दावते इश्क में भेजा फ्राय / जयप्रकाश चौकसे

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दावते इश्क में भेजा फ्राय
प्रकाशन तिथि : 17 सितम्बर 2014


हबीब फैजल सार्थक मनोरंजन गढ़ते रहे हैं आैर उनकी 'दावते-इश्क' के गीत तथा प्राेमो से आभास हो रहा था कि यह एक प्रेम-कथा है, जिसमें जायकेदार भोजन की अहमियत है। परंतु विगत सप्ताह से इस तरह के विज्ञापन रहे हैं कि इस मनोरंजक प्रेम-कथा में दहेज की समस्या को भी महत्व दिया गया है। इस तरह यह सामाजिक प्रतिबद्धता वाला मनोरंजन लग रहा है आैर ऋषिकेश मुखर्जी को इस प्रकार के सिनेमा का पुराेधा प्रचारित भी किया गया है परंतु सच्चाई यह है कि सोद्देश्य मनोरंजन भारतीय सिनेमा का 'स्थायी' रहा है आैर हर काल खंड में इस तरह की फिल्में बनी हैं। यह ऋषिकेश मुखर्जी की मौलिक खोज नहीं है परंतु वर्तमान काल खंड में इसके सर्वश्रेष्ठ फिल्मकार राजकुमार हीरानी हैं आैर हबीब फैजल भी उसी राह पर चल रहे हैं। हबीब फैजल अपनी फिल्मों में यह काम राजकुमार हीरानी से हटकर कर रहे हैं कि उनका प्रयास आज के युवा की विचार शैली को समझना है आैर अपने सिनेमाई माइक्रोस्कोप से वह उनके अवचेतन में छुपे दोषों आैर खूबियों को देख रहे हैं। उनकी लिखी 'बैंड बाजा बारात' भी इस युवा पीढ़ी को जानने का प्रयास था। उसकी नायिका की जिद है कि जिसके साथ व्यवसाय में भागीदारी है, उससे इश्क आैर शादी का सवाल ही नहीं उठता। संकेत यह भी थे कि ये लोग व्यवसाय को इश्क के ऊपर रखते हैं। उनका विश्वास है कि इश्क से पेट नहीं भरता, सिर पर छत नहीं बनती। अब इनको कोई कैसे समझाएं कि कभी प्रेमी बारिश में एक ही फटे हुए छाते के नीचे गाते थे "प्यार हुआ, इकरार हुआ फिर प्यार से क्यों डरता है दिल' कुछ आैर तरक्की हुई तो गाने लगे "आआे इसमें रपट जाएं'। आज इश्क वातानुकूलित बंगले में ही हो सकता है आैर बैंक में जमा राशि ही यौवन एवं ऊर्जा है।

बहरहाल हबीब फैजल अपने मनोरंजक अंदाज में दहेज की समस्या को प्रस्तुत कर रहे हैं। इस विषय पर सबसे गंभीर एवं सफल फिल्म शांताराम की 'दहेज' थी जो आजादी की अलसभोर में बनी थी आैर दहेज विरोधी कानून बनाने की पहल का श्रेय भी उसे प्राप्त है। दहेज विरोधी कानून का मूल्य उतना भी नहीं रहा जितने के कागज पर उसके लिए जद्दोजहद हुई है। कोई भी समाज कानून से नहीं बदला जा सकता। सारे परिवर्तन परिवार में नैतिक मूल्यों की स्थापना से ही हो सकते हैं। दहेज आज भी दिया जा रहा है। "जिंदगी' पर प्रसारित पाकिस्तान के सीरियल भी स्पष्ट कर रहे हैं कि यह बुराई सरहद के दोनों आेर एक सी है। सांस्कृतिक पृष्ठभूमि समान है तो सामाजिक व्याधियां भी समान है।

बहरहाल कुछ इस तरह की बात बिहार के उमाशंकर ने बताई है कि विगत दशकों में सबसे अधिक आईएएस अफसर बिहार से चुने गए हैं, क्योंकि बिहार में आईएएस दामाद को मुंहमांगा दहेज मिलता है। यह युवा पीढ़ी के जीवन का मंत्र रणबीर कपूर अभिनीत 'ये जवानी है दीवानी' के एक संवाद से ज्ञात होता है कि पच्चीस में नौकरी, छब्बीस में छोकरी। अत: युवा मन लगाकर पढ़ता है कि रिश्वत की अपार संभावना वाली नौकरी के साथ करोड़ों का दहेज लाने वाली छोकरी भी मिलेगी आैर अगर वह अधिक सुंदर ना भी हो तो क्या फर्क पड़ता है। दफ्तर में सेक्रेटरी है आैर गोश्त की मंडी में भाव कभी बढ़ते ही नहीं। इसी एक क्षेत्र में महंगाई की मार नहीं है आैर हो भी तो कोई परेशानी नहीं है।

यह युवा पीढ़ी अर्जुन की तरह मछली की आंख को साधते हैं आैर इनका सूर्योदय पूर्व नहीं पश्चिम में होता है। सुविधाभोगी जीवन की लालसा इतनी प्रबल है कि यह केवल 'शार्ट कर्ट' में यकीन करते हैं। अपने साध्य के लिए साधन की पवित्रता को वे पूरी तरह खारिज कर चुके हैं। इनके लिए विकास का जो अर्थ है, उसी को नेताआें ने राजनैतिक वादे के रूप में भुनाया है। आज हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए युवा अवचेतन में पैठी कमजोरियों को जानना जरूरी है। यहां तक कि लिखने के क्षेत्र में भी कुछ लेखक उसी तरह की लुगदी रचते हैं जो युवा की वासनाआें को समझता हो आैर मार्केटिंग के टोटकों के सहारे बेस्ट सेलर रचे जाते हैं। यह काम अमेरिका में विगत पांच दशकों से हो रहा है। अब लेखन एक व्यक्ति का काम नहीं है। अमीर लेखक के स्टाफ में शोधकर्ता हैं, प्रचारक हैं आैर चार्टेड एकाउंटेंट हैं जो पूंजी निवेश का कीमिया जानते है। मेरे मित्र भोपाल के डाॅ. शिवदत्त शुक्ल ने कम्प्यूटर पर दो हजार पेटिंग कर ली हैं। यह भला आदमी कुछ वर्ष पूर्व ब्रश से कैनवास पर कविता करता था। आजकल विवाह, दहेज से जुड़े व्यवसाय में दलाल भी पांच टके कमशन पर काम करते हैं। लगता है कि दावते इश्क में मगज की गिजा भी शामिल है।