दासुराम की पाण्डुलिपि / भीम पृष्टि / दिनेश कुमार माली
गुडुरीपंका गांव के दासुराम का आखिरकार मुझे पता चल ही गया | दुबला-पतला,भोलाभाला, किसी को नुकसान नहीं पहुंचाने वाला एक स्मार्ट गायक था कवि दासुराम। उस समय मैं अपनी पार्टी में एक खतरनाक मोड़ से गुजर रहा था। मुझे अपनी पार्टी की एक लड़की से प्रेम हो गया था। मेंडिमेरा के जंगल में हमारे प्रेम के मामले पर बहस करने के लिये एक बैठक का आयोजन किया गया। पार्टी के नियम के अनुसार अगर हम शादी का निर्णय लेते हैं तो हमें एक और साल का इंतजार करना पड़ेगा और उससे पहले मुझे अपनी नसबंदी भी करानी होगी।
चूंकि एक साल के बाद मुझे अपनी प्रेमिका से शादी करनी थी, उसे पार्टी के आदेशानुसार आन्ध्रप्रदेश की सीमा पर भेज दिया गया, ताकि हमें अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किसी भी तरह की कोई बाधा न पहुँच सके। मुझे गुरिल्ला बटालियन से हटा लिया गया और मेरी बंदूक छीन ली गई। मुझे गजपति और रायगढ जिले के सांस्कृतिक मामलों तथा जन-संपर्क पर प्रतिवेदन बनाने का आदेश दिया गया।
सच में, जिंदगी का कोई एक दर्शन दूसरे दार्शनिक विचारों से अपना रूप बदल देता है ... उदाहरण...माओत्से तुंग। मैंने उसके दर्शन को उस समय स्वीकार किया, जब मैं पार्टी में काम करता था।
“ दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए हमें हथियार उठाने चाहिए तथा सशस्त्र सैनिक बनना चाहिए। मगर ऐसा करने मात्र से हम अपने दुश्मनों से बच नहीं सकते। हमें अपनी अपनी मदद करने के लिये एक सांस्कृतिक बल की भी जरूरत होती है, जो हमारे प्रयासों की किलेबन्दी करेगा और हमारी सम्प्रभुता को ताकतवर बनाएगा। उसके बाद ही हम अपने दुश्मनों को परास्त कर सकते है।”
यह बात तब सिद्ध हुई, जब मैं गुडुरीपंका गाँव में सांस्कृतिक संपर्क स्थापित करने की खोज में था और मेरी मुलाकात दासुराम से हो गई।
मैं एक सौर आदिवासी की झोपड़ी में चार-पाँच दिन छुपा था अदब के घने जंगलों में। मैं अपनी रणनीति बना रहा था- क्या करना हैं और मेरा काम कहाँ से शुरू होगा? तभी पार्टी का दूत जुनूस का पर्दापण हुआ। उस चुई लड़के का सपना था कि एक न एक दिन वह बंदूक पकड़ेगा और पार्टी में समानता के लिए लड़ेगा।
वह पार्टी में नीचे रेंक पर कार्य करता था। जुनूस ही वह पहला आदमी था जिसने मुझे दासुराम के बारे में बताया था। मैंने उससे पूछा, “ क्या कर रहा है वह अब? ”
“ क्या करेगा वह? वह गरीब परिवार से है। उसके पिताजी बीमार है। घर में उसकी माँ और पत्नी है। वह पाँचवीं कक्षा तक पढ़ा है, मगर वह कवि है। वह लिरिक, कविताएं और इस तरह की कई चीजों पर लिखता है। उसने गांव में एक संगीत-दल बनाया है। वह दल गाँव में शादी और त्यौहारों के समय अपना काम करता है।”
मैं जुनूस से जिज्ञासावश दासुराम के बारे में और जानना चाहता था।
गाँव का चौकीदार वहां का सरदार है। अगर गाँव की सड़कों पर मिट्टी गिरती है तो वह गांव वालों से दो सौ रुपए का फाइन वसूल करता था। अगर दो शराबी भाई आपस में लड़ते है तो वह उनसे पचास रुपए वसूल करता। फिर फॉरेस्ट गार्ड अलग से एक भैंस पर एक रुपया और एक बकरी पर पचास पैसे या इसी तरह कुछ वह जंगल के कानून की अंतर्गत लेता था। वार्ड मैंबर यहां तक कि गाँव के बूढ़े लोगों से भी घूस मांगता, जो सरकारी पेंशन पर जीते थे। इससे भी ज्यादा, गरीब लोगों को बी पी एल सामान देते समय वह स्टांप पेपर के भी पैसे मांगता। सारे सरकारी कार्यालय इन सभी व्यापारियों के घरों से चलते थे।
मैं बिना पलक झपकाए दासु और उसके गाँव के बारे में जुनूस से सुन रहा था। पार्टी अभी तक इस गाँव में नहीं पहुँची थी कि गाँव वालों को भ्रष्ट-अधिकारियों के खिलाफ़ संगठित करने के लिए प्रेरित करती। इस काम की शुरुआत करने से स्थानीय मदद की आवश्यकता थी। पार्टी ने भी इस क्षेत्र में प्रवेश करने का कोई आदेश नहीं दिया था। मुझे पार्टी से आज्ञा लेनी थी कि मैं दासुराम से मिलूँ या नहीं। मैंने इस बारे में अपने कमाण्डर को एक पत्र लिखा था और मैंने जुनूस को कहा कि अगली बार गाँव के किसी सम्मेलन में जब कभी दासुराम आए तो वह उसे खबर कर दें। मुझे उस कुई कवि से मिलना जो था। अगर वह वास्तव में विद्रोही स्वभाव का है, तभी मैं उससे मिलूंगा अन्यथा नहीं,मैंने सोचा।
मैं दासुराम से मिलने के लिए बहुत उत्सुक था और मेरे निजी कारणों के अलावा अधीर भी। जब सारा गांव सोता था, मैं अंधेरे में धीरे-धीरे साल की गिरी हुई सूखी पत्तियों पर चलता और अकेले में अपने प्रेम के बारे में सोचने लगता। मुझे एक साल इंतजार करना था और साथ ही साथ, मुझे नसबंदी के दुःख को भी सहना था।
एक दिन जल्द सुबह जुनूस ने मुझे खबर दी कि दासुराम गाँव के किसी नृत्य-समारोह में आने वाला है, शुक्रवार की रात को अदब गाँव की कुई गली में। तब लगभग कितने बजे होंगे? रात के आठ या नौ? शोरगुल के बीच मैं गाँव के अंदर चला गया। दूर से कुई लोगों का सामूहिक गान साफ सुनाई पड़ रहा था और चंगु का संगीत भी। मैंने उसे भीड़ में आसानी से पहचान लिया। एक कमजोर, ठिगना, काला आदमी जो पहले गाता था और फिर चंगु बजाता था। वह दासुराम था।
घंटों गीत गाने के बाद दासु का दल थककर शांत हो गया। उसके बाद जवान लड़के और लड़कियाँ एक-दूसरे की कमर पकड़कर तालबद्ध नाचने लगे, जिससे सारा जंगल हिल उठा।
दासु कुछ ही दूरी पर अकेले बैठा हुआ था और अपने चंगु पर नई धुन बजाने का प्रयास कर रहा था। जुनूस ने उसके पास जाकर कानों में कहा - पार्टी के लोग आए है, तुमसे बात करना चाहते है।
दासु अपना चंगु रखकर बाहर आ गया। मैं दिगंबर की नीची छत वाली झोपड़ी में बाहर बैठा हुआ था, एक अंधेरे कोने में। दासु ने आकर मुझे प्रणाम किया।
“बैठो, दासु” मैंने उसे अपने पास बैठाया और उससे कहने लगा, “ तुम शादी के समारोहों और त्यौहारों के लिए गाने लिखते हो। तुम कुछ ऐसी नई थीम पर गाने क्यों नहीं लिखते, जिसे कुई लोग सुने और बहादुर बनें। वे गानों से बदल जाए। ”
दासु मेरे कहने का अर्थ तुरंत समझ गया। वह कहने लगा, “विद्रोह के गीत? ” मैं ऐसे गीत लिखता हूँ, मगर मैंने अभी उन्हें कहीं पर गाए नहीं है। फूलबनी में केमता नायक नामक एक कवि हुए है। मेरे पास उनका कविता संग्रह “कुई डिंपूंगा” है। उन गानों में में भी विद्रोह के स्वर है। उन गानों में हमारे संघर्ष और हम कुई लोगों के अधिकारों की व्याख्या है। उस किताब से प्रेरित होकर मैंने खुद लिखना शुरू किया :-
गजपति जिले में उपजता सोना
गजपति जिले के गरीब खोदते मिट्टी
मुझे अंग्रेजी, ओडिया,तेलुगु और हिन्दी अच्छी तरह से बोलनी आती है। और मैं अपनी पार्टी के काम के लिए आदिवासी भाषा जैसे 'सौर' और कुई धीरे-धीरे पकड़ रहा था। दासु की कविता में सरकार की लालफ़ीताशाही पर एक करारा व्यंग्य था। मैंने उसका उत्साहवर्धन करने के लिए उसकी पीठ थपथपाई।
दासु अपने गीत और उसकी भाषा के लिए खुश हो गया।
वह कहने लगा, “ हमारे लोग ही हमारी बोली और भाषा के पक्के शत्रु हैं। हमारे गांव के डांब और हरिजन जाति के लोग पादरियों के चक्कर में पड़कर ईसाई बन रहे है। गिरजाघर की सिस्टर उन्हें समझाती हैं,
“ हमारे धर्म में मुर्गों की बली नहीं चढ़ाई जाएगी और नहीं किसी प्रकार का नाच-गाना होगा। हमारे भगवान ईसा नाराज हो जाएंगे। आप केवल उनकी आज्ञा का पालन कर सुबह-शाम उनकी आराधना करें। ”
“ हमारे गाँव में जो लोग जनेऊ पहनते हैं, वे लोग हिंदू भक्ति गीतों के कैसेट खरीदकर गाँवों में बजा रहे हैं। वे हिन्दी रीति-रिवाज और त्यौहार मनाते हैं और महुआ पीकर फिल्मी धुन पर नाचते हैं। अब आप ही बताइए, क्या हमारी भाषा, हमारे नाच-गाने की अद्वितीय संस्कृति जीवित रहेगी?”
