दान पुन्न / सुशील कुमार फुल्ल

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मेज़ पर गुड़ की पेसी पड़ी थी, जो अब चींटियों का भौन ही बन गई थी ।

मियां बीवी जाने लगे तो आदित्य ने अपनी मां से कहा - ज़रा निन्नी के यहां जाना है पटेल नगर । बस दो घण्टे में वापिस आ जांए गे । आप अन्दर बैठ कर टी. वी. देखते रहें ।मैं बाहर से ताला लगा देता हूँ ।

‘बाहर से ताला क्यों ?’वह चौंकी ।गांव में ऐसा नहीं होता । हम स्वयं अन्दर से कुडी लगा लें तो घबराहट नहीं होती लेकिन कोई बाहर से ताला लगा दे तो अजीब सी अनुभूति होती है । ‘यह दिल्ली है । यहां हर रोज़ लुटेरे घरों में घुस कर लूटपाट करते हैं और बाद में बुजुर्गों का मर्डर भी । बड़े बेरहम और जालिम लोग हैं । हम गए और आए । आप आराम से बैठे ।’ कह कर उसने कमरे को बाहर से ताला लगा दिया ।

ओम अन्दर से चिल्लाती ही रर्ही- अरे मेरा सांस घुटा जाता है । मैं मर जाउंगी ।मैं हूँ न यहां । फिर ताले की क्या जरुरत है ।लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ । वे दोनों धप धप करते हुए सीढ़ियां उतर गए । कमरे में बन्द मां के लिए आर के पुरम का वह सरकारी आवास शमशान की सां सां में डूब गया था ।

उसे लगा वह गलत दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ था| सीढियां चढ़ते चढ़ते उस का सांस फूल गया था । एक बार ओम ने कहा भी थ्रा -तुम डाक्टर को दिखा क्यों नहीं लेते ? ‘तुम्हारी लाडली बहू ने तो बहुत पहले ही डिक्लंअर कर दिया था कि मुझे श्वासी है और इसी लिए उसने वर्षों तक अपने बच्चों को मेरे पास नहीं आने दिया । कहती थी कि पापा गुल्फे फैंकते हैं । दमा नामुराद बीमारी है ।’ थोड़ा रुक कर उस ने फिर कहा -आज कल इस लिए सहन करती हैं क्यों कि उस की नज़र मेरे बैंक बैलंस पर है । जीवन शैली में कितना अन्तर आ गया है । आज कल हर बच्चे को अलग अलग तौलिए चाहिएं। अलग कमरा चाहिए। हम आठ बहन भाई एक ही तौलिए से काम चला लेते थे । उस ने प्रथम तल पर पहुंचते ही घंटी बजाई । अन्दर से कविता बाहर आई ।ससुर के पांव छूने के बाद उस ने बैग पकड़ा और बिना किसी संकोच के कहा -पापा, आप बुरा न मानना । दौड़ कर पास वाली मार्कीट से पांच किलो आटा तो ले आओ ।आज इन्हें दफतर में बहुत काम था, इस लिए बाजार नहीं जा पाए ।


कबीर ने कुछ नहीं कहा । उसने केवल कविता की ओर आश्चर्य से देखा । आह कितने बेबाक हैं ये षहरी लोग । उसे लाहौरी राम की याद आ गई । किसी ने उस के नाम पत्र दे दिया था कि कबीर और उस की धर्मपत्नी आंए तो उन्हें घर पर ठहरा लेना ।

उन्होंने मसूरी जाना था । एक रात देहरादून में काटनी थी । वह मित्र की चिटठी ले कर लाहौरी राम के घर पहुंचे । चिटठी देखते ही उसने कहा - मैं नहीं जानता यह व्यक्ति कौन है, जिसने तुम्हें चिटठी दी है ।


