दारा सिंह और 'चवन्नी' अमर हैं... / जयप्रकाश चौकसे
दारा सिंह और 'चवन्नी' अमर हैं...
प्रकाशन तिथि : 13 जुलाई 2012
कथा फिल्मों के शताब्दी वर्ष में ८४ वर्षीय दारा सिंह का निधन हो गया और कुछ माह पूर्व ही भारतीय सरकार ने चवन्नी सिक्के का चलन बंद कर दिया है। अब आपको बाजार में चवन्नी अर्थात चार आने का सिक्का नजर नहीं आएगा। अपने शिखर दिनों में दारा सिंह छोटे नगरों में फ्री-स्टाइल कुश्ती का प्रदर्शन करते थे और आयोजक चवन्नियों को बोरों में भरकर घर ले जाते थे। इसी तरह जब दारा सिंह अभिनीत 'फौलाद', 'टार्जन कम्स टू डेल्ही' इत्यादि फिल्मों का प्रदर्शन होता तो छोटे शहरों के सिनेमाघरों में चवन्नियों की बरसात होने लगती। उनके मारधाड़ वाले दृश्यों ने दर्शकों को लंबे अरसे तक भरपूर मनोरंजन दिया और कस्बाई सिनेमाघर, भले ही वे नगर की किसी संकरी गली में स्थित हों, दारा सिंह के कारण ही अपने मालिकों को मुनाफा देते रहे। अनेक कस्बों में सिनेमा की प्रवेश दर चवन्नी लंबे समय तक रही है और आज के दौर में जब भिखारी भी चवन्नी पाकर खुश नहीं होता, हम चवन्नी की महिमा और दारा सिंह के सिनेमाई जादू की कल्पना नहीं कर सकते।
कुछ माह पूर्व चवन्नी का 'निधन' कमोबेश दारा सिंह के निधन का पूर्व संकेत था। प्रकृति मृत्यु के संकेत कई तरह से भेजती है। दरअसल इन दो 'निधनों' से जुड़ा है आम आदमी के जीवन का एक अंग और समाज में प्रयुक्त श्रेणी विभाजन का 'चवन्नी छाप' मुहावरा। आज के आधुनिक जलसाघरों में और मीडिया शासित जीवन में 'चवन्नी' का कोई स्थान नहीं है। आर्थिक उदारवाद से जन्मी जीवनशैली में 'चवन्नी' कुछ भी नहीं है, परंतु अनेक लोगों के बचपन की स्मृतियां 'चवन्नी' से जुड़ी हैं। त्योहारों पर दी गई चवन्नियां या बुजुर्गों की जेब से फिल्म देखने के लिए चुराई गई चवन्नियां। चवन्नी महज सिक्का नहीं, एक दौर की स्मृति है।
विगत वर्ष बोनी कपूर के पिता सुरिंदर कपूर का निधन हुआ है। बतौर निर्माता सुरिंदर कपूर की पहली सफलता दारा सिंह अभिनीत 'टार्जन कम्स टू डेल्ही' है और उनके परिवार की अगली सफलता वर्षों बाद 'मि. इंडिया' थी। दारा सिंह के दौर में इस तरह की भाषा नहीं थी, वरना उन्हें ही 'मि. इंडिया' कहा जाता और वह बहुत उपयुक्त होता। हमारे सिनेमा के हर दौर में पहलवाननुमा नायक हुए हैं, क्योंकि अवाम में यह लोकप्रिय छवि है। एक जमाने में शेख मुख्तार थे, फिर दारा सिंह का दौर चला, फिर मिथुन चक्रवर्ती ने उस तरह की कुछ फिल्में की। आज की लोकप्रिय निर्देशिका फरहा खान के पिता कामरान भी इसी श्रेणी में थे।
आज के दौर में शिखर सितारे जिम में घंटों परिश्रम करने के बाद आयात किया प्रोटीन पाउडर पीकर मांसपेशियां बनाते हैं और उनकी सफलता में उनके मजबूत 'मछलियों वाले जिस्म' का भारी योगदान है। आज सितारा बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले युवा अभिनय की पाठशाला में नहीं जाते, वरन् जिम जाते हैं, घुड़सवारी सीखते हैं, तैरना सीखते हैं। गोयाकि अभिनय छोड़कर सब कुछ सीख लेते हैं। आज कुछ दर्शक नारी पात्र के 'क्लीवेज' दर्शन से अधिक पुरुष पात्र का 'क्लीवेज' देखते हैं। सारांश यह है कि आज के करोड़ों पाने वाले सितारों के आदर्श दारा सिंह हैं। अत: अपने निधन के बाद भी दारा सिंह हमें अपनी जगह दिखाई दे रहे हैं। इस तरह संज्ञा विशेषण बन जाती है। दारा सिंह की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि शिखर निर्माताओं को भी कुछ भूमिकाओं के लिए उन्हें आमंत्रित करना पड़ा। जब मनमोहन देसाई अपने प्रिय नायक अमिताभ बच्चन को 'मर्द' में प्रस्तुत करने जा रहे थे तो नायक के पिता की भूमिका में दारा सिंह को प्रस्तुत किया और उनके लिए अपनी शैली का दृश्य बनाया कि वे दौड़ते हुए विमान पर रस्सी का फंदा डालते हैं और उसे उडऩे नहीं देते। दरअसल मनमोहन देसाई अपने प्रतिद्वंद्वी प्रकाश मेहरा की 'शराबी' का फिल्मी जवाब 'मर्द' से दे रहे थे।
राज कपूर ने भी अपनी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' में रिंगमास्टर की भूमिका के लिए दारा सिंह की सेवा ली थी। उन दिनों रूसी जिमनास्ट के सीमित समय के लिए भारत आने के कारण दिन-रात शूटिंग चलती थी। एक दिन राज कपूर ने दारा सिंह को मय पूर्व पहुंचा देखकर पूछा कि कल रात देर तक काम चला था तो आप इतनी जल्दी कैसे पहुंचे। दारा सिंह ने कहा कि रात तीन बजे घर पहुंचकर सुबह आना था तो वे रात स्टूडियो में ही सो गए। उनसे पूछा गया कि कहां सोए, तो उन्होंने कहा कि इतनी देर से लौटने पर पत्नी का सामना करने से कम खतरनाक था शेरों के साथ सोना। दारा सिंह के पास हास्य के लिए भी अद्भुत माद्दा था। वे अत्यंत निर्मल स्वभाव के अनुशासित व्यक्ति थे। मांसपेशियां बनानी हो या चरित्र बनाना हो, अनुशासन आवश्यक है।
दारा सिंह ठेठ पंजाबी व्यक्तिथे और उन्होंने पंजाबी भाषा में फिल्मों का निर्माण भी किया। आज समाज और सिनेमा में दारा सिंह की विशेषताएं और तत्व मौजूद हैं, परंतु उन्हें अन्य फैशनेबल नामों से पुकारा जाता है और आने वाले दौर में भी ऐसा ही होगा कि दारा सिंह जीवन या सोच में अन्य नाम से मौजूद होंगे।