मैं ध्यानपूर्वक उसे सुन रहा था और देख रहा था कि वह कुई आदमी अपनी कुई भाषा और संगीत के प्रति कितना संवेदनशील है। मैं उसकी गर्म साँसों के अंदर उसके क्रोध को अनुभव कर रहा था। मैं उसके दिल की धड़कन को सुन रहा था।
“हम अपने आदमियों को समझा रहे है, कोई बात नहीं, आप चाहे हिन्दू बनो या ईसाई, मगर अपनी भाषा और संस्कृति को मत भूलो। हमारी आदिवासी हैं। यह हमारा पुराना धर्म है। कुछ नेता हमें अपनी राजनीतिक पार्टियों के खातिर हिन्दू या ईसाई बना रहे हैं। ”
उस दुबले-पतले कुई आदमी की आवाज भी वास्तव में एक आदिवासी योद्धा का स्वर था। मैंने पुलिस की तरह और जांच-पड़ताल करनी चाही, “ अपने गांवों में नाच गानों के कार्यक्रमों के अलावा तुम अपने आदमियों के लिए क्या अच्छे काम करते हो?”
“हम अपने आदमियों के लिए क्या करते हैं, यह कहने वाली बात नहीं है। हमारे कुई आदमी बदलें, वे ज्यादा स्मार्ट बने, इसलिए हम उन्हें समझाते रहते हैं।“
“ सही मैं तुम उन्हें समझाते हो? ” मैंने अपनी पूछताछ जारी रखी।
“ हम गांव वालों को बताते हैं कि जादू पर विश्वास नहीं करें। शेर-चीते हमारे देवता हैं, वे हमारे जैसे आदमियों को क्यों मारेंगे? भूत-प्रेत पैसे वालों को ही क्यों लगते हैं? हम अपने आदमियों को कहते हैं, अगर आपको मलेरिया हैं तो आप कुनैन की दवाई लें, काला जादू नहीं कराएं। मुर्गों की बली न दें। इस थीम पर मैंने गाने भी लिखे है। “
मैं और ज्यादा जाना चाहता था -
“ हमारे शादी के समारोह दूल्हे को दुल्हन की कीमत चुकानी पड़ती हैं। हम गरीब लोगों के लिए गाय, बैल और पीतल के बर्तन तक दहेज के लिए जुगाड़ करना मुश्किल होता हैं। पहले, अगर लड़का दुल्हन के पैसे नहीं दे पाता तो लड़की वाले के घर बंधुआ मजदूर का काम करना पड़ता था। हमने इस अभ्यास को बंद करवा दिया, भले ही, लड़का लड़की के परिवार वालों को कुछ पैसे क्यों न दे दें। मगर उसमें भी कई समस्याएँ है। अगर आदिवासी जवान जब दुल्हन के पैसे जुगाड़ नहीं कर पाता है तो वह साहूकारों के पास अपनी जोतने वाली जमीन गिरवी रखकर शादी करता है। शादी के बाद उसके पास खाने को कुछ भी न बचता है और काम की तलाश में वह गाँव छोड़कर बहुत दूर चला जाता हैं। अब हम संदेश दे रहे हैं कि वे प्रेम-विवाह करें। प्रेम-विवाह में किसी भी प्रकार का दहेज नहीं देना पड़ता है। हमने देखा कि लोक-गीतों के माध्यम से यह सन्देश नीचे स्तर तक पहुँच गया है।“
दहेज-निराकरण एवं अंध-विश्वास से लोगों को जागृत करने के लिए दासुराम द्वारा बनाए गए फार्मूले में बुद्धिमानी झलकती है। उसकी ठुड्डी कि हड्डी साफ दिखाई दे रही थी और मैंने देखा, गड्ढे में घुसी हुई आँखें बिजली की तरह चमक रही थी, जब वह मुझसे भावावेश में आकर बातें करता था। मैंने आग में और घी डाला, “ तुम्हारे वीर स्टेशन का चौकीदार तुम्हारे एरिया का नेता है। पहले तुम अपने तौर-तरीके बदलो। अगर चौकीदार तुम्हें पुलिस स्टेशन ले जाता है, और पुलिस तंग करती है और घुस मांगती है। तब...? तुम अपने झगड़े-झंझट अपने भीतर समाप्त करो। पुलिस को उसमें बिलकुल शामिल मत करो। ”
“ आप ठीक कह रहे है, साहब। “
“ मुझे खबर मिली है कि यहाँ के व्यापारी और जमींदार बहुत शक्तिशाली हैं। तुम लोगों को समझाओ – अगर किसी को शराब चाहिए तो वह खुद महुआ के फूल इकट्ठे करें और अपनी शराब खुद बनाएँ। शराब पीने के लिए अपनी जमीन व्यापारियों के पास गिरवी न रखें। तुम्हें ताड़ के पेड़ से ताड़ी मिल जाती है, उसे दूसरों में बाँट दो। मगर बाजार से बिलकुल भी शराब मत खरीदो। यही एक तरीका है, तुम इन व्यापारियों की ताकत और मोनोपोली को खत्म कर सकते हो। ”
पार्टी के एक परिपक्व सदस्य की तरह मैं दासुराम की सारी बातें सुन रहा था और उसे विद्रोह करने के लिए प्रेरित कर रहा था। साथ ही साथ, मैं उसके आत्म-विश्वास को भी जगा रहा था। शराब की बुरी लत के कारण दासु के परिजनों की मौत हुई थी। वह कहने लगा- “ मैंने इस संबंध में कई गाने लिखे हैं, ताकि हमारे लोग शराब छोड़ सकें।“
उसने धीरे-धीरे गुनगुनाना शुरू किया –
शराब की लत के कारण तुम गरीब हो गए हो।
शराब के कारण तुमने अपनी जिंदगी खराब कर दी है।
तुमने अपनी सम्पदा और जमीन बेच दी हैं।
यहाँ तक कि, पूर्वजों की जमीन और सोना-चांदी भी
अपने पूर्वजों की जमीन गिरवी रखकर
क्यों नशे में अपनी मुछें ऐंठ रहे हो
और अपने को समझते हो पैसे वाले
तुम फटे कपड़ों में घूमते हो
और कितने गंदे दिखते हो
अपने घर पर छत तक नहीं डाल सके
फूटी छत से दिखता है चाँद –सूरज
शराबी की पत्नी मजदूरी करती है
और वह अपनी पत्नी के मेहनत की कमाई खाता है
उसके पैसों से शराब पीता है
पीने वाले की पत्नी मर जाती है
सूदखोर उसकी जमीन हड़प लेते हैं
और वह उसके घर बंधुआ मजदूरी करता है
दासुराम की कविता में विद्रोह के स्वर थे। वह समाज को सुधारना चाहता था। उसके संगीत दल के लड़के धीरे धीरे इकट्ठे होने लगे और एक साथ मिलकर शराब के खिलाफ गीत गाने लगे। उनके गाने की मिठास से शाम और मधुर होने लगी। उसके बाद उन्हें गुडुरीपंका गाँव जाना था। मैंने उस दल में से दासुराम का चयन किया। मैंने उसके कंधे पर हाथ डालते हुए कहा,” तुम लोगों के लिए गाने लिखते हो और उनके अधिकारों के लिए भी लड़ते हो। गजपति और रायगढ़ जिले में किसान और मजदूर मिलकर ऐसा ही कर रहे है। वे तुम्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाएंगे और तुम्हें बताएँगे कि किस तरह तुम्हें विद्रोह के लिए लोगों को तैयार करना है और उनके लिए गाने बनाने हैं। उसके बाद तुम योद्धा बन सकते हो- एक वास्तविक लीडर। ”