कबीर ने कई सन्दर्भ दिए परन्तु उस ने पहचानने से साफ इन्कार कर दिया । वह बहुत परेशान हुआ था ।उन दिनों आम आदमी कहां ठहरते थे होटलों में । दूर पार की पहचान वाले के पास रुक जाना आम बात थी लेकिन आज कल तो सभी होटलों या गैस्ट हाउस में ही ठहरना पसन्द करते हैं । उसे याद है वह रात उसे रेलवे स्टेशन पर ही बितानी पड़ी थी ।कविता बिना किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए अन्दर चली गई थी । कबीर धीरे धीरे सीढियां उतर रहा था ।


वह बार बार अन्दर बाहर आ जा रहा था ।वह शायद अपनी मां से कुछ कहना चाहता था परन्तु कह नहीं पा रहा था । उस की जीभ पर झेंप चिपक गई थी । मां ने ही पूछ लिया - बेटा, क्या बात है ? तुम परेशान लगते हो ।तभी कविता ने अन्दर आते हुए बिना किसी भूमिका के कहना ष्ुरु किया- मां जी पैसे पेड़ पर तो नहीं लगते । और फिर बीमारी पर खर्च तो निरन्तर झरतें हुए पत्तों की तरह होता है । आदित्य उसे अवाक देखता रहा । बोला कुछ नहीं ।‘तो फिर क्या चाहती हो ?’

‘मां जी ,सारा खेल पैसे का है । रिइम्बर्समेंट आते आते तो देर लगे गी । फिर नेहा ने नया पंगा डाल दिया है । पति से लड़ झगड़ कर घर आ बैठी है ।एक साल हुआ नहीं । अब डाइवोर्स चाहती है ।’‘तो रिइम्बर्समेंट के पेपर भर दो न ।’‘सरकारी पैसा है , इतनी आसानी से नहीं मिलता ।’ ‘आश्रितों के बिल जल्दी पास नहीं होते ।’ आदित्य ने दबी ज़बान में कहा । थोड़ा रुक कर कुछ सोचने का अभिनय करते हुए बोला - दर असल पापा ने तुम्हारे खाते में बहुत सा सरप्लस मनी डाल रखा है’ । वह साहस नहीं बटोर पा रहा था ।वह जानता थ्रा कि वह झूठ बोल रहा था परन्तु कविता का उस पर दवाब था । वास्तव में जब हमारे मन में चोर होता है, तो उस की उपस्थिति हमें किसी न किसी रूप में झकझोरती अवश्य है ,भले ही हम स्वार्थवश मन की उस बात को अनसुना कर देते हैं ।

ओम समझ गई । वह जानती है कि उस का बेटा अपने बाप से पैसा निकलवाता रहता है,कभी कोई बहाना बना कर,कभी कोई ।अब उस की नजर बुढापे के लिए रखे पैसे पर टिक गई है । वह सोचने लगी कि खुद इतना पैसा कमाने वाला बेटा भी पैसे के लिए जीभ लपलपाने लगा है । शायद मां बाप का पैसा भी बच्चों को सरकारी पैसा लगने लग जाता है । दरअसल बिगाड़ा तो खुद इन्होंने ही है ।

‘फिर क्या ? वह तो किसी और काम के लिए रखे हैं ।फरीदाबाद वाला जो प्लाट बेचा था, उस के पैसे भी तो तुम्हारे पास ही हैं । उस में से खर्च कर लो ।’ ओम ने सुझाया । ‘मां, वह तो मैंने बच्चों की षादियों के लिए फिक्सड डिपाज़िट में रख दिए । कुछ अपने पी पी एफ में जमा करवा दिए ।और फिर रवि अमरीका में एडमिशन लेना चाहता है । ‘सो तो ठीक है परन्तु तुम्हारे पापा ने सब कुछ तो तुम्हें दे दिया है । तुम इतने बड़े अफसर हो । खुद भी कुछ करना चाहिए । हम ने तो उम्र भर पेट काट काट कर जो पैसा जोड़ा , वह सब आप लोगों को दे दिया । अभी लड़कियों को तो कुछ भी नहीं दिया ; ओम की आवाज़ में उपालम्भ भी था और एक आक्रोश भी । कविता ने अपनी सास की बात अनसुनी करते हुए कहा - मां जी, आप चलने फिरने लायक हो गईं , यही क्या कम है ।घुटने बेकार हो जाएं तो ज़िदंगी बेकार हो जाती है । अब इतना पैसा लगा है, तो उस की रिइम्बर्समेंट तो लेनी ही है न । सरकारी पैसा मिलता है, तो क्यो छोड़ें ।‘तो ले लो न कौन रोकता है ।’ ओम ने सहज भाव से कहा ।‘सरकारी पैसा ऐसे ही थोड़े मिल जाता है । इस के बड़े सख्त कायदे कानून होते हैं ।’ वह फिर बोली ।‘तो कायदे कानून से भर दो न कागज़’ ।

