी को जरूर सारी बातें बता देंगी और देखते ही देखते बात पूरी कालोनी में फैल जायेगी।

उनकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा। इस अंधेरे में जो दृश्य उभर रहे थे वे बड़े भयावह थे। कालोनी की सारी औरतें जुटी हुई थी और उसके प्रति लानतें भेज रही थी; और सारे मर्द उसे भोगने की नीयत से ललचाई, कामुक नजरों से लगातार घूरे जा रहे थे।

इन हालातों का क्या वह सामना कर पायेंगी?

दादी के मन ने कहा - करना तो पड़ेगा।

दूसरी सुबह ट्यूटर के आने से पहले ही दादी ने बेबी से यह कहकर कि वह दस बजे के बाद ही लौट पायेंगी, बाहर चली गई।

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दस बजे से बहुत पहले ही ट्यूटर महोदय स्टडी रूम से निकल आये। बाहर हाल में सोफे पर दादी बैठी हुई दिखी। दोनों की निगाहें मिली। निगाहों-निगाहों में ही कुछ बातें हुई, फिर वह चला गया।

दादी ने स्टडी रूम में जाकर देखा। बेबी अर्धनग्न हालत में डरी-सहमी बेड पर बैठी हुई है। उसके अंतर्वस्त्र और बेड रक्त से सने हुए हैं। वह दादी से नजरें नहीं मिला पा रही है।

दादी कुछ देर तक बेबी के चेहरे को निहारती रही और फिर एकाएक उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी।

बेबी का सहमा हुआ चेहरा भी अब खिल उठा। दादी से लिपटते हुए बेसाख्ता उसके मुँह से निकल पड़ा - “रियली, आप बहुत गंदी हो।”