“मैं, श्रीमान! ”
गुडुरीपंका में दासुराम ही थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा था। वह नेता बनने की गर्मी को समझ सकता था। उसे और साहसी होना होगा और जलती आग में कूदना होगा। उनका दल जल्दी ही पहाड़ी इलाकों के अदब के घने जंगलों से पार हो गया।
उस समय साधारण कुई आदिवासियों के जीवन में खतरनाक उठापटक हो रही थी। मैंने भाँप लिया था – उसकी जिंदगी में खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। उसे परेशान किया जा रहा हैं। किस तरह उसे पार्टी के आदर्शों के लिए केन्द्रित और तेज तर्रार किया जाए।
तभी मुझे मेरे पार्टी का आदेश प्राप्त हुआ कि मैं गजपति छोड़कर रायगढ़ा चला जाऊँ।
मैं समझ रहा था कि मेरा प्रेम-प्रसंग और मेरी रुकी हुई शादी के कारण मेरा कमांडर बार-बार एक जगह से दूसरी जगह मेरा स्थानांतरण कर रहा था। वह भी आंध्र-प्रदेश और उड़ीसा के सीमांत इलाकों में। सीमा के उस पार मेरी प्रेमिका रहती थी। मैं अपनी प्रेमिका को इसी बहाने याद कर लेता, जब कभी मुझे मेरे प्यार की खातिर सजा मिलती। मैंने अपनी जेब में समेटकर रखे हुए अपने पुराने पत्र को बाहर निकाला। आंध्र प्रदेश की तरफ से कोई संदेशवाहक अभी तक नहीं आया था। पत्र लिखे हुए तीन महीने हो चुके थे, मगर वह अपने गंतव्य स्थान पर अभी तक नहीं पहुँच पाया था। जंगल के बाहर एक पोस्ट ऑफ़िस था। पास में एक कुटिया थी,जिसमें इन्टरनेट की सुविधा उपलब्ध थी। मैं अपनी जेब में प्रेम-पत्र लेकर जंगल में इधर-उधर घूम रहा था। एक संदेशवाहक की उस समय मुझे सख्त जरूरत थी।
एक दिन हमारे खुफ़िया बिरुपा ने खबर लाई कि सुब्बाराव,आंध्र का संदेशवाहक मेंड़ीमेरा में आया है। मैं अपना सारा प्रोग्राम भूलकर मेंड़ीमेरा में सुब्बाराव को मिलने जंगल से भरे घाटरोड पर दौड़ पड़ा। यह बात एकदम सही थी कि इन व्यक्तिगत पत्रों का अर्थ पार्टी के अमूल्य समय की बर्बादी थी। और हमारे जैसे लोग प्रेम-पत्र की कुछ पंक्तियों के लिए महीने-महीने बर्बाद करते हैं।
इससे पहले कि मैं यह पत्र सुब्बा राव को देता, पहले मैंने बहुत पहले लिखे हुए पत्र पर सरसरी निगाह डाली और मैंने पाया कि उसमें लिखा हुआ कोई काम का नहीं था। कौन जानता है कि आखिरकार पत्र कब अपने निर्धारित जगह पर पहुँचेगा और कब मुझे उसका उत्तर मिलेगा? मैं उससे मिलने के लिए काफी उतावला था। मुझे ऐसा लग रहा था मानो यह साल बहुत जल्दी खत्म हो रहा हो। उससे पहले मुझे नसबंदी करवानी थी। पिछले कुछ महीनों से नसबंदी का डर मुझे सता रहा था। चाँदनी रात में जब कभी मैं अपनी यात्रा शुरू करता तो जंगल के सूखे पत्तों की आवाज से मैं कांप जाता मानो किसी ने मेरे गुप्त अंगों को हिला दिया हो। डर के मारे मैं पसीने से तर-बतर हो जाता।
मैंने अपने पार्टी के वरिष्ठ लोगों से एक बात सीखी थी – तुम्हें कठिन समय को पार करना होगा और दुर्गम पहाड़ियों पर काबू पाना होगा। फ़िर भी अगर तुम अपने शत्रुओं को ताकत से नहीं मार सकते हो तो तुम्हें दूसरे तरीकों का प्रयोग करना होगा। उसके लिए तुम्हें हमेशा मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार रहना होगा।
और मैं इस चीज के लिए तैयार था।
यह साफ हो जाना चाहिए, जो चीज मुझे परेशान करती। मैंने सुब्बाराव के सामने पुराने पत्र को खोलकर फाड़ डाला और एक नया पत्र लिखा – “ मैं अगले दो महीनों के अंदर अपना ऑपरेशन कराना चाहता हूँ। पार्टी से छुट्टी मिलने के बाद तुम यहाँ आ जाओ। मैं अपना काम करवा लूँगा। लाल सलाम! ”
सुब्बाराव ने पत्र ले लिया और उसके बाद मेरा नसबंदी का डर बहुत कम होता गया। मैंने गजपति जिले से अपने बोरे-बिस्तर उठा लिए और मैं रायगढ़ा की ओर रवाना हो गया।
जंगल-जंगल मुझे घूमना था पार्टी के लिए बहुत सारे लोगों से संबंध साधने। ऐसे अवसर पर कभी-कभी मुझे अकेले घूमना नीरस लगता था। मगर जैसे ही मैं किसी आदिवासी परिवार के साथ रहना शुरू कर लेता था, तो मुझे लगने लगता था, जैसे मैं अपने परिवार के साथ रह रहा हूँ। और मैं अपने परिवार के लिए कार्य कर रहा हूँ। पंडरताल गाँव में श्रीणु की झोपड़ी में बहुत समय रहने के बाद जब मुझे खबर मिली कि किसान और मजदूर लोग मिलकर एक समिति बना रहे हैं और उसमें दासुराम उपस्थित होगा। अगर दासुराम पार्टी की मदद के लिए रायगढ़ा जिले के कोलनारा गाँव पहुँच सकता है तो मैं पंडरलता गाँव में बैठकर क्या करूंगा? मुझे वहाँ जाकर उसे अवश्य मिलना चाहिए। कुई कवि जो कभी शादी और उत्सवों के लिए गीत लिखा करता था, आजकल उसकी सोच में काफ़ी सुधार आया है। मैं उससे मिलने के लिए बहुत उत्सुक था। और मैं उसके गीत सुनना चाहता था।
श्रीणु के साथ दस किलोमीटर चलने के बाद हम कोलनारा गाँव पहुँचे, तब तक काफी अंधेरा हो चुका था। गाँव के अंतिम किनारे पर अन्नानास के बगीचे में किसान और मजदूर लोगों ने एक बैठक रखी थी। जिसमें रायगढ़ा क्षेत्र के पार्टी कमांडर तथा आसपास गाँवों के सदस्य इकट्ठे हुए थे। बैठक पूरी तरह से गोपनीय रखी गई थी। इस बैठक में गुनुपुर की राजनैतिक अवस्था, गुडारी के जमीनी मुद्दे को लेकर तनाव पर विचार-विमर्श हुआ। और अंत में दासुराम का नाम पुकारा गया।