‘रिइम्बर्समेंट तो हो जाएगी लेकिन मां तुम्हारे अपने खाते में ज्यादा पैसे रहेंगे , तो बिल पास नहीं होगा ।’ भोली सी सूरत बना कर आदित्य ने कहा । ‘फिर क्या चाहिए ?'‘तुम्हारे खाते में जो बीस लाख जमा है न । उसे टेम्पोरेरेली मेरे खाते में डाल दो । जब मैडिकल बिल का भुगतान हो जाए गा तो मैं पैसा वापिस आप के खाते में डाल दूंगा । आप इस ट्रांस्फर वाउचर पर हस्ताक्षर कर दो । फिर सब ठीक हो जाएगा ।’


ओम ने क्षण भर के लिए चौंक कर देखा लेकिन फिर सभलते हुए बोली -मैं ने तो ऐसा कानून कभी देखा सुना नहीं । तुम्हारे पापा से पूछ लूंगी । वह जानती है कि एक बार पैसा गया तो फिर तो वापिस आने का प्रश्न ही नहीं । आज तक इस ने कोई पैसा हाथ पर नहीं रखा और न ही कभी ले कर लौटाया है ।कविता को लगा बना बनाया खेल बिगड़ गया परन्तु सोचा जरा चालाकी से काम लेना हो गा ।सोने का अण्डा चाहिए तो मुर्गी को पुचकारना भी तो होगा ।


सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते वह हांपने लगा था । जब भी वह किसी से अपने दम चढ़ने की बात करता तो तुरन्त सलाह मिलती कि यह तो नामुराद बीमारी दमा है,जिस का कोई सहज इलाज नहीं । वह चुप हो जाता ।

कबीर खड़ा देखता रहा । आर के पुरम की बत्तियां झिलमिल झिलमिल कर रही थ्रीं । उसे लगा कि वह गलत दरवाज़े पर आ कर खड़ा हो गया था । कैसे लोग हैं, जो समय पर रसोई का सामान भी पूरा नहीं रखते । मैं छः सौ किलोमीटर का सफर कर के आया हूँ और आते ही हुक्म मिल गया कि पहले आटा लाउं तो रोटी मिलेगी । वह धीरे धीरे सीढ़ियां उतरने लगा ।

घर में कोहराम मचा हुआ था । कबीर वापिस आ गया था । भाइयों को यह ज़रा भी अच्छा नहीं लगा । राजन ने तो कहा था- इतना पढ़ लिख बीमारी चिपक गई । मैं ड्रिल करता तो सांस फूलने लगता । हांप कर बैठ जाता परन्तु यह सब तो फौज मे नहीं चलता । सो वापिस आ गया हूँ|

वह हैरान था कि उस के भाइयों में उस के प्रति जरा भी हमदर्दी नहीं थी । वह तो उन्हें अवांछित लग रहा था । मानो वह सब का हक छीन लेगा ।

