दार्शनिक और मोची / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी

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(अनुवाद :सुकेश साहनी)

एक दार्शनिक अपने फटे जूतों की मरम्मत कराने के लिए मोची के पास आकर बोला, "कृपया इनकी मरम्मत कर दो।"

मोची ने कहा, "मैं किसी दूसरे आदमी के जूते सिल रहा हूँ, आपके जूतों से पहले के तमाम जूतों पर मुझे काम करना है। आप अपने जूते छोड़ जाएँ, एक दिन के लिए दूसरा जोड़ा पहन लीजिए, कल आकर अपने वाले पहन जाइएगा।"

इस पर दार्शनिक क्रुद्ध होकर बोला, "मैं अपने अलावा किसी के जूते नहीं पहनता।"

मोची ने कहा, "तो क्या आप सही मायने में दार्शनिक हैं जो दूसरों के जूतों में पैर नहीं डाल सकते? इसी सड़क पर आगे एक और मोची है जो दार्शनिकों को मुझसे अच्छी तरह समझता है। आप अपने जूतों की वहीं मरम्मत करा लें।"