नाम सुनते ही वह उठ खड़ा हुआ। उसने अपनी कमर पर पत्तों जैसी अपनी हरी लंगोट को ठीक किया। सिर पर लाल कपड़ा बांधा हुआ था वह, पार्टी –चिह्न के तौर पर। पहले से ज्यादा कमजोर लग रहा था वह। लगभग 25 साल उम्र रही होगी। उठते ही उसने चंगु को सीने से लगाया और तुरंत ही प्रेरक कुई गानों के माध्यम से कोलानारा जंगल की जमी हुई नीरवता को चीर दिया।
हमारी कुई बोली और यह कुई जमीन
हम उसे बचाने के लिए संगठित होंगे
रायगढ़ा,फूलबानी और गजपति के गांव वालो,
सभी आओ, हम सब मिलकर काम करेंगे।
कुई लोग एक हो
हम यह संगठन बनाएँगे
आप सभी उसमें शामिल हो
हमें कोई नहीं पूछेगा
एक साथ आओ
जंगल हमारे जन्मसिद्ध अधिकार है
आओ, हथियार उठाओ
ताकि कोई हमारे पेट पर लात न मार सके।
एकत्रित भीड़ मांग करने लगी, “एक बार और, एक बार और गाओ। ”
दासुराम का उत्साह बढ़ गया। चंगु की धुन पर ‘निर्मम सरकार’ गाना शुरू किया, अभिनय के साथ।
यह सरकार धोखेबाज है और पुलिस वाले चोर है
यह राजा झूठा है और मंत्री चोर है
वे हमारे गाँवों में आते हैं और हमारे नारियल ले जाते हैं
और हमारी मुर्गियाँ भी
कितना भी तुम गिड़गिड़ाओ, वे नहीं सुनेंगे
वे लालची कुत्ते हैं, उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आता है
देश का गरीब
इस दुनिया में जिसके पास कुछ भी नहीं है
हमें मुक्ति तभी मिल सकती है अगर हम सरकार से लड़ते हैं
और हम अपने आपको बचा सकते हैं, अगर हम इन पुलिस वालों को पीटते हैं।
दासु की आवाज में ‘निर्मम सरकार’ के गीत में उसका गुस्सा और उसकी नफरत वर्तमान सरकारी तंत्र पर साफ दिखाई दे रही थी। धीरे-धीरे कुई और सौर बहुत सारे वहाँ इकट्ठे होकर उसकी धुन में कोरस गान करने लगे। उन्होंने अपने हथियार, धनुष-तीर, लाठी-भाले और यहाँ तक कि अपनी बांसुरी भी दासुराम के समर्थन में ऊपर उठा ली। अपनी जाति की रक्षा के लिए हथियार समेत दासुराम उनके बीचो-बीच खड़ा हो गया। अगले दिन जब मैं गजपति लौटा तो मैंने उससे पूछा, “ सब ठीक चल रहा है तुम्हारे इलाके में? ”
“ नहीं। मैं विद्रोही लिरिक लिखकर गा रहा हूँ। हमारे मजदूरों और किसानों की बैठकों में मेरा गहरा जुड़ाव होने के कारण मेंडिमारा पुलिस स्टेशन की गिद्ध दृष्टि हमेशा मुझ पर पड़ी रहती हैं। वे मेरे पीछे पड़े है। वे मुझे पुलिस थाने बुलाते हैं और ऐसे उत्तेजक गाने लिखने के लिए चेतावनी देते हैं। वे मुझे सचेत करते हैं कि मैं ऐसे गाने नहीं गाऊं। मगर मैं क्यों नहीं गाऊँगा, आप ही बताइए?” वे कहते हैं कि गीत गाना बंद करो,अन्यथा इस गाँव को छोड़कर चले जाओ। क्या मैं ऐसा कर सकता हूँ? ”
मैं उसकी बात सुनकर बहुत खुश हो रहा था। मैं जानता था कि पार्टी में प्रवेश करने की पहली आवश्यकता पूरी हुई। इसी बीच दासुराम को किसान मजदूर संगठन की मंडलीय समिति, रायगढ़ा-गजपति जिले का समन्वयक बना दिया गया। जब मैं लौटने लगा, उसने मुझे पहले की तरह सेल्यूट किया, “ लाल,सलाम!” तभी मुझे दासुराम के जवानी के दिनों का एक वाकया याद हो आया। एक दिन जब दासुराम पहाड़ी इलाकों में अकेले घूम रहा था। उसने देखा कि एक जानवर आदमी को खा रहा था और नीचे पहाड़ी सड़क पर जोर से गरज रहा था। उसने पहले कभी ऐसे विचित्र जानवर को नहीं देखा था। जब उसने गांव में यह बात बताई तो किसी-किसी ने उसका विश्वास कर लिया तो कोई कोई हंसने लगा। दूसरे दिन दासु के साथ सुभाष भी जंगल में गया। उसने भी वहीं फुफकार की आवाज सुनी। दासु ने कहा कि यह वही जानवर है जिसे उसने कल देखा था। यह कहते हुए वह पास के पेड़ पर चढ़ गया। सुभाष उसकी मूर्खता पर जोर-जोर से हंसने लगा। वह कहने लगा- “ यह कोई नरभक्षी जानवर नहीं है, बल्कि यह एक मोटरगाड़ी है। तुम जिस नरभक्षी जानवर को देख रहे हो, वह वास्तव में सामने बैठा हुआ उसका ड्राइवर है। ”
जो आदमी कभी मोटरगाड़ी को नरभक्षी जानवर समझता था, वह आज पार्टी का समन्वयक था।
मुझे वाल्टेयर का कथन याद आ गया, ” क्रांति अंडे की तरह होती है।“
मैंने अपनी कल्पना शक्ति बढ़ाई। क्रांति का अंडा पक गया है। पार्टी के काम के लिये कुई, संथाल, कंध और सौर आदिवासी जाति के लड़कों को उनकी प्रतिभा के अनुसार चयनित किया जाता था। पार्टी उन्हें प्रशिक्षण देती थी और आगे जाकर उन्हें कामरेड बनाती थी। मुझे पार्टी में अपने शुरूआती दिन याद है- बंदूक कैसे चलानी हैं ? उत्साहजनक भाषण कैसे देना हैं? आदिवासी भाषा कैसे बोली जाती है? इसके अतिरिक्त कठोर शारीरिक परिश्रम के वे दिन जब हमें हमेशा सावधान और सतर्क रहना पड़ता था। कोई फर्क नहीं पड़ता अगर तुम खाना खा रहे हो या जंगल गए हो, हमेशा भरी हुई एक बंदूक साथ रखनी पड़ती थी। प्रशिक्षक हमें कहते थे :-
“ याद रखो, जब तुम्हारे पास बंदूक है तो तुम्हें हमेशा ध्यान से रहना है। तुम्हारी आँखों के सामने केवल तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिए।“
और उन दिनों जब हम बंदूक चलाना सीख रहे थे, हम अपने लक्ष्य पर एकाग्रचित्त रहते थे। फिर भी पता नहीं कैसे प्रेम मेरे हृदय में प्रवेश कर गया!