पढ़ लिख कर भी अगर घर में ही बैठना था, तो व्यर्थ में क्यों इतना खर्च करवाया ।

कबीर सेना में भर्ती हो गया था । बहुत खुश थ्रा । सेना में मिलने वाली सुख सुविधांए भला किसे अच्छी नहीं लगतीं । अनुशासन भरा जीवन । लेकिन दो साल बाद ही उसे डिस्चार्ज दे दिया गया क्यों कि वह अनफिट घोषित कर दिया गया था । उस ने कहा - मैं कब वापिस आना चाहता थ्रा । पता नहीं कहां से सांस की नामुराद बीमारी लग गई ।


मां बाप के लिए तो सभी बच्चें बराबर होते हैं । बूढ़े पिता ने पूछा - बच्चा,क्या करना चाहते हो । मैं ने तो परमात्मा का लाख शुकर मनाया था कि तुम्हारी सरकारी नौकरी लग गई परन्तु कौन जानता था कि तुम यहीं लौट आओ गे । तुम्हीं बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या करुं ?

‘आप मुझे भी थोड़ी ज़मीन खेती के लिए दे दें ,तो काम चल जाए गा।बाद में कोई नौकरी मिल गई तो देख लूं गा ।’ ‘ बावड़ी के पास वाली ज़मीन ही खाली है, वह ले लो । वैसे है तो पत्थ्रीली लेकिन उसे खेती लायक बनाया जा सकता है । थोड़ी मेहनत ज़्यादा करनी पड़े गी ।’

‘मुझे मंजूर है । खाली तो मैं बैठ नहीं सकता ।’ उसने खूब मेहनत करनी शुरु कर दी । जल्दी ही उस के अन्न के भण्डार भरने लगे परन्तु जेब में पैसे फिर भी नहीं होते थे । कुछ खरीदना हो या बच्चों को फीस आदि के लिए पैसे भेजने होते तो वह इन्तजाम तो कर लेता परन्तु थोड़ी मुश्किल जरुर होती ।

घर में कोई उत्सव था । उस के सेना वाले दोस्त भी आए हुए थे । बातों ही बातों में रमणीक ने कहा - कबीर , कई बार मेरा मन होता है कि मैं भी फौज की नौकरी छोड़ कर खेती बाड़ी शुरु कर लूं । कितना सुखमय एवं शान्त जीवन होता है और स्वतंत्र भी ।

‘बात तो ठीक है परन्तु ऐसी गलती मत कर बैठना । ठीक है खेती तपस्या है । इस में षान्ति भी है और स्वतंत्रता भी । परन्तु किसान की जान तो महाजन के पिंजरे में बन्द रहती है । ‘क्या मतलब ?’‘किसान के पास हार्ड कैश तो होता नहीं । अनाज है लेकिन यह मण्डियों में जाएगा । महाजन की कृपा होगी , तभी खरीदा जाएगा । तुम्हारी तन्ख्वाह तो हर महीने की पहली तारीख को सिरहाने के नीचे पड़ी होती है ।’ कबीर ने टिप्पणी की । ‘वेतन भी तो काम करने पर ही मिलता है ।’

‘सो तो ठीक है परन्तु आज भी इतने किसान आत्महत्या क्यों करते है ? जानते हो पूस की रात का हल्कू आज भी महाजन की ‘बाकी’ चुकाते चुकाते मर जाता है पर बाकी है कि खत्म ही नहीं होती ।फर्क सिर्फइतना है कि आज बैंक महाजन बन गए हैं और उन के रिकवरी एजेंट यमदूत ।कबीर रुआंसे स्वर में बोला था ।गटारियां मस्ती से खेतों में कीड़े मकौड़े चुग रही थ्रीं और कबीर उन्हें खड़ा गडरिये सा निहार रहा था अपलक ।


