दार्शनिक / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
Gadya Kosh से
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
"तुम इस सुनसान खेत में खड़े-खड़े थक गए होगे।" एक बार मैंने एक बिजूखे से कहा।
"दूसरों को डराने से मिलने वाली खुशी इतनी गहरी और स्थायी होती है कि मैं कभी थकान महसूस नहीं करता।" उसने कहा।
"यह सच है," मैंने कुछ सोचते हुए कहा, "क्योंकि मुझे भी इस तरह की खुशी के बारे में पता है।"
"हाँ, जिसके भीतर घास-फूस भरा हो, वही इस खुशी को जान सकता है।"
मैं उसके पास से चला आया, मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि उसने मेरी तारीफ की है कि अपमान किया है।
एक वर्ष बीत गया। जब मैं दोबारा उसके पास से गुज़रा तो मैंने देखा, उसकी टोपी के नीचे दो कौवे घोंसला बना रहे थे।