उन दिनों जब हम एक ही पोशाक पहनकर अपने कंधों पर बंदूक रख जंगल के रास्तों में इधर-उधर घूमते थे, मुझे दिन या तारीख कभी याद नहीं रहती थी। मगर मुझे हमेशा याद रहता था पहाड़ों पर लगी जंगल की आग और उस आग को देखकर हम एक-दूसरे से प्यार का इजहार करते थे कि कम से कम पार्टी में हम एक साथ हैं। फिर मुझे अपनी नसबंदी भी करवानी थी।
मैं अपने ऑपरेशन के लिए सुरक्षित जगह खोज रहा था। मेरे पत्र का संक्षिप्त में उतर आया था, आंध्र-प्रदेश के एक संदेशवाहक द्वारा। उसने अपने हाथ घसीटते हुए लिखा था, “ मैं चाहती हूँ कि तुम जल्दी से अपने एक्शन में आओ। हम अपने समूह में मजबूत होने की जरूरत है। मुझे बताओ, कब और कहाँ तुम्हारा ऑपरेशन होगा? मैं वहाँ आऊँगी। लाल सलाम! ”
उसका पत्र पाकर मुझे खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। मेरी हताशा तुरंत खत्म हो गई। मुझे अपना ऑपरेशन जल्दी कराना चाहिए। मैंने उसी संदेशवाहक के हाथ उत्तर भिजवाया कि यह पखवाड़ा खत्म होने के बाद वह गुनुपुर इंजीनियर कामरेड के घर पर पहुँचे। तुम्हारे आने के बाद ही ऑपरेशन किया जाएगा। मेरा पार्टी समर्थक दोस्त गुनुपुर में एकांत जगह में मकान किराए पर लेकर रहता था। उसके साथ उसकी पत्नी और लकवाग्रस्त पिताजी रहते थे। वह एक निजी कंपनी में नाम के लिए नौकरी करता था। वह अपनी कमाई का आधे से ज्यादा खर्च पार्टी की विभिन्न गतिविधियों पर करता था, चारु मजूमदार का जबर्दस्त समर्थक जो ठहरा। पार्टी की बुलेटिनों में उसके क्रांतिकारी आलेख छपते थे। उसकी लंबी दाढ़ी, गंदे कुचैले कपड़े,कंधे पर लटकता हुआ झोला और कमर पर बंदूक ताने, वह पार्टी की गुरिल्ला बटालियन के लिये एकदम सही दिखाई दे रहा था। गलती से वह अपने परिवार का बोझ उठा रहा था।
एक रात साढ़े दस बजे मैंने उसका दरवाजा खटखटाया। उसे हम कोड नाम से पुकारते थे, “ कामरेड इंजीनियर, लाल सलाम!” उसने हमारा लाल सलाम कहकर स्वागत किया। चारों तरफ सावधानीपूर्वक देखकर उसने हमें भीतर बुला लिया। अंदर जाते ही मैंने उससे कहा कि मुझे दस दिन कहीं रहने की व्यवस्था चाहिए और साथ ही साथ, एक विश्वसनीय डॉक्टर भी। मैं अपनी नसबंदी करवाना चाहता हूँ। हम दोनों इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि निजी या सरकारी अस्पताल हमारे लिए किसी भी तरह सुरक्षित नहीं थे। पुलिस मुझे खोज रही थी।
कॉमरेड इंजीनियर मेरा बहुत ही संवेदनशील दोस्त था। उसे मेरे प्रेम-प्रसंग, मेरी होने वाली शादी और नसबंदी की वजह के बारे में पता था।
उसके घर के पिछवाड़े में अपने मकान मालिक का अनुपयोगी गेरेज था। उसने गेरेज साफ करवा लिया और मेरे लिए रस्सी वाली खटिया, पानी से भरा मटका और कुछ नए कपड़े खरीदकर रख दिए। उस सुनसान घर में जैसे-जैसे रात गहराती जाती, मैं उत्सुकता से किसी के आने का इंतजार कर रहा था। जिसके सुंदर चेहरे पर चमकती आँखों में छुपे प्यार ने मुझे नसबंदी करने में विलंब करवाया। वह आने वाली थी।
एक दिन जल्दी सुबह कामरेड -इंजीनियर ने उसे मेरे पास गेरेज में छोड़ दिया। जंगल भटकते-भटकते रास्ते में कई लिफ्ट लेने के बाद आखिरकार वह पहुँच गई थी मेरे पास। मेरा ऑपरेशन अगली रात में होना था। हमारे पास केवल एक रात और दो दिन बचे थे। यही समय बचा था दिल खोलकर हंसने, भरपूर प्यार करने और एक-दूसरे की व्यथा को सुनने-सुनाने में। मेरी नसबंदी होने के बाद ही वह मुझे मिल सकती थी। उसने मेरी मर्दानगी की हानि को स्वीकार किया, मगर यह जानते हुए भी कि मैं कभी बाप नहीं बन सकता था। यह बात मुझे भीतर ही भीतर कसौट रही थी।
गले मिलने के बाद हमने एक एक-दूसरे को सांत्वना दी कि हमारा प्यार केवल हमारी पार्टी के लिए है। और हमारी शादी भी। हम दोनों केवल पार्टी के लिए रहेंगे। पार्टी हमारी ताकत है और हम पार्टी की। हम दोनों काँटों भरे रास्ते के पथिक थे। हमारे त्याग और बलिदान से पार्टी मजबूत बनती हैं। क्रांति तेज होती है। वह मेरे इशारे समझ गई और उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया।
ऑपरेशन के दो दिन बाद जब निश्चेतक का प्रभाव कम हुआ तो मेरा दर्द बढ़ने लगा। वह जाने वाली थी। जाने से पहले वह मुस्कराई और अपनी उंगलियां गिनते हुए कहने लगी, “ हम साढ़े तीन महीनों बाद मिलेंगे, तब तक अच्छे से रहना, कामरेड!”