वह आया तो इस बार ओम ने फिर बात छेड़ दी कि बेटियों को भी उन का हिस्सा मिलना चाहिए । आदित्य भड़क उठा - कैसा हिस्सा ? उनके विवाह पर इतना तो खर्च कर दिया गया है । अब और क्या देना बाकी है ?‘खर्च तो तुम्हारे विवाह पर भी हुआ है ।’कबीर ने कहा । ‘यदि आपने जमीन या घर उन के नाम किया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा ।पहले ही आप ने तीन लाख रुपये बाजार में डंुबो दिए हैं ।ज्यादा ब्याज के लालच में बाजार में पैसा फैंकना कहां की अक्लमन्दी है ।’ बेटे के तेवर ही बदले हुए थे । कबीर को बुरा तो बहुत लगा लेकिन वह चुप ही रहा । बोला - वह मेरा पैसा है ।तुम्हारे से तो नहीं लिया ।‘यह मेरी बनाई कमाई हुई जायदाद है । मैं चाहूं तो तुम्हें भी हिस्सा न दूं ।' ‘तो क्या छाती पर रख कर ले जाओ गे ? या पड़ोसियों को खुश कर जाओगे ?’ बौखलाया हुआ आदित्य बोला था । और हरि पाधे का हाल तो आप ने देखा ही है । बेटों ने ही उसे पंखे से लटका दिया था । औा बाद में उन में से एक बहन ने अपने भाई को ही ... ।

कबीर सोचने लगा कि उस ने गलती की । दरअसल इज़ी मनी मिलते रहने से इन्सान की प्यास वैसे ही बढ़ती है जैसे नमकीन पानी पीने से प्यास भड़कती है । आदित्य नहीं जानता उस के पापा ने किस प्रकार डाक घर के खाताधारकों का एजेंट बन कर कैसे पैसा कमाया । बस उसे तो पता है कि पापा से जब भी जितना मांगा उस से दुगुना तिगुना ही मिला ।अब लहू मुंह को लग गया है ,तो पैसा न मिलने पर तल्खी भी दिखाने लगा है ।

मेज़ पर पड़ी गुड़ की पेसी और उस से लिपटी असंख्य काली भूरी चींटियां ।यह उन के लिए दान पुन्न ही तो है । और मां बाप से लिपटी सन्तान ।उन्हें पैसा देना दान पुन्न ही है क्या ? या रैनज़म । शब्दों का हेर फेर हो सकता है परन्तु बात तो वहीं पहुँच जाती है ।


आदित्य आता तो कबीर और ओम एकदम खिल जाते । मां बाप के लिए तो सन्तान सुख सब से बड़ा सुख होता है लेकिन कभी कभी कबीर को लगता कि बेटे का व्यवहार अलग अलग समय पर अलग अलग होने लगा । कभी वह कठोर षब्दों का प्रयोग करता और कभी बिल्कुल कोमल पदावली का । इस बार वह आया तो बड़ा मिठास भरा था । बोला - पापा, मां के घुटनों में तकलीफ बढ़ गई लगती है । मैं चाहता हॅू कि मैं उन का चैक अप दिल्ली के किसी बड़े अस्पताल में करवा दूं ।

कबीर सोचने लगा बात तो ठीक है परन्तु पिछली बार बात चली थ्री तो कविता ने कहा था अब तो पहाड़ में भी सुपर स्पैशिलिटी अस्पताल हैं । शायद वह नहीं चाहती कि कोई उस के पास दिल्ली में ठहरे हालांकि आदित्य को बड़ा घर मिला हुआ है, पांच बैड रूम वाला । उस ने कहा -यहीं करवा दें गे ।दिल्ली बहुत दूर है । ‘पापा, क्या बात करते हो । बस या टैक्सी में यदि सफर मुश्किल लगता है, तो हम बाई एयर भी जा सकते हैं ।’ उसे पता था पैसा तो बापू ने ही देना था । ओम ने कहा-दर्द तो सचमुच बहुत होता है परन्तु डर भी लगता है कि यदि आप्रेशन के बाद भी ठीक न हुआ तो ? मिसेज़ हांडा ने दोनो घुटनो का आप्रेशन करवाया और बिल्कुल ही बैठ गई ।