उसके बाद वह सीमा के उस पार चली गई। जंगलों से होते हुए वह आंध्र-प्रदेश चली गई होगी। अपनी बंदूक वाली पोशाक पहनकर उसने शेरनी की तरह अपना एक्शन ग्रुप ज्वाइन कर लिया होगा। उसके जाने के बाद मेरी संतुष्टि और उसके साथ सँजोए भविष्य के सारे सपने धूमिल होने लगे।
तभी मुझे खबर मिली कि रायगढा रेलवे स्टेशन के चौराहे पर आन्ध्र से आए दो ग्रेहाउण्ड पुलिसवालों ने दासु को पकड़ लिया। वे साधारण कपड़ों में थे और मोटर-साइकिल पर सवार थे। उसके बाद दासु की कोई खबर नहीं मिली। दासु का कुछ भी पता नहीं चल रहा था। आगे की सोचकर मैं खटिया पर पड़े-पड़े डर से कांपने लगा मानो किसी ने मुझे बिजली का झटका दे दिया हो। मुझे यह अच्छी तरह पता था कि आन्ध्र पुलिस ओड़ीशा से आए हमारे आदमियों को कितनी बुरी तरह से पीटते थे। वे आंध्र से आकर हमारी पार्टी की आदमी को लेकर चले गए, तब उड़ीसा पुलिस कहाँ थी? मैं उन पुलिस वालों की बदले की भावना से परिचित था। हो सकता है उन्होंने दासुराम को किसी इंकाउंटर में मार दिया हो। अपनी जाति में विद्रोह के गीत गाने वाले कुई कवि को हमेशा-हमेशा के लिए शांत कर दिया हो। मुझे ऑपरेशन के बाद आराम करने का समय दिया गया। इंजीनियर कामरेड की आवभगत, गुनुपुर की राजनीति -सब पीछे छोड़कर मुझे रायगढ़ा लौटना होगा। मुझे अपने प्रिय कुई दोस्त को खोजना होगा। बिना दाढ़ी किए मैं गेरेज होम से बाहर निकाल गया। रायगढ़ा में, मैं अपने संदेशवाहक निकोलस को खोजने लगा। उसका कहीं भी अता-पता नहीं था। मुझे पता चला कि हमारी पार्टी के ऊपर स्तर में भी दासुराम के अपहरण की चर्चा जोरों पर हैं। चार दिन बाद मुझे निकोलस मिला। उसने बहुत ही बुरी खबर लाई। दासु के अपहरण के बाद पुलिस ने गाँव में कई कैंप लगाए थे। कडकडमारा गाँव के दो पार्टी समर्थक प्रकाश और रवि को पुलिस पूछताछ के लिए अपने साथ ले गई है। पुलिस ने अपनी बात जबर्दस्ती मनवाने के लिए उन्हें बुरी तरह पीटा। और यहाँ तक कि, पुलिस ने दासुराम के गाँव पर भी अपनी नजर रखना शुरू कर दिया हैं। मैंने चिंतित होते हुए पूछा, “ तब तो, वास्तव में गुडुरीपंका गांव के लिए सबसे बुरी खबर है। “
“ हाँ, बहुत ही बुरी खबर है। जैसे ही गाँव में दासुराम की गिरफ़्तारी की खबर पहुंची तो शराब निवारण अभियान का विरोध कर रहे छोटे-मोटे व्यापारियों ने स्थानीय हरिजनों के साथ मिलकर चावल के खेतों से पकी फसल लूट ली है। इस लूट में पुलिस भी शामिल थीं और उसने भी गांव वालों पर भयंकर अत्याचार किया हैं। उसने पाल मांझी का राशन कार्ड और नकद बारह सौ रुपए लूट लिए। यही नहीं, दिशा मांझी के मिर्च, काले चने, कशु मालिका का लौकी का गोदाम, मकर मांझी के यहाँ से पका हुआ गो-मांस और सुल्तान के घर से सूखी मछली आदि। हालांकि, पुलिस को प्रकाश के घर में कुछ भी नहीं मिला, मगर सन्दूक में पंद्रह सौ रुपए जो उसने बचाए थे, ताला तोड़कर ले गए।
पुलिस को गुडुरीपंका वार्ड नंबर के घर से चार सौ रुपए मिले। मैंने उसकी अंतहीन तालिका को बीच में ही विराम दे दिया। निकोलस गजपति एरिया में आया था। अपने एरिया में हो रहे पुलिस अत्याचार का वर्णन करते-करते वह चुप नहीं हो पा रहा था। मैंने अपना हाथ उसके गरम सिर पर रखते हुए कहा, “ हमने अपनी पार्टी से सीखा है कि दुश्मन हमेशा दुधारी तलवार पर चलते हैं, इसलिए एक धार की ओर देखकर इतना भावुक होने की जरूरत नहीं है।“ निकोलस ने मेरे लिए पार्टी का आदेश सुनाया कि मैं तुरंत रायगढ़ा छोड़ दूँ और गजपति जिले के मोहना में रिपोर्ट करूँ। मैं निकोलस और उसके साथियों को वहीं छोड़कर अपने अगले गंतव्य स्थान की ओर रवाना हुआ। महीने बीतते गए। किसी भी संदेशवाहक लड़कों द्वारा दासुराम की कोई खबर प्राप्त नहीं हुई थी। मुझे डर था – कहीं पुलिस ने उसे किसी इनकाउंटर में शहीद न कर दिया हो। मुझे दासुराम के बारे में बिलकुल भी जानकारी नहीं थी। मैं केवल उसके भाग्य के बारे में सोच रहा था। तभी मुझे पता चला कि वह विशाखापट्टनम की जेल में है। मैंने राहत की सांस ली।
इसका मतलब दासुराम पुलिस के इनकाउंटर में नहीं मारा गया। दासु लापता नहीं है। वह विशाखापट्टनम की जेल में है। कैसा होगा वह वहाँ? हथियारों की तरह वह अपने क्रांतिकारी गानों की धार को और तेज कर रहा होगा। पार्टी के काम से मैं कभी रायगढ़ा से गजपति तो कभी बहरामपुर से भुवनेश्वर घूम रहा था। मैं तो मेरी शादी की निर्धारित तिथि भी भूल गया था। उसके कागज ने मुझे यह याद दिलाया। एक संदेशवाहक ने मुझे वह कागज बीस दिन के बाद दिया। उसने लिखा था, “ कामरेड! पार्टी की तानाशाही की वजह से हमारी शादी की तिथि दो महीने पीछे खिसक गई। कब और कहां मुझे मिलोगे? लिखे। लाल सलाम! ”
हमारे पार्टी के हाई कमान की स्वीकृति के बाद उसके पत्र में उस दिन के इंतजार की उत्सुकता साफ झलक रही थी। यद्यपि मुझे उसके लिए प्यार की गहरी अनुभूति होने लगी, मगर मैं अपने जीवन के उन शानदार और सार्थक क्षणों को दासु की उपस्थिति के बिना बिताना नहीं चाहता था। मैंने उसी संदेशवाहक को लिखकर दिया, “अगर हम कामरेड कवि दासुराम के गाने के बिना इस अवसर पर शादी कर लेते हैं तो यह कैसी शादी होगी? दासुराम को विशाखापट्टनम जेल से ओड़िशा के उदयागिरी जेल में लाया गया है। उसके आजाद होने की मैं प्रतीक्षा करूंगा। लाल सलाम! ”
मैं खुद नहीं समझ पा रहा था मेरी शादी को दासु की आजादी से जोड़कर। उसके जेल बदलने की खबर सच में मेरी पार्टी और मेरे लिए अत्यंत सुखद थी। हमें यह खबर मिली कि आंध्रप्रदेश की पुलिस उसे बहुत परेशान कर रही है, यह मनाने के लिए कि वह नक्सल है। यहाँ तक कि उसके ऊपर थर्ड डिग्री भी इस्तेमाल की जा रही है, मगर वह बिलकुल भी विचलित नहीं हुआ। चाहे पुलिस हाजत हो या कचहरी, उसने सभी का बहादुरी से सामना किया। उसने पार्टी के लिए बहादुरी से बड़ी से बड़ी सजा भुगती।
और जब मैं पार्टी के काम से सपेलगुड़ा में था, वह समय सौर आदिवासियों के लिए त्यौहार का समय था। उस समय सपेलगुड़ा में संगीत,नृत्य और दावत के विभिन्न आयोजन हो रहे थे। नशे की खुमारी अगली सुबह तक टूटी नहीं थी। तभी पार्लखेमुंडी से मांगेर लौटा। वह पार्टी के लिए काम कर रहा था। उसके खिलाफ एक दो झूठे मुकदमे पुलिस ने दर्ज किए थे। अवसर पाकर एक दिन वह जेल से भाग गया और तब से वह पहाड़ी इलाकों में छुप-छुपकर रह रहा है। मुझे देखते हुए उसने कहा, “ पार्लखेमुंडी से खबर आई है कि दासुराम को दो दिन के बाद छोड़ दिया जाएगा। बेल करने वाला आदमी भी मिल गया है। ”
यह खबर सुनते ही मैं उस दिन सपेलगुड़ा छोडकर उस कुई कवि को मिलने चला गया, जहां उसने अपनी जिंदगी के सोलह महीने जेल में गुजारे।
दासुराम ने मुझे देखते ही लाल सलाम से अभिवादन किया। उसकी आँखें आंसुओं से भरी थीं। मैंने उससे हाथ मिलाया और धीरे से उसकी पीठ थपथपाई, जिस पर लाठी बरसा पुलिस ने बुरी तरह घायल कर दिया था। मैं उससे जानना चाहता था कि जब रायगढ़ा स्टेशन पर आंध्र पुलिस ने उसे पकड़ा तो क्या उसमें ओड़िशा पुलिस भी शामिल थी?