‘सब के साथ ऐसा थेाड़े होता है । बाकी अपने अपने भाग्य की बात है ।’ आदित्य ने कहा । फैसला दिल्ली के ही पक्ष में हुआ । जाने से पहले आदित्य ने कहा - पापा,मम्मी की चैक बुक और अपना ए टी एम दे देना । कोई एमरजेंसी हो सकती है ।पिता ने पुत्र की ओर घूर कर देखा परन्तु कहा कुछ नहीं ।

पैसा लेना हो तो इन्सान कितना मधुर हो जाता है ।और यह कोई नई बात तो नहीं । दरअसल आदत तो खुद कबीर ने ही बिगाड़ी थी । बेटा क्लास वन अधिकारी है । हर वर्श आय कर भी भरना होता है । एक बार उस ने कह दिया था -बेटा अगर जरुरत हो तो इन्कम टैक्स भरने के लिए पैसे मुझ स ेले लेना । फिर तो उसे चटक ही पड़ गई थी । वह न केवल टैक्स के लिए हर साल पैसा मंगवा लेता बल्कि पीपीएफ में जमा करने के लिए भी लाख दो लाख रुपये मंगवा लेता । कोई न कोई बहाना बना कर पैसा मंगवाना आम बात हो गई थी । बाद में कबीर को पता चला कि कविता अपने मां बाप के लिए भी उसी पैसे का उपयोग कर लेती थी । कबीर बड़ा दुखी होता परन्तु कर कुछ नहीं सकता था । आदित्य के लिए टकसाल खुल गई थी ।


ओम का एक घुटना बदल दिया गया था और आदित्य ने कोई तीन लाख रुपये अपनी मां के खाते से निकाल लिए थे । उसने पूरी बिरादरी में यह सूचना फेैलाने में कोई कोर कसर न छोड़ी कि आदित्य ने अपनी मां का इलाज एम्ज़ में करवाया है और अब उस की मां घोड़ी की तरह दौड़ सकती है । सब ने कहा बेटा हो तो ऐसा । कलयुग में अन्यथा कौन किस की परवाह करता है । अब घर में ओम थी जो चौबीस घण्टे अपने कमरे में बन्द रहती और कविता को मटरगश्ती के लिए खूब टाइम मिल जाता। थैरेपी के लिए एक महिला आती और ओम उस से ही बातचीत कर के सन्तुष्ट हो जाती ।

ओम को एक पुराना फोन आदित्य ने दे दिया था और वह अपने बहन भाइयों से कभी कभार बात कर लेती । उस का मन वापिस अपने घर आने को करता लेकिन अभी उपचार चला हुआ था और फिर बीच बीच में कबीर भी आ जाता था ।

पहाड़ में घरों को ताला लगाने की जरुरत बहुत कम पड़ती है लेकिन दिल्ली में लोग अपने-आप से भी डरते हैं । और अगर एक ही सदस्य ने पीछे घर पर रहना हो तो वे बाहर से ताला लगा जाते हैं । पहली बार उन्हों ने ओम को ताले में बन्द किया तो वह चिल्ला उठी थी -नहीं मेरा सांस घुट जाएगा । मैं ऐसे बन्द नहीं रह सकती । मैं तो मर जाउंगी ।

आदित्य ने कहा था -मां,चिन्ता न करो । अन्दर से भी यह चाबी से खुल सकता है ।‘जब मैं घर में हूं, तो ताला लगाते ही क्यों हो ?’ उस ने ताला नही लगाने दिया था । आर के पुरम के सेक्टर चार में पहंुचते पहंुचते रात के नौ बज गए थे । वह सरकारी आवास के बाहर खड़ा था । हैरान परेशान ।मुख्य द्वार पर ताला लटका हुआ था । फिर उसे लगा घर के अन्दर कोई हलचल थी । एक छाया बेचैनी से इधर उधर घूम रही थी। कबीर चिल्लाया -ओम, ओम लेकिन कोई जवाब नहीं आया । थका हारा कबीर धड़ाम से फर्श पर बैठ गया ।