उसने कहा, " जब मैं रायगढ़ा स्टेशन पर एक छोटी होटल के किनारे पेशाब कर रहा था तभी साधारण कपड़े पहने हुए आंध्र प्रदेश की दो ग्रेहाउण्ड पुलिस ने मुझे धर दबोचा और अपनी मोटरसाइकिल पर बैठकर कहीं ले गए। वहाँ रायगढ़ा पुलिस का कोई आदमी नहीं था। उनकी मोटर साइकिल से उतरकर मैं पूछने लगा, " मैं तुम्हारे साथ क्यों जाऊँगा? ऐसा मैंने क्या किया है? तुम मुझे उड़ीसा पुलिस को सुपुर्द कर दो, वे मुझे सजा देंगे।"
मगर उन्होंने मेरी कोई बात नहीं सुनी। उन्होंने मुझे बहुत पीटा और अपनी गाड़ी पर बैठाकर ले गए। बीच रास्ते में उन्होंने मुझे किसी दूसरे आदमी को दिखाकर उसके साथ जाने का संकेत किया। वह आदमी हमारे क्षेत्र का था, आंध्रप्रदेश पुलिस का एक गुप्तचर। उस आदमी ने मुझे अपना परिचय पत्र दिखाने को कहा, मगर मेरे पास कोई परिचय पत्र नहीं था। मैंने साफ इनकार कर दिया। तब वह मुझे कमरदा पुलिस थाना ले गए और मेरे हाथों में एक बम रख दिया। उसने मुझे आदेश दिया, " इसे पकड़ो! तुम नक्सलवादी हो।"
मैंने शिकायत भरे लहजे में उत्तर दिया, " मैं कोई नक्सलवादी नहीं हूँ। मैं बम नहीं पकडुंगा। " उन्होंने मेरे कपड़े उतारकर जेल की सलाखों के पीछे ठेल दिया।
मैं उस दासुराम की कड़वी अनुभूतियों को समझ रहा था, जिसे गीत लिखने के कारण जेल में डाला गया था। मैंने सांत्वना देते हुए उसे कहा, " ठीक है! हमारी पार्टी के बहुत सारे लोग जेल आते रहते हैं। तुम मुझे खबर कर सकते थे। हमें बहुत समय तक तुम्हारे बारे में पता नहीं था। हमें तो यह भी पता नहीं था कि तुम जिंदा हो या तुम्हें पुलिस ने किसी इनकाउंटर में मार दिया है।"
जैसे ही मैंने उसकी मौत की ओर इशारा किया तो वह मुस्कुराने लगा। दासु पुलिस की मार के बावजूद भी जिन्दा था और मुस्कुरा रहा था।
" मुझे किसी ऐसी खास जगह पर नहीं रखा गया, जहां से मैं तुम्हें खबर कर सकता था। वे मुझे कमरदा पुलिस स्टेशन से पार्वतीपुरम ले गए। वहाँ के प्रभारी वी पी विजयकुमार ने मुझे बहुत बुरी तरह पीटा। उसने मेरे पास रखे तीन सौ रुपए और मेरी हाथघड़ी ले ली। वहाँ से मुझे विजयनगर ले जाया गया। उधर मुझे गुप्त स्थान पर रखा। और वहाँ की पुलिस मेरे मुंह में बंदूक घुसाकर धमकाने लगी, " नक्सली गतिविधियों के बारे में जो कुछ तुम्हें पता है, बता दो। नहीं तो हमारे साथ नक्सली पोशाक पहनकर मुडारी चलो।"
तभी वहाँ गुनुपुर और पदमपुर की पुलिस भी पहुँच गई। आंध्र पुलिस का इलाका आते ही मुझे ओड़िशा पुलिस ने निर्दयता से फेंक दिया और मुझे लाठी से इतना मारा कि वह लाठी टूट गई। उसके बाद उन्होंने मुझे रबर पाइप से मारा। एक बुजुर्ग पुलिस वाले ने कहा, “ चलो, हम इसे रेल लाइन पर फेंक देते हैं।“
उन्होंने मुझे एक तख्त पकड़ाया, जिस पर लिखा हुआ था “जयराम मांझी, नक्सल”। यह तख्त पकडवाकर ओड़िशा और आंध्रप्रदेश की पुलिस ने मेरे फोटो खींचे। वहाँ से मुझे बोबुली कोर्ट ले जाया गया। और उसके बाद अलग-अलग जेल की हवा। और आखिरकार मुझे विशाखपट्टनम की जेल में ले जाया गया। उसके बाद कुछ झूठे मुकदमों को आधार बनाकर मुझे पारलेखमुंडी ले जाया गया और उसके बाद उदयगिरी। इन सोलह महीनों में मुझे फ़ुटबॉल पर किक मारने की तरह आंध्रप्रदेश से ओड़िशा ले जाया गया।
उसकी आँखों में खून के आँसू थे और उसकी आवाज मानो हड्डियों के अंदर से निकल रही हो। वातावरण पूरी तरह गंभीर था। उसे हल्का करते हुए मैंने कहा, “ दासु, तुमने तो बहुत सारी कविताएं लिखी होगी? ”
जब कविता लिखने की बात आई तो दासु ने मुस्कुराते हुए कहा, ” उन्होंने मुझे कविता और गीत लिखने के आरोप में गिरफ़्तार किया। तब क्या वे मुझे जेल में गाने लिखने देते? वहां पेन और पेपर कहाँ थे? मेरे पास केवल जला हुआ कोयला था। मैं और गाने नहीं लिख सका, मगर मैंने कुई भाषा में कुछ पत्र जरूर लिखें।”
दासु ने अपनी जेब से चार बार मोड़े हुए कागज के टुकड़े को निकाल कर मेरे सामने रखा। मैं दासु की तरफ देखने लगा। उसके हाथ का लिखा हुआ कागज मुझे आश्चर्य चकित कर रहा था। मैं जड़वत्-सा हो गया, “ क्या यह कुई लिपि है? क्या यह तुम्हारी बोली में पहले से है? ”
दासु हंसने लगा, “ इससे पहले हमारी कुई बोली में कोई लिपि नहीं है। आपने देखा होगा कि हम ओडिया लिपि का प्रयोग करते हैं।“
उदयगिरी में एक पुलिस वाले ने ज़ोर से मुक्का मारते हुए कहा था, “
तुम किस प्रकार के कवि हो? भुवनेश्वर से एक दल तुम्हें खोजने आया है। अखबारों में तुम्हारे बारे में कहानियां छपी हुई है। तुम्हारी लिपि क्या है? कुई? या ओडिया? या तेलगू? मैंने उत्तर दिया कि मैं ओडिया लिपि में लिखता हूँ। “
“ क्यों तुम्हारी कोई लिपि नहीं है? ” पुलिस वाले ने मुझसे पूछा। मैंने स्वीकृति में अपना सिर हिलाया। फ़िर पुलिस वाले ने मुझे सलाह दी, “ अगर तुम लोगों कि अपनी लिपि नहीं है तो जो भी तुम चित्र खीचोंगे वह तुम्हारी कुई लिपि बन जाएगी।“
“ मैं अपनी कोठरी के फर्श पर चारकोल से चित्र बनाता था। मुझे उन अक्षरों का अभ्यास करने में छह महीने लगे। और उसके बाद मैं संयुक्ताक्षर बनाने लगा और फिर अंक।“
दासु अपनी बारहखड़ी समझा रहा था। मैं सोच रहा था- क्या दासु जानता है कि कुई लोगों के लिए पहली बार उसके द्वारा बनाई गई लिपि सार्थक होगी। आदिवासी भले ही भाषा है मगर उसकी लिपि धीरे-धीरे खत्म होती गई। यह लिपि उससे कुछ मिलती-जुलती है। दासु ने अपनी भाषा के लिए पहली बार पांडुलिपि लिखी। मुझे उसे सेल्यूट करने की इच्छा हो रही थी। वास्तव में वह सेल्यूट का हकदार है। मैंने उसके सामने अपनी स्थिति रखी। और सेल्यूट करते हुए जोर से कहा, “ लाल सलाम! लाल सलाम! ”
दासु मेरी तरफ़ खुशी से देखने लगा और मैंने फूलदान की तरह अपनी खुशी उस पर न्यौछावर कर दी –
“ क्या तुम जानते तो दासु बहुत ही कम आदिवासी भाषाओं की लिपि प्रचलन में है। जैसे रघुनाथ मरमु ने संथाली भाषा के लिपि की खोज की और तुमने कुई भाषा की। “
“ कौन जानता हैं? मैं उनके बारे में कुछ भी नहीं जानता। हमारे पास लिपि नहीं है, इसलिए मैंने बहुत दिमाग लगाकर इस अक्षरों का निर्माण किया है। मैं अंग्रेजी के वर्णमाला की तरह इन अक्षरों की एक पुस्तक निकालूँगा। हमारे बच्चे हमारी भाषा सीखेंगे और हमारे लिपि में लिखेंगे। ”
दासु बहुत खुश लग रहा था। उसने अपनी भाषा के बारे में सपने बुने थे। मगर उसकी लिपि के बारे में मेरे दूसरे विचार थे और यह सोचकर मैं मुस्करा रहा था। मैं सोच रहा था, पार्टी इन अक्षरों को अपने गुप्त कोड के रूप में उपयोग करेगी। कोई भी लिखा हुआ समझ नहीं पाएगा। यहाँ तक कि पुलिस भी नहीं, भले ही उनके हाथ में पार्टी का कोई पत्र क्यों न पहुँच जाएँ। वह अपने गाँव गुडुरीपंका जाने के लिए उतावला दिख रहा था, क्योंकि जेलर ने उसे अपनी बूढ़ी माँ और पत्नी से मिलने की अनुमति नहीं दी थी। जल्दी से जल्दी वह उनसे मिलना चाहता था। जेल से निकले हुए कैदी को आखिर भला मैं कब रोक सकता था! दासु चला गया। उसके जाने के बाद मैं अपनी पार्टी के काम में व्यस्त हो गया। भुवनेश्वर में ऊपर स्तर में यह निर्णय लिया गया कि वहाँ पर बहुत सारे लोगों द्वारा सामूहिक विरोध प्रदर्शन का आयोजन है। इससे पहले कि मैं भुवनेश्वर पहुँचकर पार्टी के समर्थकों से अपने संपर्क साधता, मुझे राजनैतिक गतिविधियों पर भी ध्यान रखना था। अपने कमांडर के अनुदेश का अनुसरण करते हुए मैंने अपने काम पर ध्यान देना शुरू किया। इसी दौरान मेरी मुलाकात पल्टू से हो गई। मैं व्यक्तिगत तौर पर उससे मिलना चाहता था। मैं अपनी विलंबित शादी को तुरंत करना चाहता था। मैंने इस हेतु मण्डल समिति से इजाजत माँगी। और पार्टी निर्णय करेगी कि किस गाँव में और कब मेरी शादी की जाएगी। मैं पहले से पल्टू को जानता था, वह मंडलीय समन्वयक जो था। मुझे अनुमति दिलाने में वह सफल हो गया।
मैंने उससे कहा था, “ पल्टू देखो! मुझे इसी पखवाड़े के अंदर शादी की अनुमति चाहिए और वह भी गजपति जिले में।“
“ ऐसा ही होगा।“ उसने मुझे विश्वास दिलाया। पार्टी की अनुमति मिलने तक मैंने सपनों में खोए-खोए अपना कार्य जारी रखा। हम जंगलों में अपनी शादीशुदा जिंदगी बिताएँगे। मैंने हमेशा उसे या तो पार्टी की पोशाक या फिर सलवार कमीज में देखा, अब मैं उसे शादी के दिन लाल साड़ी में देखना चाहता था। मैं उसके स्पर्श में डूबना चाहता था और पहली बार उसे सीने से चिपकाकर रखना चाहता था। उस आदिवासी गाँव में मेरे सारे कामरेड मित्र दूर-दूर से पधारेंगे। गाँव वाले मेरी शादी के उत्सव को लेकर बहुत खुश थे। गोमांस खिलाया जाएगा। महुआ की शराब बहेगी। दासुराम यहाँ मौजूद होगा, अपने नए-नए गानों के साथ। सारी रात लड़के-लड़कियाँ झूमेंगे, नाचेंगे। ऐसे भव्य समारोह में मैं उसका हाथ पकड़कर चंद्रमा की श्वेत-धवल चाँदनी में महुआ के जंगलों में ले जाऊंगा। वह मेरे ऊपर होगी और मैं उसकी बेनी में कुरैई के फूल पिरोऊंगा। उन फूलों की खुशबू सारे गाँव में फैलेंगी। यह खुशखबरी सुनाने के लिए मुझे आंध्रप्रदेश की ओर जाने वाले संदेशवाहक की जरूरत थी। पल्टू सही समय पर पहुंचा। उसने वंशधारा पार्टी के प्रमुख का आदेश मेरे हाथों में थमा दिया। सामूहिक विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम के शुरू होने से पूर्व भुवनेश्वर में आयोजित प्रेस-कांफ्रेंस में दासुराम मलेका का जाना अति आवश्यक है।
पार्टी ने सही में मेरी शादी के लिए दिनांक और स्थान तय करने का जो वादा किया था, वह सपना कुछ और दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया। पार्टी के कार्यक्रमों के सामने मेरी व्यक्तिगत योजना कुछ भी नहीं थी। फ़िर से एक बार मैं पार्टी के काम के लिए सक्रिय हो गया। मैं सीधा दासुराम के गाँव गुडुरीपंका चला गया। मैं सोचने लगा- हमारी पार्टी के लिए दासुराम कितना काम का आदमी है! दासु भुवनेश्वर प्रेस मीट में टीवी, कैमरे,टेप-रिकॉर्डर,नोटबुक सभी का सामना करेगा। जितने भी गाने उसने लिखे है, वह सभी गाने गाएगा। वह अपनी पहली कुई वर्णमाला भी दिखाएगा। और पुलिस गिरफ्त के अपने सोलह महीनों के अनुभवों के बारे में बताएगा। वह वीडियो में अपने साक्षात्कार में यह बताएगा कि किस तरह आंध्र पुलिस भोले-भाले आदिवासियों को नक्सल के नाम पर आतंकित करती है। पार्टी के मीडिया प्रोग्राम में उसकी आवाज सुनाई देगी।
भोलाभाला कुई कवि जो कभी शादियों में गाने लिखा करता था, वह देखते-देखते पार्टी का एक सफल योग्य सदस्य बन गया। गुडुरीपंका पहुँचने के बाद मैंने उसकी ओर देखकर पूछा, “ दासु, कैसे हो?”
दासु मुझे देखकर अचंभित हो गया, साथ ही साथ खुश भी।
“ तुम्हें भुवनेश्वर जाना है।”
सोलह महीने जेल में रहने के बाद उसने अपने परिवार, संबंधियों तथा दोस्तों के साथ ठीक से समय भी नहीं बिताया था। उसने और कोई कविता या गाने नहीं लिखे थे, क्योंकि पुलिस वालों ने उसे बहुत तंग किया था। जेल जाने के बाद वह अपने जोते हुए खेतों में चावल की बुवाई नहीं कर सका था। उसकी माँ डर रही थी कि अगर उसने गाँव छोड़ दिया तो फिर से कहीं पुलिस वाले उसे जेल में नहीं डाल दें। उसने और कहीं भी जाने से इंकार कर दिया। घर के अंदर से दासु की पत्नी कहने लगी, “ वह और कहीं भी नहीं जाएगा।“
दासु चुपचाप अपने परिवार के सदस्यों का विरोध झेल रहा था। लड़ाई का कोई अन्त नहीं हैं। योद्धा का घर में कोई स्थान नहीं है। मैंने कठोर होकर कड़े स्वर में कहा, “ यह पार्टी का आदेश है। तुम्हें जाना होगा। “
अपने चंगु के साथ अपनी कविताओं की किताब और साल के पत्तों में लपेटे पीक लिए दासुराम भुवनेश्वर जाने के लिए तैयार